
भारत का संवैधानिक विकास
- 31 दिसम्बर 1600 ई को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने एक राजलेख (रॉयल आर्डर) द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी (स्थापना 1599) को पूर्वी देशो में व्यपारिक एकाधिकार दिया गया
- 1600 से 1757 ई तक यह कम्पनी एक व्यापारिक कम्पनी रही।
- 1757 के प्लासी के युद्ध के माध्यम से भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी को राजनैतिक सत्ता प्राप्त हुई
- ब्रिटिश संसद द्वारा 1773 में पहली बार ईस्ट इंडिया कम्पनी पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु एक अधिनियम जारी किया
रेग्युलेटिंग अधिनियम 1773
- कम्पनी की आर्थिक सहायता एव संसदीय नियंत्रण के लिए प्रथम अधिनियम पारित किया गया
- अधिनियम के उद्देश्य
- बंगाल के गवर्नर को अब बंगाल का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा (वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर बना था
- चार सदस्यों की गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद बनाई गई (1+4)
- मद्रास एव बम्बई के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया।
- 1774 ई में रेग्युलेटिंग अधिनियम के द्वारा कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई
- इसमे एक मुख्य न्यायाधीश तथा 3 अन्य न्यायाधीश होते थे (1+3) (चेम्बर्स, लिमेस्टर, हाइड)
- सर एलिजाह इम्पे इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश थे
- रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा कम्पनी के कर्मचारियों के निजी व्यापार करने पर पूर्ण रोक लगा दी गयी
- इस अधिनियम के द्वारा भारत में कम्पनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रणो के प्रयास की शुरुआत थी
1781 का संशोधनात्मक अधिनियम
- उद्देश्य – यह संशोधनात्मक अधिनियम 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट की विसंगतियों को दूर करने के लिए लाया गया
- इसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट के नाम से भी जानते है
- इस अधिनियम के अनुसार कम्पनी के पदाधिकारी अपने शासकीय रूप में किये गए कार्यो के लिए उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे
- 1781 का संशोधनात्मक अधिनियम कार्यपालिका एव न्यायपालिका के बीच शक्ति पृथक्करण की दिशा में कदम था
- उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को सुनिश्चित किया गया तथा उसे कलकत्ता के सभी निवासियों पर लागू कर दिया गया
पिट्स इंडिया एक्ट – 1784
- उद्देश्य – ब्रिटिश संसद द्वारा कम्पनी पर अपने प्रभाव को अधिक मजबूत करना / ब्रिटिश सरकार का कम्पनी के प्रशासन में हस्तक्षेप करना।
- इस एक्ट के द्वारा सर्वप्रथम कम्पनी की व्यापारिक एव राजनैतिक गतिविधियों को एक दूसरे से पृथक कर दिया गया
- इस एक्ट द्वारा द्वैध शासन कि शुरुआत की गई
नियंत्रण मण्डल (बोर्ड ऑफ कंट्रोल)
- एक एक्ट के द्वारा 6 सदस्यीय नियंत्रण मण्डल का गठन किया गया जिसे भारत के प्रशासन के बारे में निरीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण संबंधी अधिकार दिए गए
- बोर्ड ऑफ कंट्रोल का अध्यक्ष ब्रिटिश मंत्रिमंडल का सदस्य होता था
1813 का चार्टर एक्ट
- कम्पनी को अगले 20 वर्षो के लिए भारतीय प्रदेशों पर नियंत्रण का अधिकार दे दिया गया
- 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा कम्पनी के भारतीय व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया
- भारत मे चाय व्यापार एवं चीन के साथ व्यापार पर कम्पनी का एकाधिकार बना रहा।
- ईसाई मिशनरियों को भारत मे प्रवेश की छूट प्रदान की गई
- इस एक्ट में 1 लाख रुपए की धनराशि प्रतिवर्ष अलग से रखने का प्रावधान पहली बार किया गया
- भारतीय राजस्व का 10.5% कम्पनी के भागीदारों को दिया जाने का प्रावधान था
- इस एक्ट द्वारा कम्पनी अधिग्रहित सभी भारतीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश सम्राट की सत्ता स्थापित कर दी गई
1833 का चार्टर एक्ट
- कम्पनी का अधिकार 20 वर्षो के लिए पुनः बढ़ा दिया गया
