
समाज / SOCIETY
- समाज समाजशास्त्र की केंद्रीय अवधारणा है
- समाज का निर्माण एक दीर्घकालिन ऐतिहासिक प्रक्रिया के द्वारा हुआ है
- मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में सचेतन प्रयास द्वारा समाज रूपी संस्था को जन्म दिया
- अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानव ने उद्देश्यपूर्ण व्यवहार किया जिससे उसमे समूह की भावना का जन्म हुआ कालांतर में अलग अलग आवश्यकताए महसूस की गई और उसी के अनुरूप विभिन्न समूहों का जन्म हुआ और अंततः इससे समाज की उत्पत्ति हुई
समाज की परिभाषा –
- किसी भौगोलिक क्षेत्र में निवास करने वाले लोगो का समूह जो प्रत्यक्ष एव अप्रत्यक्ष सामाजिक संबंधों के आधार पर एक दूसरे से जुड़े होते है जिनकी साझी संस्कृति एवं समान व्यवहार के तौर तरीके होते है समाज कहलाता है साधारण शब्दो मे समाज व्यक्तियो के मध्य सामाजिक संबंधों के स्वरूप को व्यक्त करता है
- सामाजिक संबंध अमूर्त होता है अतः समाज भी अमूर्त होता है
- किसी भी समाज को निरन्तरता तथा स्थायित्व प्रदान करने में संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है संस्कृति ना सिर्फ समाज के सदस्यों को मूल्यों, विचारों आदि के स्तर पर दिशा निर्देश प्रदान करती है बल्कि उनके व्यवहारों को भी नियंत्रित एव निर्देशित करती है
- संस्कृति एक जटिल समग्र है जिसमे विचार, विश्वास, प्रथा, रीति – रिवाज, व्यवहार के तौर तरीके सभी शामिल है जो मनुष्य समाज के एक सदस्य होने के नाते सीखता है – एडवर्ड टायलर
- समाजशास्त्रीय व्याख्याओं में संस्कृति एवं व्यापक अवधारणा है जिसमे अभौतिक एव भौतिक पक्ष दोनों ही शामिल है
ऑगबर्न ने संस्कृति के 02 स्वरूपों की चर्चा की है
अभौतिक पक्षइसके अंतर्गत विचार, विश्वास, प्रथा, परम्परा, रीतिरिवाज, मान्यताएं, धर्म आदि शामिल हैयह अमूर्त प्रकृति की होती है इसमे परिवर्तन धीमी दर से होता है | भौतिक पक्षइसमे पर्यावरण के मानव निर्मित भाग को शामिल किया जाता है अर्थात यह मनुष्य के सचेतन प्रयास के द्वारा बनाया गया है जिसका उद्देश्य मानव जीवन को सरल या आसान एव सुविधाजनक बनाना हैयह मूर्त प्रकृति का होता है अर्थात मानव के इन्द्रियों के द्वारा देखा या स्पर्श किया जा सकता है यह परिवर्तनशील होता है |
सांस्कृतिक विलंब या पिछड़ापन का सिद्धांत / CULTURAL LEG THEORY
- प्रवर्तक – ऑगबर्न
- ऑगबर्न के अनुसार संस्कृति के भौतिक पक्ष परिवर्तन एव विकास की दर अभौतिक पक्ष की तुलना में अधिक होती है जिसके कारण एक समय आता है जब अभौतिक पक्ष, भौतिक पक्ष की तुलना में पिछड़ जाता है इसे ही ऑगबर्न ने सांस्कृतिक विलंब का सिद्धांत कहा है
संस्कृति और सभ्यता में अंतर
संस्कृति | सभ्यता |
अभौतिक एव भौतिक दोनों होती | केवल भौतिक पक्ष होती |
यह अमूर्त एव मूर्त दोनों रूपो में पाई जाती | यह केवल मूर्त रूप में |
यह व्यापक अवधारणा है | यह सीमित अवधारणा है |
इसमे परिवर्तन धीमी एव तीव्र होते | इसमे परिवर्तन तीव्र होते |
यह अविनाशी एव विनाशी दोनों हो सकती | यह केवल विनाशी होती है |
समाज की विशेषताएं –
- समाज व्यक्तियों का समूह है जिसमे परस्पर निर्भरता पाई जाती है
- समाज मे सहयोग एवं संघर्ष की उपस्थिति होती
- समाज मे सामान्य या साझी संस्कृति होती है
