मराठा राज्य
मराठा संघ
मित्रो हमने ये टॉपिक इस प्रकार तैयार किया है
इसमे आपको shivaji peshava के ka itihas
मराठा के पुराने प्रश्न , मराठा के उदय के कारण कर शिवाजी की विशेषताएं आदि को हमने कवर किया है इसको पढ़ने के बाद आपको कुछ भी अलग से नोट्स या कोई बुक देखने की जरुरत नही होगी यह उन सभी एग्जाम को कवर किया है जैसे rpsc ओर upsc की तरफ से एग्जाम आयोजित होते हो ओर हमने इससे पूर्व मध्यकालीन भारतीय इतिहास के अन्य टॉपिक भी कवर किये है
- मराठा शब्द – राठी शब्द से बना है जिसका अर्थ रथ चलाने वाला
- मराठा क्षेत्र को सह्याद्रि के नाम से भी जाना जाता है
- मराठो के लिए कहा जाता है कि जिस स्थान पर मुगल सैनिको का पैदल चलना मुश्किल था वहाँ मराठा सैनिक अपने घोड़ो के साथ आसानी से दौड़ लिया करते थे
- 17वी शताब्दी में वास्तविक रूप से मराठो का उत्कर्ष हुआ
- मराठो को 2 चरणों में बांटकर अध्ययन किया जा सकता है
- A. प्रथम चरण – इसमे शिवाजी, शम्भा जी, राजाराम, ताराबाई
- B. द्वितीय चरण – इसमे पेशवा का काल जिसमे मराठा साम्राज्य कटक से अटक तक
मराठो के उत्कर्ष के कारण
- पश्चिमी भारत की भौगोलिक परिस्थितिया –
- महादेव गोविंद रानाडे ने अपनी पुस्तक – ‘राइज ऑफ द मराठा पावर’ में मराठो की उत्पत्ति के लिए भौगोलिक कारणों को जिम्मेदार माना है क्योंकि इस क्षेत्र में मराठो के अलावा अन्य कोई भी अपना वर्चस्व स्थापित नही कर पाया
- औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति –
- भीमसेन की पुस्तक ‘दिलखुश-ए-नुस्खा’ से मुगल – मराठा संघर्ष की जानकारी मिलती है
- इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति के कारण मराठो का उत्थान हुआ और यही कारण है कि शिवाजी के द्वारा हिन्दू पादशाही, हिन्दू धर्मोद्वारक व गाय तथा ब्राह्मणों की रक्षा करने का व्रत लिया था
- सतीश चंद्रा ने जदुनाथ सरकार के इस मत का खंडन करते हुए मराठो के उत्कर्ष का कारण दक्षिण भारत मे होने वाले भक्ति आंदोलन को बताया
- भक्ति आंदोलन के सन्तो जैसे ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम एवं रामदास की शिक्षाओं ने मराठा राज्य के उदय में योगदान दिया था
- इन सन्तो के द्वारा जातिप्रथा का विरोध किया गया
- इन सन्तो ने अपने उपदेश मराठी भाषा मे दिए
- शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास के द्वारा अपनी पुस्तक ‘दासबोध’ में कर्मदर्शन का सिद्धांत दिया
मराठा ओर संत
- तुकाराम – तुकाराम ने ‘महाराष्ट्र धर्म’ के उदय में महत्वपूर्ण योगदान दिया
महाराष्ट्र के समाज एव धर्म को इन्होंने बहुत हद तक तर्कसंगतता प्रदान की है
तुकाराम के उपदेशों के द्वारा महाराष्ट्र धर्म को एक निश्चित आकार मिला
तुकाराम को ही वरकरी सम्प्रदाय का संस्थापक माना जाता है
- रामदास – महाराष्ट्र में सामाजिक सुधार राष्ट्रीय पुनर्जीवन तथा मराठा शक्ति के उदय के लिए समर्थ गुरु रामदास का सर्वाधिक महत्व है
श्री रानाडे ने लिखा है कि ‘रामदास पहले संत थे जिन्होंने अपनी शिक्षाओं से मराठा राज्य के निर्माण में योगदान दिया
मराठा ओर पुस्तके
- कनिघम ग्रांट डफ
- मराठो का विस्तृत इतिहास लिखने वाले प्रथम इतिहास लेखक है
- पुस्तक – हिस्ट्री ऑफ मराठाज
- G S देसाई – न्यू हिस्ट्री ऑफ दी मराठाज
- किनकेड – हिस्ट्री ऑफ द मराठा पीपुल
मराठो का प्रारंभिक इतिहास
- इनके आदिपूर्वज मेवाड़ के सिसोदिया वंश के सज्जन सिंह से प्रारंभ होता है
- सज्जन सिंह के 5 वी पीढ़ी में उग्रसेन हुए
- उग्रसेन के 02 पुत्र हुए (कर्णसिंह, शुभकरण)
- शुभकरण के पौत्र हुए बाला जी भोंसले
- बाला जी भोंसले के 02 पुत्र हुए (मालो जी एव विठोजी)
- इन्ही मालोजी के पुत्र का नाम – शाहजी था
- ओर शाहजी की पत्नी का नाम जीजाबाई था
- शाहजी ओर जीजाबाई के पुत्र शिवाजी हुए
- मालोजी ने अहमदनगर के वजीर मलिक अम्बर के यहाँ सैनिक के रूप में कार्य किया
- शाहजी 1620ई में जहाँगीर की सेवा में चले गए थे जहाँगीर के द्वारा शाहजी को ‘उमरा’ की उपाधि दी गयी
- शाहजी भोंसले ने पूना की जागीर बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह से प्राप्त किया था
- 1637 ई में शाहजी भोंसले अपने पुत्र शिवाजी तथा पत्नी जीजाबाई सहित पूना की अपनी पैतृक जागीर की देखभाल का दायित्व बीजापुर के एक पूर्व अधिकारी एवं अपने विश्वासपात्र मित्र दादा जी कोंडदेव को सौंपकर कर्नाटक चले गए
- दादा कोंडदेव की मृत्यु 1647 ई में हुई थी
NOTE- दक्षिण भारत मे 5 प्रमुख वंश दिखाई पड़े जिन्हें बरार, बीदर, अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा के नाम से जाना गया
शिवाजी का जीवन परिचय

- सभासद के द्वारा शिवाजी की जीवनी लिखी गयी जो कि बखर के नाम से जानी जाती है
- 1627 ई – शिवनेर दुर्ग में शिवाजी का जन्म हुआ
- शिवाजी की माता – जीजाबाई (लाखू जी जाधवराव की पुत्री थी)
- शिवाजी के संरक्षक – दादा कोणदेव थे
- 1640 ई में शिवाजी का विवाह – साई बाई के साथ हुआ
- शिवाजी ने रायरी पहाड़ी पर स्थित रायरेश्वर मन्दिर में दीक्षा प्राप्त की थी और यहाँ शिवाजी ने देश की रक्षा करने की सोंगन्ध खाई थी
- शिवाजी के ऊपर इनके गुरु -रामदास का अत्यधिक प्रभाव था
- आरम्भ में शिवाजी अपने पिता के साथ कर्णाटक में रहते थे
शिवाजी के सैन्य अभियान
- प्रारंभिक सैन्य अभियान शिवाजी ने बीजापुर के आदिल शाही राज्य के खिलाफ किया
- 1643 ई में शिवाजी ने सर्वप्रथम मावली योद्धाओं की सहायता से सिंहगढ़ का किला जीता था
- 1646 ई में तोरण एव मरुमबगढ़ (रायगढ़) के किले को जीता
- 1647 ई में शिवाजी ने कोंडाणा की विजय की ओर इस विजय के बाद बीजापुर के शाह जी को बन्दी बना लिया यही से बीजापुर शिवाजी को मारने का प्रयास करने लगा
- 1648 / 1654 ई में शिवाजी ने पुरंदर के किले को जीता यहां के किलेदार नीलोजी नीलकंठ थे
- 1656 ई में शिवाजी ने चन्द्रराव मोरे से जावली दुर्ग जीत लिया यह चन्द्रराव मोरे बीजापुर से मिला हुआ था इसने शिवाजी के विश्वासपात्र कृष्णराव मोरे की हत्या की
- 1656 ई में शिवाजी ने जुन्नार के दुर्ग को जीत लिया था
