दोस्तो हम दिल्ली सल्तनत को बड़े विस्तार से अध्ययन करेंगे
जैसे दिल्ली सल्तनत की राजनीतिक शक्ति
दिल्ली सल्तनत का साहित्य
दिल्ली सल्तनत का प्रशासन
दिल्ली सल्तनत का स्थापत्य कला प्रत्येक के लिए हमारी अलग अलग पोस्ट होगी
दिल्ली सल्तनत -गजनी वंश
- यामिनी वंश जिसे गजनी वंश के नाम से भी जाना जाता है
- गजनी राजवंश का संस्थापक – अलप्तगीन था
- इसने 963 में अमीर अबु बक्र लाविक से जबुलीस्थान तथा उसकी राजधानी गजनी को छीन लिया
- उसी समय गजनी इस वंश की राजधानी बन गयी
- अलप्तगीन के बाद इसका दामाद इसका उत्तराधिकारी सुबुक्तगीन शासक बना
- 998 में सुबुक्तगीन का पुत्र महमुद गजनवी, गजनी का शासक बना
- NOTE – सुबुक्तगीन प्रथम तुर्की था जिसने भारत पर आक्रमण किया एवं हिंदुशाही शासक जयपाल को पराजित किया
- NOTE- सुबुक्तगीन के दरबारी कवि बैहाकि ने तारीख ए सुबुक्तगीन की रचना की थी
- बेहाकि को लेनपुल ने पूर्व का पेप्स की उपाधि दी थी
- बेहाकि गजनवी के दरबार मे भी था
महमुद गजनवी
- गजनवी के दरबारी विद्वान – उत्बी, अलबरूनी, फिरदौसी, बेहाकि एवं अंसारी जैसे कवि व विद्वान थे
- गजनवी का दरबारी कवि फारुखी ने उसके द्वारा लाहौर में बनाये गये निगार खाना का उल्लेख किया जिसमें महमुद गजनवी का रूपचित्र / व्यक्ति चित्र है
- गजनवी ने 1000 से लेकर 1027 के मध्य भारत पर 17 बार आक्रमण (सर हेनरी इलियट ने बताया कि गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए थे ) किया था
- गजनवी के आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य – संपत्ति लूटना था न कि भारत मे स्थायी मुस्लिम शासन की स्थापना करना
- गजनवी का जन्म – 1 dec 971 को हुआ था
- 998 में 27 वर्ष की आयु में वह अपने पिता के राज्य गजनी का मालिक बना
- गजनवी के भारत पर आक्रमण 1000 में आरंभ हुए और उसने पहले कुछ सीमा के किलो को जीता
- महमुद का दूसरा आक्रमण 1001 में हिंदुशाही पंजाब के राजा जयपाल के विरुद्ध हुआ था
पेशावर के पास इस युद्ध मे गजनवी ने जयपाल को बुरी तरह परास्त किया इस अपमानजनक पराजय के पश्चात जयपाल ने जलती चिता में कूदकर आत्महत्या कर ली
हिंदुशाही वंश की राजधानी – उद्भांडपुर थी
- 1004 में महमुद ने मुल्तान पर आक्रमण किया
- 1006 में मुल्तान को जीत लिया
- गजनवी ने हिंदुशाही राज्य के राजा आनंदपाल (जयपाल का पुत्र ) को वेहन्द के निकट 1009 में पराजित किया
आनदनपाल ने गजनवी के विरुद्ध हिन्दू राजाओ का एक संघ बनाया था
इस संघ में फरिश्ते के अनुसार अजमेर, दिल्ली, उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, कालिंजर के राजा शामिल थे
- 1014 में गजनवी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया जहाँ उसने चक्र स्वामी की मूर्ति को तोड़ा
- 1015 से 1021 के मध्य गजनवी ने 2 बार कश्मीर जितने का प्रयत्न किया परंतु असफल रहा
- 1018 में उसने गंगा की घाटी में प्रवेश किया और मथुरा (कृष्ण जन्म स्थली ) को जी भर के लुटा एव मंदिरों को तोड़ा
- मथुरा के पश्चात गजनवी ने कन्नौज पर 1018 में आक्रमण किया जहां से उसे अतुल्य सम्पति प्राप्त हुई कन्नौज में उस समय गुर्जर- प्रतिहार वंश का शासक राज्यपाल था जो आक्रमण के भय से कन्नौज छोड़कर बाड़ी(बारी) दुर्ग में जाकर छिप गया उसकी इसी कायरता के कारण बुंदेलखंड के चंदेल शासक विद्याधर ने राज्यपाल को पराजित कर तथा उसकी हत्या कर दिया
गजनवी ने विद्याधर को दंड देने का फैसला किया ओर 1019 में पुनः भारत आया
गजनवी ने हिंदुशाही राजा त्रिलोचनपाल को पराजित करते हुए मुख्य शत्रु विद्याधर को परास्त करने के लिए बुंदेलखंड की सीमा पर पहुंच गया (1020-1021)
विद्याधर ने गजनवी की सेना को देखकर भाग निकला तथा उसने संधि कर ली
- 1025 में गजनवी का प्रसिद्ध आक्रमण – सोमनाथ के मंदिर पर हुआ था आक्रमण के समय गुजरात के चालुक्य वंश का राजा भीमदेव प्रथम था भीमदेव बिना युद्ध किए ही युद्ध भूमि से भाग निकला
गजनवी ने अकूत सम्पति को लूटा तथा अतुल्य सम्पति लेकर सिंध के रास्ते से वापस जाने लगा तो सिंध के जाटों ने उसे परेशान किया था
- गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण 1027 में जाटों के विरुद्ध था
NOTE- गजनवी मुस्लिम इतिहास में सुल्तान कहलाने वाला योग्य प्रथम शासक था
NOTE – पंजाब के हिंदुशाही शासक जयपाल ने सुबुक्तगीन के विरुद्ध अनेक हिन्दू भारतीय राजाओ का एक संघ बनाया
- तोमर राजपूतो ने दिल्ली से हरियाणा पर उस समय शासन किया जब गजनवी ने उत्तर-पश्चिम से भारत पर आक्रमण किया
- गजनवी की बहुजातीय सेना में हिन्दुओ को नियुक्त किया था
- गजनवी, शासको के सैन्य संगठनों में अरब, भारतीय ओर ताजिक जातियों के लोग सम्मिलित थे
- गजनवी ने चांदी के सिक्कों पर एक ओर कलमा का संस्कृत अनुवाद – ‘अव्यक्तमक मुहम्मद अवतार’ अंकित करवाया
- लाहौर में गजनी वंश का अंतिम शासक खुसरो मलिक (खुसरो शाह) था
- जम्मू के शासक चक्रदेव ने खुसरो शाह के विरुद्ध लाहौर पर आक्रमण करने के लिए गौरी को प्रोत्साहित किया
- गौरी ने 1186 ने लाहौर पर आक्रमण किया तथा सम्पूर्ण पंजाब पर अधिकार कर लिया एवं खुसरो शाह को बंदी बना लिया तथा बाद में उसका कत्ल कर दिया
मोहम्मद गौरी
- गौर प्रदेश अफगानिस्तान का मध्य भाग है
- यहां 1175 में मुइनुद्दीन मोहम्मद साम शासक बना और भारत पर साम्राज्य विस्तार की योजना बनाई
- मोइनुद्दीन मोहम्मद साम शंसबनी वंश का था
- ओर इसे इतिहास में मोहम्मद गौरी के नाम से जाना गया था
- शंसबनी वंश का शासक शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी को भारत मे मुस्लिम साम्रज्य का संस्थापक माना जाता है
- गौरी ने गजनवी के समान भारत पर आक्रमण किये किंतु गजनवी के विपरीत गौरी का उद्देश्य भारत मे स्थायी साम्रज्य स्थापित करना था
- इस समय भारत मे मुख्य 06 राज्य थे
- इन 06 राज्यो में सबसे शक्तिशाली राज्य अजमेर था
- गौरी ने भारत पर अपना पहला आक्रमण 1175 में गजनी से चलकर गोमल दर्रे से होते हुए मुल्तान पर किया था
यहां करमाकी शिया मुसलमान को हराकर मुल्तान पर अधिकार किया
- मोहम्मद गौरी ने दूसरा आक्रमण 1178 में गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया परन्तु अहिंलवाड़ के राजा भीम द्वितीय (मूलराज द्वितीय) ने अपनी योग्य ओर साहसी विधवा मा नायिका देवी के नेतृत्व में आबू पहाड़ के युद्ध (कसरहदा के युद्ध) निकट गौरी का मुकाबला किया और उसे परास्त कर दिया
यह भारत मे गौरी की प्रथम हार थी
- गौरी का अगला आक्रमण 1186 में पंजाब पर किया एवं खुशरो शाह को पराजित किया
तराइन का प्रथम युद्ध – 1191
- तराइन वर्तमान में हरियाणा के करनाल नामक स्थान पर है
- तराइन को तरावड़ी का मैदान भी कहते है
- कारण- गौरी द्वारा 1189 में ताबरहिन्द (भटिंडा) पर अधिकार कर लिया था
- अजमेर के शासक पृथ्वीराज-3 ने गौरी को हराया था
- पृथ्वीराज की अधीनता स्वीकार करते हुए गौरी ने अपना दूत क्वीन-उल-मुल्क को भेजा था
- कन्नौज के राजा जयचन्द इस युद्ध मे शामिल नही थे
- पृथ्वीराज चौहान को राय पिथोरा एवं दलपुंगव के नाम से भी जाना जाता है
- भारत मे गौरी की यह दूसरी हार गंभीर हार थी
तराइन का द्वितीय युद्ध – 1192
- तराइन में द्वितीय युद्ध 1192 मे गौरी तथा पृथ्वीराज चौहान तृतीय के बीच हुआ
- पृथ्वीराज चौहान के सेनापति – खांडेराव, गोविन्दराय थे
- गौरी के 04 प्रमुख सेनापति थे
- खारबक
- ख़रमेल
- इलाह
- मुकलबा
- जिसमे गौरी ने चौहान को पराजित कर दिया ओर उत्तर भारत को जीत लिया तथा पृथ्वी राज को बंदी बना लिया तथा कुछ समय बाद पृथ्वीराज की हत्या कर दी गयी
ईस युद्ध से भारतीय इतिहास में एक युगांतरकारी परिवर्तन हुआ क्योंकि इसके बाद ही भारत मे तुर्की शक्ति या मुस्लिम शक्ति की स्थापना हुई
- मिनहास उस सिराज ने अपनी पुस्तक तबकात-ए-नासिरी में लिखा कि पृथ्वीराज की मृत्यू सिरसा में हुई थी
- जबकि हसन निजामी ने अपनी पुस्तक ताज-उस-नासिर में लिखा कि पृथ्वीराज की मृत्यु अजमेर में हुई थी
- गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत ने अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था
- ऐबक ने उत्तर-पश्चिम सीमा स्थित कोहराम नामक स्थान को मुख्यालय बनाया और यही से गौरी के जीते हुए क्षेत्रो की देखभाल करने लगा
पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध गौरी के आक्रमण के समय कन्नौज पर गहड़वाल वंश का शासन था
जयचंद गहड़वाल वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था
भारतीय लोक साहित्य तथा कथाओं में वह ‘राजा जयचन्द’ के नाम से विख्यात था
आख्यानों के अनुसार जयचन्द की पुत्री संयोगिता का अपहरण उसका समकालीन दिल्ली तथा अजमेर का शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने किया था
कन्नौज या चंदावर का युद्ध -1994
- मोहम्मद गौरी ने चन्दावर को 1993 में घेर लिया था
ईसी वर्ष सरसुती या सिरसा पर अधिकार किया गया
- चंदवार का युद्ध गौरी ओर जयचन्द के बीच 1194 मे हुआ था
कन्नौज ओर इटावा के बीच चंदावर नामक स्थान पर गौरी ने जयचन्द को पराजित किया
जयचन्द युद्ध मे मारा गया और राजपूतों की पराजय हुई
- चन्दावर युद्ध के बाद भारत में तुर्की शासन की नींव रख दी गयी
- मोहम्मद गौरी ने गहड़वाल सिक्को को पुनमुद्रित करवाया था
इन सिक्कों के एक तरफ कलमा खुदा है
दूसरी तरफ लक्ष्मी जी आकृति तथा मोहम्मद बिन साम लिखा हुआ है
इन सिक्कों को देहलीवाल सिक्के भी कहते है
बुंदेलखंड अभियान – 1202
- गौरी ने ऐबक को कालिंजर आक्रमण हेतु भेजा
- इस समय यहाँ परमार्दिदेव नामक व्यक्ति का शासन था
- इस युद्ध मे ऐबक को सफलता मिली थी
बिहार विजय- 1203
- 1203 में मोहम्मद गौरी के आदेश पर बख्तियार ख़िलजी ने बिहार पर अधिकार कर लिया
- इस समय बिहार का शासक इंदुमन था
बंगाल विजय -1205
- 1205 में बख्तियार ख़िलजी ने बंगाल पर आक्रमण कर लिया
- इस समय बंगाल का शासक लक्ष्मण सेन था
- लक्ष्मण सेन की राजधानी नदिया थी
- नदिया को तुर्को ने लूटा था
- हसन निजामी की पुस्तक ‘ताज-उल-मासिर’ के अनुसार बख्तियार ख़िलजी ने नालन्दा एव विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था
- NOTE- 15वी शताब्दी के तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार “बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला एवं नालन्दा पर अधिकार कर उछन्दपुर में दुर्ग बनवाया था “
- बख्तियार खिलजी ने 1205 में तिब्बत को जीतने की योजना बनाई जो कि सफल नही हो सकी थी
- मध्य एशिया में गौरी का शत्रु ख़्वारिज्म शाह था
जिसने गौरी को पराजित किया था
ख़्वारिज्म शाह के द्वारा सिकन्दर द्वितीय की उपाधि ली गयी थी
- गौरी ने 1205 में झेलम एव चिनाव नदी के बीच के क्षेत्र में खोखर जाती को पराजित किया था
- गौरी ने सिंधु नदी के किनारे दमयक नामक स्थान पर अपना शिविर लगाया था
यही पर गौरी की हत्या की गई
ओर गौरी को गजनी में दफनाया गया
- गौरी ने फखरुद्दीन राजी एवं नजामी उरुजी को अपने दरबार मे सरंक्षण प्रदान किया था
- गौरी का वास्तविक नाम – शिहाबुद्दीन गौरी था
- 1193 में गौरी द्वारा भारतीय प्रदेशों का मुख्यालय दिल्ली को बनाया गया
- दिल्ली का संस्थापक अनंगपाल तोमर था
- गौरी ने ढिल्लिका की स्थापना की थी
- 1197-1198 में गौरी के दास कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी स्वामिभक्ति सिद्ध करने के लिए गुजरात के चालुक्य राजपूतो की राजधानी अहिंलवाड पर आक्रमण करके इसकी राजधानी को लूटा
इस युद्ध में गौरी ने भाग नही लिया था
गौरी ने भारत मे प्रथम इक्ता कुतुबुद्दीन ऐबक को प्रदान किया था
गौरी की हत्या के बाद ऐबक लाहौर पहुंच कर 1206 में अपना राज्याभिषेक करवाया तथा लाहौर को अपनी राजधानी बनाया
- गौरी के दास बख्तियार खिलजी ने बिहार (1202-03 ) एवं बंगाल (1204-05) पर विजय प्राप्त की थी
- बख्तियार खिलजी ने 1202 में बिहार के नालन्दा विश्विद्यालय (संस्थापक गुप्त शासक कुमारगुप्त) को नष्ट कर दिया तथा यहाँ के भिक्षुओं की हत्या कर दी गयी एवं बहुमूल्य पुस्तकालय (धर्मग्रंथ) को जलाकर नष्ठ कर दिया
