राजस्थान में 1857 कि क्रांति (revolt of 1857 in rajasthan) का योगदान ओर महत्व दिया।
इस अध्याय में हम पूर्ण रूप से 1857 का विद्रोह (1857 की क्रांति ) का अध्ययन करेंगे
इस 1857 कि क्रांति को हम टेबल रूप में पढ़ेंगे जिससे हमें आसानी से याद हो सके
राज में 1857 कि क्रांति को पढ़ने के बाद आप हमारे टेस्ट सीरीज के फोल्डर में जाके आप टेस्ट दीजिये हमने टेस्ट सीरीज में केवल उन्हीं प्रश्नों को शामिल किया है जो पुराने पपेरो में आये हुए है (old previous question)
नसीराबाद छावनी से शुरू होकर यह विद्रोह दिल्ली की ओर बढ़ा और राजस्थान के कई स्थानों में प्रभावित हुआ।
नसीराबाद छावनी की सैनिकों ने विद्रोह का आदान-प्रदान किया और दिल्ली को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति प्रदान की। इसमें राजस्थान के वीर सैनिकों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय राजा और लोगों ने भी विद्रोह का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सामना किया। वे अपने साहस और निर्णय के लिए प्रसिद्ध हुए और राजस्थान को इस महत्वपूर्ण घड़ी में योगदान का गर्व महसूस होता है।
1857 की क्रांति ने राजस्थान में राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता को बढ़ावा दिया और यह एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण से राजस्थानी समाज को सुधारने में सहायक हुआ।
1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान (Contribution of Rajasthan in the Revolution of 1857 in Hindi) एक ऐसा टॉपिक है जिससे लगातार विभिन्न परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं।
1857 की क्रांति की पृष्ठभूमि
- 1803 में भरतपुर तथा अलवर रियासतों ने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली इस समय लॉर्ड वेलेजली अंग्रेज गवर्नर जनरल था
- 1817-18 में राजस्थान की अन्य रियासतों में अंग्रेजों से संधिया की 1817 में करौली ओर कोटा 1818- में सभी रियासतें 1823 – में सिरोही रियासत
- इस समय लॉर्ड हेस्टिंग्स अंग्रेज गवर्नर जनरल था
- इन संधिया के दौरान चार्ल्स मेटकॉफ अंग्रेजों का प्रतिनिधि था
- वागड़ की रियासतों की संधियों में जॉन मैल्कम अंग्रेजों का प्रतिनिधि था
- प्रतेयक रियासत में एक अंग्रेज अधिकारी नियुक्त किया जाता था जिसे पोलिटिकल एजेंट या रेजिडेंट का जाता था
- डेविड ऑक्टरलोनी प्रथम प्रेसिडेंट फॉर राजपूताना था तथा इसका मुख्यालय दिल्ली था
- 1832 में अजमेर में AGG मुख्यालय बनाया गया
- अब्राहिम लोकेट राजस्थान का प्रथम AGG था
- 1845 में AGG का मुख्यालय आबू भेज दिया गया
- 1864 में AGG के लिए दो मुख्यालय स्थापित की गई
ग्रीष्मकालीन राजधानी – आबू
शीतकालीन राजधानी -अजमेर
1857 की क्रांति के कारण
-
राज्यो के आन्तरिक शासन में हस्तक्षेप-
- अंग्रेजो द्वारा राज्यो के आन्तरिक मामलो में हस्तक्षेप करना
- अंग्रेजो ने 1839 में जोधपुर के किले पर अधिकार कर लिया
- 1819 में अंग्रेजो ने जयपुर के मामलो में हस्तक्षेप किया
मांगरोल का युद्ध 1821 –
- 1 ऑक्टोम्बर 1821 के युद्ध मे कोटा नरेश महारावल किशोर सिंह, कर्नल टॉड एव जालिम सिंह की फौज है हारा महारावल12 नवम्बर को नाथद्वारा चला गया वहाँ कोटा राज्य को श्रीनाथ जी के नाम पर अर्पण कर दिया
- 1823 में कैप्टन कौब ने समस्त प्रशासन प्रबंध अपने हाथ में ले लिया और मेवाड़ महाराणा को खर्च के लिये 1000 रुपये दैनिक नियत कर लिया
2 राज्यो का उत्तराधिकार मामलो में हस्तक्षेप –