- 1657 ई में शिवाजी का पहली बार मुगलो से मुकाबला हुआ जब मुगलो ने अहमदनगर एव जुन्नार पर आक्रमण किया था
- 1656 ई में शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ को बनाई थी
- 1657 ई में शिवाजी ने कोंकण पर विजय प्राप्त की थी और कोंकण के मुख्य किले कल्याण, भिवंडी व माहुली पर अधिकार कर लिया था
- कल्याण में शिवाजी ने नोसेना भी रखी थी
- ओर कोंकण में ही जंजीरा में सीढ़ियों का राज था
- शिवाजी ने कोंकण के क्षेत्र पर कई वर्षों के संघर्ष के बाद अधिकार किया था
- 1659 ई में को शिवाजी ने मुगलो को सल्हार के युद्ध मे पराजित किया था
अफजल खा से संघर्ष – 02 नवम्बर 1659
- यदुनाथ सरकार ने इस संघर्ष के लिए कहा है कि लोहा ही लौह को काटता है
- शिवाजी ने बीजापुर सरकार के अनेक किले ओर प्रदेश जीतकर उसे बहुत हानि पहुंचाई थी
- अतः बीजापुर ने अपनी शक्ति बटोर कर अपने प्रथम श्रेणी के सरदार अफजल खां को भेजा
- अफजल खां ने अपने दूत कृष्ण जी भास्कर को शिवाजी के पास भेजा था अफजल ने मिलने के लिए प्रतापगढ़ के जंगलों में पार गांव को चुना गया था
- शिवाजी के दूत का नाम गोपीनाथ था
- जबकि शिवाजी के अंगरक्षक – जीवमहल एवं शम्भू जी कावजी थे
- अफजल खां का तलवार बाज – सैय्यद बाँदा
- शिवाजी ने बघनखा व कटार से अफजल खां की हत्या करी थी
शाइस्ता खान से संघर्ष – 1663
- औरंगजेब ने 1660 ई में शाइस्ता खां को दक्षिण की सूबेदारी प्रदान की थी
- शाइस्ता खां ने बीजापुर के साथ मिलकर पूना, चाकण एव कल्याण के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया
- 1663 ई में शाइस्ता खां ने पूने में वर्षाकाल बिताने का निश्चय किया था
- अप्रैल 1663 में शिवाजी ने पूना पर आक्रमण कर दिया इस आक्रमण के दौरान शाइस्ता खां का पुत्र मारा गया (फतेह खान)
- इस आक्रमण में शिवाजी ने शाइस्ता खान का अँगूठा काट लिया जिससे शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई थी
- 1663 ई के इस अभियान में दक्षिण भारत मे मुगल प्रतिष्ठा गिर गई ओर शिवाजी के सम्मान में वृद्धि हुई थी
- औरंगजेब ने अपने पुत्र मुअज्जम को दक्षिण की सूबेदारी दे दी
सूरत की प्रथम लूट – जनवरी 1664 ई
- शिवाजी ने सूरत की प्रथम लूट (पूरे 4 दिन तक लूट ) के दौरान लगभग 1 करोड़ की राशि प्राप्त की थी लेकिन शिवाजी ने अंग्रेज एव डच कोटियों के साथ किसी भी प्रकार का संघर्ष नही किया
- औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण का सूबेदार बनाया
- मिर्जा राजा जयसिंह एव शिवाजी के मध्य 03 दिन की वार्ता के बाद पुरन्दर की संधि सम्पन्न की गई
पुरन्दर की संधि – 22 जनवरी 1665
- मनूची की पुस्तक ‘स्टीरियो-डी-मोगोर’ से पुरन्दर की संधि की जानकारी मिलती है
- संधि के समय मनूची वहाँ उपस्थित था
- इस संधि के मुख्य बिंदु निम्न
- शिवाजी अपने 35 दुर्गों में से 23 दुर्ग मुगलो को सौंप देंगे जिनकी वार्षिक आय 4 लाख हूण थी (हुण = मुद्रा, 1 हुण = 3 ½ रुपये, हुण = मलेच्छ)
- शिवाजी अपने पास 12 दुर्ग रखेंगे जिनकी वार्षिक आय 1 लाख हुण थी
- शिवाजी बीजापुर एवं गोलकुंडा के खिलाफ मुगलो को सैनिक सहायता देंगे
- शिवाजी के पुत्र शम्भाजी मुगल दरबार मे उपस्थित होंगे और शंभाजी को 5000 का मनसब दिया जाएगा
- मिर्जा राजा जयसिंह के कहने पर मई 1666 ई में शिवाजी औरंगजेब के आगरा दरबार मे उपस्थित हुए
- यहाँ मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह को शिवाजी की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गयी
- औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा स्थित जयपुर भवन में कैद कर दिया
- शिवाजी अपने हमशक्ल हीरोजी फ़र्ज़न्द को यहाँ छोड़कर आगरा से रायगढ़ पहुंचे
- शिवाजी ने मुअज्जम के माध्यम से 1668 ई में संधि प्रस्ताव रखा जिसे स्वीकार कर लिया गया
- औरंगजेब ने शिवाजी को ‘राजा’ की उपाधि दी तथा बीजापुर एवं गोलकुंडा में चौथ वसूलने का अधिकार दे दिया गया
- शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को बरार में मनसब एवं जागीर प्रदान की गई
सूरत की दूसरी लूट – 1670 ई
- शिवाजी ने इस समय सूरत से लगभग 66 लाख रुपये की राशि प्राप्त की थी
- सूरत से लौटते समय शिवाजी ने कंचन-मंचन दर्रा नामक स्थान पर मुगल सेना का नेतृत्व कर रहे दाऊद खान व इखलाक खान के साथ संघर्ष किया जिसमें शिवाजी को सफलता मिली
- 1671 ई में शिवाजी ने सल्हेर दुर्ग तथा
- 1673 ई में पन्हाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया
शिवाजी का राज्याभिषेक – 6 जून 1674 ई
- रायगढ़ दुर्ग में बनारस के पंडित विश्वेश्वर भट्ट / गंगा भट्ट / गाग भट्ट के द्वारा शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया
- विश्वेश्वर भट्ट द्वारा – कायस्थ धर्म प्रतीप नामक पुस्तक की रचना की गई
- यदुनाथ सरकार के अनुसार शिवाजी के इस राज्याभिषेक में 50 हजार से भी ज्यादा लोग उपस्थित हुए
- यह कार्यक्रम 04 महीनों तक चला
- राज्याभिषेक से पहले शिवाजी का यज्ञोपवीत संस्कार, तुलादान एवं पुर्नविवाह किया गया
- यह पुर्नविवाह शिवाजी ने अपनी दूसरी पत्नी सायरा बाई के साथ किया
- सायरा बाई को राजमाता / राजमहिषी घोषित किया गया
- शिवाजी के द्वारा छत्रपति की उपाधि ली गयी
- तथा सोने एवं तांबे के सिक्के प्रचलित करवाये
- तथा शिवाजी ने नया संवत भी चलाया था
- जिन पर श्री शिवा छत्रपति उत्कीर्ण करवाया गया
- इस कार्यक्रम में ईस्ट इंडिया कम्पनी का अधिकारी हेनरी ऑक्साईडन भी उपहार लेकर आया था
- शिवाजी के द्वारा दूसरा राज्याभिषेक निश्चलपुरी गोसाई नामक तांत्रिक द्वारा संपन्न कराया गया
कर्नाटक अभियान -(1676-78)
- शिवाजी के यह अंतिम अभियान था
- 1677 ई में शिवाजी ने येलबर्गा दुर्ग पर अधिकार किया जो कि हुसैन खान के नियंत्रण में था
- 1678 ई में शिवाजी ने जिंजी पर अधिकार कर लिया जिंजी का किलेदार अब्दुला हब्शी था
- जिंजी विजय शिवाजी की अंतिम विजय थी
शिवाजी का अंतिम समय
- 1678 ई में शिवाजी के पुत्र शम्भाजी ने मुगल सूबेदार दिलेर खान से सहायता प्राप्त की ओर मराठा क्षेत्र से निकल गए