- समाज मे पारस्परिक जागरूकता पाई जाती है
- समाज के सदस्यों के मध्य अन्तःक्रिया की प्रकृति स्थायी व अस्थायी ओर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रकृति पाई जाती है
- समाज सामाजिक संबंधों की एक स्थायी संरचना है
- समाज एक अमूर्त व्यवस्था है
- समाज मे निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का अभाव होता है
- समाज मानव समाज को एक सामाजिक पहचान प्रदान करती है
- समाज मे संगठन पाया जाता है
- समाज परिवर्तनशील होता है
NOTE – 1960 व 1970 के दशक से पूर्व समाज की परिभाषा में निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का अभाव था जिसके कारण एक समाज को दूसरे समाज से अलग करने में समस्या आती थी क्योंकि निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के अभाव के कारण पूरी दुनिया ही एक समाज मानी जाती थी अतः समाजशास्त्र में नई अवधारणा ‘एक समाज की उपस्थिति देखी गयी’
एक समाज –
- 1970 के पश्चात समाजशास्त्र में एक नई अवधारणा एक समाज की उत्पत्ति हुई
- एक समाज का तात्पर्य – किसी भौगोलिक क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों के समूह से है जिनकी साझी संस्कृति, साझी मूल्य व्यवस्था एव व्यवहार के तौर तरीके लगभग समान होते है एव जिनके सदस्यों के मध्य प्रत्यक्ष एव स्थायी अन्तःक्रिया होती है एक समाज कहलाता है उदाहरण के रूप में जोधपुर का समाज, राजस्थान का समाज, भारतीय समाज इत्यादि
समाज | एक समाज |
निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का अभाव | निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में स्थित होता |
अमूर्त | अपेक्षाकृत मूर्त |
व्यापक एव समग्र अवधारणा | सीमित अवधारणा |
अप्रत्यक्ष संबंधों की प्रधानता | प्रत्यक्ष संबंधो की प्रधानता |
संगठन का अभाव | संगठन की मात्रा अधिक |
अस्थायी संबंध | स्थायी संबंध |
विविधतामूलक | सजातीयता आधारित |
समाज के प्रकार
- मोटे तौर पर दुनिया के समाजो को हम तीन समाज मे बांटकर समझ सकते है
परम्परागत समाज | आधुनिक समाज | उतर आधुनिक समाज |
जैसे – कृषक जनजातीय ग्रामीण समाज | जैसे – नगरीय समाज औधोगिक | जैसे – वैज्ञानिकता बौद्धिकता भौतिकतावादी |
A परम्परागत समाज –
- वैसा समाज जहाँ धर्म, प्रथा, परम्परा की प्रधानता हो, जहाँ सयुंक्त परिवार व्यवस्था का प्रचलन हो, जहाँ कृषि मुख्य आर्थिक संरचना का निर्धारक हो जो प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता हो उसे परम्परागत समाज कहते है जैसे
- ग्रामीण भारतीय समाज
- जनजातीय समाज
- कृषक समाज आदि
परम्परागत समाज (भारतीय) की विशेषताएं
- धर्म, प्रथा, परम्परा की प्रधानता
- सामुदायिकता या सामाजिक भाईचारे पर आधारित
- जाति सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख निर्धारक
- सयुंक्त परिवार व्यवस्था की प्रधानता
- कृषि आर्थिक संरचना की उपस्थिति
- रूढ़िवादी, अंधविश्वासी प्रवर्ती
- महिलाओं की निम्न समाजिक स्थिति
- शिक्षा, ज्ञान एव जागरूकता का निम्न स्तर
- वैज्ञानिक मनोवृत्ति का अभाव
- परम्परागत समाज मे हाल के वर्षों में यद्यपि परिवर्तन देखे जा रहे है फिर भी आज भी उनकी मानसिकता व सोच धर्म, जाति, परम्परा आधारित अधिक है।
