फ्रांस की क्रांति
फ्रांस की क्रांति विश्व इतिहास के पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है
यह एग्जाम की दृष्टि से उपयोगी टॉपिक है हमने यहाँ फ्रांस की क्रांति को विभिन्न चरणों मे बांटकर अध्ययन करवाया गया है
- फ्रांस की क्रांति जितनी शस्त्रों का संघर्ष थी उतनी ही विचारों का संघर्ष भी थी
- स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व (भातृत्व) फ्रांसीसी क्रांति के देन थे (एक्वलिते, फरलिते, लिबरले)
- यूरोपीय देशों में सर्वाधिक क्रांतियों फ्रांस में ही हुई क्योंकि फ्रांस का मध्यम वर्ग जागरूक था जिसने प्रत्येक विपरीत परिस्थितियों में क्रांति का रास्ता अपनाया
- फ्रांस में घटने वाली घटनाएं केवल फ्रांस को ही प्रभावित नही करती थी बल्कि सम्पूर्ण यूरोप को प्रभावित करती थी इसलिए कहा जाता है जब फ्रांस छींकता था तब सारे यूरोप को जुकाम लग जाता था
- फ्रांस की पुरातन राजनैतिक सामाजिक व आर्थिक दशा जो पूरी तरह भ्रष्ट थी वे उसी दशा में फ्रेंच क्रांति के कारण छुपे हुए थे इस दोषपूर्ण व्यवस्था के लिए आशियारिज्म शब्द काम मे लिया गया है
फ्रांस की क्रांति के कारण
A राजनैतिक कारण
1 लुई 14 वा (1643-1715)
2 लुई 15 वा (1715-1774)
3 लुई 16 वा (1774- 1793)
- फ्रांस के राजा बुर्बो वंश के थे
- फ्रांस में भी वंशानुगत, निरंकुश व दैव्य राजतंत्र प्रचलित था
लुई 14
- लुई 14 वे ने अपनी ताकत का परिचय यह कह कर दिया कि “में ही राज्य हु”
- फ्रांस की आर्थिक स्थिति इसके समय से बिगड़ना प्रारंभ हो गयी
- लुई 14 वा स्वयं को सूर्य का प्रतीक मानता था
- वर्साय के राजमहलो का निर्माण इसी के समय प्रारंभ हुआ जिससे राजकोष खाली हो गया और फ्रांस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी
- फ्रांस के सम्राट का निजी आवास वर्साय में था
- वर्साय के महलो को फ्रांस में राष्ट्र की समाधि कहा जाता है
लुई 15 वा
- लुई 15 वे ने कहा था कि “मेरे मरने के बाद प्रलय होगा”
- लुई 15 वे के काल मे सप्तवर्षीय युद्ध लड़ा गया जिसमें फ्रांस की पराजय हुई और फ्रांस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी
- हैजन इतिहासकार लिखते है कि “लुई 15 वे के समय फ्रांस में प्रतिभासंपन्न एव योग्य व्यक्तियों की सरकार नही थी बल्कि पेटिकोट सरकार थी”
लुई 16 वा
- लुई 16 वे अपनी रानी मैरी अन्तवानेत के प्रभाव में था यह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी थी
- लुई 16 वा कहता है कि “कोई बात कानून इसलिए है क्योंकि में उसे पसन्द करता हू”
- लुई 16 वे को हिरण का शिकार व ताले बनाने का शौक था
- लुई 16 वे के काल मे फ़्रांस में क्रांति हुई
एस्टेट जनरल
- यह फ्रांस के 03 सामाजिक वर्गो से बनी सभा थी
- क्लर्जी (धर्माधिकारी पादरी)
- नोबल्स (सामन्त)
- सामान्य वर्ग (कोमनर्स) – इसमे किसान व बूर्जुआ आते थे
- यह राजा को नियंत्रित करती थी
- इसका गठन 1302 में राजा लुई फिलिप या लुई सप्तम के समय हुआ था किंतु 1614 के बाद इसका कोई अधिवेशन नही हुआ
- फ्रांस में कोई भी कानून बनाने के लिए इन तीनो वर्गो में से 2 वर्गो के एक एक वोट की आवश्यकता पड़ती थी
क्लर्जी
- यह विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे
- यह किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर नही चुकाते थे
नोबल्स
- यह एक वंशानुगत वर्ग था
- इन्हें आंशिक रूप से कर देना पड़ता था
- शिकार व मछली पकड़ना इस वर्ग का विशेषाधिकार था
सामान्य वर्ग
1 किसान –
- किसान तीन लोगों को कर चुकाते थे (राजा, सामन्त ओर चर्च)
- अविवाहित किसानों को अनिवार्य रूप से सैनिक प्रशिक्षण लेना था
2 बुर्जुआ वर्ग –
- यह फ्रांस का मध्यम वर्ग था जो कि शिक्षित था परन्तु आर्थिक दृष्टि से कमजोर था
- फ्रांस में वास्तविक रूप से क्रांति इसी वर्ग के द्वारा की गई थी
- फ्रांस में एक कहावत प्रचलित थी “सामन्त युद्ध करता है चर्च प्रार्थना करता है तथा सामान्य वर्ग कर चुकाता है”
पार्लमा