उसने बंगाल के शासक लक्ष्मण सेन को पराजित किया था
दिल्ली सल्तनत (1206-1526)
- गुलाम वंश (1206-1290)
- खिलजी वन्श (1290-1320)
- तुगलक वंश (1320-1414)
- सैय्यद वंश (1414-1451)
- लोदी वंश (1451-1526)
- तुगलक वंश का शासन काल सबसे ज्यादा समय तथा ख़िलजी वंश का शासन सबसे कम समय तक रहा था
दिल्ली सल्तनत -मामलुक या गुलाम वंश
- ऐबक – कुतबी वंश
- इल्तुतमिश – शम्सी वंश
- बलबन – बलबनी वंश
- गुलाम वंश एक वंश के नही थे
- ये सभी तुर्क थे तथा इनके वंशज भी पृथक पृथक थे
- साथ ही वे स्वतंत्र माता-पिता की संतान थे
- अतः इन सुल्तानों को गुलाम वंश के सुल्तान कहने के स्थान पर प्रारंभिक तुर्क सुल्तान या दिल्ली के मामलुक सुल्तान कहना अधिक उपयुक्त है
- दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों के लिए तीन अलग अलग वंश बताए गए
- अजीज अहमद ने मामलुक शासको के लिए दिल्ली के आरंभिक तुर्क सुल्तान शब्द का प्रयोग किया है
- हबीबुल्लाह ने इन शासको के लिए मामलुक शब्द का प्रयोग किया गया
- K A निजामी ने ऐबक को दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा बनाने वाला कहा
- डॉ RP त्रिपाठी ने इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा था
- गौरी की मृत्यु के बाद उसके साम्रज्य का विभाजन 03 सेनानायकों में किया गया
कुतुबुद्दीन ऐबक – (1206-1210)
- ऐबक तुर्क जनजाति से था
- बचपन मे उसे निशापुर के काजी फकरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफ़ी ने एक दास के रूप में खरीदा था
- ऐबक बचपन से ही अति सुरीले स्वर में कुरान पढ़ता था जिस कारण वह कुरान खां (कुरान का पाढ़ करने वाला) के नाम से प्रसिद्ध हो गया
- बाद में वह निशपुर से गजनी लाया गया
- जहाँ उसे गौरी ने खरीद लिया
- अपनी प्रतिभा, लगन एवं ईमानदारी के बल पर शीघ्र ही ऐबक ने गौरी का विश्वास प्राप्त कर लिया
- गौरी ने ऐबक को अमीर-ए-आखुर के पद पर प्रोन्नत कर दिया
- इसने अपना राज्याभिषेक गौरी की मृत्यू के तीन माह पश्चात जून 1206 में कराया था
- मामलुक वंश का संस्थापक – कुतुबुद्दीन ऐबक को माना जाता है
- ऐबक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था
- गौरी की मृत्यु के बाद 1206 में गौरी ने उत्तराधिकारी के रूप में उतर भारत के प्रदेश पर ऐबक को नियुक्त किया
- ऐबक ने अपनी राजधानी- लाहौर को बनाई
- ऐबक गौरी का गुलाम था जिसके कारण ऐबक ने
- सुल्तान की उपाधि धारण नही की थी
बल्कि ऐबक ने गौरी का
- सिपहसालार एव
- मलिक की उपाधि धारण की
- ऐबक ने न तो खुतबा पढ़वाया
- न तो कलमा पढ़वाया
- न अपने नाम की सिक्के चलाये
- लाखो का दान देने के कारण ऐबक को लखबक्स कहा जाता था
- हसन निजामी एवं फ़र्खे मुद्देनियर लेखकों को सरंक्षण दिया था
- 1208 में गौरी के वैद्य उत्तराधिकारी तथा गजनी का शासक गयासुद्दीन महमुद ने उसे दासता से मुक्त कर सुल्तान की पदवी से विभूषित किया
- ऐबक एक उदार शासक था
- इसकी उदारता के कारण समकालीन शासको ने उसे लाखबक्श तथा पील बक्श की उपाधि से विभूषित किया गया
- गौरी के तीन विशवास पात्र ताजुद्दीन यालदौज, नासिरुद्दीन कुबाचा तथा कुतुबुद्दीन ऐबक थे
- गौरी की मृत्यु के बाद-
यालदौज को गजनी का
कुबाचा की सिंध एवं मुल्तान का
ऐबक को उतर भारत के प्रांत प्राप्त हुए
- ऐबक के समय यालदौज अपने आप को गौरी का वास्तविक उत्तराधिकारी मानने लगा और पंजाब पर आक्रमण कर दिया लेकिन ऐबक ने उसे परास्त कर दिया और 1208 में कुछ समय के लिये गजनी पर भी अधिकार कर लिया लेकिन परिस्थितिया विपरीत होने के कारण वापस लाहौर आ गया था
- ऐबक एक तुर्क शासक था जिसने भारत मे पोलो (चौगान) खेल का प्रचलन करवाया
- ऐबक की मृत्य 1210 में लाहौर में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर हो गयी थी
- ऐबक को लाहौर में दफनाया गया था
- ऐबक ने दिल्ली में
- कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनवाई
कुव्वत उल मस्जिद का निर्माण 1195- 99 करवाया गया
यह मस्जिद इस्लामी पद्धति पर निर्मित पहली मस्जिद मानी जाती है
यह मस्जिद पृथ्वीराज चौहान 3 के किले राय पिथौरागढ़ के स्थान पर निर्मित की गयी थी
ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 जैन मंदिरों को ध्वस्त करके किया गया
- और अजमेर में ढाई दिन का झोपडा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया
- दिल्ली में सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा किया
फ़िरोज तुगलक के काल मे इसकी चौथी मंजिल को काफी हानि पहुंची थी जिस पर फ़िरोज ने चौथी मंजिल के स्थान पर दो और मन्ज़िले का निर्माण करवाया था
- ऐबक को साहित्य में अनुराग था और स्थापत्य कला में रुचि दी
- तत्कालीन विद्वान हसन निजामी ओर फक्र-ए-मुदब्बिर को उसका संरक्षण प्राप्त था इन्होंने ऐबक को अपने ग्रन्थ समर्पित किए थे
- ऐबक के गद्दी पर बैठने के बाद ऐबक के सामने सबसे बड़ी कठिनाई गौरी के दास ओर उसके राज्य के उत्तराधिकारी ताजुद्दीन यलदोज ओर नासिरुद्दीन कुबाचा था
- ऐबक ने अपनी बहन की शादी कुबाचा से कर उसे अपने पक्ष में कर लिया किंतु यलदोज की तरफ से खतरा बना रहा यही कारण है कि ऐबक सदा लाहौर मे रहा था इसे दिल्ली जाने का कभी अवसर प्राप्त नही मिला
- ऐबक ने यलदोज की पुत्री से विवाह किया
ऐबक ने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश से किया था
- ऐबक ने दिल्ली में इंद्रप्रस्थ (रायपिथौरा) के पास एक नगर बसाया था
यह मध्यकालीन दिल्ली का प्रथम नगर था
- ऐबक ने अजमेर में विग्रहराज 4 के संस्कृत महाविद्यालय को तुड़वाकर अढ़ाई दिन का झोपड़ा बनवाया
इसमे आज भी हरिकेलि नाटक के अंश विद्यमान है
- ऐबक ने वजीर पद की स्थापना की थी
- ऐबक के अन्य नाम – लखबक्स
- पील बक्श
- कुरान खां
- ऐबक एक तुर्की शब्द है जिसका अर्थ – चन्द्रमा का देवता / स्वामी होता है
- ऐबक हातिम 2 के नाम से भी प्रसिद्ध था
- गौरी ने ऐबक को अमीर-ए-आखुर का पद दिया गया था
- ऐबक के बाद उसका पुत्र आरामशाह गद्दी पर बैठा था
अबुल फजल के अनुसार आरामशाह ऐबक का भाई था
इल्तुतमिश आरामशाह के काल मे बदायू का गवर्नर था
अमीर अली इस्माइल ने इल्तुतमिश को सुल्तान का पद स्वीकार करने के लिए कहा था
दिल्ली के निकट जुन्द / जड़ नामक स्थान पर आरामशाह ओर इल्तुतमिश के मध्य युद्ध हुआ
जिसमे इल्तुतमिश को सफलता मिली थी
इल्तुतमिश (1211-1236)
- ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर में आरामशाह शासक बना था
दिल्ली के सभी अधिकारियों एवं सेनिको ने इल्तुतमिश को शासक बनाया
- इल्तुतमिश प्रथम इल्बरी तुर्क था
- Rp त्रिपाठी ने इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना है
- इल्तुतमिश ने दिल्ली पर 1211 से 1236 तक शासन किया
- इल्तुतमिश शासक बनने के बाद अपनी राजधानी लाहौर से दिल्ली बनाई थी
- दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान इल्तुतमिश था क्योंकि इसने सुल्तान पद की स्वीकृति खलीफा से प्राप्त की थी
- इल्तुतमिश सुल्तान बनने से पूर्व वह बदायूं का सूबेदार था
- 1205-1206 में खोखर जाती के विद्रोह को दबाने के लिए किए गए अभियान में इल्तुतमिश गौरी ओर ऐबक के साथ था
- इल्तुतमिश ने युद्ध मे साहस एवं कौशल का परिचय दिया जिससे प्रभावित होकर गौरी ने ऐबक को कहा इल्तुतमिश को दासता से मुक्त करने के आदेश दिया
- गुलाम का गुलाम इल्तुतमिश को कहा जाता है क्योंकि गौरी के गुलाम ऐबक ने इल्तुतमिश को खरीदा था
- ऐबक ने आरम्भ में ही इसे सर-ए-जहाँदार (अंगरक्षकों का प्रधान) का महत्वपूर्ण पद दिया
- ऐबक ने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश के साथ किया था
- इल्तुतमिश ने मदरसा-ए-मुइज्जी की स्थापना की थी
अपने पुत्र नासिरुद्दीन मोहम्मद की मृत्यु के बाद इसका नाम बदलकर मदरसा-ए-नासिरी किया गया
- इल्तुतमिश ऐबक का दास था, जिसे ऐबक ने दिल्ली में एक लाख जितल में खरीदा था
- ऐबक गौरी का गुलाम था इसी कारण इल्तुतमिश को ‘गुलाम का गुलाम’ कहा जाता है
- इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का प्रथम वैधानिक सुल्तान था क्योंकि 1229 में उसने बगबाद के अब्बासी खलीफा ‘अल-मुस्तनसिर बिल्लाह मंसूर’ से धार्मिक एवं राजनीतिक मान्यता का अधिकार पत्र प्राप्त किया तथा उसने हिंदुस्तान के सुल्तान एव नासिर-आमिर-अल-मोमनीन की उपाधि भी प्राप्त की थी
- इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने नियमित सिक्के जारी किए थे
- इब्नबतूता के वर्णन से ज्ञात होता है कि इल्तुतमिश ने अपने महल के सामने संगमरमर की दो शेरो की मूर्तिया स्थापित कराई थी
जिनके गले मे 2 घंटिया लटकी हुई थी
जिनको बजाकर कोई भी व्यक्ति सुल्तान से न्याय की मांग कर सकता है
इल्तुतमिश पर कथन
- डॉ r p त्रिपाठी के अनुसार – “ भारत मे मुस्लिम संप्रभुता का इतिहास इल्तुतमिश से प्रारंभ होता है”
- सर वुल्जले हेग के अनुसार – “इल्तुतमिश गुलाम शासको में सबसे महान था “
- डॉ ईश्वरी प्रसाद -” इल्तुतमिश निस्संदेह गुलाम वंश का वास्तविक संस्थापक था “
निजामुद्दीन जुनेदी
- यह इल्तुतमिश का वजीर ओर एक योग्य प्रशासक था
- इल्तुतमिश की मृत्य के बाद जुनेदी उसके पुत्र फ़िरोज का भी वजीर नियुक्त हुआ
- रजिया के शासक बनने के बाद जुनेदी ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा तथा उसका विरोध किया, किंतु अंततः इस गुट की पराजय हुई
- जुनेदी के स्थान पर अपने विशवास पात्र ख्वाजा मुहज्बुद्दीन को रजिया ने अपना वजीर बनाया
चंगेज खान
- जन्म – 1162 के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ
- इसका मूल नाम – तेमुचिन था
- इल्तुतमिश के समय चंगेज खान के अधीन मंगोलो का आक्रमण 1221 में हुआ
- चंगेज खान ईरानी राजकुमार जलालुद्दीन मंगबरनी का पीछा करते हुए सिंधु नदी तक आ पहुंचा लेकिन इल्तुतमिश ने मंगबरनी की सहायता ने करके दिल्ली सल्तनत को मंगोल आक्रमण से बचाया
तराइन का तृतीय युद्ध – 1216
- Jan 1216 में तराईन के तीसरे युद्ध मे इल्तुतमिश ने ताजुद्दीन यलदौज को पराजित किया और बन्दी बनाकर बदायू के दुर्ग में उसका वध करवा दिया था
- बदायू में ही यालदौज की कब्र है
- कुबाचा पर आक्रमण किया (1227)
पराजित कुबाचा ने सिंधु में डूबकर आत्महत्या की थी
- इल्तुतमिश ने सूफी संत वहाउदीन जकारिया को शेख-उल-इस्लाम का पद देकर अपनी ओर मिलाया था
इक्ता व्यस्था
- इक्ता का अर्थ – भूभाग
- बड़े इक्ताओ के प्रमुख को मुक्ता या वली कहते थे
- जबकि छोटे इक्ताओ के प्रमुख को इक़्तेदार कहते थे
- इक्ता प्रमुख – राजस्व वसूली
- विद्रोह दमन
- नयी जीत करने के कार्य करता था एवं बचा हुआ धन (फवाजील) केंद्र को भेजता था
- भारत मे इसक्ता व्यस्था की शुरुआत इल्तुतमिश ने ही कि थी तथा इसकी इसी समय इक्ता प्रणाली विकसित हुई
- इक्ता प्रणाली के अंतर्गत एक अधिकारी को राज्य से तनख्वाह के बदले राजस्व कर का अनुदान भुमि के रूप दिया जाता है
- इक्ता व्यवस्था वंशानुगत नही होती थी
- इक्ता भूमि के प्राप्तकर्ता को इक़्तेदार कहते थे
- इस क्षेत्र से प्राप्त लगान की राशि से इक़्तेदार अपना वेतन एवं अपनी सेना का खर्च निकालकर शेष राशि केंद्रीय कोष में जमा करा देता था तथा इस शेष राशि को फवाजील कहा जाता था
तुर्कान-ए-चिह्लगामी
- इल्तुतमिश ने मोहम्मद गौरी एव ऐबक के समय के अधिकारियों द्वारा उदण्डता किए जाने के कारण नया प्रशासनिक पद तुर्कान-ए-चिह्लगामी बनाया इसे चालीसा दल भी कहा जाता है
- इल्तुतमिश के समय कुतबी एवं मुइज्जी सरदारों का विरोध अधिक बढ़ने के कारण सुल्तान इल्तुतमिश ने गुलाम सरदारों (अमीरों) के एक दल का गठन किया जिसे तुर्कान-ए-चिह्लगामी कहा गया
- इस संगठन का मुख्य कार्य- सुल्तान को सैन्य सहायता देना
दोआब प्रदेश
- दिल्ली सल्तनत काल मे सर्वप्रथम सुल्तान इल्तुतमिश ने दोआब के आर्थिक महत्व को समझा था
- इसने आर्थिक रूप से सम्पन्न दोआब प्रदेश पर आर्थिक एवं प्रशासनिक नियंत्रण हेतु 2000 तुर्क सैनिक नियुक्त किये थे
मुद्रा प्रणाली
- इल्तुतमिश का शासन काल मुद्रा प्रणाली में विशेष योगदान के लिये जाना जाता है
- इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाये
- इसने सिक्को पर टकसाल का नाम लिखवाने की परंपरा शुरू की थी
- इल्तुतमिश ने चांदी का टंका (175 ग्रेन) एव तांबे का जीतल भी प्रारंभ किया
- इल्तुतमिश ने सिक्को पर खलीफा का नाम अंकित करवाये तथा अपने लिए भी शक्तिशाली सम्राट धर्म एवं राज्य का तेजस्वी सूर्य सदा विजयी इल्तुतमिश शब्द अंकित करवाया
- ग्वालियर अभियान के बाद एक स्मारक मुद्रा प्रचलित की गई जिस पर इल्तुतमिश के साथ रजिया का नाम भी अंकित किया गया
न्याय व्यवस्था
- न्याय व्यवस्था में सुल्तान सर्वोपरि था
- सुल्तान इल्तुतमिश के शासन काल मे न्याय चाहने वाले व्यक्ति को लाल रंग के वस्त्र पहनकर सुल्तान तथा जनता के समक्ष उपस्थित होना पड़ता था
- न्याय के लिये इल्तुतमिश ने राजधानी तथा सभी प्रमुख नगरों में काजी तथा अमीर-ए-दाद नियुक्त किये गए
- इनके निर्णयों के विरुद्ध लोग प्रधान काजी की अदालत में अपने मुकदमे पेश करते थे अंतिम फैसला उसी के द्वारा होता था
नासिरुद्दीन महमुद
- नासिरुद्दीन महमुद, अलाउद्दीन मसुदशाह के पतन के बाद 10 जून 1246 के दिन गद्दी पर बैठा था
- यह इल्तुतमिश की संतान नही था वरन उसका पौत्र था
- इसने 1265 तक शासन किया जो इल्तुतमिश के वंश का अंतिम उत्तराधिकारी था
- इसके बाद बलबन सिंहासन पर बैठा जिसने 1287 तक शासन किया
मलिक अलाउद्दीन जानी
- इल्तुतमिश ने बिहार शरीफ एवं बाढ़ पर अधिकार कर राजमहल की पहाड़ियों में तेलियागढ़ी के समीप हिसामुद्दीन एवाज को पराजित किया
- एवाज ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली थी
- इल्तुतमिश ने एवाज के स्थान पर मालिक अलाउद्दीन जानी को बिहार में अपना प्रथम सुबेदार नियुक्त किया था
सैनिक संगठन
- तुर्की प्रशासन व्यवस्था में सैनिक संगठन का विशेष महत्व था
- सुल्तानो की सैन्य व्यवस्था का शुभारंभ इल्तुतमिश के शासन काल मे हुआ
- इसके समय सल्तनत की सेना हशम-ए-क़ल्ब (केन्द्रीय सेना) या क़ल्ब-ए-सुल्तानी कहा जाता था
- इल्तुतमिश ने गुलामो के रूप में भर्ती किये गए सैनिक के द्वारा अपनी सेना का गठन किया
- इल्तुतमिश ने अपनी सेना के सैनिकों को नकद रूप में वेतन प्रदान करने के स्थान पर इक्ता के रूप में भूमि के टुकड़े प्रदान किए
- बलबन ने सर्वप्रथम सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज की स्थापना की थी
- अलाउद्दीन का काल – सैनिक सुधारो की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है इसने एक स्थायी सेना का गठन किया तथा इक्ता प्रथा को समाप्त कर सेनिको को नकद रूप में वेतन का भुगतान किया
- सल्तनत कालीन शासक इल्तुतमिश ने तुर्को को बड़ी संख्या में इक्ताये प्रदान की थी
- इल्तुतमिश ने कहा था “भारत अरब नही है इसे दारुल इस्लाम मे परिवर्तित करना संभव नही है”
- इल्तुतमिश ने बगदाद के खलीफा से मांगपत्र प्राप्त कर अपने भारतीय प्रदेशो की वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की
- इल्तुतमिश ने ईरान की राजतन्त्रीय परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारतीय वातावरण में समन्वित किया
इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी –
-
रुकनुद्दीन फ़िरोजशाह (1236)
- 08 माह का शासन किया
- इसके काल मे सत्ता का केंद्र शाह तुर्कान बनी
- शाह तुर्कान एक तुर्की दासी थी
इसके द्वारा विद्वानों को दान दिए गए
इसकी आज्ञा से ही इल्तुतमिश के छोटे पुत्र कुतुबुद्दीन को अंधा करवा दिया था
शाह तुर्कान के काल मे दिल्ली में अव्यवस्था उतपन्न हो गयी थी
- इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री राजिया की अपना उत्तराधिकारी बनाया गया
परन्तु शाह तुर्कान ने अपने पुत्र रूकनुद्दीन को शासक बनाया था
राजिया इसके विरुद्ध लाल वस्त्र पहनकर मस्जिदों में गयी
नमाज के समय लोगो से न्याय मांगा था
अतः जनता महल में आयी एवं रूकनुद्दीन को हटाया एवं राजिया को शासक बनाया
-
रजिया सुल्तान (1236-1240)
- मध्यकालीन भारत की प्रथम महिला शासिका
- रजिया इल्तुतमिश की पुत्री थी
- इल्तुतमिश के ग्वालियर अभियान के बाद एक स्मारक मुद्रा प्रचलित की गयी जिस पर इल्तुतमिश के साथ रजिया का भी नाम अंकित किया गया तथा रजिया को अपना उत्तराधिकारी मनोनित किया
- रजिया दिल्ली सल्तनत की प्रथम ओर अंतिम मुस्लिम शासिका थी
- इसने 1236 से 1240 तक दिल्ली में शासन किया
- रजिया ने अपने सिक्को पर उदमत-उल-निस्वा की उपाधि धारण की
- इसने पर्दा प्रथा का त्याग किया
ओर पुरुषों के समान कूबा (कोट) एवं कुलाह (टोपी) पहनकर शासन किया
- राजिया ने एतगिन को बदायू का इक़्तेदार बनाया एवं अमीर-ए-हाजिब का पद दिया गया
अमीर-ए-हाजिब दरबारी शिष्टाचार से संबंधित अधिकारी होता था
- रजिया ने अल्तुनिया को ताबरहिन्द का इकतेदार बनाया
- राजिया ने अबीसीनिया के जलालुद्दीन याकूत को अमीर-ए-आखुर का पद दिया गया (घुड़शाला प्रमुख)
- राजिया के इन्ही कार्यो की वजह से तुर्क-ए-चिह्लगामी के सदस्य नाराज हो गए थे
- रजिया ने अल्तुनिया से विवाह कर लिया था
- तुर्को अमीरों ने भटिंडा के गवर्नर मलिक अल्तुनिया के नेतृत्व में रजिया के विरुद्ध विद्रोह कर उसे सत्ता से हटाया था
- अप्रेल 1240 में अल्तुनिया का विद्रोह दबाने के लिए ताबरहिन्द की ओर प्रस्थान किया लेकिन याकूत की हत्या कर रजिया को बंदी बना लिया
- रजिया ने चतुराई से काम लिया और अल्तुनिया से विवाह कर अपनी ओर मिला लिया
- किंतु रजिया बरहराम शाह से पराजित हो गयी एवं मार्ग में डाकुओं ने रजिया एवं अल्तुनिया की हत्या 1240 में कैथल के पास कर दी
- रजिया के समय सुल्तान एवं तुर्क अमीरों के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई थी इन्ही तुर्क अमीरों के कारण रजिया को सत्ता से पदच्युत होना पड़ा था
- एलिफिस्टन ने लिखा है की यदि राजिया स्त्री नही होती तो उसका नाम भारत के महान मुस्लिम शासकों में लिया जाता था
- K A निजामी ने लिखा है की इस बात से इंकार नही किया जा सकता है कि इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में वह सबसे श्रेष्ठ थी
-
बहरामशाह (1240-1242)
- दल-ए-चालीसा ने इसे सुल्तान बनाया था
- इसने नायब-ए-ममलिकात पद बनाया था
- पहला पदाधिकारी एतगिन था
-
अलाउदीन मसुदशाह (1242-1246)
- नाममात्र का शासक था
- सारी शक्तिया दल ए चालीसा के हाथ मे थी
- बलबन को अमीर-ए-हाजिब (दरबार प्रमुख) का पद दिया था
- अलाउद्दीन मसुदशाह के सिक्कों पर सर्वप्रथम बगदाद के अंतिम खलीफा अल-मुस्तसिम का नाम अंकित करवाया गया
-
नासिरुद्दीन मोहम्मद (1246-1265)
- यह इल्तुतमिश का पौत्र था
- बलबन ने इसे शासक बनाया था
अतः बलबन को नायब-ए-ममलिकात का पद दिया गया
अतः वास्तविक शक्ति बलबन के हाथों में थी
बलबन ने पुत्री का विवाह इसके साथ किया था
- यह कुरान की आयतों की नकल करता था, टोपी सिलता था अतः इसे दरवेश सुल्तान कहा गया
- इसका काजी मिन्हास सिराज ने अपनी रचना तबकात ए नासिरी को नासिरुद्दीन मोहम्मद को समर्पित किया था
- मृत्यु 1265 में हुई थी
बलबन (1265-1286)
- यह एक गुलाम था
- नासिरुद्दीन मोहम्मद के समय सुल्तान का नायब था
परन्तु शासक बनने के बाद चालीसा दल ने इसका विरोध किया
अतः बलबन ने राजत्व का सिद्धांत दिया जो देवियुतप्ति एवं लोहे रक्त की नीति पर आधारित था
- इसका वास्तविक नाम – बहाउद्दीन था
- बलबन को उलुग खा के नाम से भी जानते
- बलबन इल्तुतमिश की भांति वह भी इल्बरी तुर्क था
- बलबन को बचपन से ही मंगोलो ने पकड़ लिया गया था जिन्होंने उसे गजनी में बसरा के निवासी जमालुद्दीन के हाथों बेच दिया
- कालांतर में वह 1232 में उसे दिल्ली लाया गया था जहाँ इल्तुतमिश ने 1233 में ग्वालियर विजय के पश्चात उसे खरीदा था
- यह इलबारी तुर्क था
- बलबन गद्दी पर बैठने के बाद एक नवीन राजवंश बलबनी अर्थात द्वितीय इल्बरी वंश की नींव डाली
- बलबन ने स्वयं को फिरदौसी के शाहनामा में वर्णित आफ्रिसियाब का वंशज माना था
- इसने शासन को ईरानी (फ़ारसी) आदर्शो के आधार पर व्यस्थित किया
- तथा इसने अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये दरबार मे गैर इस्लामी प्रथाओं की शुरुआत की थी
- इसने सिजदा (घुटनो के बल बैठकर सुल्तान के समक्ष सर झुकाना) एवं पैबोस (सुल्तान के पैर को चूमना ) जैसे ईरानी प्रथाओं तथा नेरोज का त्योहार मनाना आरम्भ किया
- ओर साथ ही अपने पुत्रों के नाम भी कैकुबाद, केखुसरो, क्युमर्श आदि ईरानी (फ़ारसी) भाषा के नाम रखे
- बलबन दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने सुल्तान के पद ओर अधिकारो के बारे में विस्तृत रूप से विचार प्रकट किए
- बलबन का राजत्व का सिंद्धांत प्रतिष्ठा, शक्ति एव न्याय पर आधारित था
- बलबन के राजत्व के सिद्धांत की 2 मुख्य विशेषताएं थी
प्रथम- सुलतान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया हुआ होता है
ओर द्वितीय- सुल्तान का निरकुंश होना आवश्यक है
- बलबन के अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नायब-ए-खुदाई) माना है
- ओर बलबन ने जिल्ले इलाही की उपाधि धारण की थी
- बलबन इस बात पर बल देता था कि सुल्तान में ईश्वर की शक्ति निहित होती है इसलिए उसके कार्यो की सार्वजनिक जांच नही की जा सकती है
- बलबन की योग्यता से प्रभावित होकर इल्तुतमिश ने इसे खसदार का पद दिया
- राजिया के काल मे बलबन अमीर-ए-शिकार के पद पर पहुंच गया
- रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र में बलबन ने तुर्की सरदारों का साथ दिया फलस्वरूप बहरामशाह के सुल्तान बनने के बाद इसे आमिर-ए-आखुर का पद मिला
- बदरुद्दीन रूमी की कृपा से इसे रेवाड़ी की जागीर मिली
- मसुदशाह को सुल्तान बनाने में इसने तुर्की अमीरों का साथ दिया जिसके फलस्वरूप इसे हाँसी की सूबेदारी दी गयी थी
- 1249 में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान नासिरुद्दीन से किया इस अवसर पर इसे उलुग खा की उपाधि दी गयी और नायब -ए-ममलिकात का पद दिया गया
- 1266 में बलबन दिल्ली की राजगद्दी पर आसीन हुआ
- बलबन ने अपने पुत्र बुगरा खा से कहा था -” सुल्तान का पद निरकुंशता का सजीव प्रतीक है”
रक्त एवं लौहे की नीति-
- बलबन के समय मे दिल्ली एव आसपास के इलाकों ओर दोआब में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ चुकी थी
- मेवाती इतने साहसी एवं उदंड हो चुके थे कि वे दिल्ली कि सीमा तक लूटपाट करते थे
- इन लोगो से निपटने के लिए बलबन ने रक्त एवं लौहे की नीति अपनाई
- तथा बलबन ने पूरे 1 वर्ष तक मेवातियों का दमन करके जंगलो को कटवाया ओर गोपालगिरी दुर्ग बनवाया
तुर्कान ए चिह्लगानी
- शासक बनने से पूर्व बलबन तुर्कान-ए-चिह्लगानी का सदस्य था
- स्वयं ने सुल्तानों ओर सरदारों के मध्य हुए संघर्ष में सक्रिय भाग लिया था
- इसलिये सुल्तान बनने के बाद अपने वंश की सुरक्षा के लिए इस गुट को समाप्त करना आवश्यक था
- बलबल तुर्कान-ए-चिह्लगानी संगठन का दमन करके धीरे धीरे समाप्त कर दिया
- चालीसा दल की शक्ति को कम करने के लिए उनके पीछे गुप्तचर लगाए
तथा छोटी छोटी गलतियों पर कठोर दण्ड दिया जैसे
अवध का सूबेदार बकबक को सेवक की हत्या करने के कारण मृत्यु दंड दिया गया
बदायू का सूबेदार हेबात खां को नशें में एक व्यक्ति को पीटने के कारण 500 कोड़े मारने की सजा दी जिससे उसकी मृत्यु हो गयी
- सीमा कूटनीति में द्वारा सभी शक्तिशाली सरदारों को मंगोलो के विरुद्ध लड़ने भेजा
कुछ युद्ध मे मारे गए
बचकर आने वालों को कायरता के कारण मृत्यु दंड दिया गया
- शेष बचे सरदारों पर कठोर निगाह रखी
खतरा महसूस होते ही उन्हें जहर दिलवाया गया जैसे अपने चचेरे भाई शेर खा को जहर देकर मरवाया था
- इसका गठन इल्तुतमिश ने किया था
- NOTE- तुर्कान-ए-चिह्लगानी का सबसे शक्तिशाली सरदार शेर खा था जो बलबन का चचेरा भाई था बलबन ने इसे विष देकर मरवा दिया था
- बलबन ने तुर्कान-ए-चिह्लगानी को समाप्त कर सारी सत्ता का स्वामित्व अपने हाथ मे केंद्रित कर शासन को शक्तिशाली बनाया
दिवान-ए-अर्ज
- सल्तनत काल मे सैन्य विभाग के अध्यक्ष को आरिज-ए-मुमालिक कहते थे
- यह सेना का प्रधान (रक्षामंत्री) होता था
