
जलवायु और मौसम की परिभाषा
जलवायु – किसी देश, राज्य या क्षेत्र विशेष की दीर्घकालिक मौसम संबंधी अवस्था को जलवायु कहा जाता है।
मौसम – किसी क्षेत्र विशेष की अल्पकालिक वायुमण्डलीय दशाएँ मौसम कहलाती हैं।
भारतीय मानसून का ऐतिहासिक संदर्भ
भारतीय जलवायु की सर्वप्रथम व्याख्या अरबी यात्री और भूगोलवेता अलमसुदी ने की।
उन्होंने 915 ई. से 916 ई. के मध्य गुर्जर प्रतिहार शासक महिपाल प्रथम के शासनकाल में भारत की यात्रा की।
अलमसुदी का यात्रा विवरण ‘मुरुज उल जहान’ कहलाता है।
उन्होंने भारतीय जलवायु को मानसूनी जलवायु बताया और ‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘पवन की दिशा या ऋतु’ होता है।
भारत की जलवायु
भारत की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मॉनसूनी जलवायु है।
इसे प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
A. भारत की अक्षांशीय स्थिति
भारत भूमध्य रेखा के निकट स्थित है और कर्क रेखा (23 1/2° उत्तरी अक्षांश) के माध्यम से गुजरता है। इस स्थिति के कारण भारत में उच्च तापमान रहता है और यहाँ की जलवायु उष्ण कटिबंधीय होती है।
B. समुद्र से दूरी
भारत का दक्षिणी भाग तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण यहाँ समुद्री जलवायु का प्रभाव अधिक होता है। दक्षिणी भारत में समजलवायु पायी जाती हैं। इसके विपरीत, भारत का उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी भाग समुद्र से दूर होने के कारण यहाँ गर्मी और सर्दी का प्रभाव अधिक होता है।
C. हिमालय की अवस्थिति
हिमालय पर्वत उत्तर और उत्तर-पूर्व में धनुषाकार आकृति में स्थित है। यह मानसून काल में भारतीय मानसून को रोकता है और उत्तर एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में वर्षा का कारण बनता है। हिमालय साइबेरिया और तिब्बत से आने वाली शीत पवनों को रोककर भारत में शीतलहर के प्रभाव को कम करता है।
D. भारतीय उच्चावच
भारतीय उच्चावच (पर्वत, पठार, मैदान, मरुस्थल) भारतीय जलवायु को प्रभावित करते हैं। थार के मरुस्थल में ग्रीष्म ऋतु में प्रबल निम्न वायुदाब केंद्र का निर्माण होता है, जो भारतीय मानसून को आकर्षित करता है। अरावली पर्वतमाला और पश्चिमी घाट के पूर्व में वृष्टि छाया प्रदेश के कारण वर्षा कम या नहीं होती है।
E. मानसूनी पवनें
मानसूनी पवनें दो प्रकार की होती हैं:
- ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनें: इनकी उत्पत्ति हिन्द महासागर में होती है। ये पवनें दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं:
- अरब सागर शाखा: यह शाखा भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा करती है।
- बंगाल की खाड़ी शाखा: यह शाखा पूर्वोत्तर राज्यों और उत्तर भारत में वर्षा करती है।
- शीतकालीन उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनें: इनसे केवल कोरोमंडल तट (तमिलनाडु) में वर्षा होती है।
F. पश्चिमी विक्षोभ और उष्णकटिबंधीय चक्रवात
शीत ऋतु में भूमध्य सागरीय पश्चिमी विक्षोभ से उतर पश्चिम में चक्रवाती वर्षा होती है, जिसे मावठ कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में आने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात भारत के तटीय राज्यों में वर्षा लाते हैं और भारत के बड़े भूभाग को प्रभावित करते हैं।
G. महासागरीय धाराएँ
प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के पेरू तट के निकट प्रवाहित होने वाली गर्म महासागरीय जलधारा अलनीनो भारतीय मानसून को प्रभावित करती है। अलनीनो महासागरीय जलधारा अधिक सक्रिय होने पर भारतीय मानसून कमजोर होता है और सूखा (अनावृष्टि) उत्पन्न होता है। जब अलनीनो महासागरीय जलधारा निष्क्रिय होती है, तो इसे ला नीनो प्रभाव कहते हैं, जिससे भारतीय मानसून अधिक सक्रिय होता है और अतिवृष्टि (बाढ़) की स्थिति उत्पन्न होती है।
भारत में मानसून की प्रक्रिया