- स्टेट जनरल के अभाव में राजा को थोड़ा बहुत नियंत्रित करने वाली संस्था पार्लमा थी किंतु यह जनता की प्रतिनिधि सभा नही थी
- इसकी स्थिति उच्च न्यायालय के समान थी
- यह न्याय के अलावा राजा के आदेशों को पंजीकृत करती थी किंतु ऐसा करने से वह एक बार मना भी कर सकती थी
- इनकी कुल संख्या – 13 थी
- पेरिस की पार्लमा को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था
लैटर डी केचेट
- यह फ्रांस में राजा की मुहर वाले पत्र थे जिनके द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था
- इन पत्रों में उस व्यक्ति का नाम खाली पड़ा रहता था जिसे गिरफ्तार करना होता था
- फ्रांस में स्वशासन बिल्कुल नही था एव लोगो को शासन चलाने की जानकारी नही थी
- फ्रांस में कानूनों में एकरूपता नही थी
- वाल्तेयर लिखता है की – “फ्रांस में कानून उसी तरह बदलते थे जैसे कि गाड़ियों के घोड़े”
- मादले ने फ्रांस के बारे में लिखा कि “बुरी व्यवस्था का तो प्रश्न ही नही था प्रश्न तो यह था कि व्यवस्था नाम की कोई चीज नही थी
फाइया
- यह फ्रांस का गिरजाघर था जहाँ बैठकर लोगो के द्वारा विचार विमर्श किया जाता था
काहिए
- यह एक प्रकार का स्मृति पत्र था जिसे लुई 16 वे ने अपने साथ लाने के लिए कहा था
B सामाजिक दशा – फ्रांस की क्रांति
- फ्रांस का समाज 03 वर्ग या स्टेट में विभाजित था इस वर्ग विभाजन को वैधानिक मान्यता भी प्राप्त थी
- प्रथम स्टेट – पादरी ( द कलर्जी)
- द्वितीय स्टेट – अभिजात / कुलीन / सामन्त वर्ग (द नॉबिलिटी)
- तृतीय वर्ग – जनसाधारण / द कॉमनर
- प्रथम व द्वितीय स्टेट को फ्रांस में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग थे तृतीय स्टेट को कोई अधिकार प्राप्त नही थे
- तृतीय स्टेट में वकील, इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक, मजदूर एव कृषक वर्ग थे
- नेपोलियन ने कहा कि मध्यम वर्ग का अहं भाव ही फ्रांसीसी क्रांति का प्रमुख कारण थे
- लियो गरशॉय लिखते है कि किसान इतने परेशान हो गये की वह अपने आप ही क्रांतिकारी तत्वों में परिवर्तित हो गए
- मेरियट ने लिखा कि जब फ्रांस में क्रांति हुई तो वह निरंकुश व अत्याचारी शासन के विरुद्ध नही थी बल्कि सामाजिक व धार्मिक शोषण के विरुद्ध थी क्रांतिकारियों ने सर्वप्रथम इन्हें ही समाप्त किया
C बोद्धिक कारण
- फ्रेंच क्रांति में बुद्धिजीवियों की भूमिका को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है
- एलन व शातोब्रिया बुद्धिजीवियों का क्रान्ति में योगदान मानते है जबकि हेजन व थॉमसन इसे नही मानते है
फिजियोक्रेट
- फ्रांस में भू अर्थशास्त्रीयो के लिए यह शब्द काम मे लिया गया
- इनका कहना था कि भूमि का कुशलतापूर्वक उपयोग करके राष्ट्रीय धन में वृद्धि की जा सकती है
- इनका नेता क्वेसने था
फिलोस्पेस
- फ्रांस में बुद्धिजीवियों के लिए फिलोस्पेस शब्द काम मे लिया गया
- ये लोग सैलो (गोष्ठियों) के द्वारा अपने विचार व्यक्त करते थे
- फ्रांस में फिलोजोइस को फ्रांसीसी क्रांति की आत्मा कहा गया
मॉन्टेस्क्यु (1689-1755)
- मूल नाम – चार्ल्स लुई सेकेन्डेट
- इसकी पुस्कत स्प्रिट ऑफ लॉज (1748) में शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत दिया
- मॉन्टेस्क्यु फ्रांस में इंग्लैंड की तरह का संसदीय राजतंत्र चाहता था
- ये स्वयं वकील थे और बोर्दो की पार्लमा में न्यायाधीश के पद पर रह चुके इन पर ब्रिटिश समाज ओर शासन पद्धति का गहरा प्रभाव था
- मॉन्टेस्क्यु की पुस्तकें
- पर्शियन लैटर्स – फ्रांसीसी समाज की बुराइयों को दूर करने की बात कही
- स्प्रिट ऑफ लॉज / कानून की आत्मा – इस पुस्तक में मॉन्टेस्क्यु ने सत्ता के पृथक्करण की बात कही
- मॉन्टेस्क्यु के अनुसार शासन के 03 अंग होने चाहिए
- कार्यपालिका
- विधायिका
- न्यायपालिका
वाल्तेयर (1694-1788)
- मुलनाम – फ्रांस्वा मारी दी आरुवा
- इसे प्रबुद्धवाद के युग का नेता भी कहा गया
- यह किंग वाल्तेयर भी कहलाया
- इसका प्रमुख वाक्य – बदनाम चीजो को नष्ट कर दो