- इस विभाग की स्थापना बलबन ने की थी
- सैन्य विभाग का प्रमुख कार्य सेनिको की भर्ती करना होता था
- सैन्य विभाग को दीवान-ए-अर्ज के नाम से जाना जाता है
- दीवान-ए-अर्ज विभाग की स्थापना के बाद इस पद पर सबसे पहले एमादुलमुल्क को नियुक्त किया था
- बलबन ने इसे रावत-ए-अर्ज की उपाधि भी प्रदान की
- बलबन की सेना की अच्छी व्यवस्था का बहुत अधिक श्रेय एमादुलमुल्क को प्राप्त है
मंगोल आक्रमण
- बलबन के समय मंगोल आक्रमण का भय बना रहा जिसके कारण बलबन ने विस्तार की नीति नही अपनाई
- बलबन दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने मंगोल आक्रमण से देश की रक्षा हेतु एक सुनियोजित योजना बनाई तथा पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा के लिए अनेक उपाय किये
- NOTE – हबीबुल्लाह के अनुसार -” बलबन का शासनकाल सुदृढ़ीकरण का काल था विशाल सेना होते हुये भी बलबन ने मंगोल आक्रमण के भय के कारण सीमा विस्तार का प्रयास नही किया”
इक़्तेदारी व्यवस्था
- भारत में इकतेदारी व्यवस्था का प्रारंभ इल्तुतमिश ने किया था
- इक्ता एक प्रकार का राजस्व संग्रहण अधिकार होता था जो भू-क्षेत्रों के रूप में प्रदान किया जाता था
- इसको प्राप्त करने वाले मुक्ति या वली कहलाते थे
- बलबन ने इकतेदारो की आय का आंकलन करने के लिए प्रत्येक इक्ता में ख्वाजा नामक अधिकारियों की नियुक्ति की थी
- बलबन ने सुल्तान को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबत-ए-खुदाई) ओर प्रतिबिंब (जिल्ले-ए-इलाही) घोसित किया था
बंगाल विद्रोह
- बलबन के समय बंगाल में 1279 में तुगरिल खान ने विद्रोह कर दिया था तथा सुल्तान मुगीसुद्दीन की उपाधि धारण कर अपने नाम के सिक्के चलाये ओर खुतबा भी पढ़वाया
- तुगरिल खान के इस विद्रोह से बलबन को बहुत अधिक धक्का लगा क्योंकि किसी सुल्तान के दास का यह प्रथम विद्रोह था
- अंततः इस विद्रोह को दबाने के लिए स्वयं बलबन को जाना पड़ा था
- इस विद्रोह को दबाने के बाद इसने अपने पुत्र बुगरा खा को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया
गढ़मुक्तेश्वर मस्जिद
- बलबन ने गढ़मुक्तेश्वर की मस्जिद की दीवारों पर अपने शिलालेख में स्वयं को ‘खलीफा का सहायक’ कहा है
बरनी
- जियाउद्दीन बरनी ने अपने ग्रन्थ ‘तारीख-ए-फ़िरोजशाही’ जो कि बलबन के राज्यारोहण के साथ प्रारंभ होता है इसमे बलबन की सार्वभौमिकता तथा राजकीय नीति को संकलित किया
- बलबन के समय साहित्यकार अमीर हसन देहलवी (भारत का सादी) एवं अमीर खुसरो ने अपना साहित्यिक जीवन शुरू किया था
- बलबन का बड़ा पुत्र शहजादा मोहम्मद था जिसकी मृत्यु मंगोल आक्रमण में हुई थी उसे बलबन ने शहीद की उपाधि दी
- बलबन ने 1279 में ख्वाजा नामक पद बनाया जो इसकतेदारो के हिसाब की जांच करता था
- 1286 में बलबन की मृत्यू हुई
- बलबन ने कहा था कि – जब भी में नीच व्यक्ति को देखता हूं तो मेरा खुन खोल उठता है एवं हाथ तलवार पर चला जाता है
- बलबन गम्भीर रहता था
मजाक या हंसी पर दंड देता था
उसके पुत्र की मृत्यु पर वह बहुत दुखी रहा
परन्तु दरबार में गम्भीर बना रहा दुख प्रकट नही किया लेंकिन बरनी के अनुसार- रात को अकेले में रोया करता था
- बलबन के बाद कैकुबाद को शासक बनाया गया
जबकी बलबन ने केखुसरो को उत्तराधिकारी घोषित किया था
कैकुबाद कम उम्र में भोग विलास में डूब गया था एवं लकवाग्रस्त हो गया था
इसके समय जलालुद्दीन ख़िलजी आरिज-ए-ममलिक था (सेनापति)
कैकुबाद ने इसे शाइस्ता खा की उपाधि दी थी
कैकुबाद के बाद उसका पुत्र क्युमर्श को शासक बनाया गया
क्युमर्श की हत्या जलालुद्दीन खिलजी ने 1290 में की एवं खिलजी वंश की स्थापना की थी
दिल्ली सल्तनत -खिलजी वंश (1290-1320)
- जलालुद्दीन खिलजी (1290-1296)
- अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316)
- मुबारकशाह खिलजी (1316-1320)
- ख़िलजी वंश की स्थापना- जलालुद्दीन ख़िलजी ने की थी
- इस वंश में कुल 4 शासको (जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी, अलाउद्दीन खिलजी, मुबारक शाह एवं नासिरुद्दीन खुसरोशाह) ने 1290 से 1320 तक शासन किया
- दिल्ली सल्तनत में ख़िलजी वंश ने सबसे कम समय (30वर्षो) तक शासन किया
जलालुद्दीन खिलजी
- बलबन के समय प्रमुख अमीर था
- जलालुद्दीन क्युमर्श को हटाकर शासक बना था
- जलालुद्दीन खिलजी ने अपना राज्याभिषेक1290 में कैकुबाद द्वारा बनवाये गए अपूर्ण – किलोखोरी के महल में करवाया था
- इसने बलबन के लाल महल में राज्याभिषेक करवाने से मना कर दिया था
- डॉ A L श्रीवास्तव के अनुसार जलालुद्दीन दिल्ली का प्रथम तुर्की सुल्तान था जिसने उदार निरकुंशवाद के आदर्श को अपने सामने रखा
- जलालुद्दीन जब दिल्ली का सुल्तान बना तब उसने अलाउद्दीन को अमीर-ए-तुजुक का पद दिया तथा अपनी पुत्री का विवाह अलाउद्दीन से किया था
- मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण अलाउद्दीन को कड़ा-मानिकपुर की सूबेदारी प्राप्त हुई
- जलालुद्दीन ख़िलजी का उत्कर्ष कैकुबाद के समय मे हुआ
- कैकुबाद के समय जलालुद्दीन ख़िलजी समाना का सूबेदार तथा सर-ए-जहाँदार (शाही अंगरक्षक) के पद पर नियुक्त था
- बाद में जलालुद्दीन ख़िलजी आरिज-ए-मुमालिक (सैन्य मंत्री) एवं शाइस्ता खा की उपाधि से भी सम्मानित हुआ
- एक महत्वाकांक्षी शासक के रूप में 13 जून 1290 को किलोखोरी (किलुगढ़ी) महल में दिल्ली सल्तनत की सत्ता को ग्रहण किया
- जलालुद्दीन ख़िलजी की सैन्य विजयों का वर्णन अमीर खुसरो ने अपनी पुस्तक -मिफ्ताह-उल-फतुहा में संकलित किया है
- रणथंभौर का घेरा डालकर बिना जीते हुए 1290 व 1292 में घेरा उठाकर कहा – ऐसे 100 दुर्ग मुसलमान की ढाढ़ी के 1 बाल के बराबर भी नही है
- जलालुद्दीन के भतीजे एव दामाद अलाउद्दीन ने 1294 में देवगिरि के राजा रामचन्द्र देव पर आक्रमण किया
ईस यादव राज्य को हराकर भारी संख्या में सोना चांदी जेवहरात प्राप्त किये और इस धन को लेकर कड़ा एव मानिकपुर (इलाहाबाद) लाया था
- जलालुद्दीन ने एक सूफी संत सीधी मोला से नाराज होकर उसे हाथी के पैरों से कुचलवा दिया था
- जलालुद्दीन जब अलाउद्दीन से धन प्राप्त करने कड़ा एव मानिकपुर आया तो अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन की हत्या कर दी थी
- दिल्ली सल्तनत का एकमात्र सुल्तान जो मानता था कि राज्य जनता की इच्छा पर आधारित होना चाइये
- जलालुद्दीन के समय चंगेज खा के प्रपौत्र उलुग खा का भारत पर आक्रमण हुआ इन्हें पराजित कर पश्चिमी दिल्ली में बसाया गया
उलूग खा के साथ अपनी पुत्री का विवाह किया
इन्हें नव मुसलमान कहा जाता है
इनका निवास क्षेत्र मंगोलपुरी (दिल्ली) कहा जाता है
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316)
- मूल नाम – अली गुस्सारप
- अलाउद्दीन दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया था
- अलाउदीन ने अपने आप को – यामीन-उल-खिलाफत नासिरी अमीर-उल-मोमनीन बताया था
- कालान्तर में 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा एवं ससुर जलालुद्दीन ख़िलजी को कड़ा (मानिकपुर) बुलाकर हत्या कर दिया और अपने को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित किया
- अलाउद्दीन खिलजी पूर्ण निरंकुशता में विश्वास रखता था
- अलाउद्दीन खिलजी ने धर्म को राजनीति से पृथक रखा था
- अलाउद्दीन खिलजी ने यामनी-उल-खिलाफत (खलीफा का नायब ) की उपाधि धारण की
- अलाउद्दीन खिलजी ने एक नए धर्म की स्थापना के लिए सिकन्दर द्वितीय (सिकंदर-ए-सानी) जैसी उपाधियां धारण की
- अलाउद्दीन खिलजी ने उलेमाओं की इच्छा के विरुद्ध जाकर शरीयत के नियमो के खिलाफ जाकर कार्य किया और कहा कि -”मुझे शरा की चिंता नही है”
- अलाउदीन के शासनकाल के प्रारंभ में कुछ विद्रोह हुए इन विद्रोह के कारणों पर विचार करके अलाउद्दीन ने इसे समाप्त करने के लिए 04 अध्यादेश जारी किए
- पहले अध्यादेश- इसके द्वारा उपहार, पेंशन, दान में प्राप्त भूमि आदि व्यक्तियों से वापस ले ली गयी तथा सरकारी अधिकारियों को सभी व्यक्तियों से आधिकारिक कर लेने के आदेश दिए
- दूसरे अध्यादेश- इसमे गुप्तचर विभाग का संगठन किया
- तीसरे अध्यादेश- के अनुसार मादक द्रव्यों (शराब,भांग आदी) का प्रयोग तथा जुआ खेलने पर रोक लगा दी थी
- चौथे अध्यादेश- द्वारा सरदारों एव अमीरों की दावतों, विवाह संबधो पर प्रतिबंध लगा दिया था
शेख निजामुद्दीन औलिया
- शेख निजामुद्दीन औलिया ने 7 सुल्तानों का राज्य देखा था
- जो कि एक के बाद एक सत्तासीन होते रहे
- किंतु औलिया कभी भी किसी के दरबार मे नही गए
- जलालुद्दीन खिलजी ने औलिया से मिलने का बहुत प्रयास किया यहाँ तक कि औलिया के प्रिय शिष्य अमीर खुसरो के माध्यम से भी प्रयत्न किया किंतु जब औलिया को ज्ञात हुआ कि सुल्तान आने वाला है तो औलिया अजोधन चले गए इस प्रकार औलिया ने तो सुल्तान से मिले और ना ही मिलने से इनकार किया
- दूसरी तरफ जब अलाउद्दीन खिलजी ने उनसे मिलने की आज्ञा मांगी तो औलिया ने उत्तर दिया कि -”मेरे मकान के 2 दरवाजे है यदि सुल्तान एक द्वार से आएगा तो में दूसरे द्वार से बाहर चला जाऊंगा “
- इस प्रकार औलिया ने अलाउद्दीन खिलजी से मिलने से इंकार कर दिया था
- औलिया को महबूब-ए-इलाही (ईश्वर का प्रिय) एव सुल्तान-उल-औलिया (संतो का राजा ) कहा जाता है
- औलिया ने सुलह-ए-कुल का सिद्धांत प्रवर्तित किया था
- औलिया को लोग ‘योगी-सिद्ध’ कहकर पुकारते थे
- औलिया का प्रिय शिष्य- अमीर खुसरो था
- औलिया ने अमीर खुसरो को तुर्कल्लाह की उपाधि दी थी
- औलिया के अन्य शिष्य-
- सिराजुद्दीन उस्मानी
- शेख बुरहानुद्दीन गरीब
- नासिरुद्दीन चिराग-ए-दहलवी
साम्राज्य विस्तार
- अलाउद्दीन खिलजी ने अपने साम्राज्य विस्तार करने के लिए एक मजबूत सेना का गठन किया
- जिसे दशमलव प्रणाली के आधार पर निर्मित किया था
- सेना में इक्ता का आवंटन बन्द करके नकद वेतन का प्रावधान किया
- उतर भारत मे विस्तारवादी नीति के तहत चितौड़ विजय (1303) के उपरांत चितोड़ का नाम बदलकर अपने पुत्र खिज्र खा के नाम पर खिज्राबाद कर दिया था
- अलाउद्दीन ने अपने साम्राज्य की सीमाओं की सुरक्षा हेतु एक विशेष सेना को नियुक्त किया था
- इसने सीमा प्रान्तों की सुरक्षा के लिए सेनिको की संख्या बढ़ाने , प्रशासन को व्यवस्थित करने हेतु सीमावर्ती किलो की मरम्मत करवाई ओर मंगोलो के मार्ग पर बसे हुए अनुभवी अमीरों ओर फौजी सरदारों की इक्ताओ में भी सेना की टुकड़ियां तैनात की गई
मंगोल आक्रमण
- सल्तनत काल मे मंगोलो का सर्वाधिक आक्रमण अलाउदीन ख़िलजी के समय हुआ था
- अलाउद्दीन खिलजी के विशवास पात्र सेनापतियों में अल्प खा, उलुग खा, नुसरत खा, जफर खा तथा मलिक कापुर ने साम्राज्य विस्तार एवं सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- जिसमे जफर खां एवं उलुग खां ने मंगोलो के खिलाफ विशेष सैन्य अभियान किये
- इन्ही अभियानों के क्रम में जफर खां की मृत्य हो जाती है
- अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोलो से दिल्ली को सुरक्षित रखने के लिए सिरी दुर्ग का निर्माण कराया था तथा साम्राज्य की सीमाओं को सुरक्षा के लिए एक विशेष सेना का गठन किया
- 1306 के बाद अलाउद्दीन खिलजी के समय दिल्ली सल्तनत एवं मंगोलो के बीच सीमा रावी नदी थी 1306 में कबक के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुए जिसे रावी नदी के तट पर मालिक कापुर ओर गाजी मालिक के द्वारा रोक दिया गया था
दक्षिण भारत
- 1296 में देवगिरी का शासक रामचंद्र देव ने अलाउद्दीन के सफल आक्रमण से बाध्य होकर उसे प्रतिवर्ष एलीचपुर की आय भेजने का वादा किया था परंतु 1305-06 में उसने उस कर को दिल्ली नही भेजा जिस कारण 1307 में अलाउद्दीन खिलजी ने मालिक कापुर के नेतृत्व में एक सेना देवगिरी पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी राजा रामचंद्र देव युद्ध मे पराजित हुआ इसने आत्मसमर्पण कर दिया अलाउदीन ने रामचंद्र देव के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया तथा उसे रायरायन की उपाधि भी दी 06 माह पश्चात उसे एक लाख सोने का टँका ओर नवसारी का जिला देकर उसके राज्य वापस भेज दिया 1302 में मालिक काफूर ने रामचन्द्र देव के पुत्र शंकरदेव के विरुद्ध भी एक अभियान का नेतृत्व किया था
- अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिण भारत को जीता था
- इसके दक्षिणी अभियान के समय अमीर खुसरो अलाउद्दीन खिलजी के साथ था
- अमीर खुसरो ने मालिक काफूर के नेतृत्व में हुए दक्षिण अभियान का बड़ा ही विशद वर्णन अपने ग्रन्थ ‘खजाइन-उल-फुतुह’ में किया था
- अमीर खुसरो ने मांडू विजय को दक्षिण भारत के विजयी की कुंजी कहा था
- अलाउद्दीन खिलजी का दक्षिणी राज्यो के प्रति लक्ष्य प्रशासनिक नियंत्रण में रखकर सीधे धन प्राप्त करना था ना कि उनका दिल्ली साम्राज्य में विलय करना था
- अलाउदीन खिलजी विंध्याचल पर्वतो को पार करने वाला प्रथम तुर्क सुल्तान था
AK समय रियासतें एवं उनके शासक
- रणथंभौर – हमीर देव
- चितौड़ – राणा रत्न सिंह
- गुजरात – कर्ण देव
- देवगिरि – रामचन्द्र देव, शंकर देव
- वारंगल – प्रताप रुद्रदेव
- होयसल – वीर वल्लाल
- मदुरै – वीर पाण्ड्य
Note – शंकर देव , राजा रामचन्द्र देव का पुत्र था जो 1310 में गद्दी पर बैठा था
अलाउद्दीन के आक्रमण
- अलाउदीन ख़िलजी का प्रथम आक्रमण गुजरात पर हुआ था
उलूग खा ओर नुसरत खा के नेतृत्व में गुजरात जीता था
अहिलवाड या पाटन को लूटा गया
बघेल शासक कर्ण अपनी पुत्री देवलदेवी के साथ देवगिरी चला गया
कमला देवी (कर्ण-पत्नी) को दिल्ली भेजा गया
अलाउदीन खिलजी ने विवाह कर मल्लिका-ए-जहाँ की उपाधि दी
इसी समय नुसरत खा ने केम्बे से एक हिंजड़े दास मालिक काफूर को खरीदा इसे 1000 दिनारी कहा जाता है
रणथंभौर अभियान
- गुजरात लूट में अलाउद्दीन ने नया नीयम बनाया की लूट कर (खम्स) को 80% राज्य के खजाने में जमा करना होता था तथा 20 % सैनिक रख सकते थे
परन्तु नव मुसलमान केब्रु एवं मोहम्मद शाह ने इस परिवर्तन का विरोध करते हुए
विद्रोह कर हम्मीर के यहां शरण ली
1301 में स्वयं अलाउद्दीन अमीर खुसरो के साथ रणथंभौर आया
घेरा डालकर रणथंभौर जिता
इसका उल्लेख अमीर खुसरो के ग्रंथ खजाइन-उल-फतुह में किया गया हर
इसमे रंग देवी के जौहर का भी उल्लेख है
मेवाड़ अभियान
- 1303 में राणा रतनसिंह पर अलाउद्दीन ने आक्रमण किया ओर चितौड़ को जीता
- अमीर खुसरो इस आक्रमण में अलाउद्दीन के साथ था इसने लिखा – गुजरात से दिल्ली के मार्ग को सुरक्षित रखने के लिए मेवाड़ को जीता गया
- Note खजाइन उल फुटूह में पद्मिनी का उल्लेख नही मिलता है
सिवाना एवं जालौर अभियान
- 1308 में शीतलदेव को हराकर सिवाना जीता था
- सिवाना को जीतने का प्रमुख कारण जालौर के कान्हडदेव को दंडित करना था
- 1311 ई में अलाउद्दीन ने जालौर पर आक्रमण कर जीता था
इसका उद्देश्य – गुजरात पर मजबूत नियंत्रण करना था
मध्य ओर दक्षिण भारत विजय
- 1305 में आइन उल मुल्क मुल्तानी ने मालवा जीता था
अलअलाउद्दीन ने इसे सल्तनत में शामिल किया (राजधानी- मांडु)
- अलाउद्दीन के सेनापति मालिक काफूर ने दक्षिण अभियान सबसे पहले 1306-07 ई में देवगिरी के राजा रामचंद्र देव को पराजित कर दिल्ली भेजा
अलाउद्दीन ने रामचन्द्र देव को राय रायन की उपाधि दी थी
चांदी का मुकुट एव नोसारी का जिला दिया
रामचन्द्र ने अधिनता स्वीकार कर ली
- 1308 ई में तेलगांना के वारंगल राज्य पर मालिक काफूर ने आक्रमण किया
काकतीय वंश के राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित कर अधीनस्थ शासक बनाया
NOTE – ऐसी मान्यता है कि कोहिनूर हीरा प्रतापरुद्र देव ने मालिक काफूर को दिया
काफूर ने अलाउद्दीन को सौंपा था
- 1310 ई में मालिक काफूर ने होयसेल राज्य पर आक्रमण किया
होयसेल राजा वल्लाल देव 3 उस समय अपनी राजधानी द्वार समुद्र में नही थे मदुरै गए हुए थे
अतः द्वार समुद्र की विजय के बाद वल्लाल देव 3 ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी
- 1311 ई में मालिक काफूर ने पाण्ड्य राजा मदुरै पर आक्रमण किया जीता एवं लुटा
धन की दृष्टि से सर्वाधिक सफल अभियान यही था परंतु यहाँ के दो दावेदार शासक वीर पाण्ड्य व सुंदर पाण्ड्य ने अधीनता स्वीकार नही की थी
अतः राजनैतिक दृष्टि से यह अभियान असफल था
मालिक काफूर ने रामेश्वरम के मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई थी
हजारदिनारी
- अलाउद्दीन के गुजरात अभियान के दौरान खम्भात से मालिक कापुर प्राप्त हुआ था
- मलिक कापुर को एक हजार स्वर्ण दीनार में खरीद लिया गया इसलिए कापुर को स्वर्ण दिनारी भी कहा जाता है
- 1303 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना वारंगल पर आक्रमण किया उस समय वहाँ काकतीय वंश का शासक प्रताप रुद्रदेव था जिसने अलाउद्दीन की सेना को बुरी तरह परास्त किया
- देवगिरी पर आक्रमण 1307-08 के समय वहाँ का शासक रामचंद्र देव था युद्ध में पराजित होने के बाद रामचंद्र देव ने अलाउद्दीन खिलजी को बहुत सारा धन भेंट दिया जिससे खुश होकर अलाउद्दीन ने उसे रायरायन की उपाधि प्रदान कि थी
- मालिक कापुर दक्षिण में दिल्ली शासको की निर्भीकता, साहस को प्रतिबिंबित करना चाहता था एवं उसके नेतृत्व में ख़िलजी सेना ने दक्षिण से अकूत सम्पति को लूटा था
- जिससे खुश होकर अलाउद्दीन ने कापुर को ‘मलिक-नायब’ का पद प्रदान किया था
- कालान्तर में अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद मलिक कापुर ने रामचंद्र देव की पुत्री झत्यपाली स उत्पन्न अलाउद्दीन के 6 वर्षीय अल्पवयस्क पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को सुल्तान बनाकर स्वयं सरंक्षक बन गया
दीवान-ए-मुस्तखराज
- अलाउद्दीन ने 02 अधिनियम पारित किए
- जाबिता – इसमे जमीन की नाप की गई
रस्सी की जरीब का प्रयोग किया गया
नाप की इकाई को बीघा बनाया
प्रत्येक बीघा में 20 बिस्वा होते थे
अलाउदीन ने खालसा जमीन का विस्तार किया तथा एक नया विभाग दीवान -ए-मुस्तखराज की स्थापना की जो बकाया लगान की वसूली भी करता था
- लगान वसूली –
भूमि को 3 भागो में बांटा गया
- उत्तम
- मध्यं
- बंजर
- उपज का 50 % लगान के रूप में लिया जाता था
- इसके साथ चराई कर (चरी कर) एवं घरी कर (घर कर) लिया जाता था
- अलाउद्दीन ने खुत, मुकद्दम एवं चौधरी पर भी कर वसूला था
- जमीन की नपाई को मसाहत कहते थे
- अलाउद्दीन ने इकतेदारी व्यवस्था को बंद कर दिया था तथा अधिक से अधिक भूमि को खालसा में बदला
- अलाउद्दीन ने भू राजस्व व्यवस्था के क्षेत्र में अनेक सुधार किए
- भू राजस्व व्यवस्था में सुधार एवं बकाया लगान वसूली के लिए दीवान-ए-मुस्तखराज नामक विभाग बनाया
- अलाउद्दीन ने राशनिंग व्यवस्था के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अपनाया
- अलाउदीन के समय खालसा भूमि का अत्यधिक विस्तार हुआ
- एवं कृषिगत जमीन की पैमाइश का बाद जमीन की मालगुजारी वसूल की
- अलाउदीन ने उत्पादन का 50% भूराजस्व के रूप में वसूल किया
- लगान वसूली की यह व्यवस्था साम्रज्य में समान रूप से लागू नही थी
- अलाउद्दीन ने प्रान्तों के गर्वनरों के अधिकारों को समाप्त कर दिया
- अलाउद्दीन ने 02 नए कर लगाए थे
- घरी कर – जो कि घरों एवं झोपड़ियों पर लगाया जाता था
- चराई कर – जो कि दुधारू पशुओं पर लगाया जाता था
- अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने लूट के माल में हिस्सा बढ़ाया अलाउद्दीन एवं मोहम्मद बिन तुगलक ने स्वयं ⅘ भाग (80%) रखा और सेनिको को ⅕ भाग (20%) ही दिया था
- अलाउद्दीन ने परम्परागत लगान अधिकारियों (खुत, मुकद्दम, चौधरी) से लगान वसूल करने का अधिकार छीन लिया गया था इनके सारे विशेषाधिकार भी समाप्त कर दिए
इनकी भूमि से भी कर लिया जाने लगा और बाकी अन्य सभी कर भी लिए गए
जिसके कारण खुत (जमीदार) ओर बलाहर (साधारण किसान) में कोई अंतर नही रहा था
अलाउद्दीन की राजस्व ओर लगान व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य – एक शक्तिशाली और निरंकुश राज्य की स्थापना करना था
अलाउद्दीन ने उन सभी व्यक्तियों से भूमि छीन ली जिन्हें वह मिल्क (राज्य द्वारा प्रदत्त संपति, ईनाम, ओर पेंशन) तथा वक्फ (धर्मार्थ प्राप्त हुई भूमि) आदि के रूप में मिली थी
फलत खालसा भूमि अधिक पैमाने पर विकसित हुई थी
बाजार नियंत्रण सुधार
स्रोत a. इसामी की – फुतुह उस सलातीन
- बरनी की – तारीख ए फ़िरोजशाही
- अमीर खुसरो की – खजाइन उल फतुह
उद्देश्य –
- बरनी – सैनिक आवश्यकता हेतु
- अमीर खुसरो – आम जनता की भलाई हेतु
- बाजार = 3
- सराय-ए-अदल – कपड़ा और अन्य उत्पादित वस्तुयें
- अनाज बाजार (मंडी) – अनाज
- मवेशी+दास बाजार – घोड़ा, दास, दासियों
-
बाजार सुधार हेतु 4 अध्यादेश जारी किए
- खाद्यानों की व्यवस्था एव भाव निर्धारण किया गया जैसे
- भाव निर्धारण गेंहू 7.5 जीतल / मन
- खालसा गावो का खाद्यान्न सीधा गोदामो में लाया जाता था
- जमाखोरी करने पर रोक लगाई गई एव अकाल पड़ने के समय राशन व्यवस्था लागू की गई
- कपड़े एव दैनिक जीवन की वस्तुओं एवं किराना समान का भाव निर्धारित किया गया
इन सभी का बाजार सराय-ए-अदल कहलाता था
इसमे प्रमुख को परवाना-ए-नवीस कहा जाता था
मुल्तानी व्यपारियो को अग्रिम धन देकर कपड़े मंगवाए जाते थे
- इसमे दास, दासियों एव मवेशियों की कीमत का निर्धारण किया गया जैसे
अच्छा अरबी घोड़ा – 120 जीतल
सुंदर दास – 80 जीतल
दासी -60 जीतल
स्पष्ट है कि मनुष्य की कीमत जानवर से कम एवं मानव गरिमा शून्य थी
- इस अध्यादेश के द्वारा सभी बाजारों पर दीवान-ए-रियासत की स्थापना की गई
दीवान ए रियासत का प्रभारी मालिक याकूब को बनाया गया
इसका कार्य मांग एव आपूर्ति पर नियंत्रण रखना था
शहना ए मंडी अधिकारी की नियुक्ति की गई जो सभी व्यापारियों का पंजीकरण करता था
इसी अधिनियम में गुप्तचर विभाग या बरिद-ए-रियासत की स्थापना की गई जो जांच का कार्य करते थे
- बरनि ने स्पष्ट किया कि सुल्तान स्वयं छोटे छोटे बच्चो को समान लेने भेजता था कम तौलने पर या ज्यादा कीमत लेने पर दण्ड दिया जाता था
- फरिश्ता ने लिखा है – लोग घरों में कपड़े सुल्तान की अनुमति से ही पहन सकते थे
- अलाउद्दीन का प्रमुख वित्तीय सुधार व्यवस्था बाजार एवं मूल्य नियंत्रण व्यवस्था थी
- इस क्रम में उसने नगर के प्रत्येक मुहल्ले में एक केंद्रीय गल्ला (अनाज) मंडी स्थापित की
- ओर इसने मंडी से संबंधित 8 नियम बनाये
- प्रथम अधिनियम – सभी प्रकार के गल्लों (अनाजों) का भाव निश्चित करने से संबंधित था
- जिसका वर्णन बरनी अपनी पुस्तक तारीख-ए-फ़िरोजशाही में मिलता है
- वस्तुओं के मूल्य नियंत्रण हेतु दीवान-ए-रियासत (वाणिज्य मंत्री) के पद का सृजन किया
- तथा बाजार पर पूर्ण नियंत्रण रखने हेतु बरिद-ए-मंडी नामक गुप्तचरों की भी नियुक्ति की थी
- शहना-ए-मंडी नामक अधिकारियों की नियुक्ति दुकानदारो एवं कीमतों को नियंत्रित करने के लिए किया था
- अलाउद्दीन ने मालिक कबूल को शाहना या बाजार का अधीक्षक नियुक्त किया
- अलाउदीन ने सस्ते खाद्यान की नियमित पूर्ति का आदेश दिया तथा दोआब क्षेत्र का भूराजस्व कर सीधा राज्य को भुगतान करने का आदेश भी दिया था
- अलाउदीन दिल्ली में अपने राजभवन में लगे कारीगरों को कम वेतन नही देना चाहता था
- अलाउद्दीन की बाजार नियंत्रण व्यवस्था एक सफल योजना के रूप में जानी जाती है
- जनवरी 1316 ई में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गयी थी
कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316-1320)
- अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद मालिक काफूर ने अलाउद्दीन के पुत्रों एवं परिवार के सभी सदस्यों की हत्या की
- एक पुत्र मुबारक ख़िलजी जो दिल्ली में नही था को ग्वालियर के दुर्ग में कैद करवाया
- मालिक काफूर ने कमला देवी से विवाह किया एवं मुबारक खिलजी को मारने हेतु सैनिक भेजे थे
जिन्होंने मुबारक के स्थान पर मालिक काफूर की हत्या कर दी इस प्रकार मुबारक ख़िलजी शासक बना था
- कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी 1316 में गद्दी पर बैठा
- * यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने अब्बासी खलीफा की प्रभुता की अस्वीकार कर स्वयं को खलीफा घोसित किया था