- 1680 ई में रायगढ़ दुर्ग में शिवाजी की मृत्यु हो गयी (53 वर्ष की आयु में)
- शिवाजी का अंतिम संस्कार राजाराम (पुत्र) ने किया
- शिवाजी की पत्नी पुतलीबाई शिवाजी के मृत्यु के बाद सती हो गयी थी
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद –
- मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य का पेशवाओ के अधीन काफी तेजी से विकास हो रहा था
- बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बालाजी बाजीराव इत्यादि काफी योग्य पेशवा थे
- तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों में मराठे ही एकमात्र सक्षम भारतीय शक्ति के रूप में बचे थे
- यह संकल्पना की मराठो ही सर्वप्रथम सयुंक्त भारत देश के प्रेणता थे
- कुछ विद्वानों के द्वारा यह कहा गया कि “ अटक से कटक तक भगवा ध्वज फहराने की बात मराठो ने कहि थी”
शिवाजी की धार्मिक नीति
- जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि शिवाजी की धार्मिक नीति बहुत उदार थी अपने विजय अभियानो के दौरान वे प्रत्येक मत के धार्मिक स्थानों का आदर करते थे हिन्दू ओर मुस्लिम फकीरों के मकबरों ओर मस्जिदों को अनुदान देते थे
शिवाजी का प्रशासन –
- शिवाजी का राजत्व का आदर्श – प्राचीन हिंदू सिद्धांत पर आधारित था
- शिवाजी के प्रशासन में हिन्दू ओर मुस्लिम दोनों होते थे और उनमे कोई भेदभाव नही किया जाता था
- छत्रपति के पास शासन, सेना व न्याय के सभी अधिकार थे
- शिवाजी के काल मे रघुनाथ पंडित की देखरेख में राजव्यवहार कोरा नामक शासकीय शब्दावली तैयार की गई
- साम्राज्य को 02 भागो में बांटा जा सकता
- स्वराज / मुल्क-ए-कादिम – यह इनका क्षेत्र होता था
- मुगलो से जीता हुआ – यहाँ से चौथ वसूल करते थे
- महादेव गोविंद रानाडे ने शिवाजी के जीवन को 4 भागो में बांटकर उनके उद्देश्य को स्पष्ट किया है
- रानाडे का मानना था कि शिवाजी का अंतिम उद्देश्य एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था इसलिए शिवाजी स्वतंत्रत राज्य को कानूनी रूप से स्थापित करने के लिए अपना विधिवत राज्याभिषेक करवाया था
- शिवाजी ने क्षत्रपति, हिंदुत्व धर्मोद्वारक, गौ-ब्राह्मण प्रतिपालक की उपाधियां धारण की थी
- इस प्रकार स्वरक्षा कर स्वतंत्रत राज्य की स्थापना के साथ साथ प्रारंभिक राष्ट्रवादी चेतना को नियमित करने की भावना आरंभ से अंत तक उनके जीवन का उद्देश्य था
- महादेव गोविंद रानाडे की पुस्तक – RISE OF THE MARATHA POWER
अष्टप्रधान
- प्रशासन में शिवाजी की सहायता एव प्रशासन के लिए अष्टप्रधान नामक 8 मंत्रियों की एक परिषद बनाई गई
- इस अष्टप्रधान का प्रत्येक मंत्री अपने विभाग का प्रमुख होता था
- इन मंत्रियो की नियुक्ति शिवाजी के द्वारा की जाती थी
- यह मंत्री अपने कार्यो के लिए शिवाजी के प्रति उत्तरदायी थे
- शिवाजी ने इन्हें किसी भी प्रकार के विशेषाधिकार नही दिए थे
- शिवाजी ने इनके पद को भी आनुवंशिक नही बनाया
- यह मंत्री परिषद की तरह लगती थी लेकिन ये मंत्रिपरिषद अथवा समिति की तरह कार्य नही करती थी शिवाजी उनसे परामर्श जरूर लेते थे लेकिन उसे मानने के लिए बाध्य नही थे
- पेशवा
- यह मुख्य प्रधान था
- इसका कार्य राज्य के शासन की देखभाल करना था
- राजा की अनुपस्थिति में यह शासन संबंधि कार्य देखता था
- सभी सरकारी दस्तावेजों पर राजा के बाद पेशवा के हस्ताक्षर एवं इसकी मुहर लगाना अनिवार्य था
- अमात्य –
- यह राज्य का वित्तमंत्री होता था
- जो कि राजा को राज्य की आय एव व्यय से अवगत कराता था
- इसे पन्त या मजमुआदर भी कहा जाता है
- शिवाजी के काल मे रामचन्द्र इस पद पर थे
- वाकिया नवीस
- यह दरबारी लेखक के रूप में राजा के दैनिक कार्यों को लिपिबद्ध करता था
- राज्य की सुरक्षा व्यवस्था, गुप्तचर एव सूचना विभाग संबंधी कार्य इसी के अधीन होते थे
- इसकी तुलना वर्तमान में गृहमंत्री से की जा सकती है
- सुमन्त या दवीर
- यह राज्य का विदेश मंत्री होता था
- सचिव –
- इसे चिटनीस व शुरूनवीस भी कहा जाता है
- यह समाचार पत्र विभाग से संबंधित अधिकारी होता था
- इसका मुख्य कार्य – सरकारी दस्तावेजों को तैयार करना होता था
- सर-ए-नोबत
- इसका मुख्य कार्य सेना की भर्ती करना
- उनके लिए रसद की व्यवस्था करना था
- न्यायाधीश –
- यह राजा के बाद राज्य का प्रमुख न्यायाधीश होता था
- यह दीवानी व फौजदारी मुकदमे में हिन्दू कानून के आधार पर न्याय करता था
- पंडित राव / सद्र
- यह धार्मिक मामलों में राजा का प्रमुख सलाहकार होता था
- राजा की ओर से दान देना, धार्मिक कार्यो को निश्चित करना और प्रजा के नैतिक चरित्र का सुधार करना इसका प्रमुख कार्य था
- न्यायाधीश व पंडित राव को छोड़कर सभी को सैन्य कार्य करने होते थे
- विभागीय दायित्व के साथ साथ बड़े मंत्रियों को बड़े प्रान्त का भी अधिकारी बनाया जाता था जिनमे पेशवा व सचिव प्रमुख थे
- इन प्रत्येक मंत्री के अधीन 8 अधिकारियों का कार्यालय हुआ करता था जैसे
- दीवान (सचिव)
- मजमुआदर (लेखाकार)
- फडनिस (उपलेखा परीक्षक)
- सबनिस (कार्यालय प्रभारी)
- कारखानिस (रसद अधिकारी)
- चिटनीस
- जमादार (खंजाची)
- पोटनिस (रोकड़िया)
अष्टप्रधान का विघटन –
- शिवाजी की मृत्यु (1680) के पश्चात उत्तराधिकारी के लिए राजाराम ओर शम्भाजी के बीच युद्ध हुआ
- जिसमे शम्भाजी विजय हुए और 1680 से लेकर 1689 तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया
- शम्भाजी ने कालान्तर में मराठा नायकों पर अविश्वास के कारण ब्राह्मण कवी कलश पर भरोसा करके उसे प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी बना कर अष्टप्रधान परिषद का विघटन कर दिया
प्रान्तीय प्रशासन
- सबसे ऊपर केंद्रीय प्रशासन होता था जहाँ राजा होता था
- केंद्रीय के अधीन प्रान्त होते थे (प्रान्त में अधिकारी – सूबेदार, कामविसदार)
- प्रान्तों के अधीन परगना के प्रशासन होता था (परगने के अधिकारी – देशमुख, देशपांडे)
- परगने के अधीन तरफ / मोजे नामक इकाई होती थी
- तरफ / मौजे के अधीन गाँव / दिह इकाई होती थी (गाँव के अधिकारी – पटेल, कुलकर्णी, चौगुले, महार)