- 1826 में अलवर राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर बलवन्त सिंह एव बन्ने सिंह के मध्य अलवर राज्य के दो हिस्से करवा दिए
- भरतपुर के उत्तराधिकार के प्रश्न ओर 1826 में अंग्रेजो ने लोहागढ़ दुर्ग को घेरा कर उसे नष्ट कर दिया और राजा बलवंत सिंह को गद्दी पर बैठाकर पोलिटिकल एजेंट के अधीन एक काउंसिल की नियुक्ति कर दी जो प्रशासन का संचालन करने लगी
- जिस राज्य का उत्तराधिकारी अल्पव्यस्क होता है वहाँ रेजिडेंट की अध्यक्षता में ऊबे समर्थकों की कौंसिल का गठन कर प्रशासन पर नियंत्रण स्थापित कर लेते थे
- 1844 में बांसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह की नाबालिगि के दौरान प्रशासन पर अंग्रेजी नियंत्रण बना रहा
3 राज्यो की कमजोर वित्तिय स्तिथि –
- जोधपुर में शांति व्यवस्था स्थापित करने के नाम पर 1835 में जोधपुर लीजियन का गठन कर उसके खर्च के लिए एक लाख 15 हजार रुपये जोधपुर राज्य से वसूला जाने लगा
- 1841 में मेवाड़ भील कोर की स्थापना मेवाड़ राज्य के खर्च पर की गई
- 1842 में मेरवाडा बटालियन ओर 1834 में शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना कर इसका खर्च समन्धित राज्य से वसूला जाने लगा जबकि इन सैनिक टुकड़ियां पर नियंत्रण एव निर्देशन अंग्रेजो का था
4 राज्यो का शिथिल प्रशासन-
5 किसानों एव जन साधारण के हितों पर कुठाराघात –
- राज में 1857 कि क्रांति प्रारंभ होने के समय राजपुताना में नसीराबाद, नीमच, देवली, ब्यावर, एरिनपुरा एव खेरवाड़ा में सैनिक छावनियां थी
6 सैनिक छावनियां –
- इन सैनिक छावनियों में 5000 सैनिक थे
- मेरठ में हुये विद्रोह (10 मई 1857 )की सूचना राज के एजेंट टू गवर्नर जनरल जॉर्ज पेट्रिक
लॉरेंस को 19 मई 1857 को प्राप्त होते ही उसने राजस्थान के शासको को आदेश दिया कि विद्रोहियों को राज्य में घूसने नही दिया जावे ओर उन्हें बन्दी बना लेवे
अंग्रेजो के सामने उस समय अजमेर की सुरक्षा की समस्या सबसे अधिक महत्वपूर्ण थी क्योंकि अजमेर शहर में भारी मात्रा में गोला बारूद एव सरकारी खजाना था
यदि यह सब विद्रोहियों जे हाथ लग जाता तो उनकी स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो जाती, अजमेर स्तिथ भारतीय सैनिकों की 2कंपनिय हाल ही में मेरठ से आई थी और A.G.G. ने सोचा सम्भव है कि यह 15 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री मेरठ से विद्रोह की भावना लेकर आई हो
अतः इस इन्फेंट्री को नसीराबाद भेज दिया और ब्यावर से 2 मेर रेजिमेंट बुला ली गयी
तत्पश्चात उसने डिसा (गुजरात) से एक यूरोपियन सेना भेजने को लिखा
- देवली में कोटा रेजिमेंट
- ब्यावर में मेर रेजिमेंट
- एरिनपुरा ने जोधपुर लीजियन
- खेरवाड़ा में भिलकोर
- नसीराबाद में 15 बंगाल नेटिव इंफेंट्री
•1857 की क्रांति के दौरान राजस्थान में 6 सैनिक छावनी थी नसीराबाद -अजमेर
2 नीमच -मध्य प्रदेश
3 देवली- टोंक
4 एरिनपुरा -पाली
5 ब्यावर- अजमेर
6 खेरवाड़ा -उदयपुर
• ब्यावर तथा खेरवाड़ा छावनी ने क्रांति में भाग नहीं लिया
- ■ नसीराबाद की क्रांति
- 28 मई को NI के सैनिकों ने क्रांति की शुरुआत की
- इन्होंने 2 अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया
Col- न्यू बेरी और
Capt -स्टोपिस वुड - दो अंग्रेज अधिकारी घायल हो गए
लेफ्टिनेंट- लॉक
कैप्टन- हार्डी - ह्दय आघात के कारण col पैनी की मृत्यु हो गई
- 30 वी नेटिव इन्फेंट्री के सैनिक भी क्रांति में शामिल हो गई तथा सभी विद्रोही दिल्ली की तरफ से लेकर
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■ नीमच में क्रांति
