
बंगाल विभाजन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय है, जिसने देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला। 1905 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल प्रांत को हिंदू और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में विभाजित करने का निर्णय लिया गया था। इस विभाजन का उद्देश्य प्रशासनिक कार्यों को सरल बनाना बताया गया था, लेकिन इसके पीछे धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना भी एक प्रमुख कारण था। इस विभाजन के विरोध में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला और तेज़ हो गई, जिसके परिणामस्वरूप अंततः 1911 में विभाजन रद्द करना पड़ा। बंगाल विभाजन ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा और ताकत दी, जो भविष्य के संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बंगाल विभाजन कब हुआ
16 अक्टूबर 1905
बंगाल विभाजन के समय कुल जनसंख्या कितनी थी
कुल जनसंख्या : लगभग 8 करोड़
बंगाल विभाजन के दौरान बंगाल को कितने भागों मे बांटा गया था
- पश्चिमी बगांल
- राजधानी-कलकता
- बिहार + उडीसा
- हिन्दु बहुल क्षेत्र
- जनसंख्या – 5 करोड़ 40 लाख
- हिंदू – 4.5 लाख
- मुस्लिम – 90 लाख
2. पूर्वी बंगाल
- राजधानी – ढाका
- क्षेत्र – असम
- जनसंख्या – 3 करोड़ 10 लाख
- मुस्लिम – 1.80 लाख
- हिन्दू – 1.20 लाख
बंगाल विभाजन के समय वायसराय कोन था
वायसराय कर्जन के द्वारा 20 July 1905 को बंगाल विभाजन करने का निर्णय लिया गया
बंगाल विभाजन का कारण क्या था
कर्जन के अनुसार क्षेत्रफल की दृष्टि से बगोल एक बड़ा क्षेत्र था और इस पर एक साथ शासन चलाना सम्भव नहीं था इसलिए कर्जन के द्वारा बंगाल विभाजन करने का निर्णय लिया गया परन्तु वास्तव में कर्जन हिन्दु मुस्लिम एकता को समाप्त करना चाहता था। जिसकी जानकारी तत्कालीन राज्य सचिव रिजले के द्वारा लिखे कर्जन को पत्र से प्राप्त होती है जिसमे रिजले ने बगांल को एक शक्ति के रूप में बताया।
बंगाल विभाजन की प्रमुख घटनाए
7 Aug 1905 को बंगाल विभाजन के विरोध में आंदोलन प्रारम्भ हुआ।
16 oct 1905 को बंगाल विभाजन लागू हो गया।
7 Aug 1905 को बंगाल विभाजन के विरोध में आंदोलन प्रारम्भ हुआ।
16 oct 1905 को बंगाल विभाजन लागू हो गया।
7 Aug 1905 को कलकता के टाउन हॉल में स्वदेशी आंदोलन चलाने की घोषणा की गयी।
16 oct 1905 को बंगाल में शोकदिवस के रूप में मनाया गया।
रविन्द्र नाथ टैगोर के सुझाव पर लोगों ने एक दूसरे को राखियाँ बांधी।
रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बंगाल विभाजन के विरोध में आमार सोनार बांग्ला नामक गीत की रचना की गयी जो कि मार्च 1971 में बांग्लादेश का नेशनल एन्थम (गान) बना।
सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी व आनन्द मोहन बोस के द्वारा सभाओ का आयोजन किया गया।
बंगाल विभाजन के विरोध में पहली बार विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी।
यह स्वदेशी आन्दोलन लगभग पुरे भारत में फैल गया।
महाराष्ट्र – तिलक
पंजाब – अजीत सिहं + लाला लाजपत राय
दिल्ली – सैय्यद हैदर रखा
मद्रास – सुब्रमण्यम अय्यर + चिदम्बरम पीलै
स्वदेशी आंदोलन के तहत स्वदेश बांधव समिति ने अपना सर्वाधिक योगदान दिया।
अश्विनी कुमार दत्त के नेतृत्व में इस समिति की कई शाखाये बनी
बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप छात्रों ने भी आंदोलन में भाग लिया अतः बंगाल सरकार के कार्यवाहक मुख्य सचिव कार्लाइल के द्वारा एक सर्कुलर जारी किया जिसमें कहा गया कि यदि कोई विद्यार्थी आंदोलन में हिस्सा लेगा तो उसको दी जाने वाली सरकारी सहायता बन्द कर दी जावेगी अतः कार्लाइल सर्कुलर के खिलाफ एंटी सर्कुलर सोसायटी की स्थापना हुई जिसके सचिव सच्चिन्द्र प्रसाद बसु थे
बंगाल में राष्ट्रीय शिक्षा को फैलाने का श्रेय डॉन सोसायटी को दिया जाता है जिसके सचिव सतीश चंद्र मुखर्जी थे
1905 में रंगपुर नेशनल स्कूल की स्थापना हुई
प्रफुल चन्द्र राय के द्वारा बंगाल केमिकल स्वदेशी स्टोर्स की स्थापना हुई
1906 में सद्गुरु दास बनर्जी के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की गई
स्वदेशी आंदोलन में महिलाओ ने भी हिस्सा लिया लेकिन किसानों ने इसमें हिस्सा नही लिया
यह आंदोलन शहरी क्षेत्र तक ही सीमित था इसमे समाज के मध्यम व उच्च वर्ग ने हिस्सा लिया था
- ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खां ने स्वदेशी आंदोलने का विरोध किया था।
- 1905 के बनारस अधिवेशन में कांग्रेस के द्वारा स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया गया । (अध्यक्ष – गोपाल कृष्ण गोखले)
→ अरुण्डेल कमेठी – 1906
- मिंटो द्वितीय के द्वारा राजनैतिक सुधारों में सलाह देने के लिए Aug 1906 में अरुण्डेल कमेठी का गठन किया। इस कमेठी ने विभाजित बंगाल को पुनः संयुक्त करने पर बल दिया।
बंगाल विभाजन रद्द कब हुआ था
→ दिल्ली दरबार – Dec. 1911
- इंग्लैण्ड के राजा जोर्ज पंचम का भारत आगमन हुआ अतः 12 dec. 1911 को दिल्ली में दरबार का आयोजन हुआ। यहां वायसराय होर्डिग्स द्वितीय ने सम्राट की ओर से 02 घोषणाएं की थी
- बंगाल विभाजन रद्द
- राजधानी कलकता से दिल्ली स्थानांतरित