Blogराजस्थान का इतिहास mcq राजस्थान के सन्त एवं सम्प्रदाय MCQ Last updated: 2024/05/25 at 3:47 PM rajexaminfo.com Share 0 Min Read SHARE राजस्थान के सन्त एवं सम्प्रदाय MCQ 1 / 91 किस सन्त ने गूदड़ सम्प्रदाय की स्थापना करी ? (पटवार 2012) सन्त लालगिरी सन्त धन्नाजी सन्त दास जी नरहड़ पीर सन्त दास जी मुख्य केंद्र - दांतड़ा (भीलवाड़ा) सम्प्रदाय - गूदड़ सम्प्रदाय 2 / 91 रामानंदी सम्प्रदाय की पीठ स्थित है ? (CET 2023) साबला रैवासा कामां सलेमाबाद रामानंदी सम्प्रदाय भगवान राम की पूजा रसिक नायक के रूप में करते इसलिए इसे रसिक सम्प्रदाय भी कहते है कृष्ण भट्ट की पुस्तक ‘राम रासौ’ में राम व सीता जी की प्रेम कहानी है जो कि सवाई जयसिंह के समय लिखी गयी थी प्रमुख केंद्र - गलता जी - जयपुर संस्थापक - कृष्णदास पयहारी आमेर के राजा पृथ्वीराज तथा उसकी रानी बालाबाई कृष्ण दास पयहारी के अनुनायी थे NOTE - गलता जी प्राचीन काल मे गालव ऋषि की तपोभूमि थी। यह प्राचीन सूर्य मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है यह रामानुज सम्प्रदाय की पीठ भी है अतः इसे उतरी तोताद्री भी कहा जाता है गलता जी को MONKEY VALLEY भी कहते है रैवासा - सीकर संस्थापक - अग्रदास जी 3 / 91 रामानंदी सम्प्रदाय की पीठ स्थित है ? (CET 2023) साबला रैवासा कामां सलेमाबाद रामानंदी सम्प्रदाय भगवान राम की पूजा रसिक नायक के रूप में करते इसलिए इसे रसिक सम्प्रदाय भी कहते है कृष्ण भट्ट की पुस्तक ‘राम रासौ’ में राम व सीता जी की प्रेम कहानी है जो कि सवाई जयसिंह के समय लिखी गयी थी प्रमुख केंद्र - गलता जी - जयपुर संस्थापक - कृष्णदास पयहारी आमेर के राजा पृथ्वीराज तथा उसकी रानी बालाबाई कृष्ण दास पयहारी के अनुनायी थे NOTE - गलता जी प्राचीन काल मे गालव ऋषि की तपोभूमि थी। यह प्राचीन सूर्य मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है यह रामानुज सम्प्रदाय की पीठ भी है अतः इसे उतरी तोताद्री भी कहा जाता है गलता जी को MONKEY VALLEY भी कहते है रैवासा - सीकर संस्थापक - अग्रदास जी 4 / 91 किस सन्त को वागड़ का नृसिंह कहा जाता है ? (CET 2023) सन्त मावजी सन्त गवरी बाई कवि भक्त दुर्लभ अग्रदास कवि भक्त दुर्लभ इन्हें वागड़ का नृसिंह कहा जाता है 5 / 91 किसे वागड़ की मीरा बाई के नाम से जाना जाता है ? (CET 2023) गवरी बाई राना बाई पेमल बाई मीरा बाई गवरी बाई इन्हें वागड़ की मीरा कहा जाता है डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने बाल मुकुंद मन्दिर बनवाया था जिसे गवरी बाई का मंदिर भी कहते है 6 / 91 राजस्थान की दूसरी मीरा बाई के नाम से प्रसिद्ध है ? (लैब अस्सिस्टेंट 2017) गवरी बाई कवि दुर्लभ राना बाई सहजो बाई राना बाई मुख्य मंदिर - हरनावा (नागौर) पिता - रामगोपाल माता - गंगा बाई मेला - हरनावा स्थित मंदिर परिसर में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है यह पालड़ी के संत चतुरदास जी की शिष्या थी तथा कृष्ण की भक्त थी ऐसी मान्यता है कि इन्होंने अहमदाबाद अभियान के दौरान जोधपुर महाराजा अभयसिंह की रक्षा की थी इन्हें राजस्थान की दूसरी मीरा कहा जाता है 7 / 91 कुंजलम स्वरुप का संबंध है ? (पटवार 2012) चरणदासी सम्प्रदाय परनामी सम्प्रदाय लालदासी सम्प्रदाय नाथ सम्प्रदाय परनामी सम्प्रदाय मुख्य पीठ - पन्ना (मध्यप्रदेश) संस्थापक - प्राणनाथ जी आदर्श नगर (जयपुर) में भी परनामी सम्प्रदाय का मंदिर है मुख्य ग्रन्थ - कुंजलम स्वरूप 8 / 91 पटेल समाज से किस सन्त का संबंध रहा है ? (लैब अस्सिस्टेंट 2017) राजाराम लालदास चरणदास सन्त दास जी राजाराम जी मुख्य केंद्र - शिकारपुरा (जोधपुर) पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था पटेल समाज के लोग विशेष आस्था रखते है 9 / 91 किस सन्त को लश्कर सन्त के नाम से जाना जाता है ? (पटवार 2016) दादूदयाल जाम्भोजी बालन्दाचार्य लालदास बालनन्दाचार्य मुख्य पीठ - लोहार्गल (झुंझुनूं) यह अपने पास सेना रखते थे इसलिए इन्हें लश्कर सन्त कहा जाता है यह औरंगजेब के समकालीन थे इन्होंने 52 मूर्तियों को औरंगजेब से बचाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया था इन्होंने औरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ के राजसिंह तथा मारवाड़ के दुर्गादास राठौड़ की सहायता की थी 10 / 91 किस सन्त का संबंध धुवन (टोंक) से है ? (2ND GRADE 2012) सन्त पीपा सन्त धन्ना सन्त जाम्भोजी सन्त राजाराम जी संत धन्ना जन्म स्थान - धुवन (टोंक) इनका जन्म जाट परिवार में हुआ था ये आध्यात्मिक चेतना के जनक कहलाये गुरु - रामानंद जी राजस्थान में भक्ति आंदोलन की शुरुआत की थी मन्दिर - बोरानाडा (जोधपुर) ये पंजाब में भी लोकप्रिय है 11 / 91 सन्त मावजी का संबंध है ? (CET 2023) उदयपुर बीकानेर डूंगरपुर सिरोही सन्त मावजी जन्म स्थान - साबला (डूंगरपुर) इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की पूजा निष्कलंक अवतार की रूप में की थी इन्होंने निष्कलंकी सम्प्रदाय चलाया था इनके अनुनायी इन्हें विष्णु का कल्कि अवतार मानते है इन्होंने कृष्ण लीला की रचना वागड़ी भाषा मे की थी सन्त मावजी ने बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) की स्थापना की थी प्रमुख ग्रन्थ - चौपड़ा यह ग्रन्थ वाद विवाद शैली में है दीपावली को इनका वाचन करते है इनमे भविष्यवाणियां है कुल 5 चोपड़े है जो इस प्रकार है प्रेम सागर मेघ सागर साम सागर रत्न सागर अनन्त सागर अन्य केंद्र - शेषपुर, पूंजपुर 12 / 91 नवलसम्प्रदाय की स्थापना किसने की ? (VDO 2021) लालगिरी सन्त दास जी नवलदास हरीदास नवलदास जी जन्म स्थान - हरसोलाव (नागौर) मुख्य केंद्र - जोधपुर सम्प्रदाय - नवल सम्प्रदाय ग्रन्थ - नवलेश्वर अनुभववाणी 13 / 91 निम्नलिखित में से कौनसा युग्म गलत है ? (कंप्यूटर 2019) अलखिया सम्प्रदाय - बिलाड़ा जोधपुर निरंजनी