- यह सूफी सन्त औलिया से द्वेष रखता था
- इसने अल इमाम उल इमाम एवं खलीफा उल्लाह की उपाधि धारण की थी
- मुबारक ख़िलजी ने देवगिरी के शासक हरपाल देव को हराकर मृत्युदंड दिया
एवं देवगिरी को दिल्ली सल्तनत में शामिल किया
- मुबारक ख़िलजी ने वारंगल के कुछ हिस्सों को भी दिल्ली सल्तनत में मिलाया
- इसने अलाउदीन के कठोर कानून रदद् कर दिए
- इसने भारतीय धर्म परिवर्तित खुसरो शाह को अपना वजीर बनाया
ईसी खुसरोशाह ने 15 अप्रेल 1320 में मुबारक ख़िलजी की हत्या कर स्वयं सुल्तान घोषित किया था
नासिरुद्दीन खुसरो शाह
- ख़िलजी वंश का अंतिम शासक था
- ईसके शासनकाल में शाही महलो में हिन्दू देवी देवताओं की पूजा होती थी
- यह हिन्दू धर्म से परिवर्तित मुसलमान था
- इसने पैगम्बर के सेनापति की उपाधि धारण की
- इसके विरोधियों ने इसके विरुद्ध ‘इस्लाम का शत्रु ओर इस्लाम खतरे में है’ के नारे लगाए
- इसका शासनकाल भारतीय मुसलमानों द्वारा राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने का द्वितीय प्रयास था
- प्रथम प्रयास नासिरुद्दीन महमुद के समय के काल मे इमामुद्दीन रेहान ने किया था
- 5 sept 1320 को गयासुद्दीन तुगलक ने खुसरोशाह की हत्या कर तुगलक वंश की नींव डाली
दिल्ली सल्तनत -तुगलक वंश (1320 – 1414)
- गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325)
- मोहम्मद बिन तुगलक (1325-1351)
- फ़िरोजशाह तुगलक (1351-1388)
गाजी मालिक
- अलाउदीन खिलजी के सेनाध्यक्षों में से गाजी मालिक ने खुसरोशाह को पराजित किया और 8 sep 1320 को गियासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुल्तान बना
- इसने तुगलक वंश की स्थापना की थी
- इसका प्रारंभिक जीवन एक सैनिक के रूप में जलालुद्दीन ख़िलजी के समय प्रारंभ हुआ था
- इसकी योग्यता एवं बहादुरी को देखकर अलाउद्दीन खिलजी ने इसे 1305 में दीपालपुर का सूबेदार एवं सीमा रक्षक नियुक्त किया था
- इसने मंगोलो को पराजित करके उनसे राजस्व वसूल किया
- इब्नबतूता ने इसे तुर्को की ‘कराना’ शाखा का बताया था
- गयासुद्दीन तुगलक की माता -हिन्दू जाट महिला थी
- गयासुद्दीन के पिता – करोना जनजाति का तुर्क था (बलबन के दास थे)
- इब्नबतूता के अनुसार गयासुद्दीन तुगलक ने 29 अवसरों पर मंगोलो को हराया था इसलिए वह गाजी मालिक के नाम से प्रसिद्ध हुआ था
- गयासुद्दीन तुगलक के समय इसका पुत्र जौना खां (MBT) ने दक्षिण भारत मे 1322 में अभियान किया
- वारंगल के काकतीय
- मुदुरे के पाण्ड्य
- द्वार समुद्र के होयसेल को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिलाया
निजामुद्दीन औलिया
- दिल्ली सल्तनत के शासक गयासुद्दीन तुगलक तथा निजामुद्दीन औलिया में मतभेद था
- इब्नबतूता के अनुसार जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल में था तभी गयासुद्दीन को उलुग खा के व्यवहार के चिंताजनक समाचार प्राप्त हुए उसे सूचना मिली कि उलुग खान अपने समर्थकों की संख्या बढ़ा रहा है और औलिया का शिष्य बन गया
- गयासुद्दीन ने उलुग खां ओर औलिया को दिल्ली पहुंचने पर दंड देने की धमकी दी थी
- तो औलिया ने उत्तर दिया था कि “हुनुज दिल्ली दूर अस्त / दिल्ली अभी दूर है “
- गयासुद्दीन तुगलक का अंतिम अभियान बंगाल के विरुद्ध था
- 1325 में बंगाल जीतकर आते समय यमुना से पहले अफगानपुर गाँव मे लकड़ी का शामयाना हाथियों की लड़ाई से गिरा जिससे गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गयी थी
दण्ड व्यवस्था-
- गयासुद्दीन तुगलक ने अलाउद्दीन खिलजी की कठोर नीति और मुबारक शाह खिलजी की लचीली नीति के मध्य मध्यम नीति को अपनाया था
- परन्तु कर न देने वालो, सरकारी धन की बेईमानी करने वालो ओर चोरों को कठोर दंड दिए गए थे
- बरनी के अनुसार तुग़लकशाह के न्याय से भेड़िए को भी इस बात का साहस नही होता था कि वह किसी भेड़ की ओर देखे
राजस्व निर्धारण
- गयासुद्दीन ने कृषि एवं लगान व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया
- गयासुद्दीन ने अलाउद्दीन खिलजी द्वारा प्रारंभ किए गए भूमि की मसाहत पद्धति (भमि नाप कर राजस्व निर्धारण करना) को त्यागकर बटाई तथा नस्क प्रणाली को लागू किया
- किसानो के हित में राजस्व अधिकारियों को आदेश दिया कि एक वर्ष में एक इक्ता (सूबा) के राजस्व में 1/10 या 1/11 से अधिक वृद्धि नही की जावेगी
- गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत में कृषि को समुन्नत करने के लिए नहर खुदवाने वाला पहला सुल्तान था
मोहम्मद बीन तुगलक
- बचपन का नाम – जौना खां
- इसके पिता ने इसको उलुग खां की उपाधि दी थी
- मोहम्मद बिन तुगलक 1325 में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश का सुल्तान बनता है
- अलाउद्दीन खिलजी के समान ही मोहम्मद बिन तुगलक ने भी शासन में उलेमा वर्ग या अन्य किसी का भी हस्तक्षेप स्वीकार नही करता था
- बरनी अपनी पुस्तक – ‘तारीख-ए-फ़िरोजशाही’ में लिखा है की “जब उसने राजस्व प्राप्त किया तो वह शरीयत के नियमो ओर आदेशो से पूर्णतयः स्वतन्त्र था “
- मोहम्मद बिन तुगलक ने अपने सिक्को पर खलीफा का नाम अंकित नही करवाया और ना ही खलीफा के नाम का खुतबा पढ़ा
- मोहम्मद बिन तुगलक ने अपने सिक्को पर ‘अल-सुल्तान-जिल्ली-अल्लाह’ (सुल्तान ईश्वर की छाया है ) अंकित करवाया था
- मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के सुल्तानों में सर्वाधिक पढ़ा लिखा था
- मोहम्मद बिन तुगलक खगोलशास्त्र, गणित, आयुर्विज्ञान, तर्कशास्त्र का ज्ञान था
- मोहम्मद बिन तुगलक को फ़ारसी, अरबी, तुर्की तथा संस्कृत भाषा को भी जानता था
- किंतु फिर भी मोहम्मद बिन तुगलक जीवन भर एक स्थान से दूसरे स्थान तक युद्ध एवं योजनाएं बनाने में ही व्यस्त था
- मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई तब बदायुनी ने कहा था कि -”राजा को अपनी प्रजा से मुक्ति मिली और प्रजा को अपने राजा से “
- मोहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों से सर्वाधिक विस्तृत था इसके साम्राज्य में कुल 23 प्रान्त थे किंतु इसी समय विजयनगर, बहमनी जैसे साम्राज्यों का भी उदय हुआ था
- मोहम्मद बिन तुगलक ने गैर तुर्को ओर भारतीय मुसलमानों को भी सरकारी पदों पर नियुक्त किया था
जिसके कारण बरनी ने उसकी कटू आलोचना की ओर ऐसे व्यक्तियों को छिछोरा, माली, जुलाहा, नाई, रसोइया आदि कहा था
- NOTE – मोहम्मद बीन तुगलक ने अपने शासन के अंतिम वर्षो में उलेमा वर्ग से समझौता किया था जिसके फलस्वरूप खलीफा के प्रति उसका दृष्टिकोण बदल गया जैसे
- मोहम्मद बिन तुगलक ने सिक्को पर अपना नाम हटाकर खलीफा का नाम अंकित करवाया
- मोहम्मद बिन तुगलक ने सुल्तान पद की स्वीकृति के लिए मिस्र के खलीफा से प्रार्थना की ओर 1343 में उसने पद की स्वीकृति खलीफा अलाहकिम द्वितीय से प्राप्त की थी
- मोहम्मद बिन तुगलक ने 200 ग्रेन का सोने का सिक्का चलाया था जिसे दीनार कहा गया
- टँका की आधी कीमत का चांदी का सिक्का चलाया था जिसे अदली कहा गया
- मोहम्मद बिन तुगलक के समय सर्वाधिक विद्रोह हुए
- 34 विद्रोहों में से 27 विद्रोह दक्षिण में हुए
- जिससे अनेक स्वतंत्र राज्य बने जैसे
- 1336 ई में हरिहर एवं बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की
- हसन गेन्गु बहमनी ने 1347 में बहमनी साम्राज्य की स्थापना की थी
- मोहम्मद बिन तुगलक एकमात्र सुल्तान था जिसने उपनिषदों का अध्यन किया
- यह होली दीपावली दशहरा में भाग लेता था
- सिंध के थट्ठा में विद्रोह दमन के समय 1351 मे मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई
- एलिफिस्टन ने लिखा -” कि सुल्तान में पागलपन का कुछ अंश विद्यमान था “
यही मत हैवेल, स्मिथ ने स्वीकार किया जबकि A L श्रीवास्तव के अनुसार सुल्तान में विरोधी तत्वों का मिश्रण था
कथन
- मोहम्मद बिन तुगलक के अंतिम समय में उसमे साम्राज्य का अधिकांश भाग उससे अलग हो गया था
- दक्षिण स्वतंत्र हुआ, बंगाल टूटा, मृत्यु पूर्व सिंध भी इससे अलग हो गया था अतः इन परेशानियों से दुःखी होकर मोहम्मद बिन तुगलक ने टिप्पणी की थी – “मेरा साम्राज्य रुग्ण हो गया ओर यह किसी उपचार से ठीक नही होता है वैद्य सरदर्द को ठीक करता है और तदुपरांत बुखार हो जाता है वह बुखार को ठीक करने की कोशिश करता है तो कुछ और हो जाता है “
ख्वाजा ताश या अर्धदास
- मोहम्मद बिन तुगलक अलाइ अमीरों को ख्वाजा ताश या अर्धदास कहा था
- ख्वाजा ताश का अर्थ – एक मालिक के गुलाम
- सर्वप्रथम गयासुद्दीन तुगलक ने इन्हें महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया था
- ये सभी अलाउद्दीन खिलजी के गुलाम थे
- अमीर-ए-सादो > वे विदेशी सरदार थे जो मध्य एशिया से आये हुए थे इनमे मंगोल, अफगान आदि लोग शामिल थे
- मोहम्मद बिन तुगलक इन्हें एज्जा कहता था
- इसने प्रशासन में योग्यता के आधार पर नियुक्त किया था
- इन्हें सेना में दस अमीरों के उपर नियुक्त सेनापति के रूप में शामिल किया था
- बाद में इन्होंने सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के विरुद्ध ही विद्रोह करना प्रारंभ कर दिया था
Mbt धर्मसहिष्णु शासक
- मोहम्मद बिन तुगलक एक धर्मसहिष्णु शासक था
- मोहम्मद बिन तुगलक अपने साम्राज्य में हिन्दू, बौद्ध तथा जैन सभी धर्मों का सम्मान करता था
- मोहम्मद बिन तुगलक ने रतन नामक हिन्दू को प्रशासन में राजस्व अधिकारी के पद पर नियुक्ति किया था
- मोहम्मद बिन तुगलक जैन विद्वान जिनप्रभा सूरी तथा राजशेखर से परामर्श लिया था
- मोहम्मद बिन तुगलक जैन विद्वान जिनप्रभा सूरी से आधी रात तक वार्तालाप किया करता था
- मोहम्मद बिन तुगलक हिन्दू त्योहारों (जैसे होल ) में भी भाग लेता था
- मोहम्मद बीन तुगलक बहराइच स्थित सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर इब्नबतूता के साथ गया था
- बाद में इसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक भी बहराइच गया था
Mbt के 04 नवीन योजनाएं
- मोहम्मद बिन तुगलक एक महत्वाकांक्षी एव नवीन प्रयोग करने वाला सुल्तान था
- मोहम्मद बिन तुगलक ने प्रशासन एवं राजस्व प्रणाली में सुधार हेतु निम्न योजनाएं चलाई थी
- जिसकी जानकरी हमे निम्न ग्रंथो से मिलती है
जियाउद्दीन बरनी की ‘तारीख-ए-फ़िरोजशाही’
अब्बास खां की ‘मसालिक-उल-अबसार’
इब्नबतूता की ‘रेहला’
इसामी की ‘फुतुह-उस-सलातीन’ से मिलती है
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दोआब में कर वृद्धि (1325-27)
- मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि विस्तार के लिए किसानों को अग्रिम तकावी ऋण दिए
- बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए 1335-36 में ऋण वितरण करवाया
- परन्तु इसी समय दोआब में अकाल पड़ा
- सुलतान स्वयं दिल्ली से निकलकर कड़ा के स्वर्णद्वारी स्थान पर रहा
- किसानों ने ऋण राशि को अन्य कार्यो में प्रयोग किया
- अतः बढ़ा हुआ लगान नही दे सके
- यह योजना भी असफल रही
- ऋण वसूली के लिए तथा कृषि के विकास के लिए मोहम्मद बिन तुगलक ने दीवान-ए-अमीरकोही विभाग की स्थापना की थी
- बरनी के अनुसार मोहम्मद बिन तुगलक ने दोआब में कर की दर को 1/10 से 1/20 गुना अधिक कर दिया था
- कर की वृद्धि दर इतनी अधिक थी कि लोग विद्रोह करने लगे तथा अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी
- अतः मोहम्मद बिन तुगलक ने भयावह स्थिति से निपटने के लिए किसानों को तकावी ऋण (सोंधार) बांटा गया तथा नवीन कृषी विभाग दीवान-ए-अमीर-कोही खोला गया
- जिसका प्रमुख अमीर-ए-कोही (दीवान-ए-कोही) था
- इसका प्रमुख कार्य – राज्य की ओर से किसानों को आर्थिक सहायता देकर कृषि योग्य भूमि का विस्तार करना था
- यह विभाग क़ृषि की उन्नति के लिए फसल चक्र योजना भी लागू करता था
- मोहम्मद बिन तुगलक का समय उसकी असफल योजनाओं के साथ प्राकृतिक आपदाओं के लिए जाना जाता है
- इसी क्रम में उसके राज्य में 12 वर्ष का अकाल पड़ा था
- इसके कारण देश के विभिन्न हिस्सों से लोग केंद्र की तरफ पलायन करने लगे
- अचानक जनसंख्या दबाब बढ़ने एवं उसके अनुरूप सुविधाओं का अभाव के कारण महामारी फैल गयी थी
