राजस्थान की प्रथाएं – दोस्तो यह टॉपिक ज्यादा बड़ा नही है फिर भी राजस्थान की किसी ना किसी भर्ती परीक्षाओं में इस टॉपिक से प्रश्न देखने को मिल जाता है
इसलिए हमने इस टॉपिक को पुराने प्रश्नों के आधार पर तैयार किया गया है और इसे समय समय पर update भी किया जाता है जब भी कोई नया प्रश्न देखने को मिलता है तब इसमे डाल दिया जाता है

सती प्रथा –
- सती प्रथा का सर्वप्रथम उल्लेख – अथर्ववेद
- वही अभिलेखीय साक्ष्य – 510 ई का एरण अभिलेख ने मिलता है यह इस अभिलेख में गुप्त राजा भानुगुप्त के सेनापति गोपराज की पत्नी के सती होने का उल्लेख है
- राजस्थान में अभिलेख की बात करे तो यह – घटियाला अभिलेख (जोधपुर ) से प्राप्त होती है यह अभिलेख 810 ई का है इस अभिलेख से यह प्रमाणित होता है कि राजपूत सामन्त राणूका की पत्नी संपत देवी के सती होने की जानकारी है
- अन्य नाम – सहगमन, सहमरण, अनवारोहन
- इसमे मृत पति के साथ उसकी पत्नी स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा से जीवित जल जाती है
- अनुमरण – पति के दूर देश देहांत के पश्चात उसकी निशानी के साथ पत्नी का चितारोहण होना
- राजा राममोहन राय के प्रयासों से तत्कालीन गवर्नर जनरल बैंटिंग ने सती प्रथा को दंडनीय अपराध घोषित किया (1829 बंगाल में लागू, 1830 सम्पूर्ण भारत मे लागू)
- राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा किया गया
- ब्रिटिश प्रभाव से राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा को बूंदी नरेश राव विष्णु सिंह ने 1822 में गैर कानूनी घोषित किया
- रूपकरण सती प्रकरण – 04 दिसम्बर 1987 दिवराला (सीकर)
- पति – मालसिंह
- Cm – हरदेव जोशी
- गृहमंत्री – गुलाबसिंह शक्तावत
- राज्यपाल – बसंत दादा पाटिल
- सती प्रथा नियम अधिनियम 1987 से इसे दंडनीय अपराध घोषित किया (लागू – 1988)
- साका – जब दुश्मन द्वारा किसी राजपूत दुर्ग पर आक्रमण किया जाता है तो राजपूत योद्धा केसरिया धारण करते थे तथा राजपूत स्त्रिया (वीरांगना) जौहर करती थी वह साका कहलाता था
ईन दोनों क्रियाओ में से यदि कोई एक क्रिया नही होती थी तो उसे अर्धसाका कहा जाता था
- केसरिया – राजपूत योद्धा पराजय की स्तिथि में शत्रु पक्ष पर केसरिया साफा धारण कर अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ हेतु शहिद हो जाते थे इसे ही केसरिया कहा जाता था
- जौहर – शत्रु के आक्रमण के समय राजपूत योद्धाओं के युद्ध मे जीवित लौटने कि कोई आशा नही रहती थी और न उसके दुर्ग को दुश्मन के हाथ से बचाना सम्भव होता था तो उस दशा में स्त्रियां सामूहिक रूप से अपने धर्म व सतीत्व की रक्षा के लिए अग्निदाह करती थी इसे ही जौहर कहा गया
NOTE –
- चितौड़ में 03 साके
- जैसलमेर में ढाई साके 2 ½
- गागरोन व सिवाना में 2-2 साके
- जालौर व रणथम्भौर में 1-1 साके हुए
- प्रथम साका – 1301 में रणथंभौर पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तो हम्मीर व रंगदेवी के नेतृत्व में साका किया गया
कन्या वध – राजस्थान की प्रथाएं
- कोटा के महाराव उम्मेदसिंह ने पोलिटिकल एजेंट विलकिंसन के प्रयासों से सर्वप्रथम 1833 में कन्यावध को गैर कानूनी घोषित किया