- इस एक्ट द्वारा कम्पनी का व्यापारिक अधिकार पूर्णतः (चीन के साथ व्यापार + चाय के व्यापार) समाप्त कर दिया गया
- बंगाल के गवर्नर जनरल को अब भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया
- लोर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बना।
- भारत के गवर्नर जनरल को कम्पनी के सैनिक तथा असैनिक कार्यो का नियंत्रण, निरीक्षण का कार्य सौंप दिया गया।
- बम्बई, मद्रास, बंगाल के गवर्नर जनरल के नियंत्रण में आ गए
- इस अधिनियम द्वारा विधान बनाने के लिए गवर्नर जनरल की तीन सदस्यीय कार्यकारिणी में एक अतिरिक्त कानूनी सदस्य (मैकाले) को सम्मिलित कर लिया गया
- इस एक्ट की 87वी धारा द्वारा नियुक्तियों के लिए योग्यता सम्बन्धी मापदंडों को निर्धारित किया गया ओर सरकारी सेवाओं में जातीय व नस्लीय भेदभाव पर रोक लगाई गई
- इस एक्ट द्वारा दास प्रथा को अवैध घोषित किया गया बाद में गर्वनर जनरल एलनबरी ने 1843 में इसको पूर्णतः समाप्त कर दिया गया
- इस एक्ट द्वारा भारत मे शिक्षा के प्रसार के लिए सालाना राशि 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दी गयी
चार्टर अधिनियम – 1853
- इस अधिनियम में स्पष्ट कर दिया गया कि संसद चाहे तो वह कम्पनी से प्रशासन अपने हाथों में ले सकता है
- इस एक्ट द्वारा सरकारी नियुक्तियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का विधान किया गया
- कोर्ट ऑफ डायरेक्टरों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गईं
भारत शासन अधिनियम – 1858
- इस अधिनियम के तहत ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा भारतीय शासन संचालन का दायित्व ब्रिटिश क्राउन (सरकार) को सौंप दिया
- कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर दिया गया
- गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा तथा वह क्राउन का प्रतिनिधि बन गया (भारत का प्रथम वायसराय लार्ड केनिंग बना)
- भारत का प्रशासन अब सम्राट द्वारा नियुक्त 15 सदस्यीय भारत परिषद को सौंपा गया जिसका अध्यक्ष भारत राज्य सचिव कहलाया
- इस एक्ट द्वारा 1784 के पिट्स इंडिया द्वारा लागू द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दी गयी
- 1 नवम्बर 1858 को इलाहाबाद में आयोजित दरबार मे लॉर्ड कैनिंग ने ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा को पढ़ा था
1861 का भारत परिषद अधिनियम
- इस अधिनियम के तहत लॉर्ड कैनिंग ने पहली बार भारत मे विभागीय प्रणाली की शुरुआत करी थी
- आपातकालीन परिस्थितियों के वायसराय विधान परिषद की सलाह के बिना 6 माह के लिए अध्यादेश जारी कर सकता था
- 1858 का अधिनियम अपनी कसौटि पर खड़ा नही उतरा परिणामस्वरूप 3 वर्ष बाद 1861 में ब्रिटिश संसद ने भारतीय परिषद अधिनियम पारित किया यह पहला ऐसा एक्ट था जिसमे विभागीय प्रणाली एव मंत्रिमंडलिय प्रणाली की नींव रखी गई पहली बार विधि निर्माण के कार्यों में भारतीयों का सहयोग लेने का प्रयास किया गया इस एक्ट के तहत वायसराय की परिषद में एक सदस्य और बढा कर सदस्यों की संख्या 5 कर दी गई। 5वा सदस्य विधि विशेषज्ञ होता था कानून निर्माण के लिए वायसराय की काउंसिल में कम से कम 6 एव अधिकतम 12 अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार वायसराय को दिया गया
- इन सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष का होता था गैर सरकारी सदस्यों में कुछ उच्च श्रेणी के भारतीय थे पर भारतीयों की नियुक्ति के प्रति वायसराय बाध्य नही था किंतु व्यवहार में कुछ गैर सरकारी सदस्य उच्च श्रेणी के भारतीय थे इस परिषद का कार्य क्षेत्र कानून निर्माण तक ही सीमित था
1892 – का भारतीय परिषद अधिनियम
- परिषद के भारतीय सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस व सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया लेकिन भारतीय सदस्यों को पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नही था
भारतीय परिषद अधिनियम – 1908
- मार्ले मिंटो सुधार
- 1909 के अधिनियम के समय लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय तथा मार्ले भारत के सचिव के पद पर थे
