पशुओं के प्रमुख रोग-

दोस्तो हमने इस पशु रोग टॉपिक में विभिन्न पशु के रोग को शामिल किया है जो कि परीक्षा उपयोगी हो
पशु रोग को हमने विभिन्न पार्ट्स के रूप में विभाजित करके बताया गया है जो आपको पशु परिचर के नोट्स बनाने में उपयोगी होंगे धन्यवाद
- जीवाणु जनित रोग –
- एंथ्रेक्स रोग
- लँगड़ी रोग
- थनैला रोग
- गल घोटु रोग
- फ़ीडकिया रोग
ट्रिक – एलथ गफी जी
ए – एन्थ्रेक्स
ल् – लँगड़ी रोग
थ – थनैला रोग
ग – गलघोंटू रोग
फि – फ़ीडकिया रोग
जी – जीवाणु जनित रोग
NOTE – पशुओं के सभी रोगों में तापमान बढ़ जाता है (106°F)
अपवाद – मिल्क फीवर रोग या दूध का बुखार रोग में पशुओं के शरीर का तापमान कम हो जाता है (95°F)
NOTE – सभी रोगों में पशु दायीं ओर मुंह करके बैठता है
अपवाद – मिल्क फीवर रोग में पशु बायी ओर मुंह करके बैठता है
- पशुओं में जन्मजात रोग – फ्री मार्टिन
- अढ़ाई / ढाई दिन का बुखार – जीवाणु जनित द्वारा होता
- पिका रोग – पशुओं में फास्फोरस की कमी से होने वाला रोग
- एन्थ्रेक्स रोग
अन्य नाम –
जहरी बुखार, गिल्टी रोग, प्लीहा ज्वर, विषहरी, फ़ेफ़डी रोग, तिल्ली रोग, बावला रोग, मिट्ठी जनित पशु रोग
विशेषताएं –
- जुगाली करने वाले पशुओं में अधिक होता है
- यह भेड़ो का प्रमुख रोग है
- यह रोग ऊन की फैक्टरियों मे काम करने वाले लोगो मे भी फैलता है इसलिए इसे Wool Sorter’s Disease भी कहते है
- इस रोग का प्रकोप सर्वाधिक गर्मियों में होता है
- एकमात्र रोग जो पशुओं से मनुष्य मे तथा मनुष्य से पशुओ मे फेल सकता है
- यह रोग मुर्गियों मे कभी नही फैलता है
- रोगी पशु के मरने पर उसे जलाना आवश्यक होता
रोगकारक
- बेसिलस एंथ्रेसिस नामक बैक्टीरिया से
लक्षण –
- पशु के सभी छिद्रों से काले रंग का बदबूदार स्त्राव निकलता है
- पशु का कांपकर धड़ाम से जमीन पर गिरना
- भेड़े जमीन पर लेटकर दांत किटकिटाने लगती है
- गर्भित पशुओ मे गर्भपात हो जाता है
- शरीर का तापमान 105°F से 107°F तक बढ़ जाता है
उपचार
- सल्फामिडिन – 10 ml अंत शिरा इंजेक्शन
- डोकसोना – 3 ml अंत शिरा इंजेक्शन
- टाईसिन – 15 ml अंत शिरा इंजेक्शन
टिका
- टीका – एन्थ्रेक्स स्पोर वैक्सीन (1 ml अंत त्वचिय)
- समय – प्रतिवर्ष जून माह में
NOTE – एन्थ्रेक्स मे पशु का पोस्टमार्टम नही करते है
- लँगड़ी पशु रोग
अन्य नाम –
- जहारवाद, फड़ सृजन, चुरचूरिया, ब्लैक क़वार्टर
लक्षण
- पशु अगले कंधे व पिछले पुठे से लँगड़ा हो जाता है
- 4 माह से 3 वर्ष की आयु में अधिक होता है
- यह गाय, भेंस एव भेड़ म् सर्वाधिक होता है
- इस रोग का सर्वाधिक प्रकोप ‘वर्षा ऋतु’ में होता है
- पशु लंगड़ाकर चलता है
