दोस्तो हमने जर्मनी का एकीकरण के नोट्स उपलब्ध करवाने का प्रयास किया है
Contents
जर्मनी का एकीकरण जर्मन राज्यो की भौगोलिक स्थिति 1 उतरी जर्मन राज्य 2 मध्य जर्मन राज्य 3 दक्षिण जर्मन राज्य कार्ल्सबाद घोषणा – 1819जर्मन का एकीकरण मे बाधक तत्व जर्मनी का एकीकरण मे सहायक तत्व 1 बर्शनशैफ्ट2 लेखको के प्रयास 3 जालवरिन (सिमा शुल्क संघ) – 18194 1848 की क्रांति का प्रभावजर्मनी का एकीकरण के प्रमुख व्यक्ति 1 विलियम प्रथम 2 बिस्मार्क जर्मनी का एकीकरण के चरण A प्रथम चरण B जर्मनी का एकीकरण का द्वितीय चरणजर्मनी का एकीकरण का तृतीय चरण
जर्मनी का एकीकरण के हमने विभिन्न चरणों मे पूरा किया है
जर्मनी का एकीकरण के नोट्स को एक व्यस्थित रूप से लिखने का प्रयास किया है
हमने हमारी इस वेबसाइट पर विश्व इतिहास के विभिन्न टॉपिक के नोट्स उपलब्ध करवाए है उन्हें आप पढ़ सकते हो
जर्मनी का एकीकरण

- जर्मन राज्यो के आपसी विलय के लिए एकीकरण शब्द गलत है इसके स्थान पर साम्राज्य के लिए अधारिकरण शब्द को सही माना जाना चाहिए
- प्रशा ने जर्मन राज्यों का एकीकरण करवाने के बाद भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखा
- जर्मनी का एकीकरण मे प्रशा ने अपना बलिदान नही दिया था जबकि इटली के एकीकरण मे पिटमोंड सार्डिनिया का अस्तित्व समाप्त हो गया था
- इटली की अपेक्षा जर्मनी का एकीकरण बाद में प्रारंभ हुआ इसका कारण यह था कि नेपोलियन के आक्रमणों का भीषण प्रहार जर्मन राज्यो को झेलना पड़ा
- नेपोलियन के आक्रमण के कारण जर्मन राज्य सैनिक व आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो गए
- यूरोपीय राज्यो में सर्वाधिक विभक्त राज्य जर्मन राज्य थे
- नेपोलियन ने 300 भागो मे विभक्त जर्मन राज्यो को 39 राज्यो का जर्मन राइन परिसंघ बनाया गया था
- प्रशा इस संघ का सदस्य था जबकि ऑस्ट्रिया इस संघ का अध्यक्ष था
- इस राइन संघ में आकार व सैन्य दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य प्रशा था
- इन सभी राज्यो ने मिलकर एक सभा का निर्माण किया जिसे डाइट कहा गया डाइट पर ऑस्ट्रिया ने नियंत्रण बना रखा था जबकि प्रशा चाहता था कि जर्मन राज्य उसके नियंत्रण में रहे
- इटली व जर्मनी के राज्यो मे राष्ट्रीयता की भावना सर्वप्रथम नेपोलियन ने उत्पन्न करी
- लिप्सन ने लिखा कि – “आधुनिक इतिहास के मजाकों में से सबसे बड़ा मजाक यह कि वर्तमान जर्मनी का जन्मदाता नेपोलियन को माना जाता है”
- फिशर के अनुसार “जर्मन राज्यो मे नेपोलियन की सरकार बनना एक दुखद किंतु एक लाभदायक घटना थी”
- 1815 की वियेना व्यवस्था ने इटली की तरह जर्मनी के एकीकरण को भी नुकसान पहुंचाया इस व्यवस्था द्वारा 39 जर्मन राज्यो का परिसंघ बनाया गया जो ऑस्ट्रिया के प्रभाव में रखा गया इन जर्मन राज्यो की सयुंक्त पर्शियन डाइट बनाई गई जो कि ऑस्ट्रिया के प्रभाव में थी
- 39 जर्मन राज्यो मे से एक राज्य प्रशा भी था प्रशा जर्मन परिसंघ को अपने प्रभाव में रखना चाहता था
जर्मन राज्यो की भौगोलिक स्थिति
1 उतरी जर्मन राज्य
- प्रशा, सैक्सनी, हनोवर व फ्रैंकफर्ट
2 मध्य जर्मन राज्य
- राइनलैंड
3 दक्षिण जर्मन राज्य
