सिक्ख राज्य (1763-1773)
- 1763 – 1774 के बीच पंजाब में छोटे छोटे सिक्ख राज्य की स्थापना हुई और यही राज्य मिसल के नाम से जाने गये
- इनकी कुल संख्या – 12 थी
- भंगी
- निशानिया
- रामगढ़िया
- नक्कई
- अहुलवानिया
- कन्हैया
- किरोडा
- सुकेरचकिया
- दल्ले हवाल
- फ़िजूलपुरिया
- फुलकई
- धनई
- इनमे से 5 सबसे शक्तिशाली माने गए
- भंगी
- नक्कई
- अहलूवालिया
- कन्हैया
- सुकेरचकिया
- इन पांचो में सबसे शक्तिशाली – भंगी मिसल थे
- भंगी मिसल के संस्थापक – छज्जा सिंह थे
- सुकेरचकिया मिसल के संस्थापक – चरतसिंह थे
- धनई मिसल के लिए शहीदी मिसल नाम का भी प्रयोग मिलता है
- अहलूवालिया मिसल राज्य के संस्थापक – सरदार जस्सा सिंह थे इन्हें सुल्तान ए कौम की उपाधि मिली हुई थी
- आधुनिक पंजाब के निर्माण का श्रेय – सुकेरचकिया मिसल को दिया जाता है और इसी मिसल में रणजीत सिंह का जन्म हुआ।
रणजीत सिंह (1792-1839)
- जन्म – 13 नवम्बर 1780
- पिता – महासिंह (सुकेरचकिया मिसल के प्रमुख)
- 1792 में महासिंह की मृत्यु हुई बाद में रणजीत सिंह इस मिसल के प्रमुख बने
- 1796 में अफ़ग़ानिस्तान के शासक जमानशाह ने पंजाब पर आक्रमण किया परन्तु अफगानिस्तान में विद्रोह हो जाने के कारण जमानशाह को वापिस लौटना पड़ा
- 1797 में जमानशाह ने पुनः पंजाब पर आक्रमण किया इस समय अमृतसर में जमानशाह एक प्रकार से पराजित हुआ वापिस लौटते समय जमानशाह की 12 तोपे चिनाव नदी में गिर गयी जिन्हें रणजीत सिंह ने निकलवाकर वापस जमानशाह के पास भिजवा दी थी इस कारण जमानशाह ने रणजीत सिंह को राजा की उपाधि प्रदान करी थी
- 1799 में रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था
- 1805 में रणजीत सिंह ने भंगी मिसल से अमृतसर प्राप्त किया
- रणजीत सिंह की
- राजनैतिक राजधानी – लाहौर
- धार्मिक राजधानी – अमृतसर
- मराठा सरदार होल्कर अंग्रेजों से पराजित होकर 1805 में पंजाब आया था
- जनरल लेक अंग्रेज अधिकारी होल्कर का पीछा करते हुए व्यास नदी तक पहुंच गया
- जनरल लेक ने रणजीत सिंह को होल्कर की सहायता न करने के लिए कहा
- इस बात का निर्णय लेने के लिए तख्त – ए – खालसा का आयोजन किया गया और गुरुमत लिया गया कि होल्कर के साथ क्या किया जाए
- राजनैतिक मामलो में लिया जाने वाला यह आखरी गुरुमत था इसके बाद केवल सामाजिक व धार्मिक मामलों में ही गुरुमत लिया गया
जनरल लेक एव रणजीत सिंह के मध्य सन्धि – 1806
- रणजीत सिंह होल्कर को पंजाब छोड़ने के लिए कहे
- अंग्रेज पंजाब से अपनी सेना हटा लेंगे
- यदि रणजीत सिंह अंग्रेजों के साथ मित्रता रखते है तो अंग्रेज सिक्खो के क्षेत्र पर आक्रमण नही करेंगे
चार्ल्स मेटकोफ ओर रणजीत सिंह के मध्य जो वार्ता हुई उसकी शर्ते –
Contents
सिक्ख राज्य (1763-1773)रणजीत सिंह (1792-1839)जनरल लेक एव रणजीत सिंह के मध्य सन्धि – 1806अमृतसर की सन्धि – 25 अप्रैल 1809त्रिपक्षीय सन्धि – 1838रणजीत सिंह का प्रशासन प्रांतीय प्रशासनभुराजस्व व्यवस्थासैन्य प्रशासनघुड़सवार सेनापैदल सैनिकतोपखाना।न्याय प्रशासनरणजीत सिंह के बाद पंजाब की स्थितिप्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध (1845-46)लाहौर की सन्धि – 9 मार्च 1846भैंरोवाल की सन्धिद्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध (1848-49)