- पुट्ठे मे सूजन पहले गर्म व दर्द वाली तथा बाद में ठंडी व दर्द रहित होती है
- तापमान 104°F – 106°F
रोगकारक
- क्लोस्ट्रीडियम शोबियाई जीवाणु द्वारा
- NOTE – कभी क्लोस्ट्रीडियम सेप्टिक द्वारा भी हो जाता है
उपचार
- दर्द के लिए निमोवेट इंजेक्शन 15 ml अंत पेशी
भारत मे टिका –
- पोलिवेलेंट फार्मलीनाइज्ड एनाक्लचर वैक्सीन (06 माह की उम्र पर लगाते)
- BQ पोलिवेलेंट
Note- टिका लगाने का उपयुक्त समय जून माह में
- थनैला रोग
अन्य नाम –
- स्तन शोध, अयन की शीत, मेसटाईटिस, गार्गेट, उष्म थनैली (यूरोप में कहते)
लक्षण
- यह अधिक दूध देने वाली मादा पशुओ मे होता
- मुख्यतः गाय, भैंस ओर बकरी में होता
- गाँव की अपेक्षा शहर में तथा भैंसो की अपेक्षा गायो मे अधिक होता है
- इस रोग में पशु की मृत्यु नही होती है
- आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक नुकसानदायी रोग है
- थनैला रोगी पशु के दूध के सेवन से महिलाओं में गर्भपात की बीमारी हो सकती है
रोगकारक
- गाय व भैंस मे – स्ट्रेप्टोकोकाई एगेलेक्शिया जीवाणु
- भारत मे मुख्यतः – स्टेफीलो कोकाई द्वारा
- दूध न देने वाले पशु मे – कोरिने बैक्टीरियम् पायोजिन्स द्वारा
उपचार
- मेस्टिटिस वैक्सीन द्वारा
NOTE – इस रोग के लिए ‘स्ट्रीट कप’ टेस्ट किया जाता है
- गलघोंटू रोग
अन्य नाम –
- घुड़का, घोटुआ, घुरर्खा, नाविक ज्वर, हीमोरेजेनिक सेप्टिसिनिया पशु रोग
लक्षण –
- सर्वाधिक प्रकोप भैंसो मे होता है
- यह रोग जुगाली करने वाले पशुओ मे अधिक होता
- कम आयु के पशुओ मे अधिक होता है
- इस रोग का सर्वाधिक प्रकोप ‘वर्षा ऋतू’ मे होता है
- लम्बी दूरी तय करने के कारण भी यह रोग हो सकता है इसलिए इसे ‘शिपिंग फीवर’ भी कहते है
- शरीर का तापमान 105°F – 107°F
- सबसे जल्दी मृत्यु इसी रोग में होती है (6-8 घण्टे)
- पशु जमीन पर गिर जाते है कान, मुँह, नाक से लार टपकती है
रोगकारक
- गायो मे – पाश्च्युरेला बॉबीसेप्टिका मलटोसिडा
- भैंसो मे – पाश्च्युरेला बूबेलिसेप्टिका मलटोसिडा
- भेड़, बकरी मे – पाश्च्युरेला ओविस हिमोलेटिका
उपचार
- हीमोरेजेनिक सेप्टिसिनिया वैक्सीन (H.S. वैक्सीन) का टीका
- टिके का समय – मई जून माह में
- पहला टिका – 6 माह की आयु पर लगाते
- स्वस्थ पशुओ मे गलघोंटू का टीका – कम्पोजिटी ब्राथ वैक्सीन
NOTE – इस रोग का बैक्टीरिया सर्वप्रथम बोलिगर (1878) तथा किट (1885) ने यूरोप में देखा था
- फ़ीडकिया रोग
अन्य नाम –
- फडक्या रोग, इंटरोटॉक्सिनिया पशु रोग
लक्षण –
- इस रोग का प्रकोप सर्वाधिक वर्षा ऋतु मे होता
- यह रोग सर्वाधिक भेड़ एवं बकरियों मे होता
- यह रोग अधिक हरा चारा खाने से होता है
- कमर धनुष की तरह मुड़ जाती है