- बवेरिया, बादेन, वुटेम्बर्ग, प्लेटीनेट व हेमडर्मेस्टेड, ऑस्ट्रिया राज्य थे
- दक्षिण जर्मन राज्य फ्रांस के प्रभाव में थे इसलिए प्रशा को फ्रांस के साथ भी युद्ध लड़ना था
- 1815 की वियेना व्यवस्था के बाद ऑस्ट्रिया ने कार्ल्सबाद घोषणा के द्वारा जर्मन राज्यो मे कठोर नीति अपनाना प्रारंभ कर दिया
कार्ल्सबाद घोषणा – 1819
- एक युवक कालसेंड ने पत्रकार कोतजिलन की हत्या कर दी इसलिए मेटरनिक (ऑस्ट्रिया का चांसलर) ने इस घोषणा के द्वारा नागरिक स्वतन्त्रताओ पर कठोर प्रतिबंध लागू कर दिए
जर्मन का एकीकरण मे बाधक तत्व
- जर्मन राज्यो मे ऑस्ट्रिया का प्रभाव
- ऑस्ट्रिया जर्मन राज्यो मे राष्ट्रवाद की स्थापना नही करना चाहता था
- जर्मन राज्यो के मामलों में विदेशी राष्ट्रो का हस्तक्षेप जैसे इंग्लैंड व फ्रांस
- इंग्लैंड –
- जर्मनी के उत्तरी भाग में स्थित हनोवर प्रान्त के माध्यम से जर्मनी में हस्तक्षेप करना चाहता था और यही कारण था कि इंग्लैंड भी जर्मनी का एकीकरण नही चाहता था
- फ्रांस –
- जर्मनी के एकीकरण मे फ्रांस भी एक बाधा के समान था फ्रांस नही चाहता था कि उसके पड़ोस में कोई शक्तिशाली देश बने
- जर्मन राज्यो की कमजोर सैनिक शक्ति
- जर्मन राज्यो की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक विषमताएं
- जर्मन राज्यो मे जनजनजागृति का अभाव
- दक्षिणी राज्यो मे कैथोलिक मत का प्रभाव –
- दक्षिण के राज्य कैथोलिक मत से थे पॉप का इन राज्यो पर नियंत्रण था फ्रांस के द्वारा पॉप को सहयोग दिया जा रहा
जर्मनी का एकीकरण मे सहायक तत्व
1 बर्शनशैफ्ट
- 1815 मे जर्मनी के ज़ेना विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस संस्था का गठन किया
- इस संस्था का उद्देश्य – तत्कालीन व्यवस्था को परिवर्तित करना नही था बल्कि इसका उद्देश्य नैतिक चरित्र के उत्थान से ही जर्मनी का उत्थान हो सकता है
- जर्मनी के युवाओं में राष्ट्र भक्ति की भावना को जाग्रत करना था
2 लेखको के प्रयास
- हार्डनबर्ग नोवालिस की रचनाएं जर्मनी के अतीत पर प्रकाश डालती थी
- हर्डर ने मानव स्वतंत्रता के बारे में विचार प्रकट किए
- फिक्टे ने फ्रांस के जर्मन विरोधी राष्ट्रवाद को बताया
- हीगल ने यह कहा कि सभी विचारधारा का केंद्र राष्ट्र ही होना चाहिए
- हीगल के अनुसार व्यक्तियों को केवल उतने ही अधिकार प्राप्त होने चाहिए कि जितने की राष्ट्र प्रदान करता है
- हेनरिक आर्नडाइट, डालेमन, रांके, बोमर व हासर की रचनाओं ने भी जर्मन लोगो मे राष्ट्रीयता की भावना जागृत करी थी
3 जालवरिन (सिमा शुल्क संघ) – 1819
- जर्मनी के राजनैतिक एकीकरण का मुख्य आधार उसका आर्थिक एकीकरण माना जाता है
- केटलबी व रोबर्ट इरगेंग ने लिखा कि प्रशा के नेतृत्व में जालवरिन के गठन ने जर्मनी के एकीकरण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- केटलबी ने कहा था कि जालवरिन ने भविष्य मे प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया
- 1819 मे प्रशा ने जर्मन राज्य श्वाजबर्ग सौन्दर्न के साथ समझौता करके जालवरिन का गठन किया 1834 तक लगभग सभी जर्मन राज्य इससे जुड़ गए