- शिवाजी ने अपने प्रान्त को को 14 भागो में विभाजित कर रखा था प्रत्येक प्रान्त में 02 अधिकारी थे
- सूबेदार – इसका कार्य प्रान्त में शान्ति व्यवस्था बनाये रखना था
- कामविसदार – यह भूराजस्व से संबंधित अधिकारी था
परगना / देश का प्रशासन
- परगने में 02 प्रमुख अधिकारी होते थे
- देशमुख – इसका कार्य परगने में शांति व्यवस्था बनाये रखना था
- देशपांडे – भूराजस्व से संबंधित अधिकारी होता था
तरफ / मौजे का प्रशासन
- तरफ या मोजा हवलदार के अधीन होता था
- हवलदार नामक अधिकारी सैन्य प्रशासन में भी होता था जो कि किले की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी था और मराठा जाति से होता था
- कारकुन – हवलदार के अधीन कारकुन नामक अधिकारी होता था जो कि कायस्थ जाति से होता था
गांव / दीह का प्रशासन
- शिवाजी के काल मे यह प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी
- पटेल – यह भूराजस्व से संबंधित अधिकारी होता था हालांकि गाँव मे कुलकर्णी के द्वारा भूराजस्व वसूल किया जाता था और पटेल को गाँव का मुखिया माना जाता था
- कुलकर्णी – इसको अपनी गतिविधियों को पटेल को अवगत करानी होती थी
- चौगुले – यह पटेल का सहायक होता था
- महार – गाँव का चौकीदार होता था
NOTE- वुल्जले हेग के अनुसार -” सर्वप्रथम आठ मंत्रियो की संस्था का गठन मुहम्मद शाह बहमनी प्रथम द्वारा किया गया “
क्योंकि अष्टप्रधान के महत्वपूर्ण अधिकारी जैसे पेशवा, मजमुआदर, दबीर आदि का उद्भव दकनी प्रशासनिक पद्धति में निहित थी
मराठा क्षेत्र
- मराठा क्षेत्र को मुख्य रूप से 4 भागो में बांटा जा सकता है
- उतरी क्षेत्र
- प्रमुख – मीरो त्र्यम्बकं पिंगले
- क्षेत्र – पूना, बम्बई उतर, सूरत, सल्हेर दुर्ग
- दक्षिण क्षेत्र
- प्रमुख – रघुनाथ पंत
- जिंजी एवं इसके आस पास
- दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र
- प्रमुख – अन्नो जी दत्तो
- कोंकण व समुद्री तट
- दक्षिण पूर्वी क्षेत्र
- प्रमुख – दंतों जी पंत
- सतारा, सांगली, कोल्हापुर
शिवाजी ओर भूराजस्व व्यवस्था
- शिवाजी की भूराजस्व व्यवस्था मालिक अम्बर की भूराजस्व व्यवस्था पर आधारित थी
- मराठा प्रशासन के अंतर्गत भूराजस्व वसूलने का दायित्व गांव के मुखियों (पटेल) पर होता था
- पटेल का पद वंशानुगत ओर हस्तांतरिय होता था
- मराठा प्रशासन में सरंजामी प्रथा (जागीरदारो को निर्वहन हेतु दी गयी भूमि) को अपनाया जाता था
- शिवाजी के काल मे अन्नाजी दतो के नेतृत्व में भूमि सर्वेक्षण का कार्य कराया गया
- अन्नाजी ने भूमि की माप करवाई
- माप का आधार जरीब रखा गया जिसे काठी (माप जोख की इकाई ) भी कहते थे
- यह काठी 5 हाथ ओर 5 मुट्ठी लंबी होती थी
- 20 काठी लंबी और 20 काठी चौड़ी भूमि को बीघा कहते थे
- 120 बीघा को चावर भी कहा जाता था
- भूमि 3 भागो में बंटी हुई थी (उत्तम, मध्यम, निम्न)
- शिवाजी के काल मे भूराजस्व ⅓ लिया जाता था शिवाजी ने चुंगी एवं अन्य स्थानीय कर को समाप्त करके भूराजस्व ⅖ कर दिया था
- शिवाजी के काल मे रैयतवाड़ी व्यवस्था का प्रचलन था
- जमीदारी व्यवस्था भी इस काल मे मौजूद थी
- राजस्व नकद अथवा उपज के रूप में भी चुकाया जाता था
- शिवाजी के समय देशमुखी प्रथा ओर मोकासा (नकद वेतन के बदले दिया गया भु-अनुदान ) व्यवस्था प्रचलन में बनी रही
- मिरासदार – ऐसे किसान जो स्वयं की भूमि पर खेती किया करते थे
- उपरीस – ये बटाईदार किसान होते थे जो दूसरों की भूमि पर खेती किया करते थे
- 12 बलुटे – शिल्पी
- 12 अलुटे – ग्रामीण सेवक
- अन्य 02 कर ओर भी लिए जाते थे (चौथ, सरदेशमुखी)
चौथ –
- भूमि कर के अलावा शिवाजी के काल मे आय का अन्य प्रमुख स्रोत चौथ कर था
- यह पड़ोसी राज्य से वसूल किया जाता था
- इसकी मात्रा उस राज्य की आय का ¼ भाग होता था
- चौथ के बदले मराठा पड़ोसी राज्यो पर आक्रमण नही करते थे और उन्हें सुरक्षा का आश्वासन देते थ
- चौथ कर में 04 भाग शामिल होते थे
- बबती – आय का 25 % राजा के लिए होता था
- सहोत्रा – आय का 6 % पंत सचिव हेतु
- नाडगुण्डा – आय का 3 % राजा की इच्छा पर निर्भर
- मोकास – आय का 66 % मराठा सरदारो को घुड़सवार सैनिक रखने के लिए
सरदेशमुखी
- मराठा सरदेशमुखी वसूलना अपना पैतृक अधिकार मानते थे ओर इसे कानूनी अधिकार भी मानते थे
- यह कर पड़ोसी राज्य से उस प्रदेश के भूमि कर का 1/10 भाग होता था
- सरदेशमुखी को वसूल करना शिवाजी अपना कानूनी अधिकार मानते थे क्योंकि वे अपने आप को महाराष्ट्र का पुश्तेनी सरदेशमुख मानते थे
शिवाजी का सैन्य प्रशासन
- सैन्य प्रशासन को 02 भागो में बांटा जाता है
- घुड़सवार सेना
- पैदल सेना
- घुड़सवार सेना
- घुड़सवार सेना के संगठन को पागा कहते थे
- घुड़सवार सेना का सर्वोच्च पद – पंच हजारी होता था
- घुड़सवार सेना को 02 भागो में बांटा जाता है
- बारगिर – ऐसे घुड़सवार जिन्हें राज्य की ओर से अस्त्र शस्त्र दिए जाते थे
- सिलेदार – ऐसे घुड़सवार सैनिक जो स्वयं अपने अस्त्र शस्त्र रखते थे
- घुड़सवारी की टुकड़ी की न्यूनतम इकाई 25 बारगिर होते थे इसका अधिकारी हवलदार होता था
- 5 हवलदारों पर एक जुमलादर,
- 10 जुमलादारों पर एक हजारी,
- पांच हजारी पर एक पंच हजारी,
- एव सभी पर एक सर-ए-नोबत अधिकारी होता था
2. पैदल सेना
- पैदल सेना को पाइक कहते थे
- सर्वोच्च पद – सात हजारी
- इसकी सबसे छोटी इकाई 9 सेनिको की होती थी जिसका अधिकारी नायक होता था
- 10 नायकों पर एक हलवलदार,
- 3 हवलदारों पर एक जुमलादार,
- 10 जुमलादारों पर एक हजारी,
- ओर सबसे बड़ा पद सात हजारी होता था
- इनके सैनिक गुरिल्ला रणनीति ओर फुर्तीले घुड़सवार युद्ध मे प्रवीण थे
- इन्होंने पश्चिम दक्कन के पठारी पर्वतो पर किलाबंद दुर्गों की श्रृंखला निर्मित की थी
- शिवाजी के काल मे पैदल सेना को पाइक कहा जाता था
- शिवाजी के काल मे एक छोटा तोपखाना था जिसमे लगभग 200 तोपे थी जो कि अंग्रेज, फ्रांसीसी व पुर्तगीज से खरीदी गई थी
नोसेना –
- कोलाबा, कल्याण व भिवंडी शिवाजी के नोसेना के केंद्र थे
- नोसेना का नेतृत्व कान्होजी आंग्रे के द्वारा किया गया था