- राजपूतो में जागीरों के छोटे छोटे टुकड़ो में बंट जाने ओर अपनी पुत्रियों के लिए पर्याप्त / उचित दहेज देने में असमर्थ रहने को कन्यावध का कारण माना गया
- वर्तमान में कन्या भ्रूण हत्या के रूप में इस प्रथा ने अपनी उपस्थिति प्रकट कर रखी है
डाकन प्रथा
- राजस्थान में अनेक जातियों विशेषकर भील व गरासिये व मीणाओ में स्त्रियाँ पर डाकन होने का आरोप लगाकर उनकी हत्या कर देने की कुप्रथा प्रचलित थी
- सर्वप्रथम खेरवाड़ा (उदयपुर) में महाराणा स्वरूप सिंह ने मेवाड़ भील कोर के कमाण्डेन्ट J C ब्रुक के प्रयासों से ऑक्टोम्बर 1853 में डाकन प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया
NOTE – राजस्थान डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2015 (लागु – 2016)
डावरिया प्रथा – राजस्थान की प्रथाएं
- राजस्थान में शासक समुदाय अपनी कन्या की शादी में दहेज के साथ कुंवारी कन्याएं भी भेजते थे जिन्हें डावरिया कहा जाता था
- ये महलो में सेविकाओं का कार्य करती थी
नाता प्रथा –
- ये परस्पर सहमति के आधार पर पुर्नविवाह की प्रथा है
- जिसके अंतर्गत पत्नी अपने पूर्व पति को छोड़कर अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीवन व्यतीत करती है
- झगड़ा राशि – दूसरे पति के द्वारा पहले पति को दी गयी राशि |
चारी प्रथा – राजस्थान की प्रथाएं
- क्षेत्र – खेराड (टोंक, भीलवाड़ा)
- वर पक्ष से वधु पक्ष के द्वारा नकद राशि प्राप्त की जाती है
दापा प्रथा –
- वधु मूल्य – पुरूष द्वारा कन्या के पिता को चुकाया जाता है
- गरासिया जनजाति में यह प्रथा प्रचलित है
समाधि प्रथा
- इस प्रथा में कोई पुरूष या महात्मा साधु मृत्यु का वरण करने के उद्देश्य से जल में डूबकर या मिट्टी के खड्डे में दबकर मृत्यु को प्राप्त करता था
- सर्वप्रथम जयपुर के पोलिटिकल एजेंट लुडलो के प्रयासों से सन 1844 में जयपुर राज्य में समाधि प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया
बाल विवाह
- अवयस्क स्थिति में विवाह को बाल विवाह कहते है
- सर्वाधिक विवाह (राजस्थान में) आखातीज (वैशाख शुक्ल तृतिया) को होते है
- 1885 में जोधपुर रियासत ने बाल विवाह को रोकने का प्रयास किया गया
- अजमेर के विख्यात समाजसेवी एव इतिहासकार हरविलास शारदा के प्रयासो से सन 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम पारित हुआ इसे शारदा अधिनियम भी कहा जाता है
- इसके अंतर्गत विवाह के समय लडके लड़कियों की कम से कम आयु क्रमशः 18 वर्ष ओर 14 वर्ष तय की गई
- यह अधिनियम 1 अप्रैल 1930 को समस्त देशभर में लागू हुआ
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम – 2006
लागू – 2007
इसके अंतर्गत लड़के व लड़की की विवाह की आयु 21 वर्ष व 18 वर्ष की गई
FAQ
- राजस्थान की प्रथाएं pdf
उतर – हमारे टेलीग्राफ चैनल पर उपलब्ध करवा दी गयी
- राजस्थान की प्रथाएं क्या है
उतर – हमने सारा विस्तार से बताया है
- राजस्थान की प्रथाएं हिंदी में
उतर – सारे नोट्स ही हिंदी में है
- राजस्थान के प्रथाएं एव रीति रिवाज प्रथाएं question
उतर – ये mcq या test series वाले फोल्डर में है
- राजस्थान के लोकगीत
उतर – यह टॉपिक हमने कला संस्कृति में उपलब्ध करवाया गया है
- कोनसे कोनसे एग्जाम में उपयोगी है
उतर जो भी एग्जाम rpsc या अधीनस्थ बोर्ड की भर्ती के सिलेबस में होना चाहिए