- अर्थशास्त्री फ्रेडरिक लिस्ट की विचारधारा के कारण जालवरिन का गठन हुआ फ्रेडरिक लिस्ट को जर्मन रेलमार्ग का जनक भी कहा जाता है
- फ्रेडरिक लिस्ट के अनुसार जालवरिन ने आर्थिक एकता के लिए निश्शुल्क व्यापार पर जोर दिया
- जालवरिन का मुख्य उद्देश्य राइन संघ के राज्यो के मध्य कर मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना
- इस व्यवस्था से जर्मनी के व्यापार वाणिज्य मे वृद्धि हुई
- जालवरिन के गठन के कारण ब्रिटेन की जर्मन राज्यो के प्रति सहानुभूति बढ़ी ऑस्ट्रिया भी जालवरिन मे शामिल होना चाहता था किंतु प्रशा ने ऐसा नही होने दिया
- प्रशा के रूर क्षेत्र में लौहे व कोयले की खाने मिलने के कारण आर्थिक विकास की गति तेज हुई
4 1848 की क्रांति का प्रभाव
- 1848 की फ्रेंच क्रांति के प्रभाव के कारण कई जर्मन क्षेत्रों में विद्रोह प्रारंभ हो गए एव उदार संविधान लागू कर दिया गया
- मार्च 1848 में जर्मन राज्य अपना संविधान बनाने के लिए फ्रैंकफर्ट मे इकट्ठे हुए
- मार्च 1849 में जर्मन राज्यो ने फ्रैंकफर्ट मे संविधान बना दिया
- 1849 मे जो संविधान बनाया गया था इसे उदार संविधान की संज्ञा दी गयी
- फ्रैंकफर्ट संविधान के अनुसार प्रशा के राजा को जर्मन राज्यो का राजा चुना गया किंतु प्रशा के फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ (1840- 58) ने ऑस्ट्रिया के दबाव के कारण राजा का पद अस्वीकार कर दिया
जर्मनी का एकीकरण के प्रमुख व्यक्ति
1 विलियम प्रथम
- 1861 मे यह प्रशा का शासक बना
- यह उदारवादी विचारों में विश्वास रखता था लेकिन इसका मानना था कि जर्मनी का एकीकरण राजतंत्र व सेना के माध्यम से ही हो सकता है इसलिए विलियम प्रथम ने प्रशा की सैन्य शक्ति को बढ़ाने के प्रयास किये
- वोन सिब्बल ने अपनी पुस्तक फाउंडेशन ऑफ जर्मन एम्पायर मे लिखा कि विलियम प्रथम यद्यपि राजनैतिक दृष्टि से परिपक्व नही था किंतु इसमे एक अनोखी प्रतिभा थी वह जानता था कि क्या प्राप्त हो सकता है और क्या नही
- विलियम प्रथम प्रशा की सैनिक शक्ति को बढ़ाना चाहता था उसने वोन रून को युद्ध मंत्री एव वोन माल्टेक को सेनापति के पद पर नियुक्त किया
- सैनिक आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए बजट की आवश्यकता थी प्रशा के निचले सदन में उदारवादियों का बहुमत था इस कारण उन्होंने बजट देने से मना कर दिया
- विलियम प्रथम ने विवश होकर वोन रुन की सलाह पर 1862 मे बिस्मार्क को प्रधानमंत्री नियुक्त किया बिस्मार्क अंतर्राष्ट्रीय मामलो का जानकार व कुशल कूटनीतिक था
- बिस्मार्क ने विलियम प्रथम से कहा था “श्रीमान मै आपके साथ नष्ट हो जाना स्वीकार करूंगा किंतु संसदीय सरकार के विरुद्ध संघर्ष में आपका साथ नही छोड़ूंगा”
- बिस्मार्क ने संसद के ऊपरी सदन से बजट को पास करवाना प्रारंभ कर दिया एव सैनिक जरुरतों को पूरा किया
2 बिस्मार्क
- 1815 मे प्रशा के ब्रेडनबर्ग मे बिस्मार्क का जन्म हुआ
- इसके विचार रिफ्लेक्शन एन्ड रेमिनीसेन्सेज नामक पुस्तक में मिलते है
- बिस्मार्क प्रशा की प्रशासनिक सेवाओं में लोकसेवक के रूप भर्ती हुआ
- 1847 मे बिस्मार्क सयुंक्त पर्शियन डाइट में प्रशा की ओर से प्रतिनिधि नियुक्त हुए
- 1851 मे बिस्मार्क फ्रैंकफर्ट की सभा मे प्रशा की ओर से प्रतिनिधि बना