- यदि अफगान भारत पर आक्रमण करते है तो अंग्रेज रणजीत सिंह का साथ देंगे
- पंजाब के मालवा क्षेत्र पर रणजीत सिंह का अधिकार की बात हुई जिसे अस्वीकार कर दिया गया
- रणजीत सिंह ने मालवा की ओर अभियान किया
- अंग्रेजो ने लुधियाना के समीप ऑक्टर लोनी के नेतृत्व में सेना भेजी
- जिससे भयभीत होकर रणजीत सिंह ने अमृतसर की सन्धि कर ली।
अमृतसर की सन्धि – 25 अप्रैल 1809
- सतलज नदी को अंग्रेज व सिक्खो की सीमा मान ली गयी
- लुधियाना में एक अंग्रेज सेना रखी गयी जिससे रणजीत सिंह यहाँ आक्रमण न करे
- सतलज के पूर्वी राज्य अब अंग्रेजों के पास चले गये
- 1809 मे रणजीत सिंह ने कांगड़ा पर अधिकार कर लिया गया
- 1813 में अफगान अमीर शाह शुजा से कश्मीर का क्षेत्र लिया गया ओर यही से रणजीत सिंह को कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ
- 1818 में रणजीत सिंह ने मुल्तान की विजय की
- 1819 में दीवानचन्द्र मिश्र के नेतृत्व में सेना कश्मीर भेजी गयी यहाँ अबदाली के उत्तराधिकारियों द्वारा नियुक्त गवर्नर जब्बार खां को पराजित करके कश्मीर पर पूर्ण रूप से अपनी सत्ता स्थापित की थी।
- रणजीत सिंह ने लेह पर भी अधिकार किया था
- 1834 में रणजीत सिंह के द्वारा पेशावर पर भी अधिकार कर लिया गया था।
त्रिपक्षीय सन्धि – 1838
- ओकलैंड + शाह शुजा + रणजीत सिंह
- ब्रिटिश गवर्नर ऑकलैंड के द्वारा अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद को हटाने के लिए अफगानिस्तान के अमीर शाह शुजा एव रणजीत सिंह के साथ त्रिपक्षीय सन्धि करी थी
- 1839 में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गयी
रणजीत सिंह का प्रशासन
- रणजीत खालसा के नाम से प्रशासन चलाते थे
- इनकी सरकार को खालसा सरकार कहा जाता था
- रणजीत सिंह के समय 04 महत्वपूर्ण विभाग थे
- दफ्तर-ए-आबवाव-उल-माल
- यह विभाग भूराजस्व व आय के स्त्रोतो से संबंधित था।
- दफ्तर-ए-तोहिजात
- यह विभाग शाही परिवार के खर्चो की व्यवस्था करता था
- दफ्तर-ए-मवाजाब
- यह विभाग सैन्य व असैन्य कर्मचारियों के वेतन का हिसाब रखता था।
- दफ्तर-ए-रोजनामचा
- यह विभाग राजा के प्रतिदिन के खर्चो का हिसाब रखता था
- रणजीत सिंह ने गुरुमत को प्रोत्साहन नही दिया था
- इन्होंने डोगरा सरदार व मुसलमानों को उच्च पद दिया।
- सरकार-ए-खालसा 5 मंत्रियो की सहायता से कार्य करता था।
- जिसमे मुख्यमंत्री का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था
- ध्यानसिंह मुख्यमंत्री के पद पर थे
- विदेश मंत्री – फकीर अजीजुद्दीन
- रक्षा मंत्री –
- मोकहम चन्द
- दीवान चन्द मिश्र
- हरिसिंह नलवा इस पद पर रहे
- अर्थमंत्री – भगवान दास
- डोगरा सरदार ध्यानसिंह, गुलाबसिंह, सुचेतासिंह ओर हीरासिंह का प्रशासन में विशेष स्थान था
- ध्यानसिंह, गुलाबसिंह व सुचेतासिंह तीनो को राजा की उपाधि दी गयी।
प्रांतीय प्रशासन
- प्रान्तों को सूबा कहा जाता था
- सिक्ख प्रान्त में मुख्य रूप से 4 सूबे थे
- सूबे के अधिकारी को नाजिम कहा जाता था
- नाजिम के पास सैन्य व असैन्य दोनो अधिकार थे
- सुबो का विभाजन परगने में किया गया
- परगने का अधिकारी – कारदार कहलाता था।