- वाल्तेयर ने कहा था कि “ में सौ चूहों के शासन से श्रेष्ठ एक सिंह के शासन को मानता हूं”
- इन्होंने ही पहली बार इतिहास में दर्शन को स्थान दिया
- वाल्तेयर के द्वारा –
- Odipe – यह एक दुखान्त नाटक था
- ईडिपस
- केंडाइट
- लैटर्स ऑन इंग्लिश
- ट्रिटॉइज एन्ड टॉलरेंस
- लुई 14 वे का युग नामक ग्रंथ लिखे
- वाल्तेयर को फ्रांस से निष्कासित कर दिया गया अतः वाल्तेयर इंग्लैंड चले गए
- ओर वाल्तेयर के द्वारा इंग्लैंड में ब्रिटिश समाज पर एक पुस्तक की रचना की गई जो ‘फिलोसोफिकल लैटर्स ऑन द इंग्लिश’ थी
- वाल्तेयर के द्वारा धर्म अधिकारियों के लिए कुछ नियम बनाये गए इन्ही नियमों के आधार पर धर्माधिकारियों के संविधान लिए संविधान बनाया गया जिसे ‘धर्माधिकारियों के लिए संविधान’ कहा गया
- हेजन ने लिखा है कि संसार मे उससे (वाल्तेयर) अधिक मुक्त एव निर्भीक आत्माओं को प्रायः नही देखा है
- वाल्तेयर को बास्तिल के दुर्ग में बन्दी भी बनाया गया
जीन जैकब रूसो (1712-1778)
- जन्म – जेनेवा
- 1762 में रूसो ने सोसियल कांट्रेक्ट (सामाजिक अनुबंध) की रचना करी थी इसी पुस्तक से स्वतंत्रता, समानता एव बंधुत्व के विचार लिए गए
- रूसो कहता है कि कोई मनुष्य इतना भी धनवान नही होना चाहिए कि वह औरों को खरीद सके व इतना भी अधिक गरीब नही होना चाहिए की अपने आप को औरों को बेचना पड़े
- इसे क्रांतिकारियों का पैगम्बर या फ्रांसीसी क्रांति का मसीहा भी कहते है
- इन्हें आधुनिक प्रजातंत्र का जनक भी कहते
- रूसो के ग्रन्थ
- एमिल – इसमे रूसो ने बच्चों को शिक्षा देने की बात कही इस पुस्तक के माध्यम से रूसो ने प्रकृति की ओर लौटने का संदेश दिया रूसो का नारा था – “वापस प्रकृति की ओर लौटना चाहिए”
- जिली – यह एक उपन्यास है
- डिसकोर्सेस ऑन आर्ट एंड साइंस
- स्वीकृति
- असमानता का उद्भव
दिदेरो
- फ्रांस के दिदेरो ने लैम्बर्ट के साथ मिलकर फ्रेंच शब्दकोश / एनसाइक्लोपीडिया की भी रचना करी
D आर्थिक दशा
- हेजन ने लिखा कि फ्रांस की सरकार आय के अनुसार व्यय नही करती थी बल्कि व्यय के अनुसार अपनी आय निश्चित करती थी
टैली
- यह कर फ्रांस में सरकार किसानों की आर्थिक सम्पन्नता के आधार पर वसूल करती थी
टाइट / टीथ / धर्मान्श
- यह कर किसानों से चर्च धर्म के नाम पर वसूल करता था जो कि उपज का 1/10 भाग होता था
गोबल्स –
- यह नमक कर था
- एक आदेश के अनुसार फ्रांस में 7 वर्ष से ज्यादा के प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में एक बार 7 पौंड नमक खरीदना जरूरी था
बेनेलाइट्स –
- यह कर सामन्तो द्वारा वसूल किया जाता था
Vingtime–
- यह एक प्रकार का आय कर था जो कि किसानों को अपनी आय का 5% देना पड़ता था
Capitationar poll tex –
- यह व्यक्ति कर था
कोर्वी / corvee
- यह एक प्रकार का निश्शुल्क श्रम था जो कि सड़क बनाने से संबंधित था
E तत्कालीक कारण
वितीय संकट / रोटी की समस्या
- लुई 16 वे के समय तक आते आते फ्रांस की आर्थिक स्थिति पूरी तरह खराब हो गयी
- लुई 16 वे ने एक के बाद एक वित्तमंत्री बदलकर आर्थिक स्थिति सुधारने के प्रयास किये किंतु कोई परिणाम नही निकला अंत मे मजबूर होकर लुई 16 वे को नवीन कर लगाने के लिए स्टेट जनरल का अधिवेशन बुलाना पड़ा
- लुई 16 वे के वित्तमंत्री
- तुर्गो (1774-76)
- नेकर (1776-81)
- नेकर ने वित्तमंत्री के पद से हटने से पूर्व फ्रांस की आय व व्यय का अनुमानिक विवरण तैयार करवाया एव इसे जनता में वितरित कर दिया
- फ्लरी (1781-83)
- क्लोन (1783-1787)
- वित्तमंत्री क्लोन ने फ्रांस के सभी वर्गों पर एक समान कर लगाने की बात कहि किंतु विशिष्टों की सभा ने क्लोन के प्रस्ताव को मानने से इन्कार कर दिया
- NOTE – एसेम्बली ऑन नॉटेबल्स (विशिष्ट लोगो की सभा) – कुल सदस्य 145
- ब्रिन (1787-89)
- वित्तमंत्री ब्रिन ने सभी वर्गों पर एक समान भूमिकर एव स्टाम्प लगाने के लिए विशिष्टों की सभा बुलाई किंतु इन्होंने इन्कार कर दिया
- ब्रिन के समय राजा व पार्लमा के मध्य विवाद हो गया पार्लमा ने राजा के द्वारा लगाए गए नए करो को रजिस्ट्रेशन करने से इंकार कर दिया अतः राजा ने पार्लमा को भंग कर दिया
