- राजस्थान के विभिन्न अंचलों में अनेक प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं परन्तु मुख्य रूप से राजस्थानी भाषा को दो रूपों से जाना जाता है-
- पश्चिमी राजस्थानी
- पश्चिमी राजस्थानी भाषा की प्रतिनिधि चार बोलियाँ हैं -
मारवाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी व शेखावाटी
- इस भाषा के साहित्यिक रूप को ‘डिंगल’ कहा जाता है।
जैन तथा चारण साहित्य डिंगल भाषा में अधिक लिखे गए हैं।
- इसका विकास गुर्जरी अपभ्रंश से हुआ।
- प्रमुख ग्रंथ – अचलदास खींची री वचनिका, रुक्मणि हरण, ढोला मारू रा दूहा, संगत रासो, राव जैतसी रो छंद व राजरूपक आदि।
- पूर्वी राजस्थानी
- पूर्वी राजस्थानी भाषा की प्रतिनिधि चार बोलियाँ हैं-
ढूँढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती व अहीरवाटी
- इस भाषा के साहित्यिक रूप को ‘पिंगल’ कहा जाता है।
- भाट जाति के अधिकांश साहित्य पिंगल भाषा में लिखित हैं।
- इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ।
- प्रमुख ग्रंथ – विजयपाल रासो, वंश भास्कर, खुमाण रासो, पृथ्वीराज रासो आदि।
- 21 फरवरी को ‘राजस्थानी भाषा’ दिवस तथा 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है।
- राजस्थान की राजभाषा हिंदी तथा मातृभाषा राजस्थानी है।
- राजस्थान के संबंध में एक लोकोक्ति प्रचलित है-
‘पाँच कोस पर पानी बदले, सात कोस पर बाणी’
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