- कारदार के कार्य – शान्ति व्यवस्था एवं भूराजस्व एकत्रित करना था
- परगने का विभाजन – तालुका में होता था
- एक तालुका में लगभग 50 से 100 मौजे होते थे
- तालुका का अधिकारी – तालुकेदार कहलाता था
- प्रशासन की सबसे निचली इकाई – गांव / मौजा थी जहाँ पंचायत व्यवस्था मौजूद थी
भुराजस्व व्यवस्था
- भुराजस्व 33 से 40% तक वसूल किया जाता था
- रणजीत सिंह के काल मे बटाई प्रथा एव नीलामी योजना का प्रचलन था
- ऊंची बोली लगाने वालों को 4 वर्ष से 6 वर्ष के लिए भुराजस्व वसूली के अधिकारी दिया जाता था
सैन्य प्रशासन
- सैन्य प्रशासन का आधार ब्रिटिश-फ्रांस पर
- 1.फ़ौज ए खास (फौज ए आईन)
- एक प्रकार से नियमित सेना होती थी
- घुड़सवार सेना
- पैदल सेना
- तोपखाने की सेना
- एक प्रकार से नियमित सेना होती थी
- 2. फौज ए बेकवायद
- एक प्रकार से अनियमित सेना थीं
- घुड़चढा-खास
- घोड़े एव अस्त्र स्वयं लें जाते थे
- इन्हें राज्य की ओर से वेतन दिया जाता था
- मिसलदार
- ये वे सरदार थे जिन्हें रणजीत सिंह ने अपनी सेना में शामिल कर दिया।
- इन मिसलदार को नकद वेतन दिया जाता था
घुड़सवार सेना
- नियमित घुड़सवारों को यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित किया गया
- 1822 में फ्रांसीसी सेनापति एलार्ड को इन घुडसवारों सैनिको को प्रशिक्षित करने के लिए बुलाया गया
- इनके प्रशिक्षण को रक्स-ए-लुलुआ (नर्तकी की चाल) कहा जाता था।
- ओकलैंड ने पंजाब दौरे के समय इन घुड़सवारों को देखकर कहा “यह संसार की सबसे सुंदर फौज है”
पैदल सैनिक
- इनको प्रशिक्षण देने के लिए इटालियन सेनापति वंतुरा को बुलाया गया।
तोपखाना।
- अधिकारी – दरोगा-ए-तोपखाना
- तोपखाने को संगठित करने का कार्य फ्रांसीसी अधिकारी जरनल कोर्ट एव कर्नल गार्डनर के द्वारा किया गया
- तोपखाने के प्रकार
- तोपखाना-ए-पीली
- तोपखाना-ए-अस्पि
- तोपखाना-ए-जेम्बूरक
- तोपखाना-ए-गवी
न्याय प्रशासन
- ग्रामीण स्तर पर न्याय हेतु पंचायत की व्यवस्था थी
- परगना स्तर पर कारदार की व्यवस्था
- सूबे में नाजिम न्याय का कार्य किया करता था
- नाजिम के ऊपर अदालत उल आला थी जिसका मुख्यालय – लाहौर में था
- अंतिम न्यायालय राजा का न्यायालय होता था
- रणजीत सिंह के काल मे मृत्युदंड एव अंग भंग की भी सजा दी जाती थी
- मृत्युदंड देने का अधिकार केवल राजा को था
- रणजीत सिंह के काल मे अर्थदण्ड की भी सजा दी जाती थी
- फ्रांसीसी पर्यटक विक्टर जाकमा ने रणजीत सिंह की तुलना नेपोलियन बोनापार्ट से की है
रणजीत सिंह के बाद पंजाब की स्थिति
- रणजीत सिंह के बाद खड्ग सिंह पंजाब के शासक बने
- खड़ग सिंह के वजीर का नाम -ध्यानसिंह था
- खड़ग सिंह एवं उनके पुत्र नॉनिहाल सिंह की 1840 में मृत्यु हो गई।
- सिक्ख सरदार रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह को शासक बनाना चाहते थे
- जबकि खड़ग सिंह की विधवा चांदकौर सत्ता प्राप्त करना चाहती थी
- चांदकौर ने अजीतसिंह के साथ मिलकर शेरसिंह के खिलाफ षड्यंत्र किया
- अजीतसिंह ने 1843 में शेरसिंह की हत्या कर दी
- 1843 में ही दिलीप सिंह पंजाब के शासक बने और रानी जिन्दनकौर दिलीप सिंह की संरक्षिका बनी थी
प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध (1845-46)
