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इन सब जानकारियों को हमने कवर किया है जिसे आप आसानी से पढ़ सकते हो
राजस्थान में किसान आंदोलन –
बिजोलिया किसान आंदोलन

- बिजौलिया मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था
- राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया का ठिकाना दिया था
- अशोक परमार ने खानवा के युद्ध में भाग लिया
बिजौलिया किसान आंदोलन के कारण
- 84 प्रकार के कर
- अधिक भूराजस्व
- लाटा कुंता व्यवस्था
- बेगार (जबरदस्ती श्रम)
- चँवरी कर – 1903 ई में कृष्णसिंह ने यह कर लगाया था यह कर किसानों से उनकी लड़कियों की शादी के समय लेते थे
- तलवार बंधाई कर – यह कर नए सामन्त द्वारा राजा को दिया जाता था लेकिन 1906 ई में पृथ्वी सिंह ने किसानों पर यह कर लगा दिया
- बिजोलिया किसान आंदोलन को 3 चरणों मे बांटा जाता है
- प्रथम चरण – (1897 से 1914 ई )
- धाकड़ किसानो द्वारा गिरधरपूरा नामक गाँव से आंदोलन शुरू किया गया
- साधु सिताराम दास के कहने पर नानजी एवं थाकरी पटेल को किसानों की समस्याए लेकर मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह से मिले
- मेवाड़ महाराणा ने हामिद नामक जांच अधिकारी नियुक्त किया
- प्रथम चरण में किसानों को अधिक सफलता नही मिली थी
- तथा स्थानीय नेताओं ने आंदोलन चलाया
- प्रेमचंद भील
- फतेहकरण चरण
- ब्रह्मदेव
- द्वितीय चरण (1915 – 1923 ई)
- साधु सिताराम दास के कहने पर विजय सिंह पथिक आंदोलन से जुड़े थे
- उपरमाल पँचबोर्ड का गठन
- संस्थापक – विजयसिंह पथिक
- स्थापना – 1917 ई (हरियाली अमावस्या)
- स्थान – बेरीसाल
- अध्यक्ष – मन्ना पटेल
- पथिक जी ने उपरमाल सेवा समिति की स्थापना की थी
- उपरमाल का डंका नामक पर्चा प्रकाशित किया
- पथिक जी की प्रेरणा से माणिक्यलाल वर्मा आंदोलन से जुड़ते है
- यह बिजोलिया ठिकाने में कार्य करते थे
- बिजोलिया ठिकाने ने 2 जांच आयोग का गठन किया
- प्रथम – 1919
- सदस्य बिंदुलाल भट्टाचार्य
- अमर सिंह
- अफजल अली
- दूसरा – 1920
- राजसिंह बेदला
- तख्तसिंह मेहता
- रामकांत मालवीय
- 1922 में अंग्रेजो के हस्तक्षेप के कारण रियासत ने किसानों के साथ समझौते किया
- रियासती सदस्य – रोबर्ट हॉलैंड (AGG)
- विल्किन्स (PA)
- आगल्वी (AGG का सचिव )
- प्रभासचन्द्र चटर्जी
- बिहारीलाल
- किसान सदस्य – मोतीलाल
- नारायण पटेल
- रामनारायण चौधरी
- मणिक्यलाल वर्मा
- किसानों के 35 कर माफ कर दिए
- बिजोलिया के सामन्त ने इस समझौते को स्वीकार नही किया
तीसरा चरण – (1923 – 1941 ई)
- भूमि बंदोबस्त अधिकारी ट्रेंच ने असिंचित भूमि पर कर बढ़ा दिए
- पथिक जी के कहने पर किसानों ने अपनी असिंचित भूमि सामन्त को वापस लौटा दी
- तथा सामन्त ने इस भूमि को जब्त कर लिया
- 1927 में विजयसिंह पथिक आंदोलन से अलग हो गए
- गांधी जी ने आंदोलन के नेतृत्व के लिए जमनालाल बजाज को भेजा
- बजाज ने हरिभाऊ उपाधयाय को आंदोलन का नेता नियुक्त किया
- 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री V राघवाचारी एव राजस्व मंत्री मोहनसिंह मेहता ने किसानों के साथ समझौता करवाया
- तथा किसानों की जब्त जमीने वापस उन्हें दे दी गयी
IMP●
