राजस्थान जनजातीय आंदोलन
दोस्तो हम राजस्थान में जनजातियो के आंदोलन के टॉपिक को बड़े विस्तार से अध्ययन करेंगे
जैसे राजस्थान जनजातिय आंदोलन सामान्य जानकारी
राजस्थान जनजातिय आंदोलन के व्यक्तित्व
राजस्थान जनजातिय आंदोलन के कारण
राजस्थान जनजातिय आंदोलन के घटनाक्रम
राजस्थान जनजातिय आंदोलन के पुराने प्रश
राजस्थान जनजातीय आंदोलन के कारण
- जनजातीया नई प्रशासनिक व्यवस्था को समझ नही पायी तथा इस व्यवस्था में उनका शोषण होता था
- जनजातियो की परंपरागत खेती को बंद कर दिया गया
- सामन्त भूराजस्व को बढ़ा दिया करते थे
- भूराजस्व नकदी में लिया जाता था अतः जनजातियां साहूकारों के चंगुल में फंस गई
- जनजातियां बोलाई कर (राजमार्ग कर) तथा रखवाली कर (गांव की सुरक्षा हेतु ) लिया करती थी लेकिन अंग्रेजों ने यह कर समाप्त कर दिए
- 1822 में मेरवाड़ा बटालियन (ब्यावर) तथा 1841 में मेवाड़ भील कोर (खेरवाड़ा) की स्थापना जनजातिय क्षेत्रों में कि गयी तथा इनके खर्चे का भार जनजातियों पर डाल दिया गया
- नई आबकारी नीति के तहत भीलो की महुआ शराब पर रोक लगा दी गयी
- अफीम, तम्बाकू एव नमक पर कर बढ़ा दिए गए
- जनजातियों से सामन्तो एव राजाओ द्वारा बेगार ली जाती थी
- 1881 ई की जनगणना के समय भीलो में असंतोष उभरा क्योंकि उन्हें लगा कि हमारे युवाओं को अफगान युद्ध मे भेजा जाएगा उनको लगा कि व्यक्तियो की गिनती कर उन पर कर लगाए जाएंगे
- जनजातियों की सामाजिक परम्पराओ में हस्तक्षेप किया गया
- उदाहरण 1853 ई में मेवाड़ महाराणा स्वरूप सिंह ने डाकन प्रथा पर रोक लगा दी थी
- जनजातियो के वन अधिकार समाप्त कर दिए गए थे
भगत आंदोलन / लसाडिया आंदोलन – राजस्थान जनजातिय आंदोलन
- वागड़ क्षेत्र में भील जनजाति द्वारा यह आंदोलन प्रारंभ किया गया था
- नेता – गोविंद गुरु
- सुरजी भगत
गोविंद गुरु
- जन्म – वेदसा (डूंगरपुर)
- परिवार – बंजारा
- बासिया गाव में अपनी धुनि ओर निशान (ध्वज) स्थापित किया
- गोविंद गुरु ने भीलो का नैतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान किया
- गोविंद गुरु ने एकेश्वरवाद पर बल दिया
- चोरी, शराब तथा अन्य कुरीतिया बंद करवाई थी
- आपसी विवादों के हल के लिए पंचायतों की स्थापना की तथा कोतवालों की नियुक्तियां की थी
- स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया गया
- गोविंद गुरु दयानंद सरस्वती से प्रभावित थे
- आदिवासियों को हिन्दू धर्म मे रखने के लिए इन्होंने भगत पंथ की स्थापना की थी
- भीलो में आपसी सौहार्द को बढ़ाने के लिए गोविंद गुरु ने 1883 ई में सिरोही में सम्पसभा कि स्थापना की थी
- 1903 ई में सम्पसभा का पहला अधिवेशन मानगढ पहाड़ी (बांसवाड़ा) पर हुआ था
- 1910 ई में 33 मांगे सरकार के सामने रखी लेकिन इन समस्याओं का कोई समाधान नही किया गया था
- 1908 ई में गोविंद गुरु ईडर चले गए तथा वहां के भीलो में जनजागृति का कार्य किया जिसके फलस्वरूप 24 फरवरी 1910 ई को पालपट्टा के जागीरदार को भीलो से समझौता करना पड़ा इस समझौते में 21 शर्ते थी