- बाद में पुनः नेकर को दूसरी बार वित्तमंत्री का पद दिया गया जेकस नेकर ने राजा को स्टेटस जनरल की बैठक बुलाने का सुझाव दिया
- लुई 16 वे ने विशिष्टों की सभा को भंग कर दिया एव ब्रिन के प्रस्तावों को पंजीकृत करने के लिए पार्लमा के पास भेज दिया किंतु पार्लमा ने मना कर दिया एव कहा कि नवीन कर लगाने का अधिकार स्टेट जनरल को है
- लुई 16वे पार्लमा के सदस्यों को बन्दी बनाने का आदेश दिया एव स्टेट जनरल का अधिवेशन बुलाना स्वीकार किया
फ्रांस की प्रशासनिक या प्रान्तीय व्यवस्था
- गवर्नमेंट (प्रान्त)
- इनकी कुल संख्या 40 थी
- यहाँ के अधिकारियों की नियुक्ति राजा के द्वारा की जाती थी
- यह अधिकारी भी राजा के समान ही निरंकुश थे
- जनरेलिते (प्रान्त)
- इनकी कुल संख्या 34 थी
- यहाँ के अधिकारियों की नियुक्ति भी राजा के द्वारा की जाती
- इन अधिकारियों के लिए एतांदा (उच्च बुर्जुआ वर्ग) शब्द का प्रयोग किया जाता था
फ्रांस की क्रांति की प्रमुख घटनाएं
A 5 may 1789
- इस दिन वर्साय के राजमहलो में लुई 16 वे ने स्टेट जनरल के अधिवेशन का उद्घाटन किया
- उद्घाटन होते ही गतिरोध उत्पन्न हो गया
- तृतीय स्टेट इस बात पर अड़ गया कि तीनों सदन एक साथ बैठेंगे एव किसी विषय पर मतदान के द्वारा निर्णय होता है तो प्रत्येक सदन का एक वोट नही माना जायेगा बल्कि कुल सदस्यों (1200) के मतदान के आधार पर निर्णय होगा
- यह मांग मिराबो नामक व्यक्ति ने उठायी थी
B 17 जून 1789
- तृतीय स्टेट ने बार बार ऊपर के दोनों स्टेटस से अपने साथ मिलने की अपील करी जिसका परिणाम यह निकला कि ऊपर के दोनों स्टेट के कई सदस्य तृतीय स्टेट के साथ मिल गए इससे तृतीय स्टेट की ताकत बढ़ गयी
- 17 जून को तृतीय स्टेट ने अपने आप को देश की राष्ट्रीय सभा मे बदल में परिवर्तित कर लिया
C 20 जून 1789
- इस दिन राष्ट्रीय सभा के सदस्यों ने टेनिस कोर्ट के मैदान में शपथ ली ओर यहाँ बैली को सभापति नियुक्त किया गया
- इस शपथ में कहा गया कि जबतक फ्रांस के लिए संविधान नही बना दिया जाता है एव उसे मजबूती से स्थापित नहीं कर दिया जाता है तब तक हम लोग मिलते रहेंगे चाहे कितनी ही मुसीबत क्यों न आए
- टेनिस कोर्ट की शपथ का प्रस्ताव – मोनियर ने तैयार किया
- यह शपथ मिराबो के नेतृत्व में ली गयी
- एव इस समय भीड़ का नेतृत्व बैली ने किया था
- हेज ने लिखा है कि -”फ्रांसीसी क्रांति का प्रारंभ इस शपथ से माना जाता है”
- डेविस थॉमसन लिखते है कि -”इस शपथ ने फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र की जड़े हिला डाली”
D 9 जुलाई 1789
- 27 जून को लुई 16 वे ने तीनों सदन के एक साथ बैठने की बात स्वीकार कर ली ओर नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी गयी
- इससे प्रेरित होकर 9 जुलाई को राष्ट्रीय सभा ने स्वयं को देश की संविधान सभा घोषित कर दिया एव संविधान बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेली
- लुई 16 वा जनता को दबाने के लिए विदेशी राष्ट्रों से सहायता मांग रहा था कामिल देवूर नामक पत्रकार ने जनता को यह कहकर भड़का दिया था
E 14 जुलाई 1789

- इस दिन फ्रांस की जनता ने हथियारों की तलाश में पेरिस के नजदीक बास्तिल के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया यह् दुर्ग फ्रांस में निरकुंशता का प्रतीक माना जाता था
- केमिलो डिमेलो ने पेरिस की जनता को संबोधित किया और भीड़ ने बास्तिल के किले पर अधिकार कर लिया
- इनके द्वारा सिसपे नामक ध्वज फहराया गया
- लफायते को प्रधान सेनापति ओर बैली को पेरिस का मेयर बना दिया गया
- इस घटना पर अंग्रेज राजदूत डोरसेट ने लिखा कि – “इस समय से हम फ्रांस को एक स्वतंत्र देश एव राजा को सीमित शक्तियों वाला मान सकता है”
- गुडविल के अनुसार -”फ्रांस की क्रांति में इससे बड़ी कोई ओर घटना नही हुई यह घटना ना केवल फ़्रांस में बल्कि सम्पूर्ण संसार मे नवयुग के संचार का प्रतीक थी”
