संधि
मित्रो यह संधि का टॉपिक उन सभी एग्जाम के लिए उपयोगी है जिसमे हिंदी को पाठ्यक्रम में दिया गया हो
हमने इस संधि टॉपिक को पूर्ण रूप से अध्ययन करने की कोशिश की है
शाब्दिक अर्थ – मेल / मित्रता / जोड़ / समझौता
विलोम शब्द – विग्रह / विच्छेद
संधि के प्रकार – 03
संधि के 03 ही प्रकार क्यों होते –
- दो वर्णों (स्वर / व्यजंन) के योग से होने वाला विकार ही संधि कहलाता है
स्वर + स्वर = स्वर संधि (1)
स्वर + व्यजंन = व्यजंन संधि (2)
व्यजंन + स्वर = व्यजंन संधि (2)
व्यजंन + व्यजंन = व्यजंन संधि (2)
विसर्ग + स्वर = विसर्ग संधि (3)
विसर्ग + व्यजंन = विसर्ग संधि (3)
A स्वर संधि
- स्वर के साथ स्वर के योग से होने वाला बदलाव स्वर संधि कहलाता है
- स्वर संधि के प्रकार – 5
1. दीर्घ स्वर संधि अ / आ + अ / आ = आ
इ / ई + इ / ई = ई
उ / ऊ + उ / ऊ = ऊ
2. गुण स्वर सन्धि अ / आ + इ / ई = ए
अ / आ + उ / ऊ = ओ
अ / आ + ऋ = अर्
3. वृद्धि स्वर संधि अ / आ + ए / ऐ = ऐ
अ / आ + ओ / औ = औ
4. यण स्वर संधि
- इ / ई + असमान स्वर = इ / ई का य् + असमान स्वर की मात्रा जुड़ती है
- उ / ऊ + असमान स्वर = उ / ऊ का व् + असमान स्वर की मात्रा जुड़ती है
- ऋ + असमान स्वर = ऋ का र् + असमान स्वर की मात्रा जुड़ती
5. अयादि संधि
- ए + कोई भी स्वर = ए का अय् + स्वर की मात्रा जुड़ती
- ऐ + कोई भी स्वर = ऐ का आय् + स्वर की मात्रा जुड़ती
- ओ + कोई भी स्वर = ओ का अव् + स्वर की मात्रा जुड़ती
- औ + कोई भी स्वर = औ का आव् + स्वर की मात्रा जुड़ती
1 दीर्घ संधि
नियम अ / आ + अ / आ = आ
इ / ई + इ / ई = ई
उ / ऊ + उ / ऊ = ऊ
उदाहरण
- अंधानुकरण = अंध+ अनुकरण
- अभयारण्य = अभय + अरण्य
- अपांग = अप + अंग
- मुक्तावली = मुक्ता + अवली
- महात्मा = महा + आत्मा
- चमूर्जा = चमू + ऊर्जा
- सरयूमि = सरयू + ऊर्मि
- भूर्ध्व = भू + ऊर्ध्व
- भूष्मा = भू + ऊष्मा
- भानूदय = भानु + उदय
- नदीश = नदी + ईश
- अभीष्ट = अभि + इष्ट
- लक्ष्मीच्छा = लक्ष्मी + इच्छा
- महींद्र = मही + इंद्र
2. गुण स्वर सन्धि
- अ / आ + इ / ई = ए
अ / आ + उ / ऊ = ओ
अ / आ + ऋ = अर्
उदाहरण
- स्वेच्छा = स्व + इच्छा
- सर्वेक्षण = सर्व + ईक्षण
- प्रेक्षा = प्र + ईक्षा
- यथेच्छा = यथा + इच्छा
- द्वारकेश = द्वारका + ईश
- मिथिलेश = मिथिला + ईश
- प्रोज्ज्वल = प्र + उज्ज्वल
- राजर्षि = राजा + ऋषि
- उत्तमर्ण = उत्तम + ऋण
- यमुनोर्मी = यमुना + ऊर्मि
- महोर्जा = महा + ऊर्जा
- नवोढ़ा = नव + ऊढा
3. वृद्धि स्वर संधि
नियम। अ / आ + ए / ऐ = ऐ
अ / आ + ओ / औ = औ
उदाहरण
- मतैकता = मत + एकता
- धनैषणा = धन + एषणा
- ज्ञानैश्वर्य = ज्ञान + ऐश्वर्य
- मतैक्य = मत + ऐक्य
- महौषध = महा + औषध
- यथौचित्य = यथा + औचित्य
- तपौदार्य = तप + औदार्य
- घृतौदन = घृत + ओदन
- महौत्सुक्य = महा + औत्सुक्य