- 1911 ई में गोविंद गुरु अपने मूल स्थान लौट आये तथा यहाँ धूणी स्थापित कर भीलो को आधुनिक पद्धति पर उपदेश देने प्रारंभ किया
- वेदसा गोविंद गुरु की गतिविधियों का केंद्र बन गया
- ईडर, सुंथ, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, पंचमहल, खेड़ा के भील यहाँ आने लगे
- सन 1911 ई में इन्होंने अपने पंथ को नए रूप में संगठित किया तथा धार्मिक शिक्षाओं के साथ साथ भीलो को सामंती एवं औपनिवेशिक शोषण से मुक्ति की युक्ति भी समझाने लगे थे
- इन्होंने प्रत्येक भील गांव में अपनी धूणी स्थापित की तथा इनकी रक्षा हेतु कोतवाल नियुक्त किए
- गोविंद गुरु द्वारा नियुक्त कोतवाल केवल धार्मिक मुखिया ही नही थे, बल्कि अपने क्षेत्र के सभी मामलो के प्रभारी थे वे भीलो के मध्य विवादों का निपटारा भी करते थे
- इस प्रकार अन्य अर्थो में गोविंद गिरी की समान्तर सरकार चलने लगी, किंतु दूसरी ओर राजा एव जागीरदार द्वारा उनके शिष्यों का उत्पीड़न भी जारी रहा
- सामंती एवं औपनिवेशिक सत्ता द्वारा उत्पीड़क व्यवहार ने गोविंद गिरी एव उनके शिष्यों को सामंती एव औपनिवेशिक दासता से मुक्ति प्राप्त करने हेतु भील राज की स्थापना की योजना बनाने की ओर प्रेरित किया
मानगढ हत्याकांड- 17 नवम्बर 1913
- सम्पसभा के अधिवेशन पर पुलिस द्वारा फायरिंग की गई
- इसमे 1500 सड़ अधिक भील मारे गए
- इसे राजस्थान का का जलियांवाला हत्याकांड कहते है
- गोविंद गुरु तथा उनके सहयोगी पुंजा धिरजी को गिरफ्तार कर लिया गया
- गोविंद गिरी की लोकप्रियता के कारण उनकी आजीवन कारावास की सजा को दस वर्ष की सजा में बदल दिया गया
- तथा 7 वर्ष पश्चात इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि वे सुंथ, ईडर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कुशलगढ़ राज्यो में प्रवेश नही करेंगे
- इन्होंने अपना शेष जीवन गुजरात के काम्बिया गाँव मे शांतिपूर्ण तरीके से गुजारा था
- गोविंद गिरी सरकार की निगरानी में अहमदाबाद संभाग के अंतर्गत पंचमहल जिले के झालोद गाँव मे अपने भगत भीलो को प्रवचन दिया करते थे
- गोविंद गुरु अहिंसा के समर्थक थे
- इनका सफेद झंडा शांति का प्रतीक था
एकी आंदोलन या भोमट भील आंदोलन
- गोगुन्दा, झाड़ोल तथा कोटड़ा क्षेत्रों की भील एव गरासिया जनजाति द्वारा बिजोलिया किसान आंदोलन से प्रभावित होकर यह आंदोलन शुरू किया गया
- यह आंदोलन – मातृकुण्डिया (चितौड़) नामक स्थान पर आरम्भ हुआ
- नेता – मोतीलाल तेजावत
- जन्म – कोल्यारी गाँव (उदयपुर)
- परिवार – ओसवाल जैन
- कार्य – झाड़ोल ठिकाने
- इस सेवाकाल में भीलो तथा गरासियों की दयनीय स्थिति देखकर तेजावत ने नोकरी छोड़ दी थी
- इन जनजातियो में एकता स्थापित करने का प्रयास किया
- तेजावत ने पोडोली गांव के गोकुलजी जाट के नेतृत्व में जाट किसानों का समर्थन प्राप्त कर लिया गया था