- 14 जुलाई की घटना के बाद फ्रांस में जगह जगह विद्रोह प्रारंभ हो गए एव कम्यून सरकारों या म्युनसिपल सरकारों का गठन होना प्रारंभ कर दिया
- पेरिस में भी म्युनसिपल सरकार का गठन हुआ एव बैली को पेरिस का मेयर बनाया गया एव लफायते को सुरक्षा गार्ड का प्रधान बनाया गया
F 4 अगस्त 1789
- इस दिन फ्रांस के कई बड़े लोगो ने देश की दुर्दशा को देखते हुए अपने अधिकारों का त्याग करने की घोषणा की गई थी
- जनता को डर था कि राजा इनके अधिकार त्यागने को स्वीकार नही करेगा
G 5 ऑक्टोम्बर 1789
- इस दिन फ्रांस की भूखी जनता ने पेरिस से वर्साय की तरफ मार्च किया इस मार्च को स्त्रियों का मार्च भी कहा जाता है
- 06 ऑक्टोम्बर को लुई 16 वे एव उसकी रानी को लेकर फ्रांस की जनता वर्साय से पेरिस की ओर आयी एव इन्हें तुइलरिज के महलो में रखा गया
- NOTE फ्रांस की क्रांति के बाद लुई 16 वे का नाम परिवर्तित कर ‘नागरिक कापे’ रखा गया
फ्रांस की क्रांति के चरण
A प्रथम चरण (1789 से सेप्टेंबर 1791)
संविधान सभा के कार्य
- संविधान सभा ने सर्वप्रथम मानव अधिकारों की घोषणा करी इस घोषणा का प्रारूप लफायते ने तैयार किया
लियो गोरशोय ने कहा था कि मानव अधिकारो की घोषणा फ्रांस में पुरातन व्यवस्था की मृत्यु का प्रमाणपत्र था इसने फ्रांस के लोगो के जीवन मे नवीन आशा का संचार किया
- संविधान सभा ने देश के लिए नया संविधान बनाया जिसके अनुसार 745 सदस्यों की विधानसभा का गठन 02 वर्ष के लिए किया जाएगा
- नवीन संविधान के अनुसार फ्रांस में सीमित राजतंत्र लागू किया गया
- नवीन संविधान द्वारा फ्रांस में सार्वभौमिक मताधिकार नही लागू किया गया बल्कि संपत्ति के आधार पर मतदान का अधिकार दिया गया
- संविधान सभा ने आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए चर्च की संपत्ति को जब्त करने के आदेश दिए
- असाइंडबॉन्ड – चर्च की संपत्ति को जब्त करके असाइंड बॉन्ड जारी किए जिन पर ब्याज भी दिया जाता था आगे चलकर इसे मुद्रा के रूप में भी प्रयोग में लिया जाने लगा
- संविधान सभा ने फ्रांस के पादरियों को सिविल कॉन्स्टीशन ऑफ द कलर्जी की शपथ लेने को मजबूर किया गया जिसमें कहा गया कि पादरी फ्रांस के प्रति निष्ठावान रहेंगे यह शपथ वाल्तेयर के सिद्धांतों के आधार पर तैयार की गई
इस शपथ के कारण पॉप पायस 6 फ्रांस से नाराज हो गया
- संविधान सभा ने अपने आप को 30 सेप्टेंबर 1791 को भंग घोषित कर दिया एव इसी संविधान के अनुसार बनी विधानसभा ने 1 ऑक्टोम्बर 1791 को अपना कार्य संभाल लिया
B द्वितीय चरण (1 ऑक्टोम्बर 1791 से 26 ऑक्टोम्बर 1795)
- विधानसभा के कार्य (1 ऑक्टोम्बर 1791 से 10 अगस्त 1792)
- राष्ट्रीय सम्मेलन (सेप्टेंबर 1792 – ऑक्टोम्बर 1795)
1. विधानसभा सभा के कार्य
(a) विधानसभा का गठन
◆ संविधानवादी (फाहिए)
- इनका नेता लफायते था
- ये लोग फ्रांस में सिमित राजतंत्र स्थापित करना चाहते थे
◆ राजतंत्रवादी
- यह वापस फ्रांस में पूरी तरह राजतंत्र स्थापित करना चाहते थे
◆ जेकोबीन दल
- पेरिस में स्थित जैकोब नामक चर्च में इस दल के लोग मिला करते थे इस कारण इसका नाम पड़ा
- इस दल के सदस्य सदन में बायीं ओर बैठते थे
- ये लोग उग्र उग्रवादी थे
- ये राजा के विरोधी थे एव क्रांति के समर्थक थे
- इस दल के प्रमुख सदस्य दांतो, मारा, रोबोस्पियर, कार्नो व सेंट जस्ट थे
- जेकोबीन दल के लोग रूसो को अपना गुरु मानते थे
- इस दल के सदस्य व्यवहारिक गणतंत्रवादी थे जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में फ्रेंच क्रान्ति की रक्षा करी
NOTE – जेकोबीन दल के सदस्य विधानसभा में ऊंचे आसन्नो पर बैठते थे इस कारण इन्हें गिरिशिखर या माउंटेन भी कहा जाता है
◆ जिरोंदिस्ट दल
- इस दल के सदस्य जिरोंद नामक प्रांत के थे
- इस दल के प्रमुख सदस्य ब्रिसेट के नाम पर ब्रिसोटीन्स भी कहा जाता था
- इस दल के सदस्य – वर्गनोट, केन्डोरसे, मादाम रोला, बुंजो व पेटीयन थे
- इस दल के सदस्य सैद्धान्तिक गणतंत्रवादी थे
- ये प्लूटार्क को अपना पथ प्रदर्शक मानते थे
- इस दल के सदस्य उदारवादी थे
- सदन में दाई ओर बेठेते थे
