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राजस्थान के रीति रिवाज -प्रमुख संस्कारगर्भाधानपुंसवन सीमन्तोन्नयनजातकर्मनामकरण निष्क्रमणअन्नप्राशनचूड़ाकर्म (जड़ूला)कर्णवेधविद्यारम्भउपनयनवेदारम्भकेशान्तसमावर्तनविवाहअंत्येष्टिविवाह संबंधि – राजस्थान के रीति रिवाजसगाई – राजस्थान के रीति रिवाजसावो/ सावाटीका गोद भराईचिकनी कोथली – राजस्थान के रीति रिवाजलग्न इकताईभात न्यूतना / बतीसी न्युतना बान बैठानाचाक पूजनकांकड़ / कांकन डोरा बांधनानिकासी सामेला / मधुपर्क ढुकावतोरणफेरे हथलेवकन्यादानपगधोईजुआ जोईविदाई सुहावड़शोक या गम की रस्मे – राजस्थान के रीति रिवाजअर्थी या बैकुंठी – राजस्थान के रीति रीवाजपनिवाड़ापिंडदान बखेरआघेता मुखाग्नि / लोपाकपालक्रिया –सातरवाड़ाफूल चुननामुकान / मोकानमौसरजोसरश्राद्ध अन्य महत्वपूर्ण राजस्थान के रीति रिवाजआणो बिनोटाबढार किणगोला, दरोगा, चाकर, चेलाजनोटणमुगधना बडालियामिसल सिरावनटूंटीयाओका-नोका-गुणाधावड़ियानांगलहिरावनी जलवा पूजनओलंदीछोल रियाण
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राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questions
राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं PDF
शादी विवाह के रीति रिवाज Book PDF
भारतीय रीति-रिवाज एवं परंपराओं की वर्तमान में प्रासंगिकता
- मनुष्य के जीवन का काल 100 वर्षो का माना गया है जिसे 4 भागो (आश्रमों) में बांटा जाता है
- ब्रह्मचर्य आश्रम
- गृहस्थ आश्रम
- वानप्रस्थ आश्रम
NOTE- इन प्रथम तीनो आश्रमों का उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद में मिलता है
- संन्यास आश्रम
NOTE- सम्पूर्ण चारो आश्रमो का उल्लेख -जाबालोपनिषद में मिलता है
NOTE- सर्वश्रेष्ठ आश्रम – गृहस्थ आश्रम
राजस्थान के रीति रिवाज -प्रमुख संस्कार
गर्भाधान
पुंसवन
- गर्भधारण के तीसरे माह में
सीमन्तोन्नयन
- – गर्भधारण के चौथे माह से 8 वे माह में गर्भवती स्त्री को अमंगलकारी शक्तियों से बचाने हेतु संस्कार किया जाता है
जातकर्म
- – जन्म के उपरांत
नामकरण
- – जन्म के 10 वे या 12 वे दिन
निष्क्रमण
- – जन्म के चौथे माह में घर से बाहर निकलना
अन्नप्राशन
- – जन्मोपरांत 6वे माह में माता पिता द्वारा शिशु को घृत, दूध, दही खिलाना
चूड़ाकर्म (जड़ूला)
- – 1 से 7 वर्ष की आयु में केश मुंडन
कर्णवेध
- – 6 से 7 माह से 6 – 7 वर्ष की आयु तक कान छिदवाना
विद्यारम्भ
- – 5 वर्ष की आयु में अक्षर ज्ञान करवाना
उपनयन
- – 8 से 12 वर्ष की आयु में यज्ञोपवीत धारण
वेदारम्भ
- – उपनयनोपरांत संस्कार के बाद वेदपाठ करना
केशान्त
- – 16 वर्ष की आयु में ढाढ़ी मूछ केश मुंडन
समावर्तन
- – गृहस्थ जीवन मे प्रवेश
विवाह
- – गृहस्थ जीवन की शुरुआत
अंत्येष्टि
- – मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार (देहदान)
विवाह संबंधि – राजस्थान के रीति रिवाज
सगाई – राजस्थान के रीति रिवाज
- – किसी लड़की के लिए लड़का देखे जाने की प्रकिया
सावो/ सावा
- – विवाह का शुभ मुहूर्त
टीका
- – विवाह निश्चित होने पर जो उपहार लड़की के पिता की ओर से लड़के के लिए भेजे है
गोद भराई
- – वर पक्ष द्वारा वधु पक्ष को दिए जाने वाले वस्त्राभूषण
चिकनी कोथली – राजस्थान के रीति रिवाज
- – वर पक्ष की ओर से वधु पक्ष के लिए जो गहने, कपड़े मिठाई दी जाती है उसे ही चिकनी कोथली कहते है
लग्न
- – विवाह के 3/5/7/9/11 दिन पूर्व लग्न पत्रिका पुरोहित (ब्राह्मण) द्वारा तैयार की जाती है
इकताई
- – वर / वधु के कपड़ो का नाम लेना
भात न्यूतना / बतीसी न्युतना
- – इस अवसर पर वर / वधु की माता अपने पीहर वालो को निमंत्रण देने की कामना एवं सहयोग प्राप्त करने जाती है