- 1919 के कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में तिलक ने बिजोलिया आंदोलन के पक्ष में एक प्रस्ताव रखा किंतु गांधी ने विरोध किया
- तिलक ने अपने मराठा समाचार पत्र में बिजोलिया आंदोलन के पक्ष में लेख लिखा
- तिलक तथा गांधी जी मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह को पत्र लिखे
- 1920 ई के कोंग्रेस के नागपुर अधिवेशन में किसानों (गोकुल जी, कालू जी, नन्दलाल जी ) ने एक प्रदर्शनी का आयोजन किया
- इसी अधिवेशन में गांधी जी ने आंदोलन को अपना नैतिक समर्थन दिया
- प्रेमचंद जी का रंगभूमि उपन्यास बिजोलिया आंदोलन पर आधारित है
- मणिक्यलाल वर्मा ने अपने पंछिड़ा गीत के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित किया
- विजयसिंह पथिक का गीत – पीड़ितों का पंछिङा
- भंवरलाल जी ने भी गीतों से किसानों को प्रोत्साहित किया था
- गणेश शंकर विद्यार्थी अपने प्रताप समाचार पत्र में आंदोलन की खबरे छापते थे
- यह एक साप्ताहिक समाचार पत्र था
- यह कानपुर से प्रकाशित होता था
- पथिक जी ने गणेशशंकर विद्यार्थि को चांदी की राखी भेजी थी
बिजौलिया किसान आंदोलन का महत्व
- यह राजस्थान का प्रथम संगठित आंदोलन था
- यह विश्व का सबसे लम्बा अहिंसक आंदोलन था ( 44 वर्षो )
- यह आंदोलन राजस्थान के अन्य किसान आंदोलनो को प्रेरणा दी जैसे बेंगू, बूंदी …
- इस आंदोलन ने राजस्थान को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा था
- इस आंदोलन के दौरान किसानों ने बाहर से किसी भी प्रकार का चंदा ग्रहण नही किया
- किसानों में राजनैतिक चेतना का संचार हुआ
- आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया
- आंदोलन को राजस्थान सेवा संघ का सहयोग प्राप्त हुआ
- आंदोलन रूस की बोल्शेविक क्रान्ति से प्रभावित था
बेंगू किसान आंदोलन
- बेंगू मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था
- 1921 ई में धाकड़ किसानों ने मेनाल के भेरुकुण्ड स्थान से आंदोलन प्रारंभ किया
- नेता – रामनारायण चौधरी
- कारण – 53 प्रकार के कर
- अधिक भूराजस्व
- लाटा कुंता व्यवस्था
- बेगार प्रथा
- 1922 ई में अजमेर में विजयसिंह पथिक ने बेंगू के सामन्त अनूपसिंह चूडावत तथा किसानों के मध्य एक समझौता करवाया
- मेवाड़ रियासत ने इस समझौते को स्वीकार नही किया
- तथा ट्रेंच ने इसे बोल्शेविक समझौता कहा
गोविंदपुरा हत्याकांड
- तारीख – 13 जुलाई 1923
- ट्रेंच ने किसानों की सभा पर फायरिंग की
- तथा इसमे 2 किसान शहीद हो गए
- रूपा जी धाकड़
- कृपा जी धाकड़
- 10 सितम्बर 1923 को विजयसिंह पथिक को गिरफ्तार किया गया
बूंदी / बरड़ किसान आंदोलन
- यह आंदोलन बूंदी के खालसा क्षेत्र में गुर्जर किसानों के द्वारा आंदोलन किया गया
- कारण – 25 प्रकार के कर
- अधिक भूराजस्व
- लाटा कुंता व्यवस्था
- बेगार
- भ्रष्टाचार
- युद्ध कर
- चराई कर
- 1920 ई में साधु सीताराम दास ने डाबी किसान पंचायत की स्थापना की
- हरला भड़क को इसका अध्यक्ष बनाया गया
- किसानों ने सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार किया तथा सरकारी चरागाह पर अधिकार कर लिया तथा गांवों में पंचायतों की स्थापना की जैसे – बरड़, बरुंगन, गरदड़ा किसान पंचायत
- नेता – नयनुराम शर्मा (राजस्थान सेवा संघ के सदस्य
- नारायण सिंह
- भवरलाल सुनार
डाबी हत्याकांड – 02 अप्रैल 1923 ई