- पेशवाओ के अंतर्गत मराठा नोसेना की जिम्मेदारी एक असाधारण योग्यता वाले नायक कान्होजी आंग्रे के हाथों सौंपी गई तथा कान्होजी आंग्रे को मराठा नोसेना के प्रमुख पद सरखेल का दिया पद दिया गया
- आंग्रे की वजह से शाहू पश्चिमी घाट पर स्थित विदेशी शक्तियों (सिद्दियों, पुर्तगाली तथा अंग्रेज) की गतिविधियों से चिंता मुक्त हो गया
- शिवाजी की सेना में हिन्दू व मुस्लिम दोनों सैनिक थे
- अभियान के दौरान महिलाओं व परिवार के किसी सदस्य को रखना मना था
शिवाजी का न्याय प्रशासन
- न्याय व्यवस्था निष्पक्ष आधार पर थी
- शिवाजी का न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय था
- शिवाजी के न्यायालय को धर्म सभा / हुजूर मजलिस कहा जाता था
- प्रांतीय स्तर पर न्याय के लिए मजलिस हुआ करती थी जिसे सभा कहा जाता है
- ग्राम स्तर पर पंचायत की व्यवस्था हुआ करती थी
- धर्म शास्त्रों के सिद्धांत के आधार पर न्याय किया जाता था
- यदुनाथ सरकार ने शिवाजी के प्रशासन को मध्यकालीन राजतन्त्र की एक अनोखी घटना कहा है
- स्मिथ ने शिवाजी के राज्य को डाकू राज्य कहा है जो कि उचित नही है
शिवाजी के उत्तराधिकारी
- मराठा वंश की स्थापना शिवाजी ने की थी
- मराठा शासक शम्भाजी छत्रपति शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे जिसने 1680-1689 तक राज्य किया
- राजाराम (1689-1700) छत्रपति शिवाजी के द्वितीय पुत्र थे
- शिवाजी द्वितीय (1700-1707) ने शासन किया जो राजाराम के पुत्र थे
- छत्रपति शाहू (1707-1749) तक शासन किया जो शम्भा जी के पुत्र थे
- शिवाजी की मृत्यु के बाद राजाराम गद्दी पर बैठा था
शम्भाजी (1680-1689)
- शम्भाजी ने राजाराम को गद्दी से हटाकर सत्ता प्राप्त की थी
- शिवाजी के मृत्यु के समय शम्भाजी पन्हाला के किले में कैद थे
- शम्भाजी के गुरु का नाम – केशव भट्ट व उमाजी पंडित
- शम्भाजी ने राजकीय कार्यो के लिए कवि कलश पर विश्वास किया था
- 1689 ई में शम्भाजी व कवि कलश को नाबड़ी गाँव में मुगल सेनापति मुकर्रब खान ने बन्दी बना लिया
- यहाँ से शम्भाजी को बहादूरगढ़ ले जाया गया और कोडेगाव नामक स्थान पर शम्भाजी व कवि कलश की हत्या कर दी गयी
राजाराम (1689-1700)
- राजाराम में योग्य अधिकारी चुनने की कला थी इसलिए इन्हें धन्ना जी जाधव व संता जी घोरपड़े जैसे योग्य व्यक्तियों का साथ मिला
- राजाराम ने शाहु के प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाया
- राजाराम के द्वारा अष्टप्रधान में प्रतिनिधि नामक एव नवीन पद जोड़ा गया था
- 1689 ई में मुगल आक्रमणकारियों ने रायगढ़ पर अधिकार कर लिया और येसुबाई व शाहु को गिरफ्तार कर लिया गया
- मुगल जुल्फिकार खा के द्वारा जिंजी का घेरा लगाया गया लगभग 8 वर्षों तक राजाराम जिंजी के किले में कैद रहे अंततः जनवरी 1698 में राजाराम जिंजी जीत गए
- 1698 में राजाराम जिंजी के स्थान पर सतारा को राजधानी बनाकर मराठो की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता रहा
- राजाराम ने नवीन पद – प्रतिनिधि ओर हुकूमत पनाह तथा पंत सचिव का सृजन किया
- इस प्रकार राजाराम के समय पदक्रम में ‘प्रतिनिधि’ का स्थान पेशवा पद से पहले था
शिवजी द्वितीय या ताराबाई (1700-1707 ई)
- राजाराम की मृत्यु के बाद उसका अल्पवयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय शासक बना
- ताराबाई ने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को शासक बनाया और यह इनकी संरक्षिका बनी थी
- 1700 के बाद ताराबाई के नेतृत्व में मराठो का पुनः उत्कर्ष हुआ
- ताराबाई ने मुगलो के खिलाफ लगातार संघर्ष जारी रखा
- ताराबाई के समय ही मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हो जाती है
- ध्यातव्य रहे कि ताराबाई ने सैन्य शक्ति और नेतृत्व कौशल से मराठा राज्य को मुगलो से बचाये रखा
- ताराबाई के नेतृत्व ओर सैनिक संगठन को देखकर औरंगजेब ने उसे ‘ईमानदार मराठा नेत्री’ कहा था
- 1707 ई में मुगल शहजादा आजम ने शाहू को रिहा कर दिया गया
- ताराबाई ने शाहू को छत्रपति मानने से इंकार किया
- अतः शाहू एव ताराबाई के मध्य खेड़ का युद्ध (1707) लड़ा गया जिसमें शाहू विजय रहे
- ताराबाई ने अपनी पराजय के बाद दक्षिण महाराष्ट्र चली गयी और कोल्हापुर को अपनी राजधानी बनाया गया
- इस युद्ध मे शाहू को बालाजी विश्वनाथ के सहयोग के कारण विजय हुआ इस सेवा के बदले में शाहू ने बालाजी विश्वनाथ को पेशवा के पद पर नियुक्त किया
शाहू जी (1707-1749)
- 1749 में अपनी मृत्यु से पूर्व शाहू ने एक वसीयत द्वारा मराठा प्रशासन की शक्ति पेशवा को दे दी थी
- राजा के अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने वाला अंतिम मराठा शासक शाहू था
- इसके बाद के मराठा राजा नाममात्र के शासक रहे थे
- अजमेर में ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर नजर (भेंट) करने वाले प्रथम मराठे सरदार राजा शाहू (शिवाजी के पौत्र) थे
- 1708 में सतारा में शाहू जी का राज्याभिषेक हुआ
- शाहू के द्वारा सेनाकर्ते नामक नवीन पद बनाया गया
- इस सेनाकर्ते पद पर सर्वप्रथम बालाजी विश्वनाथ को बिठाया गया
- राजाराम की दूसरी पत्नी का नाम – राजसबाई था
- राजसबाई के पुत्र शम्भाजी द्वितीय या शम्भू द्वितीय ने कोल्हापुर पर अधिकार कर लिया था
- शम्भाजी द्वितीय हैदराबाद के निजाम से मिलकर शाहू के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे थे
- बाजीराव प्रथम (1720-40 ) के काल मे शम्भाजी द्वितीय एवं शाहू के मध्य 1731 ई में वारना कि संधि हुई
- जिससे कोल्हापुर एवं सतारा के मध्य संघर्ष समाप्त हो गया
राजाराम द्वितीय (1749-1750)
- इनके काल मे पेशवा बालाजी बाजीराव के साथ 1750 मे संगोला की संधि सम्पन्न की गई
- इस संधि के तहत छत्रपति का पद नाममात्र का रह गया और पेशवा मराठा संगठन का वास्तविक नेता बन गया
NOTE मावली – शिवाजी के अंगरक्षकों को मावली कहते है
दारिया सारंग – नोसेना से संबंधित अधिकारी था
मराठा पेशवा का पदक्रम
- बालाजी विश्वनाथ (1713-1720)
- बाजीराव प्रथम (1720-1740)
- बालाजी बाजीराव (1740-1761)
- माधव राव प्रथम (1761- 1772)
- नारायण राव (1772-1773)