सम्प्रदाय - गाढ़ा गांव (डीडवाना) लालदासी सम्प्रदाय - धोली दुब (अलवर) गूदड़ सम्प्रदाय - दांतडा (भीलवाड़ा ) लालगिरी जन्म स्थान - सुलखानिया (चूरू) मुख्य केंद्र - बीकानेर सम्प्रदाय - अलखिया ग्रन्थ - अलख स्तुति प्रकास 14 / 91 चरणदासी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ कहा है ? (JEN 2016) दिल्ली अलवर बीकानेर सीकर चरणदास जी जन्म स्थान - डेहरा (अलवर) पिताजी - मुरलीधर माता - कुंजोबाई बचपन का नाम - रणजीत गुरु - सुखदेव मुख्य केंद्र - दिल्ली मेला - बसन्त पंचमी को अपने अनुनायियों को 42 उपदेश दिए थे इनके अनुनायी पीले रंग के कपड़े पहनते है इन्होंने नादिरशाह (1739 ई में ईरान के राजा) के भारत आक्रमण की भविष्यवाणी की थी प्रमुख शिष्या दयाबाई - पुस्तकें - दयाबोध, विनयमलिका सहजोबाई पुस्तकें - सहज प्रकाश इस सम्प्रदाय के लोग सखी भाव से श्री कृष्ण भगवान की पूजा करते है इन्होंने सगुण (भक्ति पूजा वाले) तथा निर्गुण दोनो की शिक्षा दी थी उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए थे चरणदास जी जब जयपुर आये तब सवाई प्रताप सिंह ने इन्हें कोलीवाड़ा गांव दान में दिया था 15 / 91 किसे बागड़ का धणी के नाम से भी जाना जाता है ? (RTET 2012) राजाराम दादूदयाल नरहड़ पीर नरहड़ पीर नरहड़ पीर वास्तविक नाम - हजरत शक्कर बाबा मुख्य केंद्र - नरहड़ (झुंझुनूं) कृष्ण जन्माष्टमी को इनका मेला / उर्स लगता है यहाँ पर पागलो का इलाज किया जाता है यह सम्प्रदाय सौहार्द तथा हिन्दू मुस्लिम एकता का स्थान है इन्हें बांगड़ का धणी कहा जाता है सलीम चिश्ती इनका शिष्य था NOTE - सर्वंगी सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र - सीकर 16 / 91 चरणदासी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ कहा है ? (JEN 2016) दिल्ली अलवर बीकानेर सीकर चरणदास जी जन्म स्थान - डेहरा (अलवर) पिताजी - मुरलीधर माता - कुंजोबाई बचपन का नाम - रणजीत गुरु - सुखदेव मुख्य केंद्र - दिल्ली मेला - बसन्त पंचमी को अपने अनुनायियों को 42 उपदेश दिए थे इनके अनुनायी पीले रंग के कपड़े पहनते है इन्होंने नादिरशाह (1739 ई में ईरान के राजा) के भारत आक्रमण की भविष्यवाणी की थी प्रमुख शिष्या दयाबाई - पुस्तकें - दयाबोध, विनयमलिका सहजोबाई पुस्तकें - सहज प्रकाश इस सम्प्रदाय के लोग सखी भाव से श्री कृष्ण भगवान की पूजा करते है इन्होंने सगुण (भक्ति पूजा वाले) तथा निर्गुण दोनो की शिक्षा दी थी उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए थे चरणदास जी जब जयपुर आये तब सवाई प्रताप सिंह ने इन्हें कोलीवाड़ा गांव दान में दिया था 17 / 91 दयाबाई एव सहजो बाई का सम्बंध किस सम्प्रदाय से रहा है ? (JEN 2016) चरणदासी सम्प्रदाय जसनाथी सम्प्रदाय परनामी सम्प्रदाय निरंजनी सम्प्रदाय चरणदास जी जन्म स्थान - डेहरा (अलवर) पिताजी - मुरलीधर माता - कुंजोबाई बचपन का नाम - रणजीत गुरु - सुखदेव मुख्य केंद्र - दिल्ली मेला - बसन्त पंचमी को अपने अनुनायियों को 42 उपदेश दिए थे इनके अनुनायी पीले रंग के कपड़े पहनते है इन्होंने नादिरशाह (1739 ई में ईरान के राजा) के भारत आक्रमण की भविष्यवाणी की थी प्रमुख शिष्या दयाबाई - पुस्तकें - दयाबोध, विनयमलिका सहजोबाई पुस्तकें - सहज प्रकाश इस सम्प्रदाय के लोग सखी भाव से श्री कृष्ण भगवान की पूजा करते है इन्होंने सगुण (भक्ति पूजा वाले) तथा निर्गुण दोनो की शिक्षा दी थी उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए थे चरणदास जी जब जयपुर आये तब सवाई प्रताप सिंह ने इन्हें कोलीवाड़ा गांव दान में दिया था 18 / 91 सहजो बाई के गुरु कोन थे ? (PTI 2018) रामचरण लालदास चरणदास सुंदरदास चरणदास जी जन्म स्थान - डेहरा (अलवर) पिताजी - मुरलीधर माता - कुंजोबाई बचपन का नाम - रणजीत गुरु - सुखदेव मुख्य केंद्र - दिल्ली मेला - बसन्त पंचमी को अपने अनुनायियों को 42 उपदेश दिए थे इनके अनुनायी पीले रंग के कपड़े पहनते है इन्होंने नादिरशाह (1739 ई में ईरान के राजा) के भारत आक्रमण की भविष्यवाणी की थी प्रमुख शिष्या दयाबाई - पुस्तकें - दयाबोध, विनयमलिका सहजोबाई पुस्तकें - सहज प्रकाश इस सम्प्रदाय के लोग सखी भाव से श्री कृष्ण भगवान की पूजा करते है इन्होंने सगुण (भक्ति पूजा वाले) तथा निर्गुण दोनो की शिक्षा दी थी उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए थे चरणदास जी जब जयपुर आये तब सवाई प्रताप सिंह ने इन्हें कोलीवाड़ा गांव दान में दिया था 19 / 91 निम्नलिखित में से सगुण भक्ति का प्रचारक सन्त थे ? (RTET 2012) कबीर नानक निम्बार्क दादू निम्बार्क सम्प्रदाय मुख्य केंद्र - सलेमाबाद (अजमेर) संस्थापक - परशुराम जी जन्म - खंडेला के ब्राह्मण परिवार में हुआ सलेमाबाद के मंदिर में परशुराम जी के चरण पादुकाओं की पूजा की जाती है सलेमाबाद को परशुराम पूरी भी कहते है पुस्तकें - परशुरामसागर विप्रमती इस सम्प्रदाय के लोग राधा को कृष्ण की पत्नी मानकर पूजा करते है मेला - भाद्रपद शुक्ल 8 (राधा अष्ठमी) जयपुर के महाराजा जगतसिंह द्वितीय पुत्र प्राप्ति के आशीर्वाद हेतु सलेमाबाद आये थे शेखावाटी के इलाके में भी इस सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार हुआ था तथा यहाँ के शेखावत शासक भगवान कृष्ण के भक्त थे तथा गोपीनाथ जी को अपना इष्ट मानते है निम्बार्क सम्प्रदाय के वाणियो एव पदों को भजन मंडलियों द्वारा गांव गांव जाकर गाया जाता था अतः शेखावाटी के राजा टोडरमल ने इनके लिए रास मण्डल स्थापित करवाए थे शेखावाटी चित्रकला में भी निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रभाव दिखाई देता है 20 / 91 निम्बार्क सम्प्रदाय की मुख्य पीठ कहा है ? (क्लर्क ग्रेड 2ND 2018) किशनगढ में सलेमाबाद में सालासर में खेड़ापा में निम्बार्क सम्प्रदाय मुख्य केंद्र - सलेमाबाद (अजमेर) संस्थापक - परशुराम जी जन्म - खंडेला के ब्राह्मण