पेड़ पौधे को साक्षी मानकर भील जनजाति में शादी कर ली जाती है जिसे हाथी वेन्डो विवाह कहते है
भील जनजाति विवाह के अवसर पर मण्डप की सजावट आम वृक्ष की पत्तियों से करते है
भीलों मे उंदरिया पंथ प्रचलित हे
भील जनजाति बाल विवाह नही करती है
शादी के अवसर पर दामाद को ससुराल में भराड़ी माता का चित्र बनाना पड़ता है
भराड़ी माता को विवाह की देवी कहा जाता है
केसरिया नाथ जी की केसर पीकर भील झूट नही बोलते है
भील जनजाति के लोग महुआ से बनी शराब पीते है
- महुआ वृक्ष से ही महड़ी शराब (देशी शराब) बनाई
जाती है
- महुआ वृक्ष को ही आदिवासियों का कल्पवृक्ष कहते है
- महुआ का वैज्ञानिक नाम - मधुका लोंगोफोलिया
भील लोग अपने मृत पूर्वजो की आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करते है इस कारण मृत व्यक्ति की पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी प्रतिष्ठा की जाती है जिसे चीरा बावसी कहते है
फाईरे - फाईरे इनका रणघोष है
किसी घुड़सवार सैनिक को मारने वाला भील ‘पाखरिया’ कहलाता है
भीलो में कोई महिला अपने पति को छोड़कर किसी अन्य दूसरे पुरूष के साथ रहने लग जाती है तो वह दूसरा पुरूष पहले पति को झगड़ा राशि देता है
भील जनजाति द्वारा किया जाने वाला सामुहिक कार्य ‘हेलमो’ कहलाता है
भील स्थानांतरित खेती करते है जिन्हें वालरा (झुमिंग) कहते है
वालरा दो प्रकार की होती है
- चिमाता - पहाड़ी भाग में
- दजीया - समतल भाग में
भील जनजाति के दो मेले लगते है
- बेणेश्वर मेला - डूंगरपुर
- घोटिया अम्बा - बांसवाड़ा
घोटिया अम्बा में माता कुंती जी व पांच पांडवो के मंदिर बने हुए है
ढेपाडा -
भील पुरुषों द्वारा पहनी जाने वाली तंग धोती
खोयतु -
भील पुरुषो द्वारा कमर में पहने जाने वाला एक वस्त्र है
पिरिया -
भील दुल्हन द्वारा शादी के अवसर पर पहने जाने वाली पीले रंग की साड़ी होती है
सिंदूरी -
भील जनजाति की लाल रंग की साड़ी
परिजनी -
भील महिलाओं द्वारा पैरो में पहने जाने वाली पीतल की मोटी चुडिया
कछाबु -
भील महिलाओं द्वारा कमर में पहने जाने वाला एक वस्त्र
गोवर्धन लाल बाबा -
इन्होने भीलो के सर्वाधिक चित्र बनाये
भीलो का चितेरा के नाम से जाना जाता है
इनका प्रसिद्ध चित्र - बारात