- इस समय मोहम्मद बिन तुगलक ने स्वर्ण द्वारी नामक स्थान पर अस्थायी शिविर में निवास किया था
- यह शिविर गंगा नदी के किनारे बिलग्राम के पास अवस्थित था
- मोहम्मद बिन तुगलक ने काफी राहत के उपाय किये ओर करो को माफ कर दिया
- अन्य योजनाओं की तरफ इस समस्या में भी सुल्तान पूर्णतः सफल नही रहा था
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राजधानी परिवर्तन (1326-27)
- मोहम्मद बिन तुगलक का साम्राज्य कन्याकुमारी से लेकर दिल्ली तक फैला था
- दक्षिण के विद्रोहो से बचने के लिए राजधानी परिवर्तन दिल्ली से दौलताबाद किया
- बरनी के अनुसार साम्राज्य के केंद्र में देवगिरी स्थित था
- इब्नबतूता के अनुसार दिल्ली के लोग गाली भरे पत्र लिखते थे
- इसामी के अनुसार मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के लोगो को दंडित करने चाहता था
- दौलताबाद में सभी दिल्ली वासियो को घर बनाकर भेजा गया था
- परन्तु पश्चिमोत्तर भारत में मंगोलो के आक्रमण बढ़ गए
- उतर भारत मे विद्रोह बढ़ गए
- अतः पुनः सभी को दिल्ली चलने का आदेश दिया था
- मुबारक ख़िलजी ने देवगिरी का नाम – कुतबाबाद रख दिया था
- मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी का नाम – दौलताबाद रखा था
- देवगिरी को ‘कूतबुल इस्लाम’ भी कहा गया
- मोहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली के नागरिकों को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था
- चूंकि यह साम्राज्य के केंद्र में स्थित था
- यहाँ से दक्कन एवं गुजरात पर नियंत्रण एवं उत्तर-पश्चिम सीमा से मंगोल आक्रमण से सुरक्षा सुनिश्चित थी
- इसके अतिरिक्त दक्षिणी एवं पश्चिमी पतनो तक पहुंच बन गया
- इसामी मोहम्मद बिन तुगलक को ‘खुनी एवं रक्त पिपासु’ कहता है
- दौलताबाद मुस्लिम संस्कृति का केंद्र था
- दौलताबाद पर ही बहमनी राज्य का विकास हुआ था
- लेनपुल ने दौलताबाद को ‘गुमराह शक्ति का स्मारक” कहा था
- एड्वर्ड टॉमस ने मोहम्मद बिन तुगलक को ‘धनवानो का युवराज’ की उपाधि प्रदान की थी
-
सांकेतिक मुद्रा चलना (1329-30)
- मोहम्मद बिन तुगलक के समय विश्व स्तर पर चांदी की कमी हो गयी
- अतः चीन में कुबलई खां ने कागज की मुद्राओं का प्रचलन किया
- वही ईरान के शासक गेकातु खां ने सांकेतिक मुद्रा चलाई
- अतः मोहम्मद बिन तुगलक ने भी एक चांदी के रुपये कांसा सिक्का चलाया
- यह चांदी का टँका 178 ग्रेन के स्थान पर कांसे (मिश्र धातु) का 140 ग्रेन का काला टँका चलाया
- बरनी लिखता है – प्रत्येक हिन्दू का घर टकसाल बन गया था
- व्यापारियों ने काले टँके को लेने से इनकार कर दिया
- अतः सुल्तान को इस योजना को त्यागना पड़ा
- बरनी लिखता है – तुग़लकाबाद के पास काले टँको का ढेर लग गया
- मोहम्मद बिन तुगलक ने मुद्रा के क्षेत्र में विभिन्न प्रयोग किए थे
- इन्ही प्रयोगो के दौरान इसने स्वर्ण सिक्के भी जारी किए जिन्हें इब्नबतूता ने दीनार की संज्ञा दी है
- मोहम्मद बिन तुगलक की दूसरी योजना ही मुद्रा व्यवस्था से संबंधित थी
- चीन एवं ईरान की सांकेतिक मुद्रा से प्रेरित होकर मोहम्मद बिन तुगलक ने भी सांकेतिक मुद्रा के प्रचलन की योजना बनाई थी
- सांकेतिक मुद्रा का अर्थ – चांदी के टँके के स्थान पर कांसे के टँके का प्रचलन
- बरनि के अनुसार – सुल्तान विदेशो के प्रदेशो को जितना चाहता था तथा इसके अतिरिक्त उसमे अपव्यय की आदत थी और उसका खजाना खाली हो रहा था
- यद्यपि इस तर्क को पूरी तरह सही नही माना जाता जा सकता है तथापि सत्य यह है कि सुल्तान ख़ुरासान की विजय करने के विचार से शक्तिशाली सेना का गठन करना चाहता था
- नेल्सन राइट के अनुसार 1327-30 ई में जब सांकेतिक मुद्रा (टोकन मुद्रा) जारी की गई थी उस समय भारत मे ही नही अपितु संसार भर में चांदी की कमी हो गयी थी इन परिस्थितियों में इस बहुमूल्य धातु को बचाने के लिए थोड़े समय के लिए तांबे तथा इससे मिश्रित कांसे के सिक्के जारी किए थे
- मोहम्मद बिन तुगलक ने प्रतीक मुद्रा या टोकन करेंसी को प्रारंभ किया था
- मोहम्मद बिन तुगलक ने कांसे या पीतल की मुद्रा चलाने की योजना बनाई जिसका मूल्य चांदी के टँके के बराबर था
- किंतु यह योजना भी असफल सिद्ध हुई क्योंकि इस सरकार का इस पर पूर्ण नियंत्रण नही था
- लोगो ने वृहत पैमाने पर जाली सिक्को की ढलाई की थी
- अंततः प्रतीक मुद्रा की योजना को वापस ले लिया गया और सरकार ने कांसे के सिक्के बदले चांदी का सिक्का देना शुरू कर दिया
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ख़ुरासान अभियान (1332-34)
- मोहम्मद बिन तुगलक ने भारत से बाहर मध्य एशिया की विजय करने के लिए ईरान के मंगोल नेता तर्माशरीन तथा मिस्र के सुल्तान के साथ मिलकर योजना बनाई गई
- राजपूत ओर मंगोलो की भर्ती कर 3 लाख 70 हजार की सेना भर्ती की गई
- परन्तु तभी तर्माशरीन की मृत्यु की वजह से यह योजना निरस्त कर दी गयी थी
- सेनिको को 6-6 माह का अग्रिम वेतन देकर सेना भंग कर दी गयी
- सेनिको ने डाके डाले और विद्रोह किये
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कराचिल अभियान (1334)
- मोहम्मद बिन तुगलक ने कुलु एवं कांगड़ा के आगे कराचिल राज्य को जीतने के लिए अब्बुसैयड के नेतृत्व में सेना भेजी
- कराचिल को जीतने के बाद सेना आगे बढ़ती चली गयी
- अनेक सैनिक ग्लेशियरों में मारे गए
- यह अभियान भी असफल रहा था
इब्नबतूता
- 1333 में मूर देश (मोरक्को, उत्तरी अफ्रीका) का यात्री था
- इब्नबतूता मोहम्मद बिन तुगलक के समय भारत मे आया था
- मोहम्मद बिन तुगलक इसकी विद्वता से प्रभावित होकर उसे 1334 में दिल्ली का काजी नियुक्त किया
- इब्नबतूता ने अपनी पुस्तक ‘रेहला’ में तुगलक कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, डाक व्यवस्था, गुप्तचर व्यवस्था, दरबारी जीवन आदि के बारे में विस्तार से लिखा है
- जब 1341 में चीनी मंगोल सम्राट तोगन तिमूर ने एक शिष्टमंडल दिल्ली भेजकर बौद्ध मन्दिरो को देखने की अनुमति मांगी तब मोहम्मद बीन तुगलक ने इब्नबतूता को 1342 में राजदूत के रूप में चीन भेजा था किंतु इब्नबतूता चीन ना जाकर अपने स्वदेश लौट गया था
फ़िरोजशाह तुगलक (1351-1388)
- यह मोहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था
- इसके कमज़ोर व्यक्तित्व के कारण दिल्ली सल्तनत का तेजी से पतन हुआ था
- यह योग्य नही था परन्तु यह योग्य व्यक्तियों को पहचान कर उन्हें पदों पर नियुक्त करता था
- इसने सभी विद्रोहियों को माफ कर दिया
- ओर मोहम्मद बिन तुगलक के सभी तकावी ऋणों को माफ कर दिया
- इसने इस्लाम के अनुसार करो को व्यवस्थित कर ओर 5 कर जारी रखे
- Photu
- मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद 1351 में फ़िरोजशाह तुगलक 1351 से 1388 तक दिल्ली का सुल्तान बना था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने सभी सरदारों को प्रसन्न करने के लिए उदारता की नीति अपनाई थी
- फ़िरोजशाह तुगलक ने मुसलमानों के लिए राज्य खर्च पर मक्का मदीना के लिए हज यात्रा की व्यवस्था की थी
- इसने सामाजिक कार्यो, सैन्य अभियानो, धार्मिक कार्यो, अर्थव्यवस्था आदि के बारे में स्वयं लिखित आत्मकथा ‘फुतुहात-ए-फ़िरोजशाही’ में विस्तार से वर्णन किया
- इन्ही सब कार्यो को देखते हुए इतिहासकार बरनी ने फ़िरोजशाह तुगलक को दिल्ली का आदर्श सुल्तान कहा था
- फ़िरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने इस्लाम के कानूनों ओर उलेमाओं को राज्य के शासन में प्रधानता दी थी
- फ़िरोजशाह तुगलक स्वयं को खलीफा का नायब कहता था तथा इसने सिक्को पर ‘खलीफा’ अंकित करवाया था
- फ़िरोजशाह तुगलक को खलीफा से ‘सैय्यद-उस-सलातीन’ की उपाधि मिली थी
- फ़िरोजशाह तुगलक ने अपने खुतबे में ऐबक को छोड़कर सभी पूर्ववर्ती दिल्ली के सुल्तानों का नाम अंकित करवाया था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने मुस्लिम कट्टरता को बढ़ाया था
- ज्वालामुखी मंदिर को तुड़वाकर वहा गाय कटवाई एवं ब्राह्मण को इसलिए मृत्यु दंड दिया गया क्योंकि वह कहता था की -” हिन्दू एवं मुसलमान दोनों ही एकसमान धर्म है”
- फ़िरोजशाह ने ब्राह्मणो पर जजिया कर लगाया
- फ़िरोजशाह तुगलक ने सरकारी पदों को वंशानुगत बनाया
- फ़िरोजशाह तुगलक ने अपनी आय व्यय की गणना करवाई जो 6 करोड़ 85 लाख वार्षिक टँका ज्ञात हुई
- फ़िरोजशाह तुगलक का वजीर खान-ए-जहाँ-तेलगानी था जो धर्म परिवर्तित मुस्लिम था
इसका मकबरा फ़िरोजशाह ने हौज खास दिल्ली में बनवाया
यह भारत का प्रथम अष्टकोणीय मकबरा है
दासों की संख्या
- फ़िरोजशाह तुगलक को दासों का बहुत शौक था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने दासों की देखभाल करने के लिए ‘दीवान-बन्दगान’ (बन्दगान-ए-खास) नामक नए विभाग की स्थापना की थी
- फ़िरोजशाह तुगलक के पास 1 लाख 80 हजार दास थे
- फ़िरोजशाह तुगलक ने गुलामो को सेना एवं इक्ताओ में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करता था
- फ़िरोजशाह तुगलक के ये दास वफादार थे
- अर्ज-ए-बन्दगान = दासों की भर्ती एवं निरीक्षण करने वाला अधिकारी
- चायशगोरी – दासों का दीवान
- नायब चाउशगेरिये – गोरे गुलामो का अधिकारी
- फ़िरोजशाह तुगलक ने दासों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था
दीवान-ए-खैरात
- तुगलक वंश का शासक फ़िरोजशाह तुगलक एक दयालु प्रवृत्ति का था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा प्रदत्त समस्त ऋणों (तकाबी) को माफ कर दिया था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने बेरोजगार के लिए रोगजार-दफ्तर की भी स्थापना करवाई थी
- फ़िरोजशाह तुगलक ने दीवान-ए-खैरात विभाग स्थापित किया तथा मुस्लिम अनाथ स्त्रियों, विधवाओ को आर्थिक सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की थी
- फ़िरोजशाह तुगलक ने एक खैराती अस्पताल ‘दार-उल-शफा’ की स्थापना की थी
- फ़िरोजशाह तुग़लक ने दीवान-ए-खैरात विभाग के अंतर्गत ही विवाह विभाग था जिसके द्वारा गरीब मुस्लिम कन्याओं के विवाह हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाती थी
- विवाह विभाग केवल मुस्लिमों के लिए था
- फ़िरोजशाह तुगलक का दीवान-ए-इहस्तिकाक जो कि एक पेंशन विभाग था जिसकी स्थापना फ़िरोजशाह तुगलक ने निर्धनों एवं वृधो की सामाजिक सुरक्षा हेतु किया गया था
अनुवाद विभाग
- फ़िरोजशाह तुगलक ने प्रथम बार हिन्दू धर्मग्रंथों का फ़ारसी भाषा मे अनुवाद करवाने के लिए एक अनुवाद विभाग की स्थापना की थी
- इसका मुख्य उद्देश्य था कि हिन्दू एवं मुस्लिम धर्मग्रंथों को पढ़कर एक दूसरे के विचारो को समझ सके
- फ़िरोजशाह तुगलक ने अनेक संस्कृत ग्रंथो का फ़ारसी भाषा मे अनुवाद करवाया था
ब्राह्मणो पर जजिया कर
- फ़िरोजशाह तुगलक ने सामाजिक रूप से लोगो की भलाई के लिए कई कार्य किये
- फ़िरोजशाह तुगलक ने अमानवीय दण्ड (मृत्यु दंड या अंग भंग) को बंद कर दिया था
- किंतु धार्मिक रूप से फ़िरोजशाह तुगलक एक कट्टर था
- फ़िरोजशाह तुगलक दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने ब्राह्मणो पर भी जजिया कर लगा दिया
- फ़िरोजशाह तुगलक ने मुस्लिम स्त्रियों को मजार पर जाने की रोक लगा दी थी
लोक निर्माण विभाग
- फ़िरोजशाह तुगलक ने कुतुबमीनार,
- अलाइ दरवाजा
- इल्तुतमिश का मकबरा
- निजामुद्दीन औलिया का मकबरा का पुर्ननिर्माण करवाया
- इसके लिए फ़िरोजशाह तुगलक ने सार्वजनिक निर्माण विभाग स्थापित किया जिसे मीर-ए-ईमारत कहा गया
- फ़िरोजशाह तुगलक ने लोक कल्याणकारी कार्य एवं नवीन नगरों की स्थापना के उद्देश्य से सर्वप्रथम लोकनिर्माण विभाग की स्थापना की थी
- इसके अंतर्गत – फ़िरोजशाह कोटला
- जौनपुर
- फिरोजाबाद
- फतेहाबाद
- हिसार आदि नगरों की स्थापना की थी
- कई स्थानों पर किले, मकबरा एवं नहरों का निर्माण किया गया
- 1354 में हिसार का किला बनवाया जिसमे दिल्ली गेट, मोरी गेट, नागौरी गेट व तालाकि गेट नाम के 04 द्वार बने हुए थे
- फ़िरोजशाह तुगलक नें अशोक के टोपरा के स्तम्भ को ‘सोने का स्तंभ’ कहा था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने टोपरा तथा मेरठ स्थित अशोक के 2 स्तम्भ को दिल्ली लाकर स्थापित करवाया था