- 1859 मे बिस्मार्क प्रशा की ओर से रूस में राजदूत नियुक्त हुआ एव 1862 मे फ्रांस में राजदूत बना
- बिस्मार्क कहता है कि – “मैं अपने युग की उस भावुकता से डरता हु जहाँ प्रत्येक दीवाना विद्रोही अपने आप को सच्चा देशभक्त समझता है”
- बिस्मार्क गणतंत्र से घृणा करता था जर्मनी के एकीकरण मे बिस्मार्क ने रक्त व लौहे की नीति का प्रयोग किया था जबकि एकीकरण के बाद बिस्मार्क ने शक्कर व बेर की नीति का प्रयोग किया
- बिस्मार्क कहता है कि प्रशा के सम्मान के लिए सबसे प्रमुख बात यह है कि प्रशा को लोकतंत्र से बचाना है प्रशा का लोकतंत्र के साथ सम्पर्क हास्यास्पद है
- बिस्मार्क ने ऑस्ट्रीया के साथ पहले सहयोग की नीति अपनाने का निर्णय लिया था
जर्मनी का एकीकरण के चरण
A प्रथम चरण
■ डेनमार्क से युद्ध एव गेस्टाइन समझौता
- उद्देश्य
- विस्मार्क 39 जर्मन राज्यो के परिसंघ को भंग घोषित करवाना चाहता था
- ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध की परिस्थिति उत्पन्न करना चाहता था
- प्रशा व डेनमार्क के मध्य होलस्टाइन व श्लेसविग नामक बंदरगाह थे
- होलस्टाइन मे जर्मन लोग बहुसंख्यक थे श्लेसविग मे भी जर्मन थे किंतु बहुसंख्यक मे डेन जनसंख्या थी ये लोग जर्मनी के एकीकरण के विरोधी थे
- 1852 की लन्दन की गुप्त संधि के अनुसार यूरोपीय राज्यो ने यह दोनो स्थान डेनमार्क को इस शर्त पर दिए कि वह इन पर शासन करेगा किंतु पूरी तरह विलय नही करेगा
- जर्मन राज्य ऑगस्टनबर्ग इन क्षेत्रों पर अधिकार करना चाहता था उसने डेनमार्क के साथ हुई शर्त के कारण खुद को शांत रखा
- 1863 मे डेनमार्क ने इन क्षेत्रों पर पूरी तरह अधिकार कर लिया इससे ऑगस्टनबर्ग नाराज हो गया एव इस मामले को जर्मन परिसंघ में ले गया जर्मन परिसंघ एक अलग राजा के अधीन इन क्षेत्रों को जर्मन परिसंघ में शामिल करना चाहता था
- प्रशा स्वयं इन क्षेत्रों पर अधिकार करना चाहता था
- जनवरी 1864 में बिस्मार्क इस मामले को लेकर ऑस्ट्रीया से मिला एव दोनो ने समझौता किया कि बिना जर्मन परिसंघ को शामिल किए वे इस मामले को हल कर लेंगे
- फरवरी 1864 में प्रशा व ऑस्ट्रिया ने मिलकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया
- ओकटुम्बर 1864 की वियेना की संधि के अनुसार श्लेसविग, होलस्टाइन व लोवेनबुर्ग के क्षेत्र प्रशा व ऑस्ट्रिया के नियंत्रण में आ गए
- इन क्षेत्रों की समस्या को हल करने के लिए प्रशा व ऑस्ट्रिया मे एक समझौता हुआ
गेस्टाइन समझौता – 14 अगस्त 1865
- यह प्रशा के शासक विलियम प्रथम एव ऑस्ट्रिया के शासक फ्रांसीस जोसेफ के मध्य हुआ
- होलस्टाइन ऑस्ट्रिया के पास रहेगा
- श्लेसविग प्रशा के पास रहेगा
- लोवेनबुर्ग का क्षेत्र जो कि एक डच बस्ती थी जिसे प्रशा ने खरीद लिया
- कील का बंदरगाह ऑस्ट्रिया के पास रहेगा किंतु प्रशा को भी यहाँ पर किलेबंदी का अधिकार रहेगा
- गेस्टाइन समझौता ऑस्ट्रिया की एक राजनीतिज्ञ भूल थी
- होलस्टाइन मे जर्मन जनसंख्या ज्यादा थी जिसे आगामी युद्ध का कारण माना गया
- बिस्मार्क ने इस समझौते के द्वारा ऑस्ट्रिया के साथ झगड़े की स्थिति को उत्पन्न कर दिया