- वर्तमान में परम्परागत समाज मे भी आधुनिक समाज के लक्षण दिखाई पड़ते है फिर भी परम्परागत समाज मे तर्क, बौद्धिक चिन्तन व मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का अभाव देखा ही जाता है
- कृषक समाज –
- रॉबर्ट रेडफील्ड द्वारा धारणा प्रस्तुत की गई
- कृषक समाज से तात्पर्य – वैसे समाज से है जो कृषि आधारित आर्थिक संरचना पर निर्भर है इसमें बड़े किसान, मझोले किसान, सीमान्त किसान, कृषक मजदूर सभी शामिल है
- इसमे परम्परागत समाज की लगभग सभी विशेषतायें पायी जाती है
- जनजातिय समाज –
- वैसा नृजातीय समूह जिसकी निम्नलिखित विशेषताए हो
- आदिम संस्कृति की उपस्थिति
- मुख्य धारा के समाज से सम्पर्क में संकोच
- भौगोलिक अलगाव
- पृथक, अलग व विशिष्ट पहचान, भाषा, लिपि
- उसे जनजातीय समाज कहा जाता है यह समाज सरल एवं बन्द समाज का उदाहरण है
B आधुनिक समाज –
- प्रस्तुतकर्ता – सेंट सायमन
- आधुनिक समाज से तात्पर्य – वैसे समाज से है जहाँ तर्क, बुद्धि व विज्ञान एवं आधुनिक मूल्यों की प्रधानता हो जहाँ नाभिक परिवार की प्रभावी उपस्थिती हो, जहाँ कृषि के अतिरिक्त विनिर्माण एव सेवा क्षेत्रक उधोगों की उपस्थिति हो एव जहाँ वर्ग आधारित सामाजिक स्तरीकरण पाया जाता हो उसे आधुनिक समाज कहते है
- आधुनिक समाज को जटिल / खुला / सभ्य समाज भी कहा जाता है
- आधुनिक समाज की विशेषताएं –
- आधुनिक मूल्यों (समानता, स्वतन्त्रता, बन्धुता, धर्म निरपेक्षता, मानववाद) की प्रधानता हो
- तर्क बोद्धिक चिंतन एव मनोवैज्ञानिक मनोवृत्ति पर आधारित समाज
- धार्मिक सद्भाव, भाईचारे एव सहिष्णुता पर आधारित बहुसांस्कृतिक एव बहुधार्मिक समाज
- सामाजिक स्तरीकरण की इकाई वर्ग
- सामाजिक सांस्कृतिक गतिशीलता अधिकता
- श्रम के विशिष्टीकरण (specialigation) पर आधारित
- खुला या मुक्त समाज
- परिवार उपभोग की इकाई के रूप में
- नाभिक परिवार की प्रभावी उपस्थिति
- व्यक्तिवादी, उपभोक्तावादी एव भौतिकतावादी मूल्यों की प्रधानता
- महिलाओं की अपेक्षकृत बेहतर सामाजिक स्थिति
- कृषि के साथ साथ सेवा, विनिर्माण आदि उधोगों की प्रधानता।
C उत्तर आधुनिक समाज
- अवधारणा –
- डेनियल बेल ने अपनी पुस्तक – ‘The Coming Of Post Industries Society’
- एलेन तोरेन कि पुस्तक – ‘Retain Of The Action
- वैसा समाज जहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता चरम स्तर पर हो, जहाँ धर्म एव सामाजिक संबंधों का प्रभाव सीमित हो जहाँ सेवा क्षेत्रक उद्योगों की प्रधानता हो, जहाँ राज्य भी भूमिका सीमित हो उसे उतर आधुनिक समाज कहा जाता है
विशेषताएं –
- अत्यधिक बौद्धिकता, तार्किकता एवं वैज्ञानिकता पर आधारित समाज
- व्यक्तिवादी, उपभोक्तावादी एवं भौतिकतावादी मूल्य चरम स्तर पर उपस्थिति
- सामाजिक संस्थाओं, धर्म की भूमिका अत्यंत सीमित
- विभिन्न पेशेवर अभिजन श्रमिक वर्ग की उपस्थिति
- सेवा क्षेत्रक उद्योगों की प्रधानता
- विवाह तथा परिवार के विभिन्न विकल्पों की उपस्थिति
परम्परागत समाज | आधुनिक समाज | उत्तराधुनिक समाज | |
धर्म | प्रधानता | धर्म के साथ धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की उपस्थिति | अत्यंत सीमित ओर धर्मनिरपेक्षता |
स्तरीकरण की इकाई | जाति / वर्ण | वर्ग व्यवस्था की उपस्थिति | वर्ग विहीन |