- पशु बार बार उठती बैठती है
- पशु बार बार पेट की तरफ देखकर लात मरता है
- पशु लेटे हुए पैरो को साइकिल की तरह चलता
- भेड़ें रात को स्वस्थ तथा सुबह मरी हुई मिलती है
रोगकारक –
- क्लोस्ट्रीडियम बेलशियाई टाइप डी
- क्लोस्ट्रीडियम परफरिंजेन्स नामक जीवाणु
उपचार –
- इंटरोटॉक्सिनिया वैक्सीन (E T वैक्सीन टाइप डी)
- 2.5 ml अंत त्वचीय
B. विषाणु जनित पशु रोग
1 पशु प्लेग
अन्य नाम –
- रिंडर पेस्ट, मालवारी, कैटिल प्लेग, पौकनी, पकवेदन , पिचिनाव, बसन्तु, पेचा, मनरोग, गतहाई, शीतल, पकता
लक्षण –
- यह रोग सूखे मौसम में अधिक होता
- स्थानांतरण के समय गायो की अपेक्षा भैंसो मे अधिक होता है
- शरीर का तापमान 104-107 °F
- गोबर सख्त एवं बाद में पतला खून मिला हुआ होता
- आंखों से पानी बहता है
- रोग ग्रसित पशु कुछ वर्षों बाद पुनः इस रोग से ग्रसित हो सकता है
रोगकारक –
- छनने योग्य वायरस द्वारा
- वायरस को सर्वप्रथम 1902 में निकोली ने पहचाना था
उपचार
- एंटी पशु प्लेग सीरप का इंजेक्शन (रिन्डर पेस्ट टिका ) (RP टिका )
- टिका – जून माह में लगाया जाता
- प्रतिरक्षा – 03 वर्ष
- GTV – goat tiesu vaccine का टीका
इसको 1926 मे IVRI इज्जतनगर मे एड्वर्ड नामक वैज्ञानिक ने तैयार किया
- लेपिनाइज्ड वायरस वैक्सीन – इसको खरगोश के शरीर मे तैयार किया गया है इस वैक्सीन का सर्वाधिक प्रयोग चीन में हुआ
- पक्षीय वायरस वैक्सीन – मुर्गी के अंडे मे तैयार किया जाता है
NOTE – 1 oct 1954 को पशु प्लेग उन्मूलन योजना लागू की गई थी जिसे 2011 मे बन्द कर दी गयी
NOTE – 2011 मे सयुंक्त खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा (FAO) द्वारा भारत को पशु प्लेग मुक्त देश घोषित किया गया
2 खुरपका – मुंहपका
अन्य नाम
- एफथस ज्वर, मेलिगनेट एपेथा, एपिजुटिक एफशा, पका, खंगवा, FMD (foot mouth disease)
लक्षण
- 105-106 °F तक बुखार
- दूध उत्पादन में अचानक कमी हो जाती
- मुँह से लार गिरना
- पशुओ मे तीव्र फैलने वाला संक्रामक रोग है
रोगकारक –
- यह रोग 7 प्रकार के वायरस से फैलता है
यूरोपीय देशों – A, O, C
दक्षिण अफ्रीका एवं एशिया देशो – सेट, सेट 1, सेट 2, सेट 3
- भारत मे केवल A,O,C को ही खोजा गया
- लोफलर व फ्रोस्य ने सर्वप्रथम इस रोग के वायरस को 1998 मे देखा
- 1926 मे वालमैन व ट्राटबीन ने वायरस के C प्रकार की खोज की
उपचार –
- FMD पोली केट वैक्सीन का टीका
- इस रोग का टीका वर्ष में 02 बार (जून व दिसम्बर) लगाया जाता है
- पैरो पर नीला थोथा लगाना
- पशुओ को पाद स्नान कराना
NOTE – एफथाइजेशन – बीमार पशु की लार स्वस्थ पशु को लगाकर प्रतिरक्षा विकसित करना एफथाइजेशन कहलाता है
C चयापचयी पशु रोग