- ये राजा के समर्थक थे
- ओर क्रांति नही करना चाहते थे
◆ मैन ऑफ प्लेन
- इस दल के सदस्य सदन के बीच मे बैठा करते थे
विधानसभा के कार्य
- विधानसभा ने फ्रांस के भगोड़े राजकुमारों व पादरियों के विरुद्ध आदेश जारी किया कि यदि वह फ्रांस नही लौटे तो उनके अधिकार समाप्त कर दिए जायेंगे इससे फ्रांस के मामलों में विदेशी हस्तक्षेप प्रारंभ हो गया
फ्रांस की क्रांति के मामले में विदेशी राष्ट्रों का हस्तक्षेप –
(क) पांडुआ की घोषणा (जुलाई 1791)
- यह घोषणा ऑस्ट्रिया के शासक लियोपोल्ड ने करी
- इस घोषणा में यूरोपियन राष्ट्रों से लुई 16 वे की सहायता की प्रार्थना की गई
(ख) प्लिनीतज की घोषणा (अगस्त 1791)
- यह घोषणा ऑस्ट्रिया एव प्रशा के शासक फ्रेडरिक ने करी थी
- इस घोषणा में कहा गया कि यदि यूरोपीय राष्ट्र सहायता देते है तो ऑस्ट्रिया व प्रशा फ्रांस के मामले में सैनिक हस्तक्षेप करने को तैयार है
(ग) ब्रून्सविक की घोषणा (जुलाई 1792)
- ब्रून्सविक ऑस्ट्रिया व प्रशा की सयुंक्त सेना का सेनापति था
- इसने फ्रांस की जनता को चेतावनी दी कि लुई 16 वे एव उसकी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार किया गया तो इसका कठोर बदला फ्रांस की जनता से लिया जाएगा
- ब्रून्सविक घोषणा से फ्रांस की जनता उत्तेजित हो गयी
- 10 अगस्त 1792 को दांतों के नेतृत्व ने उग्र भीड़ ने तुइलरिज के महलो पर आक्रमण कर दिया एव राजा व रानी को टेम्पिल के दुर्ग में बन्दी बनाया गया
- 10 अगस्त के विद्रोह के बाद फ्रांस में पूरी तरह गणतंत्र की घोषणा कर दी गयी कई लोग गणतंत्र के विरोधी थे उन्हें जेलों में डाल दिया
- इस समय फ्रांस विदेशी राष्ट्रों के साथ युध्द भी लड़ रहा था
सितम्बर हत्याकांड – 10 सेप्टेंबर 1792
- इस हत्याकाण्ड के द्वारा फ्रांस की जेलों में बंद गणतंत्र विरोधी लोगो को मौत के घाट उतार दिया
- हेजन ने इस हत्याकांड का दोषी मारा को बताया है उसे कुत्सित व रक्त का पिपासु कहा
- जेल में बन्दी लोगो की सुरक्षा की जिम्मेदारी दांतो पर थी इस कारण उसे भी इस हत्याकांड का दोषी माना जाता है
- फ्रांस में गणतंत्र की घोषणा कर दी गयी तो इसके लिए नवीन संविधान बनाना होगा क्योंकि पुराने संविधान में सीमित राजतंत्र की बात कही गयी
- नवीन संविधान बनाने के लिए फ्रांस में राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया
राजा के विरुद्ध मुकदमा ओर मृत्युदंड
- दिसम्बर 1792 में लुई 16 पर मुकदमा चलाया गया
- ओर राजा पर निम्न आरोप लगाए गए
- राजा विदेशी शक्तियों के साथ मिला हुआ
- राजा ने गुप्त सैनिक दस्तावेज दुश्मन तक पहुंचा दिए
- देश से बाहर गए सामन्तो के साथ राजा की सहानुभूति है
- राजा पर सभी आरोप सही सिद्ध हुए
- जनवरी 1793 में राजा को मृत्युदंड दे दिया गया
- रोबोस्पियर ने कहा था – “यदि राज्य को जिवित रखना है तो राजा को मरना पड़ेगा”
2 राष्ट्रीय सम्मेलन (सितंबर 1792 – ऑक्टोम्बर 1795)
- राष्ट्रीय सम्मेलन ने 1793 में फ्रांस के लिए संविधान बना लिया किंतु यह संविधान कभी लागू ही नही हुआ ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा क्योंकि फ्रांस में गृहयुद्ध चालू हो गए एव फ्रांस विदेशी राष्ट्रों से भी युद्ध लड़ रहा था
- 1793 के संविधान के द्वारा फ्रांस में पूरी तरह गणतंत्र लागू करने की बात कही गयी एव सार्वभौमिक मताधिकार की भी बात कही गयी
- राष्ट्रीय सम्मेलन के कार्यकाल में जेकोबीन व जिरोंदिस्तो के मध्य संघर्ष चलता रहा
◆ कुदेता (2 जून 1793 का अवैध निर्णय)
- इस दिन मारा ने राष्ट्रीय सम्मेलन को बन्दी बना लिया इसके बाद जेकोबीनो ने जिरोंदिस्तो को मारना प्रारंभ किया
आंतक का युग (1793-1794)
- फ्रांस में 1793 से 1795 के मध्य आंतक का राज्य स्थापित हुआ (जून 1793 से जुलाई 1794)
- औपचारिक रूप से क्रांतिकारी न्यायालय की स्थापना मार्च 1793 से हुई
- रोबोस्पियर के द्वारा इस समय 02 महत्वपूर्ण कदम उठाए गए
- जन सुरक्षा समिति
- यह समिति रोबोस्पियर के नेतृत्व में बनी
