दोस्तो ये पॉलीथिन ओर डेयरी विकास के नोट्स विभिन्न एग्जाम के लिए उपयोगी है जैसे पशु परिचर भर्ती, एग्रीकल्चर सुपरवाइजर भर्ती ओर उन सभी एग्जाम के लिए उपयोगी है जिसमे पशु विज्ञान को सिलेबस मे दिया गया हो
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पॉलीथिन के दुष्प्रभावपशुओ मे पॉलीथिन के दुष्प्रभाव – पॉलीथिन ओर डेयरी विकासपॉलीथिन के दुष्प्रभाव को रोकने के उपाय डेयरी विकास की गतिविधियां – पॉलीथिन ओर डेयरी विकास1 श्वेत क्रांति 2 ऑपरेशन फ्लड डेयरी सहकारिता एव डेयरी विकास 1 शीर्ष स्तर – राजस्थान सहकारी डेयरी संघ 2 जिला स्तर – जिला दुग्ध उत्पादक संघ 3 प्राथमिक स्तर – प्राथमिक सहकारी दुग्ध उत्पादक समितियां – पॉलीथिन ओर डेयरी विकास
पॉलीथिन ओर डेयरी विकास को हमने व्यवस्थित नोट्स उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास किया गया है ये नोट्स अशोक सर की क्लासेस के आधार पर बनाये गए है
इन पॉलीथिन ओर डेयरी विकास के नोट्स को हमने विभिन्न चरणों मे पूरा किया है
पॉलीथिन के दुष्प्रभाव
पशुओ मे पॉलीथिन के दुष्प्रभाव – पॉलीथिन ओर डेयरी विकास
- पॉलीथिन का उपयोग करके हम फेंक देते है जिसे पशु व पर्यावरण को नुकसान हो रहा है
- पशुओ द्वारा इनका सेवन करने से पशुओ को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है
- देश मे प्रति वर्ष लाखो पशु- पक्षी पॉलीथिन के कचरे से मर रहे है
- पॉलीथिन को जलाने से निकलने वाला धुंआ ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाता है व पॉलिथीन कचरा जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एव डाई ऑक्सिन्स जैसी विषैली गैस उत्सर्जित होती है इनसे सांस, त्वचा आदि बीमारियां होने की आंशका बढ़ जाती है
- प्लास्टिड खाने के बाद यह जानवरो के पेट मे इकट्ठा होता रहता है जिससे पशुओ को अपच का शिकार होना पड़ रहा है
- पशुओ के पेट मे प्लास्टिक की अधिक मात्रा जानवरो मे जुगाली की प्रक्रिया को भी बंद कर देता है
पॉलीथिन के दुष्प्रभाव को रोकने के उपाय
- पॉलीथिन से बनी हुई वस्तुए के इस्तेमाल करने से बचे
- पॉलीथिन की जगह कपड़े, कागज ओर जुट से बने थैलों का इस्तेमाल करे
- खाने की वस्तुओं के लिए स्टील या फिर मिट्टी के बर्तनों को प्राथमिकता दे
- पॉलीथिन के बैग ओर बोतल जो कि उन्हें इस्तेमाल करने के बाद उन्हें इधर उधर नही फेंके
- दुकानदार से सामान खरीदते वक्त उसे कहे कि कपड़े या कागज से बनी थैलियों मे ही सामान दे
- स्कूलों व कॉलेजों में विद्यार्थियों को पॉलीथिन के दुष्प्रभाव के बारे में बताना चाहिए इस पर वाद विवाद प्रतियोगिता होनी चाहिए जिससे पॉलीथिन का दुष्प्रभाव कम हो सकता है
डेयरी विकास की गतिविधियां – पॉलीथिन ओर डेयरी विकास
- राजस्थान में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 444 ग्राम दूध की उपलब्धता है
- दूध उत्पादन मे भारत का विश्व मे प्रथम स्थान है
- भैंस – 45 % उत्पादन, गायो से 52% उत्पादन होता है
- प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 280 ग्राम दूध की आवश्यकता होती है
1 श्वेत क्रांति
- डेयरी क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए श्वेत क्रांति का सूत्रपात किया गया