4. यण स्वर संधि
- इ / ई + असमान स्वर = इ / ई का य् + असमान स्वर की मात्रा जुड़ती है
- उ / ऊ + असमान स्वर = उ / ऊ का व् + असमान स्वर की मात्रा जुड़ती है
- ऋ + असमान स्वर = ऋ का र् + असमान स्वर की मात्रा जुड़ती
उदाहरण
- पित्रुपदेश = पितृ + उपदेश
- मात्रिच्छा = मातृ + इच्छा
- भ्वादि = भू + आदि
- वध्वाग्मन = वधू + आगमन
- अन्वेषण = अनु + एषण
- गुर्वाज्ञा = गुरु + आज्ञा
- स्वल्प = सु + अल्प
- अन्वय = अनु + अय
- वाण्युपयोगी = वाणी + उपयोगी
- उपर्युक्त = उपरि + उक्त
NOTE – यदि किसी शब्द के अंत मे अक्ष, रात्र, अच्छ, इच्छ, निश शब्द आये तो यह शब्द क्रमशः बदल जाते है अक्षि, रात्रि, अच्छा, इच्छा, निशा
5 अयादि संधि
- ए + कोई भी स्वर = ए का अय् + स्वर की मात्रा जुड़ती
- ऐ + कोई भी स्वर = ऐ का आय् + स्वर की मात्रा जुड़ती
- ओ + कोई भी स्वर = ओ का अव् + स्वर की मात्रा जुड़ती
- औ + कोई भी स्वर = औ का आव् + स्वर की मात्रा जुड़ती
उदाहरण
- भावुक = भौ + उक
- नाविक = नौ + इक
- गवेषणा = गो + एषणा
- भवन = भो + अन
- अवि = ओ + इ
- अव = ओ + अ
- विनय = विने + अ
- चयन = चे + अन
स्वर संधि के विशेष अपवाद –
- इन पांचों शब्दो का संधि विच्छेद गुणसंधि के अनुसार हो रहा है लेकिन विकार रूप वृद्धि मानते है
- प्र + ऊढ = प्रौढ़
- प्र + ऊढा = प्रौढा
- अक्ष + ऊहिनि = अक्षौहिणी
- स्व + ईर = स्वैर
- स्व + ईरिणी = स्वैरिणी
- निम्नलिखित शब्दो मे सदैव वृद्धि के अनुसार ही संधि विच्छेद होगा
- दन्तोष्ठ / दन्तौष्ठ = दन्त + औष्ठ
- अधरोष्ठ / अधरौष्ठ = अधर + औष्ठ
- निम्नलिखित शब्दो मे 2-2 संधियां एव 2-2 ही संधि विच्छेद माने जाते है
गव + अक्षि = गवाक्ष (दीर्घ संधि) | गव + इंद्र = गवेन्द्र (गुण) |
गो + अक्षि = गवक्ष (अयादि संधि) | गो + इंद्र = गविंद्र (अयादि) |
- यदि पदांत अक्ष, रात्र, निश, इच्छ, अच्छ हो तो यह क्रमशः अक्षि, रात्रि, निशा, इच्छा, अच्छा में बदल जाते है जैसे
- प्रत्यक्ष = प्रति + अक्षि
- अहोरात्र = अहन् + रात्रि
- अहर्निश = अहन् + निशा
- यथेच्छ = यथा + इच्छा
- स्वच्छ = सु + अच्छा
व्यजंन संधि के अपवाद
- अहन् की संधि
- शाब्दिक अर्थ – दिन
- उदाहरण – सप्ताह = सप्त (सात)+ अहन् (दिन) [दीर्घ संधि]
★ यदि अहन् के बाद ‘र’ वर्ण हो तो अहन् के स्थान पर अहो आदेश हो जाता है
उदाहरण – अहन् + रात्रि = अहोरात्र
- अहन् + रूप = अहोरुप
★ यदि अहन् के बाद ‘र’ के अलावा अन्य वर्ण उपस्थित हो तो अहन् के स्थान पर अहर् आदेश हो जाता है
उदाहरण – अहर्निश = अहन् + निशा
- अहर्पति = अहन् + पति
- अहर्मुख = अहन् + मुख
- अहरह = अहन् + अहन्
- दीर्घ स्वर संधि के अपवाद
- विश्वामित्र = विश्व + मित्र
- प्रभूदयाल = प्रभु + दयाल
- मूसलाधार = मूसल + धार
अन्य महत्वपूर्ण
- सारंग = सार् + अंग
- पतंजलि = पतत् + अंजलि
- सुखार्त = सुख + ऋत