परिवार में हुआ सलेमाबाद के मंदिर में परशुराम जी के चरण पादुकाओं की पूजा की जाती है सलेमाबाद को परशुराम पूरी भी कहते है पुस्तकें - परशुरामसागर विप्रमती इस सम्प्रदाय के लोग राधा को कृष्ण की पत्नी मानकर पूजा करते है मेला - भाद्रपद शुक्ल 8 (राधा अष्ठमी) जयपुर के महाराजा जगतसिंह द्वितीय पुत्र प्राप्ति के आशीर्वाद हेतु सलेमाबाद आये थे शेखावाटी के इलाके में भी इस सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार हुआ था तथा यहाँ के शेखावत शासक भगवान कृष्ण के भक्त थे तथा गोपीनाथ जी को अपना इष्ट मानते है निम्बार्क सम्प्रदाय के वाणियो एव पदों को भजन मंडलियों द्वारा गांव गांव जाकर गाया जाता था अतः शेखावाटी के राजा टोडरमल ने इनके लिए रास मण्डल स्थापित करवाए थे शेखावाटी चित्रकला में भी निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रभाव दिखाई देता है 21 / 91 सलेमाबाद में निम्बार्काचार्य पीठ की स्थापना किसने की ? (JSA 2019) हरिव्यास देव जी परशुराम देव नारायण देव हरिवंश देव निम्बार्क सम्प्रदाय मुख्य केंद्र - सलेमाबाद (अजमेर) संस्थापक - परशुराम जी जन्म - खंडेला के ब्राह्मण परिवार में हुआ सलेमाबाद के मंदिर में परशुराम जी के चरण पादुकाओं की पूजा की जाती है सलेमाबाद को परशुराम पूरी भी कहते है पुस्तकें - परशुरामसागर विप्रमती इस सम्प्रदाय के लोग राधा को कृष्ण की पत्नी मानकर पूजा करते है मेला - भाद्रपद शुक्ल 8 (राधा अष्ठमी) जयपुर के महाराजा जगतसिंह द्वितीय पुत्र प्राप्ति के आशीर्वाद हेतु सलेमाबाद आये थे शेखावाटी के इलाके में भी इस सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार हुआ था तथा यहाँ के शेखावत शासक भगवान कृष्ण के भक्त थे तथा गोपीनाथ जी को अपना इष्ट मानते है निम्बार्क सम्प्रदाय के वाणियो एव पदों को भजन मंडलियों द्वारा गांव गांव जाकर गाया जाता था अतः शेखावाटी के राजा टोडरमल ने इनके लिए रास मण्डल स्थापित करवाए थे शेखावाटी चित्रकला में भी निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रभाव दिखाई देता है 22 / 91 पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक कौन थे ? (1ST ग्रेड 2020) मध्वाचार्य निम्बार्क वल्लभाचार्य चेतन्य महाप्रभु वल्लभ सम्प्रदाय / रुद्र / पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करते है इनके मन्दिर को हवेली कहा जाता है संगीत - हवेली संगीत मन्दिर में कृष्ण मूर्ति के पीछे दीवार या पर्दे पर जो चित्र बनाये जाते है उन्हें पिछ्वाई कहा जाता है नाथद्वारा की पिछ्वाई प्रसिद्ध है राजस्थान में वल्लभसंप्रदाय के 41 मंदिर है मथुरेश जी - कोटा श्रीनाथ जी - सिंहाड़ (नाथद्वारा) द्वारिकाधीश - कांकरोली (राजसमंद) गोकुलचन्द्र - कामां (भरतपुर) मदन मोहन - कामां (भरतपुर) 'अष्टछाप कवि मण्डली' की स्थापना गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने की थी 23 / 91 जोधपुर में महामंदिर राजस्थान के किस सम्प्रदाय की प्रमुख गद्दी है ? (जूनियर अस्सिस्टेंट 2018) रामानुज सम्प्रदाय कबीर पन्थ दादू पन्थ नाथ पन्थ नाथ सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय का एक अन्य रूप नाथपंथ के रूप में विख्यात है स्थापना - नाथमुनी द्वारा नोहर (हनुमानगढ़) मे गोरख टीला है तथा कहा जाता है कि प्रथम गुरु गोरखनाथ यहाँ पर रहते थे गुरु गोरखनाथ ने 12 शाखाओं की स्थापना की गई जिनमे से 02 राजस्थान में है वैराग पंथी - राताडुंगा (नागौर) इनके प्रथम प्रचारक भृतहरि थे मान पंथी - महामंदिर (जोधपुर) इस मंदिर की स्थापना महाराजा मानसिंह ने की तथा इनके गुरु आयस देवनाथ है 825 ई मे लोद्रवा के राजा देवराज भाटी को योगी रतननाथ ने राजतिलक करके रावल की उपाधि दी थी मुहणोत नैणसी के अनुसार मारवाड़ के रावल मल्लीनाथ का जन्म योगी रतन नाथ के आशीर्वाद से हुआ था बादर ढाढ़ी की पुस्तक विरमायण के अनुसार शेरगढ (जोधपुर) के गोगादेव राठौड़ को जालंधर नाथ के दर्शन हुए एव वरदान प्राप्त हुआ जालौर के किले में जालंधर नाथ का मंदिर है 24 / 91 जोधपुर का महामंदिर उपासना स्थल है ? (अस्सिस्टेंट टेस्टिंग ऑफिसर 2021) नाथ सम्प्रदाय जसनाथी सम्प्रदाय विश्नोई सम्प्रदाय राधास्वामी सम्प्रदाय नाथ सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय का एक अन्य रूप नाथपंथ के रूप में विख्यात है स्थापना - नाथमुनी द्वारा नोहर (हनुमानगढ़) मे गोरख टीला है तथा कहा जाता है कि प्रथम गुरु गोरखनाथ यहाँ पर रहते थे गुरु गोरखनाथ ने 12 शाखाओं की स्थापना की गई जिनमे से 02 राजस्थान में है वैराग पंथी - राताडुंगा (नागौर) इनके प्रथम प्रचारक भृतहरि थे मान पंथी - महामंदिर (जोधपुर) इस मंदिर की स्थापना महाराजा मानसिंह ने की तथा इनके गुरु आयस देवनाथ है 825 ई मे लोद्रवा के राजा देवराज भाटी को योगी रतननाथ ने राजतिलक करके रावल की उपाधि दी थी मुहणोत नैणसी के अनुसार मारवाड़ के रावल मल्लीनाथ का जन्म योगी रतन नाथ के आशीर्वाद से हुआ था बादर ढाढ़ी की पुस्तक विरमायण के अनुसार शेरगढ (जोधपुर) के गोगादेव राठौड़ को जालंधर नाथ के दर्शन हुए एव वरदान प्राप्त हुआ जालौर के किले में जालंधर नाथ का मंदिर है 25 / 91 निरंजनी सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे ? (लैब अस्सिस्टेंट 2022) सन्त लालदास सन्त रामचरण सन्त हरीदास सन्त निरंजनदास हरीदास जी संत जन्म - कपडोद (नागौर) वास्तविक नाम - हरिसिंह सांखला पहले डाकू थे परंतु बाद में सन्यासी बन गए मुख्य केंद्र - गाढ़ा (डीडवाना) इन्होंने हरिदासी या निरंजनी सम्प्रदाय चलाया था इन्होंने निर्गुण व सगुण दोनो प्रकार की भक्ति का संदेश दिया था पुस्तकें - मंत्र राज प्रकाश हरि पुरुष जी की वाणी 26 / 91 सन्त मीराबाई का जन्म स्थान कुड़की वर्तमान में राजस्थान के किस जिले में स्थित है ? (SI प्लाटून 2021) उदयपुर चितौड़गढ़ राजसमंद पाली मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 27 / 91 रामस्नेही सम्प्रदाय की रेन शाखा के प्रवर्तक थे ? (बेसिक कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर 2022) सन्त रामचरण जी सन्त दरियावजी सन्त हरीराम दासजी सन्त हरिदास जी रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 28 / 91 सन्त मीराबाई के पति का क्या नाम था ? (REET 2018) भोजराज रत्न सिंह संग्राम सिंह नरपतसिंह मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 29 / 91 राजस्थान के किस सन्त द्वारा सत्य भामाजी नू रुसणो की रचना की गई ? (इंडस्ट्री एक्सटेंशन 2018) रामदास जी दादू दयाल जी मीराबाई पीपा जी मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 30 / 91 निम्नलिखित में से कौन सी रचना मीराबाई की है ? (हेडमास्टर 2018) सखी बीजक शब्द पदावली मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 31 / 91 निम्नलिखित में से कौन राजस्थान में लोकदेवी के रूप में पूज्य नही है ? (कॉलेज लेक्चर 2019) बाण माता शीतला माता मीरा माता भदाना माता मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 32 / 91 मीराबाई द्वारा चितौड़ परित्याग के समय मेवाड़ का शासक कौन था ? (2ND ग्रेड 2019) अर्जुन सिंह संग्राम सिंह उदय सिंह विक्रमादित्य मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 33 / 91 मीराबाई …… सदी की कवियित्री थी (कॉन्स्टेबल 2020) 16वी 19 वी 18वी 14वी मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 34 / 91 रामस्नेही सम्प्रदाय की रेन शाखा के प्रवर्तक थे ? (बेसिक कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर 2022) सन्त रामचरण जी सन्त दरियावजी सन्त हरीराम दासजी सन्त हरिदास जी रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 35 / 91 रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ कहा स्थित है ? (एग्रीकल्चर सुपरवाइजर 2021) समदड़ी (बाड़मेर) सलेमाबाद (अजमेर) गलता (जयपुर) शाहपुरा (भीलवाड़ा) रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 36 / 91 निम्नलिखित में से कौनसा मीरा बाई का जन्म स्थल है ? (टैक्स अस्सिस्टेंट 2018) कुड़की सादड़ी मानपुरा भाखरी सोजत मीरा बाई जन्म स्थान - 1498 ई कुड़की (पाली) बचपन का नाम - पेमल पिता - रतनसिंह (बाजोली के जागीरदार थे एव सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए) माता - वीर कंवरी मीरा बाई का पालन पोषण अपने दादा दूदा के पास मेड़ता में हुआ पति - भोजराज मीरा बाई श्री कृष्ण को अपना पति मानकर सगुण रूप में पूजा करती थी (भाव - माधुर्य) गुरु - रैदास / रविदास (छतरी चितौड़ किले में) इन्होंने मेवाड़ का परित्याग - विक्रमादित्य के समय किया मीराबाई द्वारिका के रणछोड़ मन्दिर (डेकोर गुजरात ) के भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति मे विलीन हो गयी थी महात्मा गांधी मीराबाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली सत्याग्रही महिला मानते थे मीराबाई को राजस्थान की राधा कहा जाता है पुस्तके रुक्मणि मंगल सत्यभामा नू रुसणो गीत गोविंद नरसीजी रो मायरो - यह पुस्तक रतना खाती के सहयोग से लिखी गयी पदावली मीरा महोत्सव - चितौड़गढ़ मीरा नगरी - मेड़ता नागौर 37 / 91 रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक सन्त रामचरण कहा पैदा हुए ? (JEN 2020) सोडा- डिग्गी शाहपुरा - भीलवाड़ा नगलु - भरतपुर मुकाम - बीकानेर रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 38 / 91 सन्त दरियाव जी रामस्नेही सम्प्रदाय की किस शाखा के प्रवर्तक थे (लाइब्रेरियन 2020) शाहपुरा सिंहथल रेन खेड़ापा रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की 39 / 91 रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक सन्त रामचरण जी के गुरु कौन थे ? (जूनियर इंस्ट्रक्टर 2019) चरणदास हरिदास कृपाराम लालदास रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 40 / 91 रामस्नेही सम्प्रदाय की शाहपुरा शाखा के संस्थापक कौन थे ? (हेडमास्टर 2021) जेमलदास जी रामचरण जी रामदास जी हरिदास जी शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 41 / 91 सन्त दरियाव जी द्वारा रामस्नेही सम्प्रदाय की शाखा स्थापित की - (रीट 2021) शाहपुरा सिंहथल रेन खेड़ापा शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की सींथल - बीकानेर इसकी स्थापना हरीरामदास जी ने की तथा इन्होंने निशानी नामक योग ग्रन्थ लिखा खेड़ापा - जोधपुर स्थापना - रामदास जी ने की ★ जैमलदास - सींथल तथा खेड़ापा शाखा के आदि आचार्य है 42 / 91 निम्नलिखित में से कौनसा वैष्णव सम्प्रदाय नही है ? (कॉलेज लेक्चर 2021) निम्बार्क वल्लभ निष्कलंक लालदासी लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 43 / 91 सन्त पीपा की गुफा कहा है ? (पटवार 2021) पीपाड़ टोडा धनेरा गागरोण सन्त पीपा वास्तविक नाम - प्रताप सिंह खींची ये गागरोण (झालावाड़) के राजा थे ये राजस्थान के प्रथम भक्ति सन्त कहलाये रामानन्द जी के शिष्य थे (कुल 12 शिष्य थे) सन्त पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था मुख्य मंदिर - समदड़ी (बाड़मेर) छतरी - गागरोण गुफा - टोडा (टोंक) मेला - चेत्र पूर्णिमा को ग्रन्थ - पिंपापरची चितावनी पिंपा कथा टोडा के राजा शूरसेन ने इनसे प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधु संतों में बांट दिया था 44 / 91 एक शासक एव सन्त पीपा किस स्थान से संबंधित थे ? (लैब अस्सिस्टेंट 2016) आम्बेर वाराणसी जाबाल गागरोण सन्त पीपा वास्तविक नाम - प्रताप सिंह खींची ये गागरोण (झालावाड़) के राजा थे ये राजस्थान के प्रथम भक्ति सन्त कहलाये रामानन्द जी के शिष्य थे (कुल 12 शिष्य थे) सन्त पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था मुख्य मंदिर - समदड़ी (बाड़मेर) छतरी - गागरोण गुफा - टोडा (टोंक) मेला - चेत्र पूर्णिमा को ग्रन्थ - पिंपापरची चितावनी पिंपा कथा टोडा के राजा शूरसेन ने इनसे प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधु संतों में बांट दिया था 45 / 91 सन्त पीपाजी का जन्म स्थान निम्नलिखित में से कौन सा है ? (कॉन्स्टेबल 2018) गागरोण कतरियासर पीपासर बिलाड़ा सन्त पीपा वास्तविक नाम - प्रताप सिंह खींची ये गागरोण (झालावाड़) के राजा थे ये राजस्थान के प्रथम भक्ति सन्त कहलाये रामानन्द जी के शिष्य थे (कुल 12 शिष्य थे) सन्त पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था मुख्य मंदिर - समदड़ी (बाड़मेर) छतरी - गागरोण गुफा - टोडा (टोंक) मेला - चेत्र पूर्णिमा को ग्रन्थ - पिंपापरची चितावनी पिंपा कथा टोडा के राजा शूरसेन ने इनसे प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधु संतों में बांट दिया था 46 / 91 सन्त पीपाजी का जन्म स्थान निम्नलिखित में से कौन सा है ? (कॉन्स्टेबल 2018) गागरोण कतरियासर पीपासर बिलाड़ा सन्त पीपा वास्तविक नाम - प्रताप सिंह खींची ये गागरोण (झालावाड़) के राजा थे ये राजस्थान के प्रथम भक्ति सन्त कहलाये रामानन्द जी के शिष्य थे (कुल 12 शिष्य थे) सन्त पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था मुख्य मंदिर - समदड़ी (बाड़मेर) छतरी - गागरोण गुफा - टोडा (टोंक) मेला - चेत्र पूर्णिमा को ग्रन्थ - पिंपापरची चितावनी पिंपा कथा टोडा के राजा शूरसेन ने इनसे प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधु संतों में बांट दिया था 47 / 91 जीवन भर दूल्हे के वेश में रहते हुए दादू के उपदेशों का बखान करने वाले सन्त कौन थे ? (JEN 2022) सुंदरदास जी रज्जब जी रामपाल दास जी माधोदास जी दादूजी के प्रमुख शिष्य सुंदरदास जी इनका वास्तविक नाम - भीमराज जी था ये बीकानेर के शासक जैतसी के पुत्र थे इन्होंने नागा शाखा की स्थापना की थी नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे इनके रहने के स्थान को छावनी कहा जाता है नागा साधुओं ने मराठा आक्रमणों के समय जयपुर के राजा प्रतापसिंह की मदद की थी रज्जब जी ये दादू जी प्रसिद्ध शिष्य थे ये सांगानेर के पठान थे इन्होंने दादूजी के उपदेश सुनकर शादी नही की तथा आजीवन दूल्हे के वेष में रहे थे पुस्तकें - रज्जब वाणी सर्वंगी सुंदरदास जी छोटे इनका जन्म वैश्य परिवार में हुआ था इन्होंने 42 ग्रन्थ लिखे थे प्रमुख ग्रन्थ - ज्ञान समुद्र सुंदर सागर गेटोलाव (दौसा) मे सुंदरदास जी की समाधि बनी हुई है बालिन्द जी ग्रन्थ - ओरिलो गरीबदासजी - ये दादूदयाल जी के पुत्र थे आगे चलकर ये दादू दयाल के उत्तराधिकारी बने मिस्किनदास जी बखना जी माधोदास जी 48 / 91 राजस्थान के किस सन्त ओर रामानंद के शिष्य ने अपने राज्य को त्याग कर गुरु मण्डली में सम्मिलित हुए ? (लैब अस्सिस्टेंट 2019) धन्नाजी जाम्भोजी पीपाजी रैदासजी सन्त पीपा वास्तविक नाम - प्रताप सिंह खींची ये गागरोण (झालावाड़) के राजा थे ये राजस्थान के प्रथम भक्ति सन्त कहलाये रामानन्द जी के शिष्य थे (कुल 12 शिष्य थे) सन्त पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था मुख्य मंदिर - समदड़ी (बाड़मेर) छतरी - गागरोण गुफा - टोडा (टोंक) मेला - चेत्र पूर्णिमा को ग्रन्थ - पिंपापरची चितावनी पिंपा कथा टोडा के राजा शूरसेन ने इनसे प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधु संतों में बांट दिया था 49 / 91 राजस्थान के सन्त पीपा के गुरु कौन थे ? (कंप्यूटर 2021) रामानंद रैदास दादू रामानुज सन्त पीपा वास्तविक नाम - प्रताप सिंह खींची ये गागरोण (झालावाड़) के राजा थे ये राजस्थान के प्रथम भक्ति सन्त कहलाये रामानन्द जी के शिष्य थे (कुल 12 शिष्य थे) सन्त पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था मुख्य मंदिर - समदड़ी (बाड़मेर) छतरी - गागरोण गुफा - टोडा (टोंक) मेला - चेत्र पूर्णिमा को ग्रन्थ - पिंपापरची चितावनी पिंपा कथा टोडा के राजा शूरसेन ने इनसे प्रभावित होकर अपना पूरा धन साधु संतों में बांट दिया था 50 / 91 निम्नलिखित में से कौनसा वैष्णव सम्प्रदाय नही है ? (कॉलेज लेक्चर 2021) निम्बार्क वल्लभ निष्कलंक लालदासी लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 51 / 91 18 वी शताब्दी में राजस्थान में रेन, शाहपुरा, सींथल, खेड़ापा किस सम्प्रदाय के चार प्रमुख केंद्र थे ? (JEN 2020) मिरादासी सम्प्रदाय रामस्नेही सम्प्रदाय दादू पंथ रामदासी सम्प्रदाय रामस्नेही सम्प्रदाय यह सम्प्रदाय निर्गुण भक्ति में विश्वास रखता है इस सम्प्रदाय मे दशरथ पुत्र राम की पूजा नही जाती बल्कि निर्गुण नाम की पूजा की जाती है इनके साधु संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते है शाहपुरा मे होली के अगले दिन फुलडोल मेला होता है केंद्र - शाहपुरा - भीलवाड़ा संस्थापक - रामचरण जी इनका जन्म - सोडा ग्राम (टोंक) के वैश्य परिवार में पिता - बख्तराम माता - देऊजी मुलनाम - रामकिशन इन्होंने जयपुर राज्य में मंत्री के पद के रूप में भी कार्य किया इन्होंने दान्तड़ा (भीलवाड़ा) मे गुरु कृपाराम जी से दीक्षा प्राप्त की थी। इन्होंने मूर्तिपूजा, बहु उपासना आदि का विरोध किया एव एकेश्वरवाद व निर्गुण निराकार राम की उपासना का उपदेश दिया मूर्तिपूजकों द्वारा परेशान किये जाने के कारण रामचरण जी शाहपुरा आगये। यहाँ के शासक रणसिंह ने इनके लिए एक छतरी व मठ की स्थापना करवाई उपदेश - अणभैवाणी में संकलित है रेन - नागौर स्थापना - दरियाव जी महाराज ने की 52 / 91 सन्त लालदास ….. के लिए अच्छी तरह से जाने जाते है ? (जूनियर इंस्ट्रक्टर 2019) मूर्तिपूजा साम्प्रदायिक सद्भाव समाज सुधार सरल जीवन लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 53 / 91 सन्त लालदास जी के संबंध में कौनसा कथन असत्य है ? (ARO 2020) लालदास की वाणी नामक ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है इनका जन्म मेवात प्रदेश में हुआ था ये शादीशुदा थे 1688 ई में इनका देहांत हुआ लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 54 / 91 मध्यकालीन मेवात के प्रसिद्ध सन्त थे ? (पटवार 2021) सुंदरदास चरणदास लालदास हरीराम दास लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 55 / 91 निम्नलिखित सन्तो में से कौन जन्म से मुसलमान थे ? (JEN 2020) मावजी दादूदयाल जी लालदास जी चरणदास जी लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 56 / 91 निम्नलिखित सन्तो में से कौन मेवात क्षेत्र से संबंधित है ? (लैब अस्सिस्टेंट 2022) हरीदास जी दादूदयाल जी लालदास जी पीपा लालदास जी जन्म स्थान - 1540 ई धोलिदुब (अलवर) पिता जी - चांदमल माता - समदा समाधि - शेरपुर (अलवर ) 1648 ई में (108 वर्षो) मुख्य केंद्र - नंगला जहाज (भरतपुर) मेला - आश्विन शुक्ल एकादशी माघ पूर्णिमा गुरु - गद्दन चिश्ती ये मेव जाति (मुसलमान) के लकड़हारे थे उपदेश - मेवाती भाषा मे दिए ये मध्यकालीन मेवात में प्रसिद्ध सन्त थे इनका मेवात क्षेत्र में प्रभाव अधिक था ग्रन्थ - लालदास की चितवाणिया (ये 02 भागो में विभाजित है) अलवर में बाँधोली नामक स्थान पर काफी समय तक रहे थे NOTE - सम्प्रदाय सद्भाव के - लोकदेवता - रामदेव जी सन्त सम्प्रदाय - लालदास जी जिला - अजमेर 57 / 91 बमलु, लिखमादेसर, पांचला सिद्धा किस सम्प्रदाय से संबंधित है ? (VDO 2022) विश्नोई सम्प्रदाय निम्बार्क सम्प्रदाय रामस्नेही सम्प्रदाय जसनाथी सम्प्रदाय जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 58 / 91 लालनाथ जी, चोखनाथ जी और सवाई दास जी सन्त किस सम्प्रदाय से संबंधित है ? (वोमेन सुपरवाइजर 2015) जसनाथी सम्प्रदाय निरंजनी सम्प्रदाय विश्नोई सम्प्रदाय रामसनेही सम्प्रदाय जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 59 / 91 लिखमादेसर, पूनरासर, मालासर में किस सम्प्रदाय की उप पीठे है ? (जेल प्रहरी 2017) निम्बार्क सम्प्रदाय जसनाथजी सम्प्रदाय विश्नोई सम्प्रदाय गौड़ीय सम्प्रदाय जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 60 / 91 सिम्भूदड़ा एव कोड़ा गर्न्थो में किस सम्प्रदाय के उपदेश है ? (जूनियर अस्सिस्टेंट 2021) विश्नोई सम्प्रदाय हरभुजी जसनाथी सम्प्रदाय चरणदासी सम्प्रदाय जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 61 / 91 जसनाथी सम्प्रदाय की प्रमुख गद्दी कहा पर है ? (JEN 2022) जैतारण कतरियासर शाहपुरा खेड़ापा जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 62 / 91 संत जसनाथ जी के बारे में कौनसा कथन सही नही है ? (JEN 2016) इनका जन्म 1482 ई बीकानेर के कतरियासर गांव में हुआ कतरियासर में इन्होंने 12 वर्ष तक साधना की 1506 में इन्होंने कतरियासर में समाधि ली इनके उपदेश सिंधुधड़ा एव कोड़ा नामक ग्रन्थ में संग्रहित है जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 63 / 91 राजस्थान के कौन से प्रसिद्ध सन्त बीकानेर के कतरियासर से संबंधित है ? (लैब अस्सिस्टेंट 2022) हरि दास जी सिद्ध जसनाथ जी जाम्भोजी दरियावजी जसनाथ जी जन्मस्थान -1482 ई में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में पिता - हम्मीर जी माता - रूपादे मुख्य केंद्र - कतरियासर 1500 ई में गोरख मालिया (बीकानेर) में जसनाथ जी व जाम्भोजी मिले थे इन्होंने 1506 में कतरियासर में समाधि ली सिकन्दर लोदी के समकालीन थे सिकन्दर लोदी ने इन्हें कतरियासर के पास भूमि दान में दी थी इन्होंने बिकानेर के लूणकरण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया था अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिए थे इनके अनुयायी गले मे काली ऊन का धागा पहनते है मोर पंख तथा जाल वृक्ष को पवित्र मानते है इनके अनुनायियों द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है उनकी पत्नी काललदे की पूजा की जाती है मेले - वर्ष में तीन बार चैत्र शुक्ल सप्तमी आश्विन शुक्ल सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी प्रमुख ग्रन्थ - सिंभुदड़ा कोडा अन्य केंद्र - बमलु लिखमादेसर पूनरासर मालासर पांचला सिद्धा - नागौर इनके सन्तो के समाधि स्थल को बाड़ी (84 बाड़िया प्रसिद्ध) कहते है मुख्य सन्त लालदास जी - जीव समझौतरी रामनाथ जी - यशोपुरान (जसनाथजी सम्प्रदाय की बाइबिल) रुस्तम जी - इन्हें औरंगजेब ने नगाड़ा व निशान देकर सम्मानित किया था चोखनाथ जी सवाई दास जी 64 / 91 दादू दयाल के निधन के पश्चात दादू पन्थ का उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया गया था ? (इन्वेस्टिगेटर 2020) मिस्कीन दास गरीब दास रज्जब नारायण दास रज्जब जी ये दादू जी प्रसिद्ध शिष्य थे ये सांगानेर के पठान थे इन्होंने दादूजी के उपदेश सुनकर शादी नही की तथा आजीवन दूल्हे के वेष में रहे थे पुस्तकें - रज्जब वाणी सर्वंगी सुंदरदास जी छोटे इनका जन्म वैश्य परिवार में हुआ था इन्होंने 42 ग्रन्थ लिखे थे प्रमुख ग्रन्थ - ज्ञान समुद्र सुंदर सागर गेटोलाव (दौसा) मे सुंदरदास जी की समाधि बनी हुई है बालिन्द जी ग्रन्थ - ओरिलो गरीबदासजी - ये दादूदयाल जी के पुत्र थे आगे चलकर ये दादू दयाल के उत्तराधिकारी बने मिस्किनदास जी बखना जी माधोदास जी 65 / 91 सन्त दादू की मृत्यु किस स्थल पर हुई (RTET 2011) साम्भर आमेर नारायणा पुष्कर दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 66 / 91 दादूपंथ में नागा उपसम्प्रदाय के प्रवर्तक थे ? (कॉलेज लेक्चर 2021) रज्ज्ब जी गरीबदास जी मलूक दास जी सुंदर दास जी दादूजी के प्रमुख शिष्य सुंदरदास जी इनका वास्तविक नाम - भीमराज जी था ये बीकानेर के शासक जैतसी के पुत्र थे इन्होंने नागा शाखा की स्थापना की थी नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे इनके रहने के स्थान को छावनी कहा जाता