- बजट पर बहस करने के विस्तृत नियम व पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार मिला
- 1909 के अधिनियम द्वारा भारतीयों को विधि निर्माण तथा प्रशासन दोनो में प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया तथा गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद में सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा को कानूनी सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया
- भारत मे पहली बार मुसलमानों के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली (पृथक) की शुरुआत की गयी।
- केंद्रीय विधानमंडल (वायसराय की कार्यकारिणी परिषद) के सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गई
- गवर्नर जनरल व उसकी कार्यकारिणी परिषद के 9 पदेन सदस्यों को मिलाकर विधानमंडल में कुल 69 सद्स्य थे
- इनमे 37 शासकीय एव 32 गैर शासकीय सदस्य थे
- 1 असाधारण सदस्य
- 28 सदस्य गवर्नर जनरल द्वारा मनोनीत
- 32 गैरशासकीय सदस्यों में से 5 गवर्नर जनरल द्वारा मनोनीत व 27 निर्वाचित किए जाते थे
- लोर्ड मार्ले ने पृथक निर्वाचक मण्डल स्थापित करके लोर्ड मिंटो को लिखा था “हम नाग के दांत बो रहे है और इसका फल भीषण होगा”
भारत शासन अधिनियम – 1919
- इसे मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है
- मांटेग्यू भारत का भारत सचिव जबकि चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे
- 1919 के अधिनियम का तत्कालीन कारण 1916 का होमरूल आंदोलन था
- गृह शासन के संबंध में प्रावधान –
- भारत परिषद व भारत सचिव के सम्पूर्ण व्यय को ब्रिटिश राजकोष पर भारित किया गया
- भारत में सैनिक एव असैनिक प्रशासन के लिए भारी मात्रा में सामान की खरीद फरोख्त हेतु लन्दन में एक हाई कमिश्नर (उच्चायुक्त) की नियुक्ति की व्यवस्था इस अधिनियम में की गई
- हाई कमिश्नर को वेतन भारतीय राजकोष से दिया गया
- भारत मे परिवर्तन –
- ब्रिटिश सरकार ने पहली बार भारत के लिए उत्तरदायी शासन जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में 8 में से कम से कम 3 भारतीय सदस्यों का प्रावधान किया गया
- भारत मे शासन के विषयो का विकेंद्रीकरण करते हुए इन्हें 2 भागो (केंद्र + राज्य विषयों) में विभाजित किया गया
- केंद्र एव राज्य (प्रान्त) के बजट को अलग अलग कर दिया गया
- भारतीय विधानमंडल को द्विसदनात्मक किया गया तथा इन्हें केंद्रीय विधानसभा एव राज्य परिषद नाम दिया गया
- केंद्रीय विधानसभा में 145 सदस्यों में से 41 मनोनीत एव 104 निर्वाचित थे जबकि राज्य परिषद (कुल 60) में 35 निर्वाचित व 26 मनोनीत थे
- केंद्रीय विधानसभा का कार्यकाल 3 वर्ष तथा राज्य परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष था
- इस एक्ट द्वारा भारत में पहली बार स्पीकर पद की शुरुआत की गई
- प्रथम स्पीकर – फ्रेडरिक व्हाइट (1921)
- प्रथम भारतीय स्पीकर – विट्टल भाई पटेल (1925)
- प्रत्यक्ष मतदान का विस्तार करते हुए साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को बनाये रखा।
- पृथक निर्वाचक मण्डल का विस्तार किया गया
- मुसलमानों के साथ ही इसमें सिक्ख, भारतीय ईसाई, यूरोपियन एव एंग्लो इंडियन के लिए भी बढ़ा दिया गया।
- इस एक्ट के द्वारा भारत मे लोक सेवा आयोग के गठन के प्रावधान किया गया
- प्रान्तों के संबंध में –
- इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता प्रान्तों में द्वैध शासन की स्थापना थी
- 1919 के अधिनियम में द्वैध शासन के जनक – लियोनिस कार्टिस था।
- प्रांतीय विधानमण्डलों की शक्तियों में विस्तार तथा इसमें निर्वाचित शक्तियो की संख्या में वृद्धि की गई
- इस एक्ट द्वारा प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी शासन स्थापित किया गया।
- प्रान्तों को स्वायत्तता प्रदान कि गयीं अर्थात प्रान्त अब पूर्णतया केंद्र के अधीन नही थे
- प्रांतिय शासन के विषयों को आरक्षित / सुरक्षित एवं हस्तांतरित भागो में विभक्त किया गया
- आरक्षित विषय – भूमिकर, वित्त, न्याय, पुलिस आदि
- हस्तांतरित विषय – शिक्षा, स्थानीय स्वायत शासन, चिकित्सा, कृषि आदि