- माधव नारायण द्वितीय (1774-1796)
- बाजीराव द्वितीय (1796-1818)
बालाजी विश्वनाथ (1713-1720)
- शम्भाजी के बाद बालाजी विश्वनाथ ने मराठा शासन को सरल एव कारगर बनाया था
- पेशवा बालाजी विश्वनाथ कोंकण स्थित श्रीवर्धन नामक स्थान के चितपावन ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे
- यह राजस्व एव सैन्य दोनों विषयो के ज्ञाता थे
- शम्भाजी के बाद राजाराम ने मराठो को संगठित करके उन्हें शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया
- राजाराम के समय बालाजी विश्वनाथ को मराठा राजनीतिक स्थिति के बारे में अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ
- छत्रपति शाहू ने इन्हें ‘सेनाकर्ते’ (सेना के व्यस्थापक) पद पर नियुक्त किया था
- बालाजी विश्वनाथ का मुख्य उद्देश्य स्वराज्य की रक्षा करना, प्रशासनिक संगठन तथा उसकी लाभप्रद परम्पराओं की रक्षा करना था
- इंहोजे मराठो को संगठित करके ‘मराठा संघ’ की स्थापना की थी
- 1713 ई में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा का पद दिया गया
- इन्होंने धन्नाजी एव संता जी नेतृत्व में सैन्य अभियान किए
- बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है
- 1719 ई में इन्होंने हुसैन अली खान के साथ दिल्ली की संधि की
- रिचर्ड टेम्पल ने इस संधि को मराठो का मैग्नाकार्टा कहा था
- मुख्य बिंदु
- मुगल बादशाह रफी-उद-दरजात ने शाहू को महाराष्ट्र क्षेत्र का स्वामी मान लिया
- मराठो को दक्षिण भारत के 6 सुबो में चौथ व सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार दे दिया गया
- शाहू मुगलो को 15 हजार घुड़सवार सैनिक की सहायता देंगे
- शाहू मुगल बादशाह को प्रत्येक वर्ष 10 लाख रुपये देंगे
- हुसैन अली खां के साथ विश्वनाथ पाण्डेराव धामादे के नेतृत्व में दिल्ली में सेना भेजी गई
- ओर फर्रुखसियर को हटाकर रफी-उद-दरजात को मुगल बादशाह बना दिया
- रफी-उद-दरजात ने दिल्ली को संधि पर हस्ताक्षर किए
बाजीराव प्रथम (1720-1740)
- बाजीराव प्रथम ने ‘हिंदुपद पादशाही’ की उपाधि धारण की थी
- उतर भारत मे मराठो ने सर्वप्रथम बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में मालवा को जीतने में सफल रहे थे
- इसको मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है
- बाजीराव प्रथम अपने पिता बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद पेशवा बना
- इसमे समय मराठा साम्राज्य अस्त व्यस्त था
- जंजीरा पर सिद्धियों का अधिकार था एव कई मराठा सरदार स्वायत्तता प्राप्त करना चाहते थे
- बाजीराव ने अपनी योग्यता और सूझबूझ के बल पर इन कठिनाइयों पर विजय पाने में सफल रहा
- अन्य नाम – लड़ाकू पेशवा
- इन्होंने कहा – “हमे मुगल साम्राज्य रूपी वृक्ष के तने पर प्रहार करना चाहिए जिससे शाखायें अपने आप गिर जाएगी”
- इन्हें शिवाजी के बाद दूसरा सबसे बड़ा छापामार युद्ध का प्रतिपादक था
- इन्होंने हिन्दू पादशाही का प्रचार किया
निजाम से संघर्ष
- निजामुलमुल्क आसफजाह ने दक्षिण में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की थी (1724)
- निजाम कोल्हापुर के शम्भा जी द्वितीय को सहायता दे रहा था
- अतः बाजीराव प्रथम ने निजाम को 1728 ई में पालखेड़ा के युद्ध मे पराजित किया
- ओर निजाम के साथ मुंशीशिव गाँव की संधि सम्पन्न की थी
- जिसमे निजाम ने शाहू की सर्वोच्चता स्वीकार कर ली
- बाजीराव प्रथम ने गुजरात, मालवा, कालपी, सागर (मध्यप्रदेश) व झाँसी के क्षेत्र पर अधिकार किया
जंजीरा का युद्ध 1733
- बाजीराव प्रथम ने जंजीरा के सिद्दियों के विरुद्ध अभियान किया जिसमें मराठो को विजयश्री प्राप्त हुई थी किंतु मराठा सिद्दियों की शक्ति को पूर्णतय समाप्त करने में असफल रहे कालांतर में एक संधि के तहत सिद्दी मराठो के सामन्त बन गए
भोपाल का युद्ध – 1737 ई
- मुगलो ने निजाम को मराठो के खिलाफ भेजा
- फलतः मराठो व निजाम के मध्य भोपाल का युद्ध हुआ
- जिसमे निजाम पराजित हुआ
- ओर 1738 इ में निजाम ने मराठो के साथ दुरई सराय की संधि की
- जिसके तहत मराठो को मालवा का क्षेत्र तथा नर्मदा से चम्बल का क्षेत्र प्राप्त हुआ
1739 सालसेट व बेसिन विजय
- 1739 ई में मराठो नें चिमना जी के नेतृत्व में पुर्तगालियों के उत्तरी क्षेत्र में स्थित उनकी राजधानी बेसिन पर अधिकार कर लिया
- यूरोपीय शक्ति के विरुद्ध यह मराठो की महान विजय थी
- यह विजय मराठा पेशवा बाजीराव की महान सैन्य कुशलता ओर सूझबूझ का प्रतीक थी
- पुर्तगालियों द्वारा सभी जहाजो का परमिट लेने व अपने क्षेत्र के बंदरगाहों में शुल्क चुकाने के लिए बाध्य किया जाता था
मुंगी पैठन की संधि – 1740 ई
- निजाम के उत्तराधिकारी नासिर जंग ने निजाम व मराठो की संधि को मानने से इंकार कर दिया इसलिए मुंगी पैठन की संधि हुई
मराठो के नए वंश
- रानो जी सिंधिया ने मालवा व उसके आसपास सिंधिया वंश की स्थापना की थी
ईस वंश की प्रारंभिक राजधानी उज्जैन थी जो कि आगे चलकर ग्वालियर बन गयी
- मल्हार राव होलकर – इन्होंने इन्दोर में होलकर वंश की स्थापना की थी
- पिलाजी गायकवाड़ – इन्होंने बड़ौदा को अपनी राजधानी बनाया
- नागपुर के भोंसले – शाहू के वंशज
बालाजी बाजीराव (1740-1761)
- बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बालाजी बाजीराव पेशवा बना था
- हालांकि बाजीराव प्रथम के समय मे ही मराठो ने अपनी स्थिति मजबूत की थी तथा अपने समकालीन लगभग सभी क्षेत्रीय शक्तियों को परास्त किया इन शक्तियों में निजाम सर्वप्रमुख थे लेकिन बालाजी बाजीराव के समय मे मराठा साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ और मराठो घोड़ो ने कन्याकुमारी से लेकर हिमालय के झरनों तक अपनी प्यास बुझाई थी तात्पर्य यह है कि बालाजी बाजीराव के समय मे मराठा शक्ति अपने चर्मोत्कर्ष की सीमा तक पहुंची थी
- बंगाल का नवाब अलीवर्दी खा मराठो से बहुत परेशान रहा था क्योंकि मराठा उसके राज्य पर 5 बार आक्रमण किये (1742, 1743, 1744, 1745, 1748 ) नवाब अलीवर्दी खा मराठो के आक्रमण को रोकने में असफल रहा लेकिन अलीवर्दी खा ने मराठो के दूत भास्कर पंडित की हत्या करवा दी थी फलतः मराठे ने क्रोधित होकर पुनः बंगाल पर आक्रमण किया तो अलीवर्दी खान ने रघुजी भोंसले से समझौता 1751 में कर लिया और उड़ीसा के राजस्व का चौथाई हिस्सा ओर 12 लाख रुपये सालाना देना स्वीकार किया