है नागा साधुओं ने मराठा आक्रमणों के समय जयपुर के राजा प्रतापसिंह की मदद की थी रज्जब जी ये दादू जी प्रसिद्ध शिष्य थे ये सांगानेर के पठान थे इन्होंने दादूजी के उपदेश सुनकर शादी नही की तथा आजीवन दूल्हे के वेष में रहे थे पुस्तकें - रज्जब वाणी सर्वंगी 67 / 91 दादू पंथ की कितनी शाखायें थी (इन्वेस्टिगेटर 2016) 04 05 06 08 दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 68 / 91 बालिन्द जी के गुरु कौन थे ? (ग्राम सेवक 2016) दादू दयाल जी रामचरण जी सुंदर दास जी मंगलाराम जी दादूजी के प्रमुख शिष्य सुंदरदास जी इनका वास्तविक नाम - भीमराज जी था ये बीकानेर के शासक जैतसी के पुत्र थे इन्होंने नागा शाखा की स्थापना की थी नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे इनके रहने के स्थान को छावनी कहा जाता है नागा साधुओं ने मराठा आक्रमणों के समय जयपुर के राजा प्रतापसिंह की मदद की थी रज्जब जी ये दादू जी प्रसिद्ध शिष्य थे ये सांगानेर के पठान थे इन्होंने दादूजी के उपदेश सुनकर शादी नही की तथा आजीवन दूल्हे के वेष में रहे थे पुस्तकें - रज्जब वाणी सर्वंगी सुंदरदास जी छोटे इनका जन्म वैश्य परिवार में हुआ था इन्होंने 42 ग्रन्थ लिखे थे प्रमुख ग्रन्थ - ज्ञान समुद्र सुंदर सागर गेटोलाव (दौसा) मे सुंदरदास जी की समाधि बनी हुई है बालिन्द जी ग्रन्थ - ओरिलो गरीबदासजी - ये दादूदयाल जी के पुत्र थे आगे चलकर ये दादू दयाल के उत्तराधिकारी बने मिस्किनदास जी बखना जी माधोदास जी 69 / 91 निम्नलिखित में से कौन दादूपंथी का उपसम्प्रदाय नही है ? (जूनियर इंस्ट्रक्टर 2019) खालसा नागा खाकी चंडाल दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 70 / 91 नारायणा ….. का जाना माना केंद्र है (जूनियर इंस्ट्रक्टर 2019) विश्नोई सम्प्रदाय नाथ सम्प्रदाय दादू पंथ रामस्नेही सम्प्रदाय दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 71 / 91 निम्नलिखित में से किसे राजस्थान के कबीर के नाम से जाना जाता है ? (इकोनॉमिक्स इन्वेस्टिगेटर 2018) दादू दयाल जी पाबुजी गोगाजी रामदेव जी दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 72 / 91 निम्नलिखित में से किसने गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ली थी ? (JSA 2019) जाम्भोजी सन्त पीपा जी दादू दयाल जी सन्त चरणदास जी जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया NOTE गुरु गोरखनाथ 73 / 91 दादू की शिक्षाओं का संकलन “दादूवाणी” रचित है - (डिप्टी कमांडेंट 2020) मेवाती बोली में डुंडाड़ी बोली में देशवाली बोली में बागड़ी बोली में दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 74 / 91 दादू पन्थ का प्रमुख केंद्र - (3RD ग्रेड 2013) पीपासर अजमेर भीनमाल नारायणा दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 75 / 91 दादूपंथ की प्रमुख पीठ कौनसी है ? (SI प्लाटून 2022) आमेर नरेना मण्डोर करौली दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 76 / 91 मुगल सम्राट अकबर द्वारा जिस सन्त को फतेहपुर सीकरी आमंत्रित किया गया वह कौन थे ? (पटवार 2021) लालदास जसनाथ रज्जब जी दादूदयाल जी दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 77 / 91 जाम्भोजी जहाँ प्रवचन करते थे, वह क्या कहलाता था ? (हैंडलूम इंस्पेक्टर 2019) संथारी सब्द वाणी शील जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 78 / 91 दादू पन्थ की नागा शाखा किसके द्वारा स्थापित की गई थी ? (AAO 2022) गरीबदास जी मुस्किन दास जी बनवारीदास जी सुन्दरदास जी दादूजी के प्रमुख शिष्य सुंदरदास जी इनका वास्तविक नाम - भीमराज जी था ये बीकानेर के शासक जैतसी के पुत्र थे इन्होंने नागा शाखा की स्थापना की थी नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे इनके रहने के स्थान को छावनी कहा जाता है नागा साधुओं ने मराठा आक्रमणों के समय जयपुर के राजा प्रतापसिंह की मदद की थी रज्जब जी ये दादू जी प्रसिद्ध शिष्य थे ये सांगानेर के पठान थे इन्होंने दादूजी के उपदेश सुनकर शादी नही की तथा आजीवन दूल्हे के वेष में रहे थे पुस्तकें - रज्जब वाणी सर्वंगी सुंदरदास जी छोटे इनका जन्म वैश्य परिवार में हुआ था इन्होंने 42 ग्रन्थ लिखे थे प्रमुख ग्रन्थ - ज्ञान समुद्र सुंदर सागर गेटोलाव (दौसा) मे सुंदरदास जी की समाधि बनी हुई है बालिन्द जी ग्रन्थ - ओरिलो गरीबदासजी - ये दादूदयाल जी के पुत्र थे आगे चलकर ये दादू दयाल के उत्तराधिकारी बने मिस्किनदास जी बखना जी माधोदास जी 79 / 91 सन्त बखनाजी, संतदास जी, सन्त रज्ज्ब जी किस सम्प्रदाय से संबंधित है ? (JEN 2022) कबीरपंथ लालदासी रामस्नेही दादूपंथ दादूजी के प्रमुख शिष्य सुंदरदास जी इनका वास्तविक नाम - भीमराज जी था ये बीकानेर के शासक जैतसी के पुत्र थे इन्होंने नागा शाखा की स्थापना की थी नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे इनके रहने के स्थान को छावनी कहा जाता है नागा साधुओं ने मराठा आक्रमणों के समय जयपुर के राजा प्रतापसिंह की मदद की थी रज्जब जी ये दादू जी प्रसिद्ध शिष्य थे ये सांगानेर के पठान थे इन्होंने दादूजी के उपदेश सुनकर शादी नही की तथा आजीवन दूल्हे के वेष में रहे थे पुस्तकें - रज्जब वाणी सर्वंगी सुंदरदास जी छोटे इनका जन्म वैश्य परिवार में हुआ था इन्होंने 42 ग्रन्थ लिखे थे प्रमुख ग्रन्थ - ज्ञान समुद्र सुंदर सागर गेटोलाव (दौसा) मे सुंदरदास जी की समाधि बनी हुई है बालिन्द जी ग्रन्थ - ओरिलो गरीबदासजी - ये दादूदयाल जी के पुत्र थे आगे चलकर ये दादू दयाल के उत्तराधिकारी बने मिस्किनदास जी बखना जी माधोदास जी 80 / 91 दादूपंथ में सत्संग स्थल कहलाता है (JEN 2022) मुक्ति धाम अलख दरीबा चोपड़ा रामद्वारा दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 81 / 91 किस समाज सुधारक ने अपने शिष्यों से उन्तीस नियमों का पालन करने