- बिस्मार्क ने कहा कि “मैने दरार को कागज दे ढक दिया”
B जर्मनी का एकीकरण का द्वितीय चरण
■ ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध – 1866
- कारण
- प्रशा होलस्टाइन मे ऑस्ट्रिया के विरुद्ध विद्रोह भड़का रहा तो ऑस्ट्रिया ने कील बंदरगाह पर प्रशा के विरुद्ध विद्रोह भड़काना प्रारम्भ कर दिया
- प्रशा के नेतृत्व में जालवरिन के गठन के कारण भी जर्मन राज्यो की इंग्लैंड से नजदीकियां बढ़ने लगी तो इससे ऑस्ट्रिया नाराज हो गया
- बिस्मार्क ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध के समय फ्रांस को तटस्थ रखना चाहता था इसके लिए सितंबर 1865 मे बियारिज नामक स्थान पर बिस्मार्क ने नेपोलियन तृतीय से मुलाकात करी
- संभवतः इस मुलाकात मे तटस्थता के बदले में बिस्मार्क ने फ्रांस को राइन, बेल्जियम व प्लेटीनेट के क्षेत्र दिलाने का वचन किया
- जब प्रशा ने होलस्टाइन के क्षेत्रों में विद्रोह भड़काया तो ऑस्ट्रिया ने गेस्टाइन समझौते को भंग कर दिया एव श्लेसविग व होलस्टाइन के मामले को जर्मन परिसंघ मे ले जाने की बात कही
- जब ऑस्ट्रिया ने गेस्टाइन समझौते को भंग कर दिया तो बिस्मार्क ने भी इसे मानने से इंकार कर दिया एव अपनी सेनाएं होलस्टाइन मे भेज दी एव ऑस्ट्रिया ने इस मामले में जर्मन परिसंघ को भड़काने का बहुत प्रयास किया किंतु कोई परिणाम नही निकला
- बिस्मार्क जर्मन परिसंघ पर ऑस्ट्रीया के प्रभाव को कम करना चाहता था इसलिए उसने आगे बढ़कर ऑस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया ऑस्ट्रिया पराजित हो जाता है तो बिस्मार्क उसे जर्मन परिसंघ को भंग घोषित करवा सकता था
- सेडोवा के युद्ध 1866 मे ऑस्ट्रीया पराजित हुआ एव उसे प्रशा के साथ प्राग की संधि (23 अगस्त 1866) करनी पड़ी जिसके अनुसार
- ऑस्ट्रिया ने जर्मन परिसंघ को भंग करना स्वीकार किया
- ऑस्ट्रिया ने प्रशा के नेतृत्व में उतरी जर्मन राज्यो का संघ बनाना स्वीकार किया
- ऑस्ट्रिया ने क्षति पूर्ति देना भी स्वीकारा
- इटली को वेनेशिया मिला
- इस संधि के बाद प्रशा के नेतृत्व में 21 जर्मन राज्यो का संघ बना जिसका प्रशासन चलाने के लिए 02 सदन बनाये गए
- राइखस्टैन – इसके सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते थे
- राइखस्रात / बुंदेसरात– इस सदन में प्रत्येक जर्मन राज्य अपने प्रतिनिधि भेजेगा
- ऑस्ट्रिया की पराजय को फ्रांस की पराजय माना गया
जर्मनी का एकीकरण का तृतीय चरण
■ फ्रांस – प्रशा युद्ध 1870
- प्रशा के शासक होहेनजोर्लोन वंश के थे
- प्रशा दक्षिण जर्मन राज्यो का एकीकरण करना चाहता था किंतु ये राज्य फ्रांस के प्रभाव में थे इसलिए प्रशा को फ्रांस से युद्ध लड़ना पड़ा
- बिस्मार्क कहता था कि ए वॉर विद फ्रांस ल इन लॉजिक ऑफ हिस्ट्री जिसका अर्थ है प्रशा का फ्रांस के साथ युद्ध इतिहास की तर्कसंगत परिणीति है
■ प्रशा एव फ्रांस में युद्ध के कारण
- फ्रांस ने सेडोवा के युद्ध मे तटस्थ रहने के लिए राइन व प्लेटीनेट के क्षेत्र प्रशा से मांगे किंतु बिस्मार्क ने कोई जवाब नही दिया
- फ्रांस ने बेल्जियम के क्षेत्रों पर अधिकार के लिए प्रशा से सहयोग मांगा किंतु बिस्मार्क ने इंकार कर दिया