परिवार | सयुंक्त परिवार | सयुंक्त परिवार कम तथा नाभिक परिवार ज्यादा | नाभिक प्रकार ओर नए प्रकार के परिवार |
विवाह | धार्मिक स्तर | संविदात्मक ओर समझौतापरक | संविदात्मक ओर नए विवाह (एकल विवाह) |
उत्पादन स्वरूप | कृषि प्रधान आर्थिक संरचना | कृषि के अतिरिक्त सेवा, विनिर्माण आदि | सेवा क्षेत्रक उद्योग की प्रधानता ओर विनिर्माण |
उत्पादन | जीवन निर्वाह हेतु कृषि सीमित मात्रा में उत्पादन | विपुल मात्रा में उत्पादन | लचीला उत्पादन |
सामूहिकता की भावना | प्रबल | कमी, ओर व्यक्तिवादी, उपभोक्तावादी, भौतिकतावादी मूल्यों की प्रधानता | व्यक्तिवादी, भौतिकतावादी, उपभोक्तावादी मूल्यों पर अधिक बल |
सामाजिक संस्थाओं की भूमिका | भूमिका अत्यधिक | सीमित | अत्यंत सीमित |
राजनीतिक व्यवस्था | धर्म आधारित राजनीति ओर राज्य की सीमित भूमिका | विभिन्न दल, संगठन की उपस्थिति ओर राज्य भूमिका में तोड़ा विस्तार | राज्य की अत्यंत सीमित भूमिका |
महिलाओं की स्थिति | निम्न / दयनीय | स्थिति में सुधार | स्थिति में व्यापक सुधार |
कार्य का विभाजन | लेंगिक विभाजन |
समाज की परिभाषायें –
मेकाइवर तथा पेज – “समाज सामाजिक संबंधों का संजाल है”
- “जहाँ भी जीवन है वहा समाज है”
- समाज सामाजिक कार्य प्रणालियों एव रीतियों की अधिकार सत्ता एव पारस्परिक सहायता की, अनेक समूहों एवं श्रेणियों की तथा मानव व्यवहार को नियंत्रित करने वाली एव स्वतन्त्रता की व्यवस्था है”
- पुस्तक – ‘The Society’
“समाज स्वयं एक संघ, संगठन है, औपचारिक संबंधों का योग है जिसमे सहयोगी व्यक्ति परस्पर संबंद्ध है” – G.F. Giddings
“समाज समुदाय के भीतर संगठित समितियों एवं संस्थाओं की जटिल व्यवस्था है” -G. D. H. कोल
“समाज एक अमूर्त्त धारणा है” – बियरस्टिड
समाज के तत्व –
जॉनसन ने समाज के 04 प्रमुख तत्वों की चर्चा की है
- निश्चित क्षेत्र
- प्रजनन
- समग्र संस्कृति
- सम्बन्धों का स्थाई स्वरूप
समाज के प्रकार –
एंथोनी गिडेन्स ने समाज के 07 प्रकारों की चर्चा की है
- शिकार एव भोजन संग्रह पर समाज
- पशुपालक समाज
- कृषक समाज
- सभ्य नगरीय या संक्रमणशील राज्य
- प्रथम दुनिया का समाज
- द्वितीय दुनिया का समाज
- तृतीय दुनिया का समाज
प्रथम दुनिया का समाज
गिडेन्स के अनुसार इस समाज के अंतर्गत वैसे समाज को शामिल किया गया जो कृषि के स्थान पर धीरे धीरे औद्योगिक समाज के रूप में परिवर्तित हो रहे है इन समाजो में लोगो के जीवन मे बड़ा बदलाव देखा जाता है औद्योगिक विकास एवं तकनीक सुधार के कारण लोगों की जीवन शैली, मानसिकता एव सामाजिक संबंधों में बदलाव देखा जाता है
दूसरी दुनिया का समाज
गिडेन्स के अनुसार इन समाजो के अंतर्गत मुख्य रूप से समाजवादी विचारधारा वाले देशों को शामिल किया है इन देशों में उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण होता है और राज्य नागरिकों के मध्य संसाधनों का वितरण उनकी आवश्यकता एव योग्यता के संदर्भ में करता है
तीसरी दुनिया का समाज
गिडेन्स के अनुसार इसके अंतर्गत मिश्रित अर्थव्यवस्था अर्थात सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों की भागीदारी वाले राज्यों को शामिल किया है अधिकांश विकासशील एवं पूंजीवादी देश के अंतर्गत ऐसा समाज देखा जाता है