बान बैठाना
- – गणेश पूजन के पश्चात (हल्दी की रस्म) पिटी उबटन लगाना
चाक पूजन
कांकड़ / कांकन डोरा बांधना
- – विवाह के पूर्व वर एवं वधु के हाथ मे बांधा गया (लाल मोती) का धागा
निकासी
- – विवाह के एक दिन पूर्व वर अपने सम्बन्धियो एवं मित्रो के साथ वधु के घर की ओर प्रस्थान करता है उसे ही निकासी / जान चढ़ाना कहते है
सामेला / मधुपर्क
- – जब वर, वधु के घर पहुंचता है तो वधु के पिता द्वारा संबंधियो का स्वागत करना
ढुकाव
- – वर जब घोड़ी पर बैठकर वधु के घर पहुंचता है
तोरण
- – जब वर कन्या के घर पहुंचता है तो घर के दरवाजे पर बंधे तोरण को घोड़ी पर बैठे हुए छड़ी या तलवार से 07 बार छूता है तोरण एक मांगलिक चिह्न है
फेरे
- – अग्नि को साक्षी मानकर 7 फेरे लेना साथ फेरो के पश्चात वैद्य रूप से विवाह पूर्ण माना जाता है
हथलेव
- – इस रस्म के अनुसार वर द्वारा वधु का हाथ अपने हाथ मे लेकर अग्नि के चारो ओर घुमकर 7 फेरे लेता है
कन्यादान
- – वधु के पिता द्वारा
पगधोई
- – वर / वधु के पैर धोने की रस्म
जुआ जोई
- – एक प्रकार का खेल
विदाई
- – विवाह के बाद वर वधु को विदा किया जाना
सुहावड़
- – नव प्रसूता स्त्री के लिए बनाई गई खाद्य सामग्री
शोक या गम की रस्मे – राजस्थान के रीति रिवाज
अर्थी या बैकुंठी – राजस्थान के रीति रीवाज
- – मृत्यु हो जाने पर श्मशान घाट तक लकड़ी की शैय्या पर मृत व्यक्ति को ले जाना
पनिवाड़ा
- – शव यात्रा में शामिल व्यक्ति
पिंडदान
- – आटे से बना लड्डू
बखेर
- – व्यक्ति को श्मशान घाट ले जाते समय इस पर कौड़िया, रुपये, रुई आदि उछाले जाते है इस रस्म को बखेर कहते है
आघेता
- – घर और श्मशान यात्रा के बीच दिशा परिवर्तन करना
मुखाग्नि / लोपा
- – अग्नि की आहुति
कपालक्रिया –
सातरवाड़ा
- – अंतिम संस्कार होने के उपरांत अंत्येष्टि में गए व्यक्तियों के द्वारा स्नान करना
फूल चुनना
- – दाह संस्कार के तीसरे दिन मृतक के सबंधी श्मशान जाकर दाँत, हड्डिया एकत्र करते है
मुकान / मोकान
- – पड़ोसियों, संबंधित परिजनों द्वारा परिवार के लोगो को धेर्य बंधवाना
मौसर
- – 11-12 वे दिन मृतक के परिवारजन अपनी जाति एव संबंधियो को भोजन करवाते है
जोसर
- – जीवित अवस्था मे भोजन करवाना
श्राद्ध
- – अश्विन माह में जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई थी
अन्य महत्वपूर्ण राजस्थान के रीति रिवाज

आणो
- – विवाह के पश्चात दुल्हन को दूसरी बार ससुराल भेजना
बिनोटा
- – दूल्हा दुल्हन की विवाह की जूतियां
बढार
- – विवाह के अवसर पर प्रतिभोज
किण
- – ग्रामीण क्षेत्रो में सब्जी एवं अन्य समान खरीदने के बदले में दिया जाने वाला अनाज
गोला, दरोगा, चाकर, चेला
- – घरेलू दास
जनोटण
- – वर पक्ष की ओर से दिया जाने वाला भोज
मुगधना
- – भोजन पकाने के लिए लकड़ियों जो विनायक स्थापना के पश्चात लाई जाती है
बडालिया
- – वैवाहिक संबंधों में मध्यस्थता करने वाला
मिसल
- – राजदरबार में पंक्तिबद्ध तरीके से बैठने की रीति
सिरावन
- – कृषकों का सुबह का भोजन
टूंटीया
- – बारात जाने के बाद पीछे से वर पक्ष के घर रात को महिलाओं के द्वारा गाये जाने वाले गीत एव खेल को कहते है
ओका-नोका-गुणा
- – गोबर की आकृति
धावड़िया
- – जो कारवाँ या काफिले को लूटते थे
नांगल
- – नया मकान बनाने या उद्धघाटन की रस्म
हिरावनी
- – विवाह के दौरान वधु को दिया जाने वाला कलेवा
जलवा पूजन
- – बच्चे के जन्म स कुछ दिन पश्चात
ओलंदी
- – नववधू के साथ जाने वाली लड़की
छोल
- – दुल्हन की झोली भरने की रीत
रियाण
- – पश्चिमी राजस्थान में विवाह के बाद कि जाने वाली अफीम की मान मनुहार
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