- पुलिस अधिकारी इकराम हुसैन ने किसानों की सभा पर फायरिंग की तथा इसमे 2 किसान शहीद हो गए
- नानक जी भील
- देवीलाल गूर्जर
- नानक जी भील झंडा गीत गा रहे थे
- इनकी याद में माणिक्यलाल वर्मा ने अर्जी नामक गीत लिखा
- हत्याकांड की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया गया
- जिसके सदस्य – पृथ्वीसिंह
- रामप्रताप
- भेरूलाल
- 1927 ई में राजस्थान सेवा संघ के बंद होने के करण बूंदी किसान आंदोलन समाप्त हो गया
- इस आंदोलन में महिलाओं की एक बड़ी भागीदारी देखने को मिली थी
- 1936 ई में इस आंदोलन का दूसरा चरण प्रारंभ होता है लेकिन दूसरे चरण के दौरान यह आंदोलन सामाजिक सुधारो की तरफ़ मुड़ गया
हिंडोली सम्मेलन – 5 oct 1936
- हुन्डेश्वर मंदिर में यह सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें 500 गुर्जर एवं मीणा किसानों ने भाग लिया
अलवर किसान आंदोलन
- खालसा क्षेत्र (बानसूर एवं थानागाजी) के राजपूत किसानों द्वारा आंदोलन किया गया था
- कारण –
- 1924 में राजपूत तथा ब्राह्मण किसानों पर 40% कर बढ़ा दिए गए
- जंगली सुअरों की समस्या
- नेता – गंगासिंह
- माधोसिंह
- गोविंद सिंह
- अमर सिंह
- अखिल भारतीय क्षेत्रीय महासभा ने इस आंदोलन को समर्थन दिया था
- किसानों ने पुकार नामक पर्चा प्रकाशित किया
निमुचड़ा हत्याकांड
- 14 मई 1925
- पुलिस अधिकारी छज्जू सिंह ने किसानों पर फायरिंग कर दी तथा 156 किसान शहीद हो गए
- गांधी जी ने अपने समाचार पत्र – यंग इंडिया में इसे दोहरी डायरशाही कहा था
- रियासत समाचार पत्र ने निमुचड़ा हत्यकांड की तुलना जलियावाला बाग हत्याकांड से की थी
- तरुण राजस्थान समाचार पत्र ने इस घटना को सचित्र प्रकाशित किया (31 मई 1925 ई)
मेव किसान आंदोलन
- अलवर के खालसा क्षेत्र (रामगढ़, लक्षमणगढ़, किशनगढ़, तिजारा ) में मेव किसानों द्वारा यह आंदोलन किया गया
- कारण –
- अधिक भूराजस्व
- जंगली सुअरों की समस्या
- मुसलमानों को अधिक सरकारी नोकरिया दी जानी चाहिए
- उर्दू भाषा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए
- मस्जिदों से सरकारी नियंत्रण समाप्त किया जाना चाहिए
- नेता – यासीन खान
- सैय्यद भीक नारंग
- मोहम्मद अली
- इस आंदोलन को कई संगठनों ने अपना समर्थन दिया
- अंजुमन-ए-खादिम-उल-इस्लाम
- जमीयत-ए-तबलीग-उल-इस्लाम
- महाराजा जयसिंह ने एक जांच आयोग का गठन किया गया
- जिसके सदस्य – दुर्जन सिंह
- गणेशी लाल
- गजनाफ़र अली
- यासीन खान के कहने पर किसानों ने जांच आयोग का बहिष्कार कर दिया गया
- यह आंदोलन साम्प्रदायिक एव हिंसक हो गया
- अतः 1933 में तिजारा में साम्प्रदायिक दंगे हो गए तथा अंग्रेजो ने जयसिंह को हटा दिया
शेखावाटी किसान आंदोलन
- सीकर – अर्धस्वायत राज्य
- पँचपाने – मंडावा, बिसाऊ, नवलगढ़, डूंडलोद, मलसीसर
- शेखावाटी क्षेत्र में कच्छवाह वंश की शेखावत शाखा का शासन था
- 1922 ई में सीकर के सामन्त कल्याण सिंह ने करो में बढ़ोतरी कर दी
- अतः इसके खिलाफ जाट किसानों ने रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ किया
- रामनारायण चौधरी के सीकर प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी
- तरुण राजस्थान समाचार पत्र को भी प्रतिबंधित कर दिया गया