- लोक निर्माण विभाग का प्रमुख वास्तुकार – मालिक गाजी शाहना था
अबुलहक उसका सहायक था
प्रत्येक भवन की योजना को उसके व्यय अनुमान के साथ दीवान-ए-विजारत के सम्मुख रखा जाता था तभी उस पर धन स्वीकार किया जा सकता था
फिरोजपुर नगर को आखरीनपुर (अंतिम नगर) भी कहा जाता है
फ़िरोजशाह तुगलक ने अपने नाम से 1352 में दिल्ली में ‘मदरसा-ए-फ़िरोजशाही’ नामक मदरसे का निर्माण करवाया था
- फ़रिश्ता के अनुसार फ़िरोज ने 40 मस्जिदें, 30 विद्यालय, 20 महल, 100 सराए, 200 नगर, 100 अस्पताल, 5 मकबरे, 100 सार्वजनिक स्नानगृह, 10 स्तम्भ ओर 150 पुलों का निर्माण कराया था
- फ़िरोजशाह तुग़लक ने अपने बंगाल अभियान के दौरान उसने इक़दला का नया नाम आजादपुर तथा पांडुआ का नया नाम फिरोजाबाद रखा था
रिश्वतखोरी
- दिल्ली सल्तनत में फ़िरोजशाह तुगलक में स्वयं प्रशासन में घूसखोरी को प्रोत्साहित किया गया था
- शम्स-ए-सिराज अफिक के अनुसार सुल्तान ने एक सैनिक को एक टँका दिया ताकि वह रिश्वत देकर अपना घोड़ा ‘दीवान-ए-अर्ज’ से पास करवा सके
- यद्यपि सल्तनतकाल में प्रशासन ‘जवाबीत’ (राज्य के कानून) के नियमो से चलाए जाता था
- जबकि शरीयत के आधार पर फ़िरोजशाह तुगलक ने स्वीकृत ‘कर’ को ही अपने साम्रज्य में लागू किया
- शरीयत द्वारा स्वीकृत कर – उश्र, खराज, ख़ुम्स, जकात, जजिया थे जबकि विवाह कर को मान्यता नही थी
नहरे
- फ़िरोजशाह तुगलक ने कृषि की उन्नति के लिए व्यापक स्तर पर नहरो को जाल बिछा दिया था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने 5 बड़ी नहरे बनवाई थी
- प्रथम नहर – 150 मिल लंबी थी जो यमुना नदी का पानी हिसार तक ले जाती थी (उलुगखानी नहर )
- द्वितीय नहर – 96 मील लम्बी थी जो सतलज से घग्घर नदी तक थी
- तृतीय नहर – सिरमौर की पहाड़ियों से निकलकर हाँसी तक जाती थी
- चौथी नहर – घग्घर नदि से फिरोजाबाद तक थी
- पांचवी नहर – यमुना नदी से फिरोजाबाद तक थी
- नहरों द्वारा सिंचाई करने पर फ़िरोजशाह तुगलक ने हक्क-ए-शर्ब नामक सिंचाई कर लगाया था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने उशरी भूमि (मुस्लिमों के अधीन) से 1/10 भूराजस्व वसूला था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने फलों की गुणवत्ता सुधारने हेतु कई उपाय किये
- फ़िरोजशाह तुगलक ने दिल्ली तथा इसके समीप के क्षेत्रों में 1200 बाग लगवाए थे
अपने बागों में फलों की गुणवत्ता सुधारने का भी प्रयास किए थे
- फ़िरोजशाह तुगलक ने शशगनी नामक चांदी का सिक्का चलवाया था जो कि 6 जीतल के बराबर था
- फ़िरोजशाह तुगलक की नहर प्रणाली का विस्तृत वर्णन याहिया बिन अहमद सरहिंदी की पुस्तक ‘तारीख-ए-मुबारकशाही’ में वर्णित है
- अफिक के अनुसार फ़िरोजशाह तुगलक ने आधा ( ‘½’ ) ओर बिख (¼) नामक ताम्बा ओर चांदी निर्मित सिक्के चलवाये थे
- फ़िरोजशाह तुगलक के समय टकसाल का स्वामी – कजरशाह था
- फ़िरोजशाह तुगलक ने अपने सिक्को पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र तथा उत्तराधिकारी फतह खां का नाम अंकित करवाया था
नासिरुद्दीन महमूदशाह (1394-1412)
- तुगलक वंश का अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद शाह (1394-1412) था
- इसी के समय तैमूर लंग ने 1398 में भारत पर आक्रमण कर दिया था
- तैमुर दिल्ली के स्थापत्य कला से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने यहाँ से शिल्पी, राजमिस्त्री तथा निपुण कारीगर ट्रांस-ऑक्सियाना (राजधानी समरकंद) ले गया था
- तुगलक वंश के शासको का दिल्ली सल्तनत में सबसे लंबा कार्यकाल था
वजीर
- तुगलक काल मे वजीर का दायित्व केवल सैनिक विभाग तक ही समिति नही था
- अफिक लिखते है कि तुगलक काल मे वजीर का पद का न केवल महत्व बढ़ा बल्कि फ़िरोजशाह तुगलक के समय यह चरम शिखर पर जा पहुंचा
- परवर्ती तुगलक काल मे निर्बल उत्तराधिकारियों के कारण वजीर अधिक शक्तिशाली हो होते गए थे
- नासिरुद्दीन महमुद के समय एक नये कार्यालय ‘वकील-ए-सुल्तान’ की स्थापना हुई थी
- तुगलक काल मे विजारत का स्वर्णकाल कहा गया था
- दिल्ली सल्तनत – सैय्यद वंश (1414-1451)
खिज्र खा सैय्यद (1414-1421)
- 1398 ई में तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमुद था इसके समय दिल्ली पर तैमूर का आक्रमण हुआ था
- तैमुर ट्रांस-ऑक्सियाना (ईरान) के तुर्को की बरलास नस्ल का था
इसने खैबर दर्रे को पार कर भारत पर आक्रमण किया
तैमुर ने दिल्ली में 15 दिनों तक लूटपाट की थी
तैमुर ने भारतीय कारीगर,
- सोना चांदी
- दुर्बल वस्तुएं
- हाथी व घोड़े
- दास एवं दासियों लेकर समरकंद लौटा
- तैमुर ने अपनी ओर से लाहौर, दीपालपुर एवं मुल्तान का गवर्नर खिज्र खा सैय्यद को बनाया
- खिज्र खा ने 1414 में नासिरुद्दीन मोहम्मद को दिल्ली के पद से हटाकर खुद को शासक घोसित कर दिया
- तुगलक वंश के पतन के बाद खिज्र खां ने तैमुर की सहायता से सैय्यद वंश की स्थापना की थी
- खिज्र खा सुल्तान की उपाधि धारण ना करके रैय्यत-ए-आला की उपाधि से संतुष्ट रहा था
क्योंकि खिज्र खा तैमूर लंग के पुत्र शाहरुख के अधीन मानता था
- खिज्र खां के बाद क्रमश
- मुबारक शाह (1421-1434)
- मुहम्मद शाह (1434- 1445)
- अलाउद्दीन आलमशाह (1445-51)
ने शासन किया था
- सैय्यद वंश के सुल्तान स्वयं को पैगम्बर मोहमद का वंशज मानते थे
NOTE- सैय्यद वंश का इतिहास जानने का महत्वपूर्ण स्त्रोत याहिया-बिन-अहमद-सरहिंदी की ‘तारीख-ए-मुबारकशाही’ थी
सरहिंदी को मुबारकशाह ने संक्षण दिया था
मुबारकशाह सैय्यद (1421- 1434)
- सैय्यद वंश का पहला शासक जिसने सुल्तान की उपाधि ली थी
- अपने नाम का खुतबा पढ़वाया
- एव सिक्के जारी किए
- इसके लेखक याहिया अहमद सरहिंदी ने अपनी रचना – ‘तारीख-ए-मुबारकशाही’ में इस सुल्तान का इतिहास लिखा था
मोहम्मद शाह सैय्यद (1434-1445)
- इसने बहलोल लोदी को ‘खान-ए-जहाँ’ की उपाधि दी थी एवं उसे फ़र्ज़न्द या पुत्र कहता था
अलाउदीन आलम शाह (1445-1451)
- इसके समय बहलोल लोदी सेना के साथ दिल्ली आया
- अलाउद्दीन आलमशाह बदायू चला गया एवं बहलोल लोदी को दिल्ली सल्तनत का शासन सौंपा
- इसी के समय दिल्ली में लोदी वंश की स्थापना हुई थी
दिल्ली सल्तनत – लोदी वंश (1451-1526)
- बहलोल लोदी (1451-1489)
- सिकन्दर लोदी (1489-1517)
- इब्राहिम लोदी (1517-1526)
दिल्ली सल्तनत का शासक -बहलोल लोदी
- लोदी वंश प्रथम अफगान वंश था जिसने दिल्ली पर शासन किया था
- लोदी वंश की स्थापना – बाहलोल लोदी (1451-1489) ने की थी
- बहलोल पहले सरहिंद का गवर्नर था
- यह अफ़ग़ानों की गिलजेई कबीले की शहूखेल शाखा से संबंधित था
- बहलोल लोदी अपने सरदारों के सामने कभी नही बैठता था
- लोदी ने उदघोषित किया था कि ‘राजत्व ही बंधुत्व तथा बंधुत्व ही राजस्व है’ के सिद्धांत पर शासन किया था
- इसने अफ़ग़ान राजत्व का पालन किया
- यह कभी भी सिहांसन पर नही बैठता था
यह साथी सरदारों के साथ दरी या गलीचे पर बैठता था
इसे समता का सिद्धांत या सामानों में प्रथम (first among equal) का सिद्धांत कहते है
- ये स्वयं को मनसद-ए-आली कहकर पुकारता था
- बहलोल लोदी दिल्ली के शासको में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला सुल्तान था
- इसने 38 वर्ष तक शासन किया था
- इसने दिल्ली का सुल्तान बनकर 1484 में जौनपुर को जीता एवं सल्तनत में मिलाया था
- बहलोल लोदी अपने पुत्र बारबक शाह को जौनपुर का शासक नियुक्त किया था
- बहलोल लोदी ने बहलोली नामक तांबे से सिक्के चलाये थे जो अकबर के सिक्को से पूर्व तक उतरी भारत मे विनिमय के मुख्य साधन थे
दिल्ली सल्तनत का शासक – सिकंदर लोदी
- लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक था
- यह हिन्दू सुनार माता का पुत्र था
- इसने बहलोल की अफगान राजत्व या समानों में प्रथम की नीति को त्याग दिया
यह सिहांसन पर बैठता था
एवं सरदारों को सुल्तान के प्रति पूर्ण सम्मान देने के लिए विवश करता था
इसने कहा “मेरे आदेश पर मेरे सरदार मेरे सेवक या मेरे मेला को पालकी में बैठाकर कंधा देके ले जाएंगे
- बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद जुलाई 1489 ई में सिकन्दर लोदी दिल्ली के सिहांसन पर बैठा था
- सिकन्दर लोदी, लोदी वंश का महान शासक था
- सिकन्दर ने 1504 ई में यमुना नदी के किनारे आगरा नामक नवीन शहर बसाया था और 1506 ई में आगरा को अपनी राजधानी बनाई थी
आगरा नगर की स्थापना का उद्देश्य राजस्थान के राजपूत शासको पर नियंत्रण रखना था
- सिकन्दर लोदी ने गुलरुखी उपनाम से फ़ारसी भाषा मे अपनी कविताओं की रचना करता था
- सिकन्दर के आदेश पर उसके वजीर मियां भुआ ने संस्कृत भाषा के औषधीय शास्त्र पर आधारित एक ग्रन्थ तिब्ब-ए-सिकंदरी या फरहग-ए-सिकन्दरी नाम से फ़ारसी भाषा मे अनुवाद किया
- सिकन्दर लोदी ने नाप का पैमाना ‘गज-ए-सिकन्दरी’ 30 इंच का आरंभ करवाया था
- सिकन्दर लोदी ने खाद्यानों पर लगे कर (चुंगी एवं जकात) को समाप्त कर दिया तथा व्यापारिक प्रतिबंधो को हटा लिया था
- सिकन्दर लोदी शिक्षित एवं महान विद्वान शासक था
- यह फ़ारसी भाषा का ज्ञाता था
- यह गुलरुखी उपनाम से फ़ारसी भाषा मे कविताएं लिखता था
- यह विद्वानों का सम्मान करता था तथा उन्हें सरंक्षण प्रदान करता था
- इसने शिक्षा में सुधार के लिए अरब, फारस, तथा मध्य एशिया के विद्वानों को आमंत्रित किया था
- सिकन्दर के समय योग्य व्यक्तियों की एक सूची बनाकर प्रत्येक छ माह बाद उसके सामने प्रस्तुत की जाती थी
- सिकन्दर शहनाई सुनने का बहुत शौकीन था
- सिकन्दर के समय मे गायन विद्या में एक श्रेष्ठ ग्रन्थ – ‘लज्जत-ए-सिकंदरशाही’ की रचना हुई थी
- यह कट्टर मुस्लिम था
इसने तीर्थ यात्रा कर वसूला
एवं यमुना तट पर हिन्दुओ के स्नान करने पर रोक लगा दी थी
- सिकन्दर लोदी ने अष्टकोणीय इमारतों पर बल दिया
इसका मकबरा खेरपुर दिल्ली में है
गुरुनानक देव जी एवं सिकन्दर लोदी
- गुरु नानक भक्ति आंदोलन के एक श्रेष्ठ संत थे
- इनका जन्म – 15 अप्रैल 1469 में पंजाब के गुजरावाला जिले के तलवंडी (ननकाना साहिब नामक गाँव) मे हुआ था
- 18 वर्ष की आयु में इनका विवाह हुआ था तथा इनके दो पुत्र भी थे
- नानक देव जी ने सिकन्दर लोदी के शासन काल मे सिक्ख धर्म की स्थापना की थी
दिल्ली सल्तनत का शासक -इब्राहिम लोदी
- इब्राहिम लोदी, लोदी वंश के शासक सिकन्दर लोदी का पुत्र था
- यह सिकन्दर की मृत्यु के बाद 1517 में दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था
- इसका छोटा भाई जलाल खां लोदी था
जो काल्पी का गवर्नर था
जलाल लोदी ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया
अतः कुछ समय के लिए दोनों भाइयों में साम्राज्य विभाजन हो गया था
परन्तु इब्राहिम ने जलाल खा को पराजित किया और उसके सहयोगियों को ग्वालियर के दुर्ग में कठोर दंड दिया
- 1517-18 के बीच इब्राहिम लोदी एवं मेवाड़ के राणा सांगा के मध्य खतौली का युद्ध हुआ था
ईस युद्ध मे इब्राहिम लोदी की हार हुई
पुनः1518-19 में बाड़ी(धौलपुर) में साँगा ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया
- इब्राहिम लोदी ने अपने वजीर मीयां भुवा से नाराज होकर ग्वालियर दुर्ग में स्थापित नरक में डाला एवं मृत्युदंड दिया
तथा चाचा आलम खां लोदी,
लाहौर गवर्नर दौलत खां लोदी को दंड देने के लिए आगरा आने का निर्देश दिया
अतः दोनों ने डरकर बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया
- इब्राहिम लोदी ने कहा था -” राजा का कोई सगा संबंधी नही होता है”
- 21 अप्रैल 1526 को पानीपत के प्रथम युद्ध बाबर ओर इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ था
ईस युद्ध मे इब्राहिम की पराजय हुई थी
इब्राहिम इस युद्ध मे रण भूमि में मारा गया
- ‘तारीख-ए-जहानी’ के लेखक नियामतुल्ला के अनुसार युद्ध मैदान में मरने वाला यह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था
- पानीपत के युद्ध मे इब्राहिम के साथ मरने वाला ग्वालियर के शासक विक्रमजीत भी थे
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