- मोहम्मद अली बेग नामक सैनिक ने col abott के सामने अंग्रेजों के प्रति वफादारी करने से मना कर दिया
- 3 जून को हीरा सिंह के नेतृत्व में क्रांति हुई
- शाहपुरा के राजा लक्ष्मण सिंह ने विद्रोह का समर्थन किया
- निंबाहेड़ा में जनता ने विद्रोहियों का स्वागत किया
- देवली छावनी के सैनिक भी क्रांति में शामिल हो जाते हैं तथा सभी विद्रोही दिल्ली चले गए
- 40 अंग्रेज नीमच छावनी से भाग गए
- डूंगला नामक गांव में रुघाराम नामक किसान ने इन्हें शरण दी
- मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट शावर्स ने इन्हें बचाया तथा इन्हें उदयपुर ले गया
- महाराणा स्वरूप सिंह ने इन्हें जगमंदिर महल में रखा •
- महाराणा स्वरूप सिंह ने मेवाड़ के सिक्कों पर दोस्ती लंदन लिखवाया (स्वरूप शाही सिक्के )
■ एरिनपुरा में क्रांति
- 21 अगस्त को पूर्बिया सैनिकों ने आबू में क्रांति की उन्होंने अंग्रेज अधिकारी होल के घर पर हमला कर दिया
- विद्रोही एरिनपुरा वापस आये तथा अपने बाकी साथियों के साथ दिल्ली की तरफ बढ़ने का प्रयास किया
- खेरवा (पाली) नामक स्थान पर विद्रोह की मुलाकात कुशाल सिंह चंपावत से हुई तथा कुशाल सिंह विशाल ने इन्हें अपना नेतृत्व प्रदान किया
- बिठौड़ा का युद्ध– पाली 8 सितंबर 1857
कैप्टन हीथ कोट + vs कुशाल सिंह चम्पावत कुशाल सिंघवी
•इस युद्ध मे उसे कुशाल सिंह की जीत हुई
•जोधपुर का ओनार सिंह पवार इसमें लड़ता हुआ मर गया
● चेलावास का युद्ध – 18 sept 1857
जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस-AGG vs कुशाल सिंह
+ मेकमोशन-PA - इसे गोरो कालो का युद्ध भी कहते है
- इस युद्ध में भी कुशल सिंह की जीत हुई तथा में मेकमोशन को मार दिया गया
● आउवा का युद्ध – 20 जनवरी 1858
Col होम्स + vs कुशाल सिंह चंपावत
हंसराज जोशी (जोधपुर का सेनापति) - कुशाल सिंह सहायता प्राप्त करने मेवाड़ चले गए
- पृथ्वी सिंह लाम्बिया ने युद्ध का नेतृत्व किया
- इस युद्ध में अंग्रेजो की जीत हुई
- 24 jan 1858 को अंग्रेजों ने आउवा पर अधिकार कर लिया तथा सुगाली माता की मूर्ति उठाकर ले गए
- यह एक काले संगमरमर की मूर्ति हैं जिसमें सुगाली माता के 10 सिर एव 54 हाथ है
- अंग्रेजों ने इसे अजमेर के राजपूताना म्यूजिक रखा था तथा कालांतर में इसे बांगड़ म्यूजिक में भेज दिया गया
- मेवाड़ में सलूंबर (उदयपुर )- के केसरी सिंह तथा
कोठारिया (राजसमंद)- के जोधसिंह ने
कुशाल सिंह को शरण दी - 8 aug 1860 को कुशाल सिंह में नीमच में आत्मसमर्पण कर दिया
- कुशाल सिंह की जांच के लिए टेलर कमीशन बनाया गया
- कुशाल सिंह ने अपना अंतिम समय उदयपुर में बिताया तथा 1864 में यहीं पर इनकी मृत्यु हो गई
- मारवाड़ के कई अन्य सामन्तो ने भी कुशाल सिंह चंपावत का साथ दिया जैसे
शिवनाथ सिंह – आसोप
- बिशन सिंह- गुल्लर नागौर
अजीत सिंह – आलनियावास
चांद सिंह – बसावाना
जगतसिंह -तुल गिरी - शिवनाथ सिंह आसोप के नेतृत्व में विद्रोही ने दिल्ली की तरफ जाने का प्रयास किया लेकिन नारनौल के पास हुए अंग्रेज अधिकारी गेरार्ड की सेना से हार गए
- क्रांति के केंद्र
सुगाली माता मंदिर
कामेश्वर मंदिर सिंह - तख्तसिंह- मारवाड़ का राजा
- कानजी- बिठौड़ा का सामन्त था जिसकी कुशाल सिंह चंपावत ने हत्या कर दी थी
■ कोटा का विद्रोह -15 अक्टूबर 1857
- विद्रोही
1 वकील – जयदयाल (मथुरा)
2 रिसालदार – मेहराब खान (करौली) - विद्रोहियों ने कई लोगों को मार दिया
1 बर्टन -PA
2 फ्रेंक
3 आर्थर
4 सेडलर
5 सिविल kontam