- ब्रिटेन के हॉउस ऑफ कॉमन्स में पथिक लॉरेंस ने आंदोलन की चर्चा की थी
- लन्दन के डेली हेराल्ड समाचार पत्र में भी आंदोलन की खबरे प्रकाशित हुई
- भरतपुर के किसान नेता ठाकुर देशराज ने आंदोलन का नेतृत्व किया
- 1931 ई में जाट क्षेत्रीय महासभा के गठन किया इसका प्रथम अधिवेशन 1933 ई में पलथाना (सीकर) में किया गया
जाट प्रजापति महायज्ञ –
- 20 जनवरी 1934 ई को
- बसन्त पंचमी के दिन ठाकुर देशराज ने इसका आयोजन करवाया
- पुरोहित – खेमराज शर्मा
- यजमान – कुंवर हुकुम सिंह
- 15 मार्च 1935 ई को रतनसिंह एवं सर छोटूराम चौधरी की मध्यस्थता से किसानों के साथ समझौता कर लिया था
- नेता – सरदार हरलाल सिंह
- नेतराम सिंह गौरीर
- पन्ने सिंह
- मास्टर चन्द्रभान
- नरोत्तम लाल जोशी
- सरदार हरलाल सिंह ने झुंझुनूं में विद्यार्थी भवन की स्थापना की थी
- यह भवन किसान आंदोलन की गतिविधियों का मुख्य केंद्र था
NOTE – नरतोम लाल जोशी ने शेखावाटी में जकात आंदोलन चलाया
NOTE – नरोत्तम लाल जोशी राजस्थान विधानसभा के पहले अध्यक्ष थे
मास्टर प्यारेलाल
- इन्होंने चिडावा में अमर सेवा समिति का गठन किया था
- तथा शेखावाटी क्षेत्र में राजनैतिक चेतना का संचार किया था
- इन्होंने गाँधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था
- इन्हें चिड़ावा का गांधी कहते है
कटराथल सम्मेलन
- 25 अप्रेल 1934
- इसमे 10 हजार से अधिक महिलाओं ने भी भाग लिया था
- कारण – सिहोट के सामन्त मानसिंह ने सेतिया का बास नामक स्थान पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया
- अध्यक्षता – किशोरी देवी
- मुख़्य वक्ता – उत्तमा देवी
कुंदन हत्याकांड
- 25 अप्रैल 1935
- धापी देवी महिला के कहने पर किसानों ने कर देने से इनकार कर दिया था
- कैप्टन वेब ने किसानों पर फायरिंग कर देता है
- तथा इसमे 4 किसान शहीद हो जाते है
- चेतराम
- टीकूराम
- तुलछाराम
- आशाराम
- ब्रिटिश हॉउस ऑफ कोमन्स में इस हत्याकांड की चर्चा हुई थी
जयसिंहपुरा हत्याकांड – झुंझुनूं
- 21 जून 1934 ई
- यह राजस्थान का पहला किसान आंदोलन था जिसमे किसानों के हत्यारों को सजा मिली
मेवाड़ के खालसा क्षेत्र का किसान आंदोलन
- यह आंदोलन जाट किसानों द्वारा किया गया
- अप्रैल 1921 ई में उदयपुर से यह आंदोलन प्रारंभ हुआ था
पोडोली सम्मेलन
- दिसम्बर 1921 ई
- निर्णय – इसे बिजोलिया की तरह चलायेंगे
- अगला सम्मेलन मातृकुण्डिया (चितौड़) में होगा
NOTE – मातृकुण्डिया को राजस्थान का हरिद्वार कहते है
मातृकुण्डिया सम्मेलन
- मई 1922 ई
- इस सम्मेलन में रियायत ने किसानों की मांगे मान ली थी
- तथा किसानों को अफीम की खेती का मुआवजा दे दिया गया
राजस्थान में किसान आंदोलन के कारण –
- अंग्रेजी प्रभाव के कारण राजाओ का प्रजा के प्रति उदार स्वरूप बदल गया था
- अंग्रेजी सुरक्षा के कारण राजा तथा सामन्तो की किसानों पर निर्भरता समाप्त हो गयी थी
- अंग्रेजी सरंक्षण के कारण राजाओ की विलासिता में वृद्धि हुई अतः राजाओ ने नए नए कर लगाना प्रारंभ कर दिया जिससे किसानों का शोषण हुआ
- जागीरी क्षेत्रों में भूमि बंदोबस्त नही करवाये गए
- खालसा क्षेत्रों में भूराजस्व नकदी में लिया जाता था अतः किसान साहूकारों के चंगुल में फंस गए