- 1750 में रघुजी भोंसले की मध्यस्थता से राजाराम ओर बालाजी बाजीराव के मध्य संगोला की संधि हुई इस संधि के तहत छत्रपति नाममात्र के राजा रह गए और पेशवा वास्तविक शासक बन गया
- संघोला की संधि के बाद शाहू के उतराधिकारियों की पेशवा के समक्ष कोई हैसियत नही रह गयी थी
- राजाराम द्वितीय के समय पेशवा बालाजी बाजीराव की वास्तविक शासक था लेकिन बालाजी बाजीराव ने अन्य मराठा सरदारों को भी स्वायत्तता प्रदान की थी
- इसी के समय अनेक शक्तिशाली मराठा सरदारों का उदय हुआ परन्तु वे सभी अपने को पेशवा के अधीन समझते थे इस समय मराठा राज्य का स्वरूप परिसंघ जैसा दिखता था
- अन्य नाम – नाना साहब का नाम से प्रसिद्ध
- मराठा साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ
- संगोला की संधि हुई
- 1751 ई में बंगाल के नवाब अली वर्दी खा ने उड़ीसा का क्षेत्र मराठो को दे दिया और बंगाल, बिहार से चौथ के रूप में 12 लाख वार्षिक देना स्वीकार किया
- इनके काल मे 1752 निजाम के साथ भलकी कि संधि की जिससे बरार का आधार क्षेत्र मराठो को प्राप्त हुआ
अहमदनगर, बीजापुर, बुराहनपुर व दौलताबाद से मराठो को 60 लाख रुपये वार्षिक कर के रूप में प्राप्त हुए
मराठो का पंजाब और दिल्ली से संघर्ष
- 1757 में रघुनाथ राव के नेतृत्व में मराठा सेना दिल्ली पहुंची और मुगलो के सहयोग से अहमदशाह के प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को मीर बक्शी के पद से हटा दिया
- 1758 में रघुनाथ राव ने पंजाब पर आक्रमण किया और यहाँ से तैमुर को निष्कासित कर दिया
- इस प्रकार मराठा क्षेत्र कटक से अटक तक पहुंच गया
पानीपत का तृतीय युद्ध – 14 जनवरी 1761
- कारण – पानीपत के तृतीय युद्ध का तत्कालीन कारण यह था कि मराठो ने पंजाब से अहमद शाह अब्दाली के वायसराय तैमूरशाह को निष्कासित कर दिया था
अब्दाली पंजाब को अपना क्षेत्र मानता था अतः मराठो की यह कृत्य उसकी संप्रभुता को खुली चुनौती था
- अहमद शाह अब्दाली ने नजीबुद्दौला के माध्यम से निम्न लोगो का समर्थन प्राप्त किया
- अवध का नवाब – शुजाउद्दौला
- रुहेला सरदार – हाफिज रहमत खान, साद्दुला खान
- अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली का समर्थन इसलिए किया क्योंकि उसे अपने राज्यो की सुरक्षा की चिंता थी
- जाटों, राजपूतो एव सिक्खों ने इस युद्व में मराठो का साथ नही दिया जिससे मराठा नेतृत्व कमजोर पड़ गया
- बालाजी बाजीराव ने विश्वास राव व सदाशिव राव के नेतृत्व में सेना भेजी
- इब्राहिम खा गार्दी ने मराठो की ओर से तोपखाने का नेतृत्व किया यह युद्ध भूमि में मारा गया
- पानीपत के युद्ध मे मराठो की हार हुई
- व्यापारियों के द्वारा पेशवा को सूचना दी गई कि 02 मोती विलीन हो गए (सदाशिव राव व विश्वास राव)
- काशीराज पंडित ने पानीपत के युद्ध का आंखों देखा वर्णन किया और कहा – “पानीपत का युद्ध मराठो के लिए प्रलयंकारी सिद्ध हुआ”
- R B सरदेसाई ने लिखा कि – “पानीपत के तृतीय युद्ध ने यह निश्चित नही किया कि भारत पर कोन शासन करेगा बल्कि यह निश्चित किया कि भारत पर अब मराठे शासन नही करेंगे
- यदुनाथ सरकार ने लिखा कि – “पानीपत के युद्ध मे मराठो का एक भी ऐसा घर नही था जिसमे कोई न कोई युद्ध मे वीरगति को प्राप्त नही हुआ”
माधवराव (1761-1772)
- यह अंतिम महान पेशवा था
- क्योंकि इसने पानीपत के युद्ध के बाद मराठो की खोई हुई शक्ति को पुनः स्थापित किया
- इनके काल मे हैदराबाद के निजाम व मैसूर के हैदर अली ने मराठो को चौथ प्रदान किया
- मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय इलाहाबाद से दिल्ली आ गया और शाह आलम द्वितीय ने मराठो का संरक्षण प्राप्त कर लिया
नारायण राव (1772-73)
- इनकी हत्या रघुनाथ राव के द्वारा की गई
- रघुनाथ राव (राघोवा) ने बम्बई प्रेसिडेंसी के साथ संधि की जिसे सूरत की संधि कहते है
- इस समय बम्बई का कौंसिल का अध्यक्ष – होर्नबि था
- सूरत की संधि (07 मार्च 1775)
- अंग्रेज लगभग 2500 सेनिको के साथ रघुनाथ राव को पेशवा बनाने में मदद करेंगे इन सेनिको का खर्चा रघुनाथ राव के द्वारा वहन किया जाएगा
- सालसेट व बेसिन के टापू अंग्रेजो को दिए जाएंगे
- सूरत व भेडोंच की आय अंग्रेजो को मिलेगी
- मराठे बंगाल व कर्नाटक पर आक्रमण नही करेंगे
- कलकत्ता कौंसिल ने इस सूरत की संधि को मानने से इंकार कर दिया और वारेन हेस्टिंग्स ने पूना दरबार मे कर्नल ओकटन को भेजा और कर्नल ओकटन ने पेशवा के साथ पुरन्दर की संधि की थी
पुरन्दर की संधि (01-मार्च-1776)
- यह संधि कलकत्ता काउंसिल के द्वारा की गई
- पुरन्दर की संधि में सूरत की संधि को रद्द कर दिया
- अंग्रेज रघुनाथ राव का साथ नही देंगे
- पेशवा की ओर से रघुनाथ राव को 25000 रुपये वार्षिक पेंशन व गुजरात का कॉपर गांव दिया जाएगा
- बम्बई सरकार के विरोध के कारण पुरन्दर की संधि को अस्वीकार कर दिया गया
- कोर्ट ऑफ डायरेक्टर ने सूरत की संधि को ही मान्यता प्रदान की थी
माधव नारायण राव (1774-1795)
- यह ऐसे पेशवे थे जो गर्भ में ही पेशवा बन गए
- मराठा शासन चलाने के लिए नाना फडणवीस के नेतृत्व में बारा भाई कौंसिल की स्थापना की गई जिनके द्वारा सत्ता का संचालन किया गया
- महादजी सिंधिया इस समय अपनी सेवाएं दे रहा था
प्रथम आंग्ल मराठा युद्घ (1775-1782)
- सूरत की संधि के अनुसार कर्नल कीटिंग के नेतृत्व में अंग्रेज सेना सूरत पहुंची
- यहाँ आरस के मैदान में अंग्रेजो व मराठो के बीच युद्ध हुआ (मई 1775)
- आरस के मैदान में मराठे पराजित हुए लेकिन पूना पर मराठो का अधिकार (वास्तविक मराठे) बना रहा
- 1778 में बम्बई सरकार ने पुनः मराठे के खिलाफ युद्ध किया
- 1779 में काकबर्न के नेतृत्व में अंग्रेजो ने ताल गांव की लड़ाई लड़ी जिसमे अंग्रेज पराजित हुए और बम्बई सरकार को पूना दरबार के साथ बड़गांव की अपमान जनक संधि करनी पड़ी