भारत में मानसून की प्रक्रिया जून माह में शुरू होती है जब सूर्य कर्क रेखा पर सीधा चमकता है। ग्रीष्म ऋतु में उत्तर भारत में उच्च तापमान के कारण निम्न वायुदाब क्षेत्र (ITCZ) का निर्माण होता है। हिन्द महासागर के उच्च वायुदाब क्षेत्र से आर्द्र मानसूनी पवनें उत्तर भारत के निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर प्रवाहित होती हैं। इन पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर होती है, इसलिए इसे ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है।
भारतीय मानसून के उत्पत्ति सिद्धांत
- चिरसम्मत सिद्धांत (तापीय सिद्धांत) – एडम्स हैली (1656 ई) द्वारा प्रस्तुत।
- आधुनिक सिद्धांत:
- जेट स्ट्रीम सिद्धांत (यीस्ट और पी कोटेश्वरम)
- विषुवत पछुआ प्रवाह सिद्धांत (एच फ्लोन)
- दक्षिण दोलन सिद्धांत / अलनीनो सिद्धांत (गिल्बर्ट वॉकर)
जेट स्ट्रीम सिद्धांत भारतीय मानसून की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धांत माना जाता है। जेट स्ट्रीम – धरातल से 12 से 15 किमी ऊँचाई पर तीव्र गति से प्रवाहित होने वाली लहरदार वायु होती है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है:
- उपोष्ण पश्चिमी जेट स्ट्रीम: शीत ऋतु में उत्पन्न होती है और शीतकालीन उत्तर-पूर्वी मानसून तथा मावठ के लिए उत्तरदायी है।
- उष्ण पूर्वी जेट स्ट्रीम: ग्रीष्म ऋतु में उत्पन्न होती है और ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिम मानसून तथा मानसून पूर्व वर्षा के लिए उत्तरदायी है।
भारत में मानसून का प्रवेश और शाखाएँ
- ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिम मानसून: भारत में दो शाखाओं में प्रवेश करता है:
- अरब सागर की शाखा: यह मालाबार तट (केरल) से भारत में प्रवेश करती है और पश्चिमी घाट, कर्नाटक, महाराष्ट्र, और हिमाचल प्रदेश में वर्षा करती है।
- पश्चिमी घाट शाखा: यह पश्चिमी तट पर वर्षा करती है।
- छोटा नागपुर शाखा: विंध्याचल और सतपुड़ा श्रेणी के समानांतर नर्मदा और ताप्ती नदी घाटी में वर्षा करती है।
- हिमाचल शाखा: काठियावाड़ से प्रवेश करती है और अरावली के समांतर प्रवाहित होकर हिमालयी पर्वतीय राज्यों में वर्षा करती है।
- बंगाल की खाड़ी की शाखा: यह दो शाखाओं में विभाजित होती है:
- पूर्वोत्तर शाखा: यह सुरमा घाटी से पूर्वोत्तर राज्यों में वर्षा करती है। यहाँ सर्वाधिक वर्षा मासिनराम और चेरापूंजी में होती है।
- उतरी मैदानी शाखा: यह पश्चिम बंगाल से पंजाब तक उतर के विशाल मैदान में वर्षा करती है। इसे पुरवइया भी कहा जाता है।
भारत में वर्षा का वितरण
भारत में औसत वार्षिक वर्षा 125 सेमी होती है और इसे चार भागों में विभाजित किया जाता है:
- अधिक वर्षा वाले क्षेत्र: जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी से अधिक होती है, जैसे पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी हिमालय, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, और मासिनराम।
- मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र: जहाँ 100 से 200 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है, जैसे पूर्वोत्तर राज्य, उत्तर पूर्वी प्रायद्वीप, और लघु हिमालय।
- न्यून वर्षा वाले क्षेत्र: जहाँ 50 से 100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है, जैसे पंजाब का मैदान, पूर्वी मैदानी प्रदेश, और दक्कन का पठार।
- अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र: जहाँ 50 सेमी से कम वर्षा होती है, जैसे हिमालय का वृष्टि छाया प्रदेश और पश्चिमी मरुस्थ
लीय प्रदेश।
निष्कर्ष
भारतीय मानसून की समझ और उसके प्रभाव को जानना न केवल कृषि और जलवायु की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय जीवनशैली और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालता है। मानसून के विभिन्न पहलुओं को समझकर हम प्राकृतिक आपदाओं को कम कर सकते हैं और देश की विकास प्रक्रिया को सुदृढ़ बना सकते हैं।
यह लेख भारतीय मानसून की सभी महत्वपूर्ण विशेषताओं और तथ्यों को कवर करता है।