- अंग्रेजी नीतियों के कारण उद्योग तथा व्यापार वाणिज्य समाप्त हो गए अतः मजदूरों का कृषी की तरफ विस्थापन हुआ जिससे कृषी पर भार बढ़ गया
- अंग्रेजी शासन के बाद हमारी अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ गई तथा विश्व अर्थव्यवस्था में उतार चढाव स हमारे किसान प्रभावित हुये थे
- अन्य कारण – अफीम की खेती
- जंगली सुअरो की समस्या
- प्रथम विश्व युद्ध
- जकात की समस्या
- बेगार
राजस्थान में किसान आंदोलन के प्रभाव –
- किसानों को भूमि पर उनके अधिकार प्राप्त हुए तथा जागीरदारी व्यवस्था का उन्मूलन हुआ
- छोटे छोटे नगर किसान आंदोलन के केंद्र थे जिससे राजस्थान में नगरीय राष्ट्रवाद का उदय हुआ
- महिलाओं ने किसान आन्दोलनों में बढ़ चढ़कर भाग लिया जिससे महिला शक्तिकरण को बढ़ावा मिला
- किसानों में राजनैतिक चेतना का संचार हुआ अतः राजस्थान में प्रजामण्डल आंदोलन शुरू हुआ
- किसान आंदोलनो के कारण राजस्थान का राष्ट्रीय आंदोलन से सम्पर्क स्थापित हुआ
- किसान आंदोलनो के दौरान समाचार पत्रों का प्रकाशन किया गया जिसेंसे अभिव्यक्ति की आजादी का विकास हुआ
- इन आंदोलनों के दौरान किसानों का राजनीति में प्रवेश प्रारंभ हुआ जिससे आगे चलकर राजस्थान की राजनीति को प्रभावित किया था
राजस्थान में किसान आंदोलन की विशेषताएं
- हमारे अधिकांश किसान आंदोलन जागीरी क्षेत्रों में हुए क्योंकि जागीरी क्षेत्रों में किसानों पर तिहरा नियंत्रण होता था (अंग्रेज-राजा-सामन्त)
- हमारे किसान आंदोलन जातीय पंचायतों द्वारा चलाये गए जैसे – धाकड़ किसान पंचायत
- जाट क्षेत्रीय महासभा
- हमारे किसान आंदोलनो में पूंजीपतियों ने भी मुख्य भूमिका निभाई जैसे – रामनारायण चौधरी, जमनलाल बजाज
- हमारे किसान आंदोलन अहिंसक तरीके से किये गए थे अपवाद – मेव किसान आंदोलन
- हमारे किसान आंदोलनों में आर्य समाज ने मुख्य भूमिका निभाई थी जैसे – शेखावाटी किसान आंदोलन
- हमारे किसान आंदोलनो को प्रजामण्डलो का समर्थन प्राप्त हुआ
- हमारे किसान आंदोलनो में आर्थिक के साथ साथ सामाजिक एवं राजनैतिक असमानता का भी विरोध किया गया
- हमारे किसान आंदोलनो में राजनैतिक संगठनों ने मुख्य भूमिका निभाई जैसे – राजस्थान सेवा संघ और राजपुताना मध्य भारत सभा
राजस्थान के किसान आंदोलन से पूछे गए 10 पुराने प्रश्न
- 1903 ई में चवरी कर किसने लगाया था ?
- उत्तर – कृष्णसिंह
- निमुचना हत्याकांड किस रियासत में हुआ था
- उत्तर – अलवर रियासत
- शेखावाटी किसान आंदोलन 1947 ई में किसके प्रयासों से समाप्त हुआ था ?
- उत्तर – हीरालाल शास्त्री
- 1932 ई में राजस्थान का मेव किसान आंदोलन किसके नेतृत्व में प्रारंभ हुआ ?
- उत्तर – मोहम्मद हादी
- बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रेणता थे ?
- उत्तर – विजयसिंह पथिक
- रूपा जी एवं कृपा जी धाकड़ किस किसान आंदोलन में शहीद हुए
- उत्तर – बेंगू
- किसान पंचायत जिसकी स्थापना 1916-17ई में हुई किस आंदोलन से संबंधित थे
- उत्तर – बिजोलिया
- दुधवा खारा किसान आंदोलन किस रियासत से संबंधित है ?
- उत्तर – बीकानेर
- शेखावाटी में जाट आंदोलन किस वर्ष हुआ था
- उत्तर – 1925 ई
- ट्रेंच कमिशन किस आंदोलन से संबंधित है ?
- उत्तर – बेंगू किसान आंदोलन
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Ye bahut ache leval ke nots hai.