- तेजावत ने 21 मांगे मेवाड़ महाराणा के सामने रखी
- इन मांगों को मेवाड़ की पुकार कहा जाता है
- लेकिन इन समस्याओं का कोई समाधान नही किया गया
- धीरे धीरे यह आंदोलन मेवाड़, वागड़, सिरोही, ईडर तथा विजयनगर (गुजरात) रियासतों में फैल गया था
निमड़ा (विजयनगर- गुजरात) हत्याकांड
- तिथि -6 मार्च 1922
- भीलो की सभा पर मेजर सटन ने फायरिंग की गई जिसमें 1200 से अधिक भील मारे गए
- 3 जून 1929 को गांधीजी के कहने पर तेजावत ने ईडर में खेडब्रह्म नामक स्थान पर आत्मसमर्पण कर दिया
- 3 अप्रेल 1936 में महाइन्द्राज सभा ने मणीलाल कोठारी (गांधी जी के P. A.) के हस्तक्षेप से तेजावत को रिहा कर दिया गया कि वह कोई आंदोलनात्मक कार्य नही करेंगे तथा उदयपुर राज्य की अनुमति के बिना उदयपुर शहर से बाहर नही निकलेंगे
- उदयपुर राज्य ने उनके गुजारे के लिए 30 रूपए प्रतिमाह का भत्ता स्वीकृत किया
- पुनः उन्हें जनवरी 1945 ई में बन्दी बना लिया गया था
- जब उन्होंने भोमट क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश की तथा उन्हें फरवरी 1947 ई में जेल से रिहा किया गया
- इन्होंने अपना शेष जीवन गांधीजी की रचनात्मक गतिविधियों में बिताया
- तेजावत को आदिवासीयो का मसीहा कहा जाता है तथा आदिवासी उन्हें बावजी कहते है
- Note- महाइन्द्राज सभा
- यह मेवाड़ का सर्वोच्च न्यायालय था
- 1880ई में महाराणा सज्जन सिंह ने इसकी स्थापना की थी
सिरोही भील आंदोलन
- जनवरी 1922 में तेजावत सिरोही पहुंच गए तथा वहां भीलो एवं गरासियों को एक रखने के लिए प्रेरित किया
- 24 जनवरी1922 ई को भीलो व गरासियों ने राज्य को कर दिए बिना तिल की फसल उठा ली
- आबू रोड से अम्बाजी जाने वाली सड़क पर यात्रियों की सुरक्षा का दायित्व भीलो का था इन्होंने इसकी रखवाली का कार्य बंद कर दिया
- गरासियों ने मूंगथला के थाने को नष्ट कर दिया तथा राजस्व अधिकारियों के घर को लूटा
- सिरोही के भीलों तथा गरासियों में तेजावत जी अत्यधिक लोकप्रिय हो गए थे वे उन्हें मेवाड़ के गांधी के नाम से पुकारते थे
- ईडर प्रजामण्डल ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया था
- सिरोही के दीवान रमाकांत मालवीय ने समझौते के लिए पथिक जी को आमंत्रित किया
- पथिक जी, रामचन्द्र वैद्य तथा ब्रह्मचारी हरि को साथ लेकर सिरोही आये उन्होंने तेजावत जी से भगवान गढ़ में मुलाकात की तथा शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने की सलाह दी
- फरवरी 1922 ई को गोपेश्वर नामक स्थान पर पथिक जी तथा रमाकान्त मालवीय ने किसानों को उनके दुख दर्द कम करने का आश्वासन दिया परन्तु समस्या का समाधान नही हो पाया
सियावा हत्याकांड – 12 अप्रैल 1922
- इस घटना में 3 गरासिये मारे गए तथा 1 घायल हुए
- गरासियों के 40 घर नष्ट कर दिए गए तथा उनके चनो के भंडार जला दिए गए
बालोलिया ओर भुला हत्याकांड
- तारीख – 5 / 6 मई 1922 ई