1 दुग्ध ज्वर
अन्य नाम –
- प्रसवकालीन, मिल्क फीवर, प्रसवकालीन रक्त मूर्छा, प्रसवकालीन पक्षाघात, हाइपोकेल्शिमिया,
लक्षण –
- एकमात्र रोग जीसमे शरीर का तापमान कम होता है
- आंखों की पुतलियों फैलकर बड़ी हो जाती है
- शरीर ठंडा होने के बावजूद भी पसीना आता है
- पशु मुँह बायीं ओर करके बैठ जाते है
NOTE – अन्य रोगों में पशु दायीं ओर मुंह करके बैठता है
- पशु पीछे की ओर गर्दन घुमाकर वह अपने सिर को कोख की सीध मे शरीर से चिपकाकर रखता है
रोगकारक –
- केल्सियम की कमी के कारण
- यह रोग अधिक दूध देने वाले पशुओ मे होता है मुख्यतः 3 – 5 ब्यात मे होता है
- भूखे पशुओ मे यह रोग जल्दी होता है
- यह रोग ब्याने के 5-7 वे दिन तक जल्दी होता
रोकथाम –
- 30 ml यूनिट की मात्रा विटामिन डी ब्याने से पूर्व 7 वे दिन से तीसरे दिन रोज देना चाहिए
उपचार –
- कैल्शियम की गोलियां
- कैल्शियम बौरो ग्लूकोनेट 500 ml अन्तः शिरा
NOTE – कभी कभी इस रोग में कैल्शियम के साथ साथ मैग्नीशियम की कमी भी हो सकती है
2 चिचड़ी ज्वर –
अन्य नाम –
- रक्त मूत्र रोग, पाइरो प्लाज्मोलीस, टेक्सास फीवर, बेबीसीआसिस, टिका फीवर, रेड वाटर रोग
लक्षण –
- भूख मे कमी, वजन मे कमी, खून में कमी, दूध उत्पादन में कमी
- इस रोग में मूत्र में एल्ब्यूमिन आने लगता है
रोगकारक –
- प्रोटोजोआ परजीवी किट द्वारा
- यह रोग निम्न प्रजातियों द्वारा फैलता है
- बेबीसीआ बरबरा
- बेबीसीआ मेजर
- बेबीसीआ बोविस
- बेबीसीआ अर्जेंटाइना
- बेबीसीआ बाइजेमिना – भारत मे मुख्य रूप से यह रोग इससे फैलता है
NoTE – इसकी नई प्रजाति बेऔफिल्स माइक्रोप्लस
उपचार –
- शरीर पर पेस्ताबान लगाकर
- ट्रिपेन ब्ल्यू का अंत शिरा इंजेक्शन
- बेवसान का इंजेक्शन
- बेरेनिल की दवा
- सल्फ़र की दवा
ऊंट के रोग
1 सर्रा रोग – पशु रोग
अन्य नाम –
- गलत्या (पश्चिमी राजस्थान में कहते है) , त्रिवर्षा, सड़त्या
लक्षण –
- पशु सिर दीवार या जमीन पर मारता है
- पशु पागल की तरह घुमता है
- पशु बार बार जगह बदलता है
- यह रोग तीन वर्ष तक रहता है उसके बाद मृत्यु हो जाती है
रोगकारक –
- ट्रिपेंनोसोमा ईवनसाई नामक प्रोटोजोआ
- यह रोग प्रोटोजोआ RBC को नष्ठ कर देता है
- यह मख्खियों द्वारा फैलता है
उपचार –
- ट्रिपनोसोमा वैक्सीन का टीका अप्रेल माह में लगाते है
- बेरेनिल, ट्राईक्वीन ओर एनोरेक्सन का इंजेक्शन लगाते है
2 खुलली रोग – पशु रोग
- इसे राजस्थान में गाट एवं पाव कहा जाता
- सिंधी मे गार कहा जाता है
लक्षण –
- चमड़ी सख्त एवं काली पड़ जाती है
रोगकारक –
- सरकोप्टिस केमेलाई
उपचार –
- मेलाथियान 50% का 1% घोल
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