मुस्लिम लीग की स्थापना एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

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मुस्लिम लीग

मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खां और वकार उल मुस्ताक हुसैन के द्वारा की गई थी। इसका मुख्यालय लखनऊ में स्थापित किया गया, और आगा खाँ को मुस्लिम लीग का स्थायी अध्यक्ष बनाया गया।

मुस्लिम लीग के प्रारंभिक अधिवेशन:

  • 1906: ढाका में मुस्लिम लीग का पहला अधिवेशन हुआ।
  • 1907: दूसरा अधिवेशन सुरत में आयोजित हुआ।
  • 1908: अमृतसर में तीसरा अधिवेशन हुआ, जिसमें मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की गई।

पृथक निर्वाचन और भारत शासन अधिनियम 1909:

1909 के भारत शासन अधिनियम के तहत मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन की सुविधा को लागू कर दिया गया। इस निर्णय ने भारत विभाजन के बीज को बो दिया।

कांग्रेस के सुरत अधिवेशन 1907:

सुरत अधिवेशन में कांग्रेस का विभाजन हो गया। राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे, जबकि नरम दल वाले रास बिहारी घोष को। अंततः रास बिहारी घोष कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इस अधिवेशन के दौरान गरम दल और नरम दल के बीच मतभेद हुआ।

1916 का लखनऊ अधिवेशन और समझौता:

1916 में अम्बिका चरण मजुमदार की अध्यक्षता में कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन हुआ। बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट के प्रयासों से गरम दल और नरम दल को पुनः एकजुट करने का प्रयास किया गया। इसी वर्ष मुस्लिम लीग का भी अधिवेशन हुआ, और कांग्रेस-लीग समझौते के तहत संवैधानिक सुधारों से संबंधित प्रस्तावों को स्वीकार किया गया। इस समझौते में कांग्रेस ने मुसलमानों को दी जाने वाली पृथक निर्वाचन की सुविधा को मान्यता दी।

मदन मोहन मालवीय ने इस लखनऊ समझौते का विरोध किया था।

1924 के बेलगाव अधिवेशन:

1924 के बेलगाव अधिवेशन के दौरान मुस्लिम लीग कांग्रेस से अलग हो गई।

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