- डॉ वर्गीज कुरियन द्वारा भारत मे श्वेत क्रांति की शुरुआत की गई
2 ऑपरेशन फ्लड
- ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत 1970 से हुई
मुख्य उद्देश्य
- दूध उत्पादन में वृद्धि
- उपभोक्ताओं को उचित दाम पर दूध उपलब्ध कराना
- ग्रामीण क्षेत्र की आय में वृद्धि करना
ऑपरेशन फ्लड योजना को तीन चरणों मे चलाया गया
A प्रथम चरण – (1970-1980)
- प्रथम चरण 1970 का वित्त पोषण विश्व खाद्य कार्यक्रम के अंतर्गत यूरोपियन संघ और EEC द्वारा उपहार में मिले स्किम्ड मिल्क पाउडर तथा बटर ऑयल की बिक्री से किया गया
- प्रथम चरण के दौरान ऑपरेशन फ्लड ने देश के 18 प्रमुख दूध शेडो को देश के चार मुख्य महानगरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकता ओर चेन्नई) के उपभोक्ताओं के साथ जोड़ा
B ऑपरेशन फ्लड का द्वितीय चरण (1981-1985)
- दूध 290 नगरों के बाजारों में उपलब्ध होने लगा
- दुग्ध केंद्रों की संख्या 18 से बढकर 136 हो गई
C ऑपरेशन फ्लड का तीसरा चरण (1985-1996)
- प्रथम व द्वितीय चरण मे बने नियम तथा शर्तो को सुचारू रूप से क्रियान्वित किया गया
- तृतीय चरण में पशु स्वास्थ्य और पशु पोषण के अनुसंधान एव विकास पर विशेष ध्यान दिया गया
डेयरी सहकारिता एव डेयरी विकास
- राजस्थान की डेयरी विकास कार्यक्रम गुजरात की आनदं सहकारी डेयरी संघ की अमूल पद्धति के आधार पर क्रियान्वयन की जा रही है जिसका त्रिस्तरीय संस्थागत ढांचा निम्नलिखित है
1 शीर्ष स्तर – राजस्थान सहकारी डेयरी संघ
- स्थापना – 1977
- मुख्यालय – जयपुर
- उद्देश्य – राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रमों का संचालन के साथ ही उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक दुग्ध उत्पाद उपलब्ध कराना एव पशुपालको को दुग्ध का उचित मूल्य दिलाना
2 जिला स्तर – जिला दुग्ध उत्पादक संघ
- उद्देश्य – प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों से दूध संकलन एव दुग्ध उत्पादों का विपणन करना
- राज्य में R.C.D.F. से संबंधित 24 जिला दुग्ध उत्पादक संघ कार्यरत है
3 प्राथमिक स्तर – प्राथमिक सहकारी दुग्ध उत्पादक समितियां – पॉलीथिन ओर डेयरी विकास
- ये समितियां दुग्ध उत्पादकों से दूध एकत्रित करके जिला दुग्ध उत्पादक संघ को उपलब्ध करवाने का कार्य करती है ऐसी वर्तमान अकटुम्बर 2023 तक 18398 समितियां राज्य में कार्यरत है
- R.C.D.F. के अंतर्गत कार्यरत संस्थाएं एव केंद्र दूध पाउडर उत्पादक सयंत्र 6 (रानीवाड़ा, अजमेर, अलवर, जयपुर, हनुमानगढ़, बीकानेर), पशु आहार केंद्र 7 (लालगढ – बीकानेर, नदबई – भरतपुर, तबीजी – अजमेर, जोधपुर, लाम्बिया कला- भीलवाड़ा, कालाडेरा – जयपुर, पाली।
- टेट्रापैक दूध सयंत्र – कोटपूतली
- यूरिया मोलासिस ब्रिक प्लांट 2 (अजमेर व जोधपुर )
- फ्रोजन सीमन बैंक – 2 (बस्सी जयपुर, नरवा खींचियान- जोधपुर) वीर्य मानक प्राप्त प्रयोगशाला उत्पादन जहाँ पर कृत्रिम गर्भाधान हेतु देशी व विदेशी नस्ल के सांडों से हिमीकृत वीर्य संचित रहता है
- चारा बीज उत्पादक फार्म – 2 (रोजरी- बीकानेर, बस्सी – जयपुर)
- बीज प्रसंस्करण इकाई – 2 (बीकानेर व कोटा)