- तृषार्त = तृष + ऋत
B व्यजंन संधि
- स्वर + व्यजंन
- व्यजंन + स्वर
- व्यजंन + व्यजंन
आदेश
- किसी वर्ण को बदलकर उसके स्थान पर अन्य वर्ण लिख देना
आगम
- दो वर्णों के बीच नया वर्ण का आजाना
लोप
- किसी वर्ण को हटा देना
प्रकृतिभाव
- ज्यो का त्यों वर्ण लिख देना
- विसर्ग संधि के उपयोग (प्रातः+काल =प्रातः काल)
नियम 1 वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन
- यदि वर्ग के पहले वर्ण के बाद किसी भी वर्ग का 3, 4, य्, व्, र्, ल् या कोई स्वर आये तो पहला वर्ण उसी वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जाता है
उदाहरण
- अजंत = अच् + अंत
- अब्ज = अप् + ज
- जगदीश = जगत् + ईश
- वागीश = वाक् + ईश
- षड्यंत्र = षट् + यंत्र
नियम 2 – वर्ग के पहले वर्ण का पांचवे वर्ण में परिवर्तन
- यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण का मेल पांचवे वर्ण (नासिक्य) से हो तो पहले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का पांचवा वर्ण हो जाता है
उदाहरण
- सन्मार्ग = सत् + मार्ग
- उन्मुख = उत् + मुख
- वाङ्मुख = वाक् + मुख
- सन्नारी = सत् + नारी
- तन्मात्र = तत् + मात्र
नियम 3 यदि किसी वर्ग का प्रथम वर्ण का मेल ‘ह’ से होने पर प्रथम वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण एव ‘ह’ के स्थान पर ‘ह’ रखो या उसी वर्ग का चौथा वर्ण कर दो
उदाहरण
- उत् + हार = उद्धार / उद्हार
- वाग्घरि / वाग्हरि = वाक् + हरि
- अज्झीन / अज्हीन = अच् + हीन
नियम 4 यदि किसी वर्ग का चौथा वर्ण का मेल तीसरे या चौथे वर्ण से हो तो चौथा वर्ण उसी वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जाता है
उदाहरण
कग्गज | युद्घ | बुद्धि |
कक् + गज × | युध् + ध × | बुध् + दि √ |
कघ्(4) + ग(3)ज √ | युद् + ध √ |
नियम 5 यदि ‘द्’ वर्ण से पहले मूर्धन्य स्वर (ऋ) हो तो ‘द्’ के स्थान पर ‘ण्’ कार आदेश हो जाता है
उदाहरण
- मृण्मय = मृद् + मय
- मृण्मूर्ति = मृद् + मूर्ति
नियम 6 यदि ‘म्’ का मेल स्पर्श व्यजंन (क् से म् तक) के किसी भी व्यजंन से होने पर ‘म्’ उसी वर्ग के पंचम वर्ण या अनुस्वार (ं) में बदल जाता है
उदाहरण
- संजीवनी / सञ्जीवनी = सम् + जीवनी
- दंड / दण्ड = दम् + ड
- संकर / सङ्कर = सम् + कर
- अलंकार / अलङ्कार = अलम् + कार
नियम 7 यदि ‘म्’ का मेल अंतस्थ व उष्मवर्ण (य्, व्, र्, ल्, श्, ष्, स्, ह्) से होने पर ‘म्’ के स्थान पर केवल अनुस्वार का ही प्रयोग होगा
उदाहरण
- सरंचना = सम् + रचना
- संयोग = सम् + योग
- स्वयंवर = स्वयम् + वर
नियम 8 – यदि सम् उपसर्ग के बाद ‘कृ’ धातु से बना शब्द हो तो ‘सम्’ के स्थान पर अनुस्वार, मध्य में ‘स्’ का आगम ओर कृ धातु अपने स्थान पर आएगी | नियम 9 – यदि ‘परि’ उपसर्ग के बाद ‘कृ’ धातु से बने शब्द आये तो केवल मध्य में ‘ष्’ का आगम होगा |