- इस समिती के माध्यम से रोबोस्पियर ने आंतरिक व विदेशी मामलो पर नियंत्रण स्थापित कर लिया
- सन्देह का कानून
- इस कानून के माध्यम से सन्देह के आधार पर किसी भी व्यक्ति पर क्रांतिकारी न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता था और उसे मृत्युदंड की सजा दी जा सकती थी
- आंतक के युग मे लगभग 15 हजार लोगों को गिलोटिन पर चढ़ाया गया जिसमें पेरिस में 5 हजार लोगों को मृत्युदंड की सजा दी गयी
- जब जैकोबिनो ने जिरोंदिस्तो को समाप्त कर दिया तो उसके बाद जैकोबिनो के मध्य भी सत्ता के लिए संघर्ष हुआ
- जैकोबिनो में दांतो को रोबोस्पियर ने मरवा दिया
- रोबोस्पियर ने अप्रैल से जुलाई 1794 में फ्रांस में तानाशाही राज्य स्थापित किया
- रोबोस्पियर ने फ्रांस में उच्चतम सत्ता के अस्तित्व का सिद्धांत दिया इसने न्यायाधीशो को कहा कि वे अपने अंत: आत्मा की आवाज पर निर्णय दे
थर्मिडोरियन प्रतिक्रिया
- जुलाई 1794 में रोबोस्पियर व उसके सहयोगियों को मृत्युदंड की सजा दी गयी
- इस घटना को थर्मिडोरियन प्रतिक्रिया के नाम से जाना जाता है
राष्ट्रीय सेना का गठन
- राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्रीय सेना का गठन करने का निर्णय लिया गया जिसमें कार्नेट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- कार्नेट ने लगभग 7 लाख 70 हजार सेनिको का संगठन तैयार किया
- इस समय फ्रांस में 18 से 25 वर्ष की आयु के युवाओं के लिए अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण लागू कर दिया गया
रुगोडी एल आइल / Rouget-de-L-isle –
- इनके द्वारा मार्सलेस नामक गीत लिखा गया जो कि फ्रांस का राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया
- यह गीत फ्रांस की राष्ट्रीय सेना के सैनिकों के द्वारा गाया जाता था
अन्य सुधार
- क्रांतिकारी कलेण्डर
- इस कलेण्डर में 12 महीनों होते थे प्रत्येक महीने में 30 दिन होते तथा 10 दिन के 03 सप्ताह निर्धारित किये गए
- राष्ट्रीय सम्मेलन के कार्यकाल में फ्रांस में महीनों के नाम ऋतुओ के नाम पर रखे गए जैसे जुलाई को थर्मिडोर
- शिक्षा के क्षेत्र में सुधार
- कानूनों को संहिताबद्ध करने का कार्य शुरू किया
- Negro slavery – ज्येष्ठता के सिद्धांत को समाप्त किया गया
- राष्ट्रीय सम्मेलन के समय धर्म को अपमानित किया गया चर्च को गिराकर उन्हें बुद्धि के उपासना स्थलों में परिवर्तित किया गया
- 1795 में राष्ट्रीय सम्मेलन ने फ्रांस के लिए नया संविधान बनाया जिसके अनुसार 500 सदस्यों की विधानसभा एव 250 सदस्यों की विधानपरिषद का गठन किया गया यह दोनों सदन भंग नही होने वाले सदन थे
- 1795 के संविधान द्वारा कार्यकारी शक्ति 5 संचालको को सौंपी गई
C तृतीय चरण [ऑक्टोम्बर 1795 – 10 नवम्बर 1999]
◆ संचालक मंडल का शासन काल / डायरेक्टरी का काल –
- डायरेक्ट्री के शासन में फ्रांस में अराजकता में और वृद्धि हुई इस काल की सबसे बड़ी उपलब्धता यह थी कि इस काल मे नेपोलियन का उदय हुआ
- डायरेक्ट्री में 5 संचालक थे इन्ही संचालकों के द्वारा नेपोलियन को ऑस्ट्रिया व इंग्लैंड को पराजित करने का कार्य सौंपा गया
- 5 संचालको के नाम
- ला रवालीयर लेपो
- रयुबाल
- सियेज
- ल तुर्नयर
- बरार्स
NOTE – 1791 के संविधान के निर्माण में मिराबो व सियेज का योगदान था
- संचालक् मण्डल का शासनकाल फ्रांस में अराजकता एव भ्रष्टता का काल था
- नेपोलियन के द्वारा संचालक मंडल के स्थान पर काउंसिल व्यवस्था लागू की गई थी
- नेपोलियन ने कहा था कि – “में क्रांति का पुत्र हु”
- फ्रांस में आर्थिक संकट के दौरान assigaints नामक कागज की मुद्रा का प्रचलन किया गया
नेपोलियन का इटली अभियान (अप्रैल 1796 – अप्रैल 1797)
- नेपोलियन का यह अभियान वास्तव में ऑस्ट्रिया के विरुद्ध था
- ऑस्ट्रिया ने इटली के अधिकांश क्षेत्रों पर नियंत्रण कर रखा था
- नेपोलियन के इटली अभियान के बारे में कहा जाता है कि “वह आया, उसने देखा एव जीत लिया / HE CAME, HE SAW, HE CONQUERED”
- नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ यह अभियान किया इस अभियान में नेपोलियन को सफलता मिली