- मर्जर प्रिचार्ड ने इस गोलीकांड का नेतृत्व किया था
- उसके अनुसार इस घटना में 50 लोग मारे गए तथा 150 लोग घायल हुए
- राजस्थान सेवा संघ ने इस घटना की जांच के लिए रामनारायण चौधरी तथा सत्य भक्त को सिरोही भेजा
- इस घटना का पूरा ब्यौरा तरुण राजस्थान समाचार पत्र में प्रकाशित किया गया था
मीणा आंदोलन
- 1924 ई में आपराधिक जनजाति अधिनियम पारित किया गया तथा इसमे मीणा जनजाति को शामिल किया गया
- 1930 ई में जरायम पेशा अधिनियम पारित किया
- इसके तहत प्रत्येक मीणा महिला पुरुष को थाने में हाजिरी लगाना अनिवार्य किया गया
- मीणा समाज ने इसका विरोध किया
- सबसे पहले छोटूलाल झरवाल
- महादेव राम पबड़ी
- जवाहर राम ने
इन्होंने मीणा जाति सुधार समिति का गठन किया
- 1933 ई में मीणा क्षेत्रीय महासभा का गठन किया गया
नीम का थाना सम्मेलन – 1944
- जैन संत मगन सागर ने इसका आयोजन किया
- इन्होंने मीन पुराण नामक पुस्तक लिखी जिसमे मीणा समाज का गौरवशाली इतिहास बताया गया
- इसी सम्मेलन में मीणा सुधार समिति का गठन किया गया
- नेता – बंशीधर शर्मा
- लक्ष्मीनारायण झरवाल
- राजेन्द्र कुमार अजेय
बागावास (जयपुर) सम्मेलन – 28 दिसम्बर 1946
- 26000 चौकीदार मीणाओ ने पदों से इस्तीफे दिए तथा इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया
- 1952 ई में हीरालाल शास्त्री तथा टीकाराम पालीवाल के प्रयासों से जरायम पेशा अधिनियम समाप्त किया गया
- NOTE- प्रसिद्ध आदिवासी नेता ठक्कर बापा ने मीणाओ को राहत देने के लिए एवं स्थिति सुधारने के लिए प्रयास किये तथा जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल को पत्र लिखे
पुराने प्रश्न (कुल 5)
1. 1911 एव 1912 ई में गोविंद गुरु की गतिविधियों का केंद्र था ? ( 2nd ग्रेड 2023)
उत्तर – बेडसा / वेदसा
2. गोविंद गुरु किस आंदोलन के नेता थे ? (FSO – 2023)
उत्तर – भील आंदोलन
3. भगत आंदोलन शीर्षक नाम से पुस्तक के लेखक है ? (JEN – 2022)
उत्तर – वी के वशिष्ठ
4. मोतीलाल तेजावत का जन्म कहाँ हुआ था ? (RPSC 2ND ग्रेड 2023 )
उत्तर – कोलियारी
5. मोतीलाल तेजावत ने भीलो का आंदोलन कहां से प्रारंभ किया था ? (प्रयोगशाला सहायक – 2022)
उत्तर – झाड़ोल
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तो मित्रो बताइए राजस्थान में जनजातिय आंदोलन की पोस्ट आपको केसी लगी
अब पशु परिचर भर्ती हो या एग्रीकल्चर सुपरवाइजर की भर्ती हो
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भेड़ की नस्ले भेड़ की नस्ले आदि खूब सारे टॉपिक को भी अच्छे कवर किया है जो आप पढ़ सकते हो
जल्दी ही आपको यहाँ पूराने प्रश्नों की mcq/ quize उपलब्ध करवाई जाएगी
साथ ही पशु परिचर के पुराने प्रश्नों की पीडीएफ चाइये तो जल्दी कमेंट्स करके बताओ
यह टॉपिक पशु परिचर ओर एग्रीकल्चर सुपरवाइजर भर्ती जो अधीनस्थ बोर्ड द्वारा द्वारा आयोजित होने वाले एग्जाम में ध्यान रख के बनाया गया है