6 देवीलाल- महाराव का प्रतिनिधि - महाराव रामसिंह-2 को नजरबंद कर दिया गया
- मधुरेश मंदिर के महंत कन्हैयालाल गोस्वामी ने राजा तथा विद्रोहियों के मध्य एक समझौता करवाया इस समझौते में 9 शर्ते शामिल थी
- करौली के राजा मदनपाल ने राम सिंह-2 को विद्रोहियों से मुक्त करवाया
- 30 मार्च 1858 को अंग्रेज अधिकारी रोबोट्स ने कोटा को विद्रोहियों से पूर्ण मुक्त कराया
- अंग्रेजों ने जयदयाल तथा मेहराब खान को फांसी लगा दी
- अंग्रेजों ने रामसिंह द्वितीय को भी दंडित किया तथा उसकी तोपों की सलामी घटा दी (15 से 11)
- करौली के राजा मदन पाल को सम्मानित किया गया था उसकी तोपों की सलामी को बढ़ा दी (17 कर दी)
note 14 अक्टूबर को बर्टन ने महाराव से मुलाकात की तथा जयदयाल तथा मेहराब खान को दंडित करने तथा रतनलाल एव जियालाल को हटाने के सुझाव दिए
■ टोंक में विद्रोह
- विद्रोही।
1 मीर आलम (नवाब का मामा )
2 मोइनुद्दीन - नवाब- वजीरुददोला अंग्रेजों का समर्थन किया
- निंबाहेड़ा में ताराचंद पटेल ने कर्नल जैक्सन का सामना किया
- जनरल जैक्सन नीमच के विद्रोहियों का पीछा कर रहा था
- अंग्रेजों ने ताराचंद पटेल को फांसी दी गई
- टोंक के विद्रोह में महिलाओं ने भी भाग लिया
- मोहम्मद मुजीब के नाटक- आजमाइस में से इसकी जानकारी मिलती हैं
■ धौलपुर में विद्रोह
- इंदौर तथा गवालियर के विद्रोही ने धौलपुर में क्रांति की
- नेता
1 राव रामचंद्र
2 हीरालाल - विद्रोह दबाने के लिए धौलपुर के राजा भगवंत सिंह ने पटियाला से सेना बुलाई
■ भरतपुर में विद्रोह
- गुर्जर एव मेव समुदाय ने क्रांति की
- भरतपुर के राजा जसवंत सिंह ने पोलिटिकल एजेंट मोरिशन को भरतपुर छोड़ने की सलाह दी
■ अलवर में विद्रोह
- महाराजा विनय सिंह अंग्रेजों का समर्थन लेकिन उसके दीवान फैज उल्ला खान ने विद्रोहियों का साथ दिया
■ जयपुर में विद्रोह
- PA ईडन के कहने पर महाराजा रामसिंह द्वितीय ने विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया
- विद्रोही
– सादुल्लाह
-विलायत खां
– उस्मान खान - अंग्रेजों ने रामसिंह द्वितीय को सितारे हिंद की उपाधि तथा कोटपूतली परगना दिया
■ बीकानेर में विद्रोह
- महाराजा सरदार सिंह राजस्थान का एकमात्र राजा था जिसने अपनी सेना को रियासत के बाहर जाकर क्रांति को दबाया ( हिसार के पास बाडलु नामक स्थान पर
- अंग्रेजों ने इससे टिबी परगने तथा 40 गांव दिए थे
◆ अमरचन्द बांठिया
- मूल रूप से बीकानेर के थे
- क्रांति के दौरान ग्वालियर में झांसी की रानी की आर्थिक सहायता की अतः इन्हें इन्हें क्रांति का भामाशाह का कहा जाता है
- अंग्रेजों ने इसे फांसी लगा दी गई
- क्रांति में राजस्थान के प्रथम शहीद
1857 की क्रांति की विशेषताए –
1. **साहसिक योगदान:** राजस्थान में 1857 की क्रांति में स्थानीय योद्धाओं ने साहसपूर्ण योगदान दिया, जिससे वे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ उठे।
2. **नृत्य और साहित्य का प्रभाव:** क्रांति ने राजस्थान के सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी परिवर्तन को प्रेरित किया, विशेषकर नृत्य, संगीत, और साहित्य में।
3. **स्थानीय स्मारकों का योगदान:** क्रांति ने स्थानीय स्मारकों और धार्मिक स्थलों को एक साथ आने में भूमिका निभाई, जिससे उन्हें आन्दोलन के प्रति समर्पित किया गया।
4. **राजपूताना की वेशभूषा में परिवर्तन:** क्रांति ने राजपूताना की वेशभूषा में बदलाव लाकर, जनता को एक साथ मिलकर आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
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