- ऑस्ट्रिया से नेपोलियन ने लोम्बारडी का क्षेत्र तथा इटली से पिडमण्ड व सेवाय का क्षेत्र प्राप्त किया
- इस अभियान के बाद नेपोलियन ने दो गणराज्यों की स्थापना की
A ट्रांसपेडेन – नेपोलियन के द्वारा इटली के उत्तरी भाग में इस गणराज्य की स्थापना की थी
ट्रान्सपेडेन गणराज्य के माध्यम से ही इटली का एकीकरण सम्पन्न हुआ था
B सिसलेपाइन गणराज्य – यह क्षेत्र पश्चिम जर्मन व राइन नदी के बायीं ओर का भाग था
ओर इसी गणराज्य के द्वारा जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी
- इस अभियान के दौरान मई 1796 में लोदी के पुल की लड़ाई में नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया की सेनाओं को पराजित किया
- केस्टिगलियोन, बेसोना, अकोला व रिवोली की लड़ाई में भी नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया की सेना को पराजित किया
- अप्रैल 1797 में ऑस्ट्रिया ने नेपोलियन के साथ लियोबेन नामक स्थान पर विराम संधि कर ली
- 17 ऑक्टोम्बर 1797 कम्पोफॉर्मियो की संधि
- नेपोलियन के द्वारा ऑस्ट्रिया के साथ यह संधि सम्पन्न की गई थी जिसके तहत ऑस्ट्रिया ने सिसलेपाइन गणराज्य को मान्यता दे दी गई
- नेपोलियन बोनापार्ट ने जर्मनी व इटली के एकीकरण में अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई
नेपोलियन का मिस्र अभियान (1798-1799)
- नेपोलियन का यह अभियान वास्तव में इंग्लैंड के विरुद्ध था क्योंकि मिश्र इंग्लैंड का उपनिवेश था
- यह अभियान केवल एक विजय अभियान नही था बल्कि एक अज्ञात सभ्यता की खोज का भी अभियान था (रोसेटा – नेपोलियन को पत्थर मिला यहाँ से)
- जुलाई 1798 ने नेपोलियन ने पिरामिडों के युद्ध मे मिस्र की सेना को पराजित किया
- अगस्त 1798 में अंग्रेज नौसेना नायक नेल्सन ने नील नदी के युद्ध मे नेपोलियन को पराजित किया नेपोलियन अज्ञात रेगिस्तान में फंस गया था (काहिरा रेगिस्तान)
- नेपोलियन मिस्र अभियान को अधूरा ही छोड़कर फ्रांस पहुंच गया
- फ्रांस पहुंचने के बारे में नेपोलियन कहता – “में बिल्कुल सही समय पर आया हु ओर नाशपती अब पक चुकी है “
- एक षडयंत्र के द्वारा फ्रांस की सत्ता पर अधिकार कर लिया
◆ कूप द एतांड (राज्य विप्लव या ब्रुमेयर का विद्रोह) 10 नवम्बर 1799 –
- इस दिन पेरिस के नजदीक सेंट क्लोद नामक स्थान पर दोनों सदनों की बैठक चल रही थी
- नेपोलियन ने षडयंत्र के द्वारा दोनो सदनों को भंग घोषित करवा दिया एव सत्ता नियंत्रण में ले ली
कौंसिल व्यवस्था – 1799
- इस व्यवस्था के तहत नेपोलियन का उद्देश्य फ्रांस में शांति बनाना, फ्रांस के लिए नया संविधान बनाना और यूरोप के देशों में फ्रांस को उचित स्थान दिलाना था
- हालांकि फ्रांस में शासन चलाने के लिए परिषद, ट्रिब्यूनेट एव सीनेट जैसी गणतन्त्रात्मक संस्थाएं मौजूद थी
- परन्तु नेपोलियन ने अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता प्राप्त करने के लिए कौंसिल व्यवस्था को लागू किया
- जिसका कार्यकाल 10 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया
- इसमे प्रथम कौंसल – नेपोलियन
द्वितीय – केम्बेसरी
तृतीय – लेब्रून
फ्रांस की क्रांति के परिणाम
- पुरातन व्यवस्था का अंत
- कृषकों की दशा में सुधार
- राष्ट्रीयता का प्रसार –
- फ्रेंच क्रांति ने राष्ट्रीयता की भावना को विकसित किया
- इस भावना को यूरोप में नेपोलियन ने फैलाया
- लोकतंत्र का प्रसार
- समाजवाद का प्रसार
- फ्रांस में बेब्युफ व दार्ते ने समाजवाद का प्रसार किया
- नेपोलियन ने 1797 में इन्हें मरवा दिया
- प्रतिक्रियावाद के युग का उदय
- इस क्रांति के बाद यूरोप के अन्य देशों ने अपने साथ यहाँ कठोर शासन व्यवस्था लागू की एव जनता की स्वतंत्रता को कम कर दिया
- कांट, हीगल, वर्डवर्थ ने फ्रेंच क्रांति पर खुशी प्रकट की किंतु एडमंड बर्क ने इस क्रांति पर अफसोस प्रकट किया
दोस्तो फ्रांस की क्रांति विश्व इतिहास का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है