- हस्तांतरित विषयो का प्रशासन गवर्नर तथा उसकी कार्यकारिणी के सदस्य जबकी आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर तथा उसकी कार्यकारिणी परिषद के सदस्यों में चुने गये मंत्री चलाते थे।
- प्रांतीय कार्यकारिणी में कम से कम एक भारतीय अनिवार्य किया गया
- रियासतों के संबंध में –
- 1919 के एक्ट द्वारा देश की बदलती राजनैतिक परिस्थितियों में देशी राजाओ की भूमिका के महत्व को ध्यान में रखते हुए ‘नरेश मण्डल’ का गठन किया गया।
- मण्डल का अध्यक्ष वायसराय था तथा प्रथम अध्यक्ष लोर्ड चेम्सफोर्ड थे।
भारत शासन अधिनियम -1935
- 1935 का भारत शासन अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अब तक का सबसे लंबा एव जटिल प्रलेख था
- इसमे 14 भाग, 321 अनुच्छेद (धाराये), 10 अनुसूची थी
- अधिनियम में गृह सरकार संबंधी उपबंध –
- भारत परिषद की समाप्ति तथा भारत सचिव की सहायता हेतु परामर्श सदस्यों की नियुक्ति की गई
- बर्मा (वर्तमान म्यामांर) को भारत से पृथक कर दिया गया
- भारतीय केंद्रीय शासन –
- भारत शासन अधिनियम 1919 की प्रस्तावना को ही इस अधिनियम की प्रस्तावना मानते हुये भारत मे स्वशासन का लक्ष्य रखा गया।
- अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान जिसमें 11 ब्रिटिश प्रान्तो, 6 चीफ कमिश्नर प्रान्तों की अनिवार्यता के साथ आधी जनसंख्या वाली रियासतों की सहमति आवश्यक थी।
- NOTE – इस अखिल भारतीय संघ में प्रान्तों के लिए शामिल होना अनिवार्य था परन्तु देशी रियासतों के लिए ऐच्छिक था
- प्रांतीय स्तर पर द्वैध शासन को समाप्त करके केंद्रीय स्तर पर द्वैध शासन प्रणाली स्थापित की गई
- केंद्रीय विधानमण्डल के उच्च सदन (राज्य परिषद) की सदस्य संख्या 260 (156 ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधि तथा 104 देशी रियासतों के प्रतिनिधि) कर दी गईं
- निम्न सदन (विधानसभा या संघीय सभा) की सदस्य संख्या 375 (250 ब्रिटिश प्रान्त + 125 देशी रियासतों के प्रतिनिधि) निर्धारित की गई
- इस एक्ट के द्वारा हरिजनों (अनुसूचित जातियों) को पहली बार पृथक साम्प्रदायिक निर्वाचन के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया गया तथा मुस्लिमों, सिक्खो, एंग्लो इंडियन, यूरोपियन तथा भारतीय ईसाइयों को पृथक चुनाव प्रणाली के आधार पर विधानमण्डलों में प्रतिनिधित्व जारी रखा।
- केंद्र राज्य संबंध के संदर्भ में विवादों के समाधान हेतु 1935 के अधिनियम के तहत एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयीं
- न्याय की अंतिम अपील प्रिवी कौंसिल में की जा सकती थी
- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना का प्रावधान भी इसी एक्ट में किया गया
- संघात्मक शासन व्यवस्था के तहत इस अधिनियम में विषयों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया
- संघ सूची (59 विषय)
- राज्य सूची (54 विषय)
- समवर्ती सूची (36 विषय)
- अवशिष्ट शक्तियों पर कौन कानून बनाएगा इसका अंतिम निर्णय गवर्नर जनरल का था
- केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना का प्रावधान तथा केंद्रीय विषयों के सुरक्षित तथा हस्तांतरित विषयों में विभाजित किया गया।
- आपातकालीन स्थिति में गवर्नर जनरल सम्पूर्ण शासन की बागडोर अपने हाथों में ले सकता था।
- प्रान्तों के संबंध में उपबंध –
- प्रांतो की विधानसभाओ में सदस्य संख्या में वृद्धि की गई तथा उनके अधिकारों में वृद्धि की गई
- 6 प्रान्तों में द्विसदनात्मक विधानमण्डलों की स्थापना (बम्बई, मद्रास, बिहार, असम, सयुंक्त प्रान्त, बंगाल)
- प्रान्तों में द्वैध शासन की समाप्ति एव स्वायत शासन की व्यवस्था का प्रावधान था जिसमे जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों में से ही नियुक्ति मन्त्रियों द्वारा प्रशासन की व्यवस्था की गई
- महिला मतदाताओं का अनुपात बढ़ा दिया गया और विधानमण्डल में भी उन्हें सीटों का आरक्षण दिया गया
- 1935 के अधिनियम पर कथन
- जवाहर लाल नेहरू – “यह अनेक ब्रेकों वाली इंजन रहित गाड़ी के समान है”
- C राजगोपालाचारी – “नया संविधान द्वैध शासन से भी बुरा है”
- 1935 के अधिनियम को आरक्षण एव संरक्षण के कारण एटली ने इसे ‘अविश्वास का प्रतीक माना है’