- इस युद्ध का प्रमुख कारण – रानी जिन्दनकौर की महत्वाकांक्षा थी
- जिन्दनकौर साम्राज्य विस्तार के माध्यम से जन साधारण का ध्यान परिवर्तन करवाना चाहती थी
- अतः लालसिंह एव तेजसिंह के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी गयी
- प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध के दौरान निम्न लड़ाइयां लड़ी गयीं।
- मुदकी की लड़ाई (सितंबर 1845)
- फिरोजशाह की लड़ाई (दिसम्बर 1845)
- बद्दोवाल की लड़ाई (जनवरी 1846)
- सबराओ कि लड़ाई (फरवरी 1846)
- यह प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध के दौरान निर्णायक लड़ाई मानी गई
- जिसमे सिक्ख पराजित हुए
लाहौर की सन्धि – 9 मार्च 1846
- पंजाब के महाराजा सतलज पार के अपने प्रदेशो से अपना अधिकार हमेशा के लिए छोड़ देंगे
- सिक्खो पर 1.5 करोड़ रुपये आर्थिक जुर्माना लगाया गया जिसे चुकाने के लिए 1 करोड़ रुपए में कश्मीर गुलाब सिंह को बेच दिया गया
- लाहौर में एक साल के लिए हेनरी लॉरेंस नामक रेजिडेंट को नियुक्त किया जावेगा
- अल्पवयस्क दिलीप सिंह को पंजाब का शासक मान लिया गया। रानी जिन्दन को दिलीप सिंह की संरक्षिका बना दिया गया
- कश्मीर बेचने के कारण लाहौर की सन्धि का विरोध हुआ अतः दिसम्बर 1846 में भैंरोवाल कि दूसरी सन्धि सम्पन्न की गई
भैंरोवाल की सन्धि
- रानी जिन्दन का संरक्षण समाप्त कर दिया एव उन्हें 1.5 लाख रुपए वार्षिक पेंशन प्रदान कि गई
- प्रशासन चलाने के लिए 8 सिक्ख सरदारों की परिषद का गठन किया गया
- लाहौर में एक स्थायी सेना रखना निश्चित हुआ जिसके लिए दिलीप सिंह को 22 लाख रुपए देने थे
द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध (1848-49)
- भैंरोवाल कि सन्धि के बाद रानी जिन्दन की पेंशन राशी 1.5 लाख से घटाकर 48000 रुपए कर दी गयीं ओर रानी जिन्दन के आभूषण भी ले लिए गए तथा रानी जिन्दन को शेखपुरा नामक स्थान पर भेज दिया गया
- मुल्तान के गर्वनर मूलराज के द्वारा सिक्खो को युद्ध के लिए तैयार किया गया और द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध के दौरान तीन युद्ध लड़े गए
- रामनगर का युद्ध – नवम्बर 1848
- इस युद्ध मे अंग्रेज सेना का नेतृत्व जनरल गॉफ के द्वारा किया गया
- ये युद्ध अनिर्णायक रहा था
- चिलियावाला का युद्ध – जनवरी 1849
- इस युद्ध मे भी अंग्रेज सेना का नेतृत्व जरनल गॉफ के द्वारा किया गया
- डलहौजी ने चिलियावाला के युद्ध के बारे में कहा था – “हमने भारी खर्चा करके इस युद्ध को जीता है जो कि पराजय के समान है”
- गुजरात का युद्ध – फरवरी 1849
- इस युद्ध को तोपो का युद्ध भी कहा जाता है इसमें अंग्रेजों का नेतृत्व चार्ल्स नेपियर ने किया
- इस युद्ध मे सिक्ख अंतिम रूप से पराजित हुए
- मार्च 1849 में डलहौजी ने सिक्ख राज्य का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में कर लिया
- दिलीप सिंह को 5 लाख रुपए की वार्षिक पेंशन देकर इंग्लैंड भेज दिया
- अंग्रेजो ने हेनरी लॉरेंस को पंजाब का प्रशासनिक अधिकारी तथा चार्ल्स मेशन को पंजाब का न्यायिक अधिकारी नियुक्त किया था एव जॉन लॉरेंस को भुराजस्व अधिकारी बनाया गया

यह अध्याय लगभग सभी एग्जाम के लिए उपयोगी है