बड़गांव की अपमानजनक संधि
- इस संधि के तहत यह निश्चित हुआ कि बम्बई की सरकार द्वारा जीती गयी सारी भूमि लौटा दी जाएगी
- वारेन हेस्टिंग्स ने इस बड़गांव की संधि को मानने से इंकार कर दिया
- ओर हेस्टिंग्स ने कर्नल गोडार्ड के नेतृत्व में सेना भेजी इसने बम्बई पर अधिकार कर लिया
- हेस्टिंग्स ने पोपहम के नेतृत्व में दूसरी सेना भेजी इसने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया पूना में 1781 में मराठे पराजित हुआ अतः महादजी सिंधिया ने अंग्रेजो के साथ संधि का निर्णय लिया
सालबाई की संधि – 1782
- यह संधि पूना दरबार व अंग्रेजो के द्वारा की गई
- माधव नारायण राव को पेशवा मान लिया गया
- अंग्रेजो को सालसेट द्वीप एव थाना का दुर्ग प्राप्त हुआ
- अंग्रेजो ने रघुनाथ राव का साथ छोड़ दिया
- महादजी सिंधिया को यमुना के पश्चिमी भाग की सारी भूमि दे दी गयी
ईस संधि से मराठे लगभग 20 वर्षो के लिए शांत हो गए
माधव नारायण राव ने आत्महत्या की थी
बाजीराव द्वितीय (1795-1818)
- यह रघुनाथ राव का पुत्र था
- इसके काल मे अंग्रेजो के साथ बेसिन की संधि हुई थी
- पेशवा बाजीराव द्वितीय ओर दौलतराव सिंधिया ने मिलकर यशवंत राव होल्कर को नीचा दिखाने का कार्य किया
- ओर सिंधिया व बाजीराव द्वितीय ने यशवंत राव होल्कर के भाई बिठू जी की हत्या कर दी
बेसिन की संधि – 31 दिसम्बर 1802
- यह संधि अंग्रेज गवर्नर जनरल वेलेजली ओर बाजीराव द्वितीय के मध्य हुई थी
- पेशवा ने अंग्रेजी सरकार का संरक्षण स्वीकार कर लिया और पूना में अंग्रेज सेना रखना भी स्वीकार कर लिया
- पेशवा ने नर्मदा, ताप्ती व तुंगभद्रा के आसपास के क्षेत्र अंग्रेजो को दे दिए इन क्षेत्रों की वार्षिक आय 26 लाख रुपये थी
- पेशवा ने सूरत कम्पनी को दे दिया
- पेशवा ने निजाम से चौथ वसूली का अधिकार छोड़ दिया
- पेशवा ने अंग्रेजो से यह वादा किया कि वह अपने यहाँ किसी अन्य यूरोपीय कम्पनी के कर्मचारी को नही रखेगा
- ईस प्रकार पेशवा ने रक्षा के मूल्य के रूप में अपनी स्वतंत्रता का बलिदान कर दिया
- डीन हट्टन -”बेसिन की संधि ने अंग्रेजो की शक्ति को 03 गुना बढ़ा दिया”
- आर्थर वेलेजली – “बेसिन की संधि एक बेकार आदमी के साथ कि गयी थी
द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध – 1803 – 05
- इस युद्ध को अंग्रेजो ने 02 क्षेत्रों में चलाया
- जनरल लेक ने उत्तर भारत की कमान संभाली ओर आर्थर वेलेजली ने दक्षिण के क्षेत्र में आक्रमण किया
- आर्थर वेलेजली ने 1803 में अहमदनगर पर अधिकार कर लिया
- वेलेजली ने सिंधिया एवं भोंसले की सयुंक्त सेना को पराजित किया
- भोंसले के साथ देवगांव की संधि (17 dec 1803) की थी
- तथा सिंधिया के साथ सुरजी अर्जन गांव की संधि (30 dec 1803) सम्पन्न की थी
होलकर के साथ युद्ध
- 1804 में अंग्रेजो ने होल्कर के विरुद्ध युद्ध शुरु किया
- होल्कर ने भरतपुर में शरण ली
- जनरल लेक ने 05 बार के प्रयासों के बाद भी भरतपुर पर अधिकार नही कर सका
- होलकर ने सिक्खों से भी सहायता मांगी परन्तु सिक्खों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया
- अतः 1806 ई में होल्कर ने अंग्रेजो के साथ संधि कर ली जिसके तहत टोंक, रामपुरवा व बुंदेलखंड से होलकर ने अपने अधिकार हटा लिए
- द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के परिणामस्वरूप मराठा शक्ति पूरी तरह छिन्न भिन्न हो गयी
तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1817-1818)
- हेस्टिंग्स ने तीसरा ओर अंतिम मराठा युद्ध समाप्त किया
- पूना के रेजिडेंट एलिफिस्टन ने पेशवा बाजीराव द्वितीय पर दबाब डाला कि वह पेशवा का पद छोड़ दे
- मराठो ने अंग्रेज रेजिडेंसी जो कि पूना में स्थित थी उसमे आग लगा दी और किरकि केम्प पर आक्रमण कर दिया
- हालांकि पेशवा अंग्रेजो से पराजित हुआ और पेशवा ने अंग्रेजो के साथ पूना की संधि कर ली
पूना की संधि (जून 1817)
- पूना की संधि के माध्यम से पेशवा ने मराठा संघ की प्रधानता छोड़ दी
- पेशवा ने किरकि की पराजय के बाद अंग्रेजो के साथ 02 ओर लड़ाईयां लड़ी थी
- कोरेगांव की संधि (जनवरी 1818)
- अंटी की लड़ाई (फ़रवरी 1818)
- पेशवा बाजीराव द्वितीय ने जून 1818 में जॉन मैल्कम के समक्ष आत्मसमपर्ण कर दिया
- अंग्रेजी सरकार ने बाजीराव द्वितीय को 8 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के समीप बिठूर नामक स्थान पर भेज दिया
- यही पर बाजीराव द्वितीय ने अपना अंतिम जीवन बिताया
- अंग्रेजी सरकार ने पेशवा के राज्य से सतारा को अलग करके प्रतापसिंह को दे दिया
NOTE – मराठा साम्राज्य के अंतिम छत्रपति – शाहजी अप्पा साहिब
- पेशवा के दफ्तर को हुजूर दफ्तर के नाम से जाना जाता था जो कि पेशवा का सचिवालय था
- इस दफ्तर के सबसे महत्वपूर्ण विभाग – एलबेरीज दफ्तर व चातले दफ्तर होते थे
- एलबेरीज दफ्तर सभी प्रकार के लेखों से संबंधित था जबकि चातले दफ्तर आय व्यय का ब्युरा रखता था
- नाना फडणवीस के द्वारा हुजूर दफ्तर में बहुत सारे सुधार किए गए
- पेशवा का दफ्तर पूना में होता था
मामलतदार – यह अधिकारी सूबेदार के अधीन होता था जो कि जिले में पेशवा का प्रतिनिधि होता था
जिले का कार्यभार इसी के पास होता था
हवलदार – पेशवा के काल मे यह महल का मुख्य कार्यकर्ता होता था
मजूमदार व फडणवीस इसकी सहायता के लिए होते थे
पेशवा की न्याय प्रणाली
- न्याय के लिए गांव में पटेल
- जिले में मामलतदार
- सूबे में सरसुबेदार
- ओर अंत मे सतारा का न्यायालय होता था
जांगला – यह अपराधियों का पता लगाने का कार्य करते थे
पेशवा के काल मे पूना में पुलिस की व्यवस्था की गई थी पुलीस की कार्यप्रणाली की प्रशंसा एलिफिस्टन के द्वारा की गई थी
IMP
- मोड़ी लिपि
- मोड़ी लिपि का प्रयोग मराठो के अभिलेखों में हुआ
- मोड़ी शब्द का उदय फ़ारसी शब्द शिकस्त से हुआ जिसका अर्थ – तोड़ना या मरोड़ना
- बखर – मराठा इतिहासकार इतिहास रचना के साधन को बखर कहते है
- पेशवा – पूना में
- सिंधिया – ग्वालियर
- भोंसले – नागपुर
- होल्कर – इन्दोर
- गायकवाड़ – बड़ौदा
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