हेतु जोर दिया ? (कॉन्स्टेबल 2015) पीपा जी जाम्भोजी दादूदयाल जी जसनाथ जी जाम्भोजी जन्म - 1451 पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज गुरु - गोरखनाथ जी इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 82 / 91 विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरु जम्भेश्वर से संबंधित मुख्य स्थान है ? (जेल प्रहरी 2017) मुकाम गुड़ा विश्नोइया नॉखा लूनी जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 83 / 91 लोकदेवता जाम्भो जी का जन्म कब हुआ ? (इन्वेस्टिगेटर 2015) 1351 ई 1451 ई 1551 ई 1651 ई जाम्भोजी जन्म - 1451 पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज गुरु - गोरखनाथ जी इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 84 / 91 विश्नोई समुदाय के गुरु किसे माना जाता है ? (फॉरेस्ट गार्ड 2013) गुरु जम्भेश्वर गुरु रामदेव गुरु नानक इनमे से कोई नही जाम्भोजी जन्म - 1451 पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज गुरु - गोरखनाथ जी इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 85 / 91 जाम्भा (फलोदी) किस सम्प्रदाय से सम्बंधित स्थान है ? (जेल प्रहरी 2017) गौड़ीय सम्प्रदाय जनसनाथी सम्प्रदाय वल्लभ सम्प्रदाय विश्नोई सम्प्रदाय जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज गुरु - गोरखनाथ जी इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 86 / 91 राजस्थान के किस लोकदेवता के माता पिता का नाम हंसादेवी तथा लोहट जी था ? (इंडस्ट्री इंस्पेक्टर 2018) पीपाजी धन्नाजी जाम्भोजी सिद्ध जसनाथजी जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज गुरु - गोरखनाथ जी इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 87 / 91 खालसा, खाकी, नागा राजस्थान के किस सम्प्रदाय के भाग है ? (लैब अस्सिस्टेंट 2022) रामस्नेही सम्प्रदाय दादू पंथ चरणदासी सम्प्रदाय लालदासी सम्प्रदाय दादू दयाल जन्म - 1544 ई- अहमदाबाद लोदिराम नामक ब्राह्मण ने पालन पोषण किया था गुरु - ब्रह्मानन्द जी / वृंदावनन्द जी / बढढंन बाबा राजस्थान में शुरुआती दिनों में ये सांभर में रहे थे, कालान्तर में आमेर में रहे थे मुख्य पीठ - नरेना (जयपुर) इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था दादू दयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है दादूदयाल जी ने अपने उपदेश ढूंढाणी भाषा मे दिए थे प्रथम उपदेश 1568 में दिया था सत्संग स्थल - अलख दरीबा इन्होंने निपख आंदोलन चलाया आमेर के राजा भगवंत दास ने 1585 में दादूदयाल जी की मुलाक़ात फतेहपुर सीकरी में अकबर से करवाई थी दादूपंथ के मन्दिरो को दादू द्वारा कहा जाता है यहाँ पर दादूदयाल जी के ग्रन्थ वाणी की पूजा की जाती है दादूपंथी मृत व्यक्ति के शरीर को ना जलाते है, ना दफनाते है, बल्कि पशु- पक्षियों के खाने के लिए छोड़ देते है दादूजी का शरीर भैराणा की पहाड़ी (जयपुर) में रखा गया था जिसे दादुखोल / दादुपालका कहा जाता है दादूदयाल जी के प्रमुख 52 शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है मेला - नरैना में - फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक दादूपंथ की शाखाएं खालसा - गरीबदास जी विरक्त उत्तरादे - बनवारीदास जी खाकी नागा - सुंदरदास जी 88 / 91 राजस्थान के कोनसे समुदाय के लिए वन एव वन्यप्राणी संरक्षण उनके धार्मिक अनुष्ठान का भाग बन गया है ? (REET L 1 2022) सहरिया बिश्नोई मीणा लालदासी जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 89 / 91 विश्नोई सम्प्रदाय का संस्थापक कौन था ? (REET L2 2022) धन्नाजी चरणदास जी दादू जी जाम्भोजी जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 90 / 91 हरे वृक्षों की रक्षा के लिए किस सम्प्रदाय को जाना जाता है ? (RPSC JEN 2022) विश्नोई रामस्नेही निरंजनी लालदासी जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया 91 / 91 मुकाम प्रसिद्ध है ? (RPSC 2ND GRADE 2018) जैनियों के लिए विश्नोईयों के लिए सिक्खो के लिये जसनाथियो के लिए जाम्भोजी जन्म - पिंपासर (नागौर) में एक पंवार राजपूत परिवार पिता जी - लोहट जी माता जी - हंसा बाई बचपन का नाम - धनराज इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है जाम्भोजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है समराथल (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुनायियों को 29 उपदेश दिए थे इसलिए इनके अनुनायी बिश्नोई (बिस + नौ) कहलाये मृत्यु - लालासर (बीकानेर) समाधि / मुख्य केंद्र - मुकाम (बीकानेर) यहाँ पर आश्विन तथा फाल्गुन अमावस्या को मेला लगता है ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे इसने जाम्भोजी के कहने पर गौहत्या बन्द कर दी थी। बीकानेर क्षेत्र में अकाल के समय जाम्भोजी के कहने पर सिकन्दर लोदी ने चारे की व्यवस्था करवाई थी जोधा (जोधपुर) व बिका (बीकानेर) जाम्भोजी का बहुत सम्मान किया करते थे उपदेश स्थल - सांथरिया कहलाता है मुख्य मंदिर - मुकाम (बीकानेर) जांगलू (बीकानर) रामड़ावास (जोधपुर) जाम्भा (जोधपुर) जाम्भोजी की शिक्षाएं हरे वृक्ष नही काटने चाहिए। सिर साटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण। जींव हिंसा नही करनी चाहिए नीले कपड़े नही पहनने चाहिए विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया Your score is The average score is 60% 0% Restart quiz Share this… Telegram Whatsapp TAGGED: राजस्थान इतिहास MCQ, राजस्थान कला संस्कृति MCQ Share This Article Facebook Twitter Copy Link Print 2 Comments Pingback: विश्व पर्यावरण दिवस 2024 - RAJ EXAM INFO Reet Laval 1 Reply Leave a Reply Cancel replyYour email address will not be published. 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