- फ्रांस हॉलेंड से लक्जेमबर्ग खरीदना चाहता था किंतु प्रशा ने इस पर रोक लगवा दी
- युद्ध का तत्कालीन कारण
- स्पेन के उत्तराधिकार का प्रश्न –
- 1868 मे स्पेन में मार्शल ब्रिन के नेतृत्व में विद्रोह हो गया एव रानी इसाबेला को सिहांसन से हटा दिया गया
- स्पेन में किसको शासक बनाया जाए इसको लेकर यूरोप की राजनीति में तनाव उत्पन्न हो गया
- जून 1870 में बिस्मार्क के कहने पर प्रशा के राजकुमार लियोपोल्ड ने स्पेन के राजा का पद संभालना स्वीकार किया जिसका विरोध फ्रांस ने किया
- जुलाई 1870 में फ्रांस का राजदूत बेनेदिति एम्स नामक स्थान पर प्रशा के राजा से मिला एव लियोपोल्ड का नाम वापस लेने को कहा
- 12 जुलाई को लियोपोल्ड ने अपना नाम वापस ले लिया
- 13 जुलाई को बेनेदिति पुनः एम्स मे प्रशा के राजा से मिला एव लिखित में आश्वासन मांगा की भविष्य मे भी प्रशा के वंश का राजकुमार स्पेन का शासक नही बनेगा राजा विलियम प्रथम ने ऐसा लिखित आश्वासन देने से मना कर दिया 13 जुलाई की बातचीत का विवरण विलियम ने तार के द्वारा बिस्मार्क के पास भेज दिया (एम्स का तार)
- 14 जुलाई को बिस्मार्क ने नार्थ जर्मन गजट समाचार पत्र में एम्स के तार को संक्षिप्त रूप में प्रकाशित करवा दिया जिससे फ्रांस की जनता उतेजित हो गयी
- केटलबी लिखता है कि एम्स के तार की सम्पूर्ण इबारत (भाषा) युध्द के स्थान पर बातचीत का निमंत्रण थी जबकि संक्षिप्त इबारत बातचीत के स्थान पर तलवार की धार नजर आ रही थी
- 14 जुलाई फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस था फ्रांस की जनता ने प्रशा के साथ युद्ध की मांग करी
- फ्रांस ने युद्ध लड़ने से पहले ऑस्ट्रिया से मदद मांगी किंतु ऑस्ट्रिया ने इंकार कर दिया
- अगस्त 1870 में ब्रिसेनबर्ग व ग्रेवलाट के युद्धों में प्रशा ने फ्रांस को पराजित किया
- 1 सितंबर 1870 को सेडान के युद्ध मे फ्रांस निर्णायक रूप से पराजित हुआ इस युद्ध मे नेपोलियन तृतीय ने आत्मसमर्पण कर दिया
- सेडान के युद्ध मे पराजय के बाद फ्रांस की गणतंत्र सरकार गिर गयी और पेरिस में कम्यून बनी जो मजदूरों के नियंत्रण में थी एव फ्रांस की सरकार वर्साय चली गयी
- 18 जनवरी 1871 को प्रशा के राजा विलियम प्रथम ने वर्साय के महलो मे राज्याभिषेक करवाया
- 10 मई 1871 को फ्रैंकफर्ट की संधि हुई जिसके द्वारा फ्रांस ने अल्सास, लोरेन, मेज व स्ट्रॉसबर्ग के क्षेत्रों व क्षतिपूर्ति देना स्वीकार किया इसी संधि ने प्रथम विश्व युद्ध की नींव रखी
- फ्रांस पर 20 करोड़ पोंड युद्ध हर्जाना थोपा गया फ्रांस जबतक यह राशि चुका नही देता तब तक जर्मन सैनिक उतरी फ्रांस में तैनात रहेंगे
- इस युद्ध के कारण रोम पर इटली का अधिकार हो गया और जर्मनी व इटली का एकीकरण पूरा हो गया
- हेजन ने फ्रैंकफर्ट की संधि को यूरोप का रिसने वाला फोड़ा बताया
- इसी संधि के बाद में यूरोप की राजनीति में गुटबंदिया प्रारंभ हो गयी एव अराजकता का माहौल उत्पन्न हो गया सैन्यवाद व शस्त्रीकरण ने शान्ति की बातों को खोखला साबित कर दिया
- यद्यपि जर्मनी व इटली ने अपना एकीकरण कर लिया किंतु इस एकीकरण ने यूरोप में ब्रिटेन व फ्रांस की राजनीति को कमजोर कर डियाप