संस्कार = सम् + कार | परिष्कार = परि + कार |
संस्कृत = सम् + कृत | परिष्कर्ता = परि + कर्ता |
संस्कारक = सम् + कारक | परिष्करण = परि + करण |
NOTE – यदि किसी उपसर्ग का अंतिम वर्ण स्वर रहित हो और उसके बाद कोई स्वर होता है तो वहाँ संधि नही बल्कि संयोग होता है
उदाहरण
- समाचार = सम् + आचार
- निरूपाय = नीर् + उपाय
- निरुत्तर = नीर् + उत्तर
- अनुसार = अनु + सार
नियम 10 – यदि ‘त्’ या ‘द्’ वर्ण के बाद ‘च’ या ‘छ’ वर्ण हो तो ‘त्’ , ‘द्’ के स्थान पर ‘च्’ वर्ण हो जाता है
उदाहरण
- उच्चारण = उद् + चारण
- शरच्चन्द्र = शरद् + चन्द्र
- सच्चेष्टा = सत् + चेष्टा
- उच्छेद = उद् + छेद
- उच्छादन = उद् + छादन
नियम 11 – यदि ‘त्’ या ‘द्’ वर्ण का मेल ‘ज्’ / झ से हो तो त्/द् के स्थान पर ज् वर्ण में बदल जाता है
उदाहरण
- उज्ज्वल = उत् + ज्वल
- सज्जन = सत् + जन
- वृहज्झंकार = वृहद् + झंकार
नियम 12 – यदि ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण का मेल ट् / ठ वर्ण से होने पर ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण ‘ट्’ वर्ण में बदल जाता है
उदाहरण
- तट्टीका = तत् + टीका
- मृट्टीका = मृत् + टीका
- वृहट्टीका = वृहत् + टीका
नियम 13 – यदि ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण का मेल ‘ल्’ वर्ण से हो तो ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण के स्थान पर ‘ल्’ वर्ण आ जाता है
उदाहरण
- उल्लेख = उद् + लेख
- शरल्लास = शरद् + लास
- उल्लिखित = उद् + लिखित
- तल्लीन = तत् + लीन
नियम 14 – यदि ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण का मेल ‘ड’ / ‘ढ़’ से होने पर ‘त्’ / ‘द्’ के स्थान पर ‘ड्’ वर्ण हो जाता है
उदाहरण
- उड्डयन = उद् + डयन
- भवड्डमरू = भवत् + डमरू
नियम 15 – ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण का मेल ‘श्’ वर्ण से होने पर ‘त्’ / ‘द्’ वर्ण के स्थान पर ‘च्’ वर्ण एव ‘श्’ के स्थान पर ‘ छ्’ वर्ण हो जाता है
उदाहरण
- सच्छास्त्र = सत् + शास्त्र
- श्रीमच्छरच्चन्द्र = श्रीमत् + शरद् + चन्द्र
नियम 16 – यदि कोई भी स्वर के बाद ‘छ’ वर्ण से मेल हो तो मध्य में ‘च्’ वर्ण का आगम होता है
उदाहरण
- विच्छेद = वि + छेद
- आच्छादन = आ + छादन
- परिच्छाया = परि + छाया
नियम 17 – यदि ‘स’ से पहले ‘अ’ , ‘आ’ से कोई भिन्न स्वर हो तो ‘स’ का ‘ष’ में परिवर्तन हो जाता है
उदाहरण
- अभिषेक = अभि + सेक
- अनुषंग = अनु + संग
- निषिद्ध = नि + सिद्ध
- विषम = वि + सम्
अपवाद
- वि + सर्ग = विसर्ग
- अनु + सार = अनुसार
- वि + स्मरण = विस्मरण
नियम 18 – यदि ‘स्थ’ से पहले ‘इ’, ‘उ’ वर्ण हो तो ‘स्थ’ का ‘ष्ठ’ हो जाता है
उदाहरण
- अनुष्ठान = अनु + स्थान
- प्रतिष्ठान = प्रति + स्थान
- निष्ठुर = नि + स्थुर
नियम 19 – मूर्धन्य ‘ष’ के बाद ‘त्’, ‘थ्’ (दन्त्य) व्यजंन आय तो ये क्रमश ‘ट्’ , ‘ठ्’ में बदल जाते है जैसे
- इष्ट = इष् + त
- आकृष्ट = आकृष् + त
- पुष्टि = पुष् + ति
- षष्ठ = षष् + थ
नियम 20 – यदि ‘उद्’ के बाद ‘स्’ (दन्त्य सकार) हो तो उद् ‘उत्’ में एव ‘स्’ का लोप हो जाता है
उदाहरण
- उत्थित = उद् + स्थित
- उत्थान = उद् + स्थान
- उत्थापना = उद् + स्थापना
नियम 21 – यदि ऋ, र्, ष् के परे कोई भी वर्ण अथवा कोई स्वर उसके परे या पूर्व आए तो ‘न्’ का ‘ण्’ हो जाएगा
उदाहरण
- परिणाम = परि + नाम
- परिमाण = परि + मान
- प्रयाण = प्र + यान
- कृष्ण = कृष् + न
- हरण = हर् + न
- ऋण = ऋ + न
नियम 22 – न् लोप का नियम
संस्कृत के कुछ शब्दों के अंत मे ‘न’ का प्रयोग होता है ऐसे शब्दों की संधि होने पर इन शब्दों का ‘न्’ लुप्त हो जाता है जैसे
- आत्मन् + विश्वास = आत्मविश्वास
- पक्षीन् + गण = पक्षिगण
- आत्मन् + हन्ता = आत्महन्ता
- युवन् + अवस्था = युवावस्था
- स्वामिन् + भक्ति = स्वामिभक्ति
नियम 23 – यदि ‘नीर्’ के बाद ‘र’ हो तो नीर् के र् का लोप एव ‘इ’ की मात्रा का दीर्घादेश / ई हो जाता है उदाहरण निर् + रस = नीरस | नियम 24 – यदि ‘दुर्’ के बाद ‘र’ हो तो ‘दुर्’ के ‘र्’ का लोप एव उ की मात्रा का दीर्घादेश / ‘ऊ’ हो जाता हैउदाहरणदुर् + रस = दूरस |
NOTE – नीरव, नीरोग, दूराजा, दूराज, दूरव, नीरज, आदि में विसर्ग संधि को प्राथमिकता देनी चाहिए
C विसर्ग संधि
- विसर्ग + स्वर
- विसर्ग + व्यजंन
- 11 : + 44 (सघोष 13, अधोष 31)
- इस संधि को 02 भागो में बांटकर पढेंगे
- 11 : + अघोष (क, ख, च, छ, श, ट्, ठ्, ष्, त्, थ्, स, प, फ)
- 11 : + सघोष ( 3, 4, 5, य, व, र, ल्, ह्, सभी स्वर)
- यदि विसर्ग के बाद च, छ, श वर्ण हो तो विसर्ग का श् (तालव्य) हो जाता है
उदाहरण
- नि: + शुल्क = निश्शुल्क
- बहि: + चक्र = बहिश्चक्र
- आ: + चर्य = आश्चर्य
- यश: + शरीर = यशश्शरीर
- यदि विसर्ग के बाद ट, ठ, ष हो तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है
उदाहरण
- धनु : + टंकार = धनुष्टंकार
- चतु : + षष्टी = चतुष्षष्टि
(c) यदि विसर्ग के बाद ‘त’, ‘थ’, ‘स’ हो तो विसर्ग का ‘स’ हो जाता है
उदाहरण
- नमः + ते = नमस्ते
- दु : + साहस = दुस्साहस
- दु : + तर = दुस्तर
- मन : + ताप = मनस्ताप
- वि : + तार = विस्तार
(d) यदि ‘अ’ या ‘आ’ के अलावा स्वर (9) + : (विसर्ग) के बाद ‘क’, ‘ख’, ‘प’, ‘फ’ हो तो विसर्ग का ‘ष्’ (मूर्धन्य) हो जाता है
उदाहरण
- पु: + कर = पुष्कर
- आवि : + कार = आविष्कार
- चतु : + पद = चतुष्पद
- दु : + परिणाम = दुष्परिणाम
- दु : + कर्म = दुष्कर्म
(e) यदि ‘अ’ या ‘आ’ + : (विसर्ग) के बाद क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का प्रकृतिभाव (ज्यूँ का त्यू) हो जाता है
उदाहरण
- प्रातः + काल = प्रातःकाल
- अंत: + पुर = अंत:पुर
- अध: + पतन = अध:पतन (अधोपतन ×)
- मन: +कामना = मन:कामना (मनोकामना ×)
NOTE इस संधि के निम्न अपवाद है
1 पर, 2 कर, 2 कृत, 4 पति और 4 कार इन पर होती है अपवादों की मार
1 पर – पर : + पर = परस्पर
2 कर – भा : + कर = भास्कर
- श्रेय : + कर = श्रेयस्कर
2 कृत – पुर : + कृत = पुरस्कृत
- तिर : + कृत = तिरस्कृत
4 पति – भा : + पति = भास्पति
- वाच : + पति = वाचस्पति
- वन : + पति = वनस्पति
- बृह : + पति = बृहस्पति
4 कार – नमः + कार = नमस्कार
- पुर : + कार = पुरस्कार
- तिर : + कार = तिरस्कार
- सर : + कार = सरोकार
2. 11 : + सघोष ( 3, 4, 5, य, व, र, ल्, ह्, सभी स्वर)
(f) यदि ‘अ’ : के बाद ‘अ’ के अलावा स्वर (10) हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है
उदाहरण
- अतः + एव = अतएव (√) विसर्ग संधि
- अतः + एव = अतैव (√) वृद्धि संधि
- तत: + एव = ततएव (√)
- तत : + एव = ततैव (√)
- पय : + आदि = पयआदि (√) विसर्ग
- पय: + आदि = पयादि (√) दीर्घ संधि
नियम (g) – विसर्ग का ‘ओ’ में परिवर्तन
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘अ’ स्वर या कोई घोष वर्ण हो तो संधि करने पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है बाद में ‘अ’ होने पर ‘अ’ का लोप हो जाता है
उदाहरण
- पय :+ द = पयोद
- तप : + वन = तपोवन
- मन : + विकार = मनोविकार
- यश : + दा = यशोदा
- मन : + रथ = मनोरथ
- सर : + ज = सरोज
- मन : + रोग = मनोरोग
नियम (h) – विसर्ग का र् में परिवर्तन
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ के अलावा अन्य कोई स्वर (10) हो एव उसके बाद विसर्ग हो एव उसके बाद कोई घोष वर्ण या स्वर हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है
उदाहरण
- नि : + आशा = निराशा
- नि : + धन = निर्धन
- नि : + जन = निर्जन
- आवि : + भाव = आविर्भाव
- आशी : + वाद = आशीर्वाद
अपवाद
- पुनः + अवलोकन = पुनरवलोकन
- पुनः + ईक्षण = पुनरीक्षण
- पुनः + उद्धार = पुनरुद्धार
- पुनः + निर्माण = पुनर्निर्माण
- अंत : + द्वंद्व = अंतर्द्वंद्व
- अंत : + देशिय = अंतर्देशीय
- अंत : + यामी = अंतर्यामी
नियम (i) – यदि इ / उ : + ‘र’ हो तो इ/उ का तो ई / ऊ एव विसर्ग से ‘र्’ व ‘र्’ का लोप हो जाता है
उदाहरण
- नि : + रोग = निरोग
- नि : + रज = नीरज
- नि : + रव = नीरव
- दु : + रस = दूरस
- चक्षु : + रोग = चक्षूरोग
दोस्तो हमने इस टॉपिक के माध्यम से आपके निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर देने का प्रयास किया गया
संधि किसे कहते हैं
संधि
संधि विच्छेद
संधि शोथ
संधि की परिभाषा
संधि के प्रकार
व्यंजन संधि
स्वर संधि
संधिवातावर घरगुती उपाय
विसर्ग संधि
संधि कितने प्रकार की होती है
दीर्घ संधि
दीर्घ संधि के उदाहरण
गुण संधि
यण संधि
संधि की परिभाषा उदाहरण